भगवान श्री राम न ही इंसान है और न ही भगवान हैं ! भगवान श्रीराम का व्यक्तित्व एक ऐसा व्यक्तित्व है जिसे आप इंसान के दृष्टिकोण से देखें तो वह एक मर्यादा पुरुषोत्तम इंसान के रूप में नजर आते हैं लेकिन इसके विपरीत यदि आप उन्हें भगवान के रूप में देखें तो वह साक्षात विष्णु का अवतार नजर आते हैं !
यह संघर्ष राम के जन्म के साथ ही शुरू हो गया था ! आदि कवि महान बाल्मीकि ने उन्हें राजकुमार के रूप में देखा और अपने अधिकारों के लिए लड़ते हुए एक योद्धा राजा के रूप में उनके व्यक्तित्व का वर्णन रामायण नामक ग्रंथ में किया !
किंतु इसके साथ ही गोस्वामी तुलसीदास ने राम को मात्र मनुष्य रूपी राजा नहीं माना बल्कि उन्हें साक्षात विष्णु का अवतार मानते हुए रामचरितमानस की रचना की !
किंतु इन दोनों लेखक कौन हैं और राम के चरित्र को लेकर उनमें इतना मतभेद क्यों है यह विचार का विषय है ! इसके पीछे उस समय की वैश्विक राजनीति का अंतर स्पष्ट नजर अंदाज आता है ! जिस वजह से एक ने राम को राजा माना और दूसरे ने भगवान !
यही कारण है कि कई स्थानों पर महर्षि बाल्मीकि और गोस्वामी तुलसीदास की लेखनी एक दूसरे की विरोधाभासी भी हैं ! जैसे महर्षि वाल्मीकि ने रावण को वेद अनुयाई, अत्यंत ज्ञानी, प्रकांड ब्राह्मण माना है ! जो स्वयं तो त्रिकाल संध्या करता ही था और उसने अपने पूरे साम्राज्य में सभी नागरिकों के लिए वेद पाठ और त्रिकाल संध्या अनिवार्य कर रखा था !
इसके विपरीत गोस्वामी तुलसीदास ने रावण को वेद विरोधी जीवनचर्या जीने वाला राक्षस घोषित कर रखा है ! जो मांस मदिरा का सेवन कर, औरतों के अपहरण और बलात्कार में रुचि रखता है !
इस तरह महर्षि बाल्मीकि रावण को जहां विद्वान तपस्वी ब्रह्म कुल का तेजस्वी ब्राह्मण मानते हैं ! वही गोस्वामी तुलसीदास रावण को विशुद्ध राक्षस मानते हैं !
इसी तरह राम चरित मानस में बाली और सुग्रीव के कुल का विस्तृत वर्णन नहीं किया गया है !
जो कि कामुक अहिल्या और इन्द्र तथा वरुण की नाजायज औलादें थीं ! जिनके लिये हनुमान जो कि बाली और सुग्रीव के भांगे थे उन्हें ने बाली और सुग्रीव के विवाह के लिये लंका के राज वैध सुसेन की दोनों बेटियों तारा और रुमा का अपहरण किया था ! इस घटना वर्णन राम चरित्र मानस ग्रंथों में नहीं आता है !
राम चरित मानस में इंद्र, वरुण, सूर्य, अहल्या के अहंकार, वासना और कुटिलता को भी छिपाने का प्रयास किया गया है !
इसी तरह राम चरित मानस में उस समय के महान अन्तरिक्ष वैज्ञानिक कुंभकरण को तो घनघोर आलसी घोषित किया गया है ! साथ ही कुलदीपक रावण के छोटे भाई विभीषण जो कि मरते वक्त तक रावण के प्रति वफादार था ! उसे भी घर का भेदी घोषित किया गया है !
बालि जो कि रिश्ते में रावण का साला ही नहीं बल्कि उस समय का दक्षिण भारत का सबसे बड़ा व्यवसायी और प्रबल संगठन करता था ! जिसके भय से सुग्रीव की सेना राम की मदद नहीं कर सकती थी ! जिस भय को ख़त्म करने के लिये राम ने छल पूर्वक बालि की हत्या की ! उस प्रतापी इन्द्र पुत्र बाली को राम चरित्र मानस में गोस्वामी तुलसीदास द्वारा विलियन घोषित कर दिया गया !
लक्ष्मी के पिता राजा समुद्र जो कि दक्षिण भारत के समुद्र तट के मछुआरों के राजा थे ! जो कि समुद्री रत्न के खोज और समुद्र में खनन का कार्य करते थे ! उन्हें राम को महानायक घोषित करने के लिए मनुष्य न बतलाते हुये काल्पनिक समुद्र के लहरों से उत्पन्न व्यक्ति बतला दिया गया ! जिससे राम को इन्सान से पञ्च तत्व नियन्ता भगवान घोषित किया जा सके !
सूपनखा, ताड़का, खर-दूषण, मारीच आदि जैसे रक्ष संस्कृति के विद्वान् योद्धा आज बहुत से ऐसे नाम हैं ! जिनके साथ तुलसीदास जैसे वैष्णव चाटुकार लेखकों ने न्याय नहीं किया और आज का समाज अज्ञानता वश इन्हें विलयन मानता है ! लेकिन अपने नानी ‘सुकेतुसुता जिसे तुलसीदास ने तड़का कहा उसकी हत्या का उलेहना लेकर वार्ता करने जाने वाली वृद्धा महिला मीनाक्षी जिसे तुलसीदास ने सूपनखा कहा के नाक कान काट लेने वाले लक्ष्मण के कृत्यों पर सब मौन हैं !
राम द्वारा अपने संपूर्ण समर्पित छोटे भाई लक्ष्मण को इतनी मानसिक यातना दी गयी कि वह राजमहल छोड़कर सरजू नदी के तट पर जाकर अवसाद की अवस्था में बैठ गये और वही हृदयाघात से उसकी मृत्यु हो गई !
संपूर्ण समर्पित सुखों में पली राजकुमारी माता सीता जो कि राम की पत्नी भी थी ! जिन्होंने राम के वनवास काल के दौरान अपना संपूर्ण सुख त्याग कर उनका साथ दिया ! उसे भी राम ने गर्भाकाल अवस्था में जब किसी महिला को सबसे अधिक सुरक्षा की आवश्यकता होती है तब उसे उनके भाग्य के भरोसे छोड़ कर उनका त्याग कर उसे जंगल भेज दिया !
अपने ही संतानों के वात्सल्य काल में जब किसी बच्चे को अपने पिता की सबसे ज्यादा आवश्यकता होती है ! तब राम ने सत्ता सुख भोगने के दौरान अपने ही बच्चों से कठोरता पूर्वक अपना मुंह मोड़ लिया और उन्हें अनाथों की तरह किसी महर्षि के आश्रम में पालना पड़ा ! जो अत्यंत निंदनीय कार्य है ! ऐसा व्यक्ति मर्यादा पुरुषोत्तम कैसे हो सकता है ?
इसी तरह के अनेकों तथ्य आज शोध में निकल कर सामने आ रहे हैं ! यह सभी विषय विचार के योग्य हैं ! इस दृष्टिकोण से इन चाटुकार वैष्णव लेखकों की पुन: समीक्षा आवश्यक है ! जिन्होंने अपने धर्म की दुकान चलाने के लिये सामान्य राजनैतिक इन्सान राम को भगवान घोषित करने के लिये भारत का इतिहास ही बदल दिया !!