त्याग से नहीं विरक्ति से मोक्ष प्राप्त होता है !! Yogesh Mishra

त्याग और विरक्ति यह मन की दो अलग-अलग स्थिती है ! त्याग मनुष्य बल पूर्वक करता है ! विरक्ति मन की सहज अवस्था है ! त्याग में व्यक्ति चयन करता है क्या छोड़ें क्या न छोड़ें परन्तु विरक्ति में व्यक्ति का किसी भी चीज के प्रति आकर्षण नहीं होता है ! त्याग स्थूल जगत से संबंध रखता है विरक्ति अन्तः जगत से सम्बन्ध रखती है !

अर्थात जीवन और जगत की अपरिहार्य आवश्यकताओं को छोड़ देना त्याग है ! त्याग के दो रूप हैं-ऐच्छिक और अनैच्छिक ! ऐच्छिक त्याग से सुखानुभूति होती है और अनैच्छिक त्याग से दुखानुभूति ! दूसरी तरफ विरक्ति में सांसारिक संबंधों एवं राग-द्वेष, काम-क्रोध, लोभ-मोह आदि से निर्लिप्त हो जाना विरक्ति है !

इसी को पुराण में कहा गया है कि संसार कालकूट विष से भी भयंकर विष है ! इसमें मिथ्यात्व का भाव रखकर ही इसके विष को नष्ट किया जा सकता है ! सांसारिक भोगों से इंद्रियों की तृप्ति नहीं होती, अतएव विचारपूर्वक मन, वाणी तथा कर्म से भोगों के प्रति विरक्ति का भाव रखना ही श्रेयस्कर है !

श्रीमद् भागवत गीता के अनुसार “भोग की इच्छा ही मनुष्य के अनेक योनियों में जन्म लेने का कारण है ! लौकिक तथा पारलौकिक इन दोनों को हेय समझकर जो इनका परित्याग कर देता है वही विरक्त है !” हमारे ऋषि-मुनियों के जीवन में त्याग और विरक्ति का अद्भुत सामंजस्य रहा है ! उन्होंने जिस साधना मार्ग को अपनाया वह उनके स्वयं के साथ-साथ समाज और देश के लिए भी कल्याणप्रद सिद्ध हुआ था ! और जब से इस मार्ग का त्याग कर दिया हम निरन्तर विनाश की तरफ बढ़ रहे हैं !

संसार अज्ञानमूलक है ! निष्काम कर्म के द्वारा जीव में कर्ता व भोग का भाव क्षीण होता है कामना का अज्ञान अंधकार नष्ट हो जाता है ! सर्वत्र कोटि सूर्य सम प्रकाश की ज्योति उसे निरंतर जगाए रहती है ! तब उसका वाह्यनेत्र भले ही बंद रहें, लेकिन अंतर्चक्षु खुले रहते हैं ! ज्ञान सूर्य से प्रकाशित जीवात्माएं जीवन-मरण के चक्र से मुक्त हो जाती है ! उन्हें शरीर की मृत्यु प्रभावित नहीं करती !

वह जान जाते हैं कि आत्मा तो नित्य है, शाश्वत है, वह कभी नहीं मरती ! उसे वही जान पाता है, जो आत्मसाक्षात्कार कर स्वयं में स्थित हो जाता है ! स्वयं में स्थित होना ही परमात्मा में स्थित होना है ! इस स्थिति को जीव उस समय प्राप्त कर पाता है जब वह त्याग और विरक्ति दोनों ही मार्ग को अपनाता है ! त्याग और विरक्ति के लिए आवश्यक है कि संसार में आसक्ति का भाव न हो ! त्याग के द्वारा इस भवसागर को पार किया जा सकता है ! किन्तु विरक्ति के द्वारा ही जीव को मुक्ति प्राप्त होती है ! यही सांसारिक आवागमन से मोक्ष है !!

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योगेश कुमार मिश्र 

ज्योतिषरत्न,इतिहासकार,संवैधानिक शोधकर्ता

एंव अधिवक्ता ( हाईकोर्ट)

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