क्या गहन साधना के लिये निर्मित हुये थे टर्की के भूमिगत कस्बे !! : Yogesh Mishra

सभी सनातन धर्म को मानाने वाले जानते हैं कि साधना 20 डिग्री से काम तापमान पर जितनी अच्छी तरह हो सकती है अन्य उच्च तापमान पर सम्भव नहीं है ! क्योंकि कि 20 डिग्री से कम तापमान पर पसीना नहीं आता है ! उमस और गर्मी नहीं लगती है ! परिणाम स्वरूप मक्खी और मच्छर परेशान नहीं करते हैं !

शरीर की अंतर भी कोशिकायें सघन हो जाती हैं जो कि व्यक्ति को साधना करने में सहायक होती है ! इसीलिये प्राय: साधक हिमालय पर चले जाते हैं क्योंकि वहां का तापमान साधना के अनुरूप होता है ! प्रायः देखा जाता है कि जो लोग हिमालय आदि पर जाने में सक्षम नहीं होते हैं, वह लोग भी परमिट आकार के मंदिरों या भवनों का निर्माण करवाते हैं ! जहां पर तापमान कम से कम किया जाना संभव हो सके और लोग उन में गंभीर साधनायें करते हैं !

सभी जानते हैं कि आज से 3000 साल से पहले पूरी दुनिया में बस सिर्फ सनातन धर्म ही था ! अन्य धर्मो का विकास पिछले 3000 वर्षों के अन्दर ही हुआ है ! अर्थात कभी आज के टर्की में भी 8th–7th (BC) पूर्व सनातन धर्म ही रहा होगा ! आश्चर्य जनक बात यह है कि सन 1963 में ओमेर डेमिर नामक खोज कर्ता ने एक एक्सपीडिशन के दौरान टर्की के चप्पा डोकिया कसबे के करीब एक बहोत गहरे छेद को देखा ! ज़मीन पर बना यह छेद किसी आम गुफा का मुहाना नहीं लग रहा था ! उन्होंने छेद के अंदर प्रवेश कर निरीक्षण करने का मन बनाया ! जब ओमेर डेमिर ने उस छेद के अंदर झाँका उन्हें एक रास्ता दिखाई दिया जो बहुत ही खड़ी ढलान लियह हुयह था !

वह उस रास्ते के सहारे उतरते गयह ! काफी गहराई में उतरने के बाद उन्हें अहसास हुआ की यह ज़मीनी छेद प्राकृतिक तौर पर नहीं बना है बल्कि मानव निर्मित है ! थोड़ा और नीचे उतरने पर जो उन्हें दिखाई दिया वह चौंका देने वाला था ! तब उन्हें ज्ञानत हुआ कि उन्होंने प्राचीन काल के खोये हुये भूमिगत शहरों के जटिल तंत्र की खोज कर ली है और उन्होंने इसे तुर्की भाषा में नाम दिया “डेरिनकोयु” अर्थात “गहरा छेद“ !

उस गहरे छेद के अंदर अंतहीन सुरंगों का जाल था जो 13 मालों की बड़ी बड़ी गुफाओं के काम्प्लेक्स को आपस में जोड़ रहा था ! हर गुफा नुमा कक्ष एक लम्बी लंबवत वर्टिकल सुरंग से जुड़ी हुई थी ! जिससे शुद्ध हवा बाहरी वातावरण से हर कक्ष तक आती थी और शीतलता को भी अधिकतम 20 डिग्री तक बनाये रखती थी ! इन लंबवत वर्टिकल सुरंगों का तंत्र एयर कंडीशनिंग की तरह काम कर रहा था !

ओमेर डेमिर यह देखकर दंग रह गये कि 13 माले के भूमिगत शहर की सबसे निचली या कहा जाये सबसे गहरे माले पर भी उतनी ही हवा पहुँच रही थी जितनी पहले माले पर थी ! आज के युग में ज़मीन से 290 फ़ीट नीचे बिना किसी आधुनिक उपकरण के ऐसा करना संभव ही नहीं है ! आने वाले एक्सपीडिशनस, उत्खननों और रिसर्च से यह ज्ञात हुआ की यह एक अकेला शहर नहीं था बल्कि इस प्राचीन बिल्डिंग काम्प्लेक्स से जुडी एक सुरंग 4 मील बाद एक और भूमिगत नगरी से जुड़ी हुई थी !

रिसर्च से यह प्रमाणित हुआ की इस छेद के नीचे 36 भूमिगत प्राचीन नगरों का जाल है जो 5 लाख से 10 लाख लोगों को शरण देने की क्षमता रखता है ! इन अंडरग्राउंड सिटीज में ध्यान हाल, पुस्तकालय, अनाज के भंडारण के लिए गोदाम, खाद्य तेल निकालने का कक्ष, प्रवचन कक्ष, सामूहिक भोजनालय और चिकित्सालय तक की व्यवस्था थी !

रिसर्च स्कॉलर्स ने यह अनुमान लगाया है कि डेरिनकोयु अल्पकालिक शरणार्थी शिविर नहीं हो सकता था जो कि मात्र बाहरी आक्रमणकारियों से बचने के लिए बनाया गया हो ! बल्कि यह गहन साधना स्थल था ! उन लोगों के लिये जो 8000 किलोमीटर दूर जाकर हिमालय में गहन साधना करने में सक्षम नहीं थे ! यह साधना स्थल लम्बे समय तक तपस्वी लोगों को आवास उपलब्ध कराने की क्षमता रखता था ! संभवतः दशकों तक एक पूरी सभ्यता सनातन काल में वहां विकसित हुई थी और बसी थी !

टर्किश डेवलपमेंट कलचर विभाग के अनुसार डेरिनकोयु 8th–7th (BC) बनाया गया रहा होगा लेकिन कुछ प्राचीन देवी देवताओं की कलाकृतियाँ जो इन भूमिगत शहरों में मिली हैं ! उनके कार्बन डेटिंग सिस्टम के अनुसार यह निर्माण 15th BC का भी हो सकता है ! सनातन धर्म के प्रभाव को न मानाने वाले डेरिनकोयु के बारे में आज भी विचार करते हैं कि आखिर किसी सभ्यता को इतनी वृहद् भूमिगत शहरों की क्यों ज़रुरत पड़ी होगी ?

इस पर तुर्की के रिसर्चर्स ने पहली वजह समझी थी कि बाहरी आक्रमणकारियों से सुरक्षा की वजह से इसका निर्माण किया होगा ! पर यह साबित कर पाना काफी कठिन था ! कारण यह था की अगर इतने विशाल स्तर पर खुदाई की जाये तो सतह पर मलबे के पहाड़ बन जायेंगे और आक्रमणकारी भाँप लेंगे कि यहाँ भूमिगत निर्माण हुआ था और भूमिगत नागरिकों को मरना उनके लिये और आसान होगा !

दूसरा कारण जो इस थ्योरी को इसलिये भी नकार रहा था कि उस प्राचीन कालखंड के सबसे उन्नत औज़ारों के इस्तेमाल के बाद भी शहरों का इतना बड़ा तंत्र कई दशकों या शायद सदियों में बनाना संभव हुआ होगा ! जो आक्रमण की सूचना के तत्काल बाद सम्भव नहीं है !

तीसरी थ्योरी के अनुसार प्राचीन तुर्कों की किवदंती के अनुसार उनके देवता ने उन्हें आने वाले हिम युग की जानकारी दी थी ! जिससे बचने के लिए डेरिनकोयु का निर्माण किया गया होगा ! किन्तु किसी भी थ्योरी को वैज्ञानिक तौर पर साक्ष्यों समेत साबित कर पाना संभव नहीं है ! हो सकता है सनातन धर्म को न मानने वाले कभी भी नहीं जान पायें कि इन भूमिगत शहरों के नेटवर्क के निर्माण की वजह क्या थी पर इससे भी बड़ा रहस्य यह है की इन्हे बनाया कैसे गया होगा और किसने बनवाया था ?

तुर्की के जिस चप्पा डोकिया कस्बे में डेरिनकोयु मिला है ! उस क्षेत्र की मिटटी और पत्थर बहुत मुलायम हैं ! ऐसे में ज़मीन से 290 फ़ीट नीचे सुरँगों का जाल और कक्ष बनाना खतरे से खाली नहीं हो सकता था ! पत्थर और मिटटी की ऐसी प्रकृति होने पूरे के पूरे भूमिगत शहरों के तंत्र के ढहने की प्रबल संभावना भी बनी रहती होगी ! फिर भी अरबों टन वज़न को इस भूमिगत तंत्र ने बखूबी सम्हाल रखा है और आज भी मज़बूत बना हुआ है जो कि प्राचीन काल के उन्नत आर्किटेक्चरल इंजीनिरिंग के कौशल का क्षेष्ठ प्रदर्शन है !

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योगेश कुमार मिश्र 

ज्योतिषरत्न,इतिहासकार,संवैधानिक शोधकर्ता

एंव अधिवक्ता ( हाईकोर्ट)

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