क्या भगवान शिव नशेड़ी थे : Yogesh Mishra

कल भगवान शिव की मैरेज एन्वर्सरी है ! जिसे हिन्दू शिवरात्रि के नाम से जानते हैं और नशा प्रधान राज्य पंजाब ही नहीं पूरा देश कल शिवरात्रि के उत्सव को मनाने के लिए भांग, गांजा, अफीम, चिलम की तलाश कर रहा है !

अब प्रश्न यह है कि क्या भगवान शिव नशा करते थे ! उत्तर यह है कि भगवान शिव स्वयं में एक दिव्य ऊर्जा हैं जो समस्त ब्रह्मांड को संचालित करते हैं ! आज इस ब्रह्मांड में जो भी कुछ विद्यमान है, वह भगवान शिव की उर्जा से ही निर्मित, संचालित, विकसित और विनाश को प्राप्त हो रहा है !

फिर प्रश्न यह है कि जो भगवान विशुद्ध ऊर्जा रूप में समस्त ब्रह्मांड को संचालित कर रहे हैं ! जिसमें 8 अरब आकाशगंगायें हैं ! वह खरबों खराब ग्रह नक्षत्रों के बीच इस पृथ्वी जैसे रेत के कण के समान ग्रह की एक नशीली वनस्पति का सेवन क्यों करेंगे ?

दूसरा शास्त्रों में कहीं भी वर्णन नहीं मिलता है कि भगवान शिव कभी भी अफीम, चरस, गांजा, भांग आदि का सेवन किया करते थे ! हां आयुर्वेद में भांग को विजया कह गया है जो मस्तिष्क के ऑक्सीजन लेवल को ठीक करने के लिये औषधि के रूप में प्रयोग किया जाता था !

जिस विजया का सेवन ध्यान साधना करने वाले भक्त आरंभिक साधना की अवस्था में अवश्य किया करते थे ! जिससे कि उनके एकाग्रता का स्तर मस्तिष्क के अंदर भी ऑक्सीजन के लेवल को विकसित करके विकसित हो सके और जब धीरे-धीरे मस्तिष्क के एकाग्रता का स्तर विकसित हो जाता था, तो वह साधक भी भांग का प्रयोग बंद कर देते थे !

किंतु भारत के इतिहास में यह दुर्भाग्य रहा कि मुगल और अंग्रेजों ने जब भारत में अपना शासन किया तो उन्हें ने भारतीयों में नशे की लत पैदा करने के लिये यह दुष्प्रचार किया कि भगवान शिव स्वयं नशेड़ी थे !
इस पीछे मुख्य उद्देश्य यह था कि भारत का युवा वर्ग इन मुगल और अंग्रेजों का विरोध न करे, बल्कि नशे में डूबा रहे ! इसी नशे की प्रवृत्ति से पैसा कमाने के लिये अंग्रेजों ने भारत में भांग की बहुत बड़े पैमाने पर खेती करवाई और उससे अफीम, गांजा, चरस आदि को आधुनिक विज्ञान की मदद से विकसित किया और इसका निर्माण कर पूरे एशिया में धन कमाने के लिए उसे सभी महत्वपूर्ण शहरों में अफीम कोठियों की स्थापना करके बेचा !

जिस वजह से भारतीयों में भी भांग, गांजा, अफीम, चरस आदि का आकर्षण बढ़ा और समाज में इस नशे की सामान्य स्वीकृति के लिए यह प्रचारित किया गया कि भगवान शिव स्वयं नशा करते थे ! जबकि वास्तव में कहीं भी ऐसा कोई भी प्रमाण नहीं मिलता है !

हां आयुर्वेद में भांग को विजया कहकर मानसिक रोगों की औषधि बनाने में इसके प्रयोग का वर्णन जरुर मिलता है लेकिन आधुनिक विज्ञान के विकसित होने के पूर्व के किसी भी साहित्य में अफीम, गांजा, चरस, कोकीन, हशीश, आदि के प्रयोग का वर्णन कहीं नहीं मिलता है !

भगवान शिव एक अनादि ऊर्जा हैं, जो सतत विद्यमान हैं और सृष्टि के अंत तक विद्यमान रहेंगे ! इसी भाव और विश्वास के साथ भारत के देव दानव, असुर, राक्षस, गंधर्व, यक्ष, किन्नर, आदिवासी और सभी वनवासियों के आराध्य देव शिव ही हैं।

शैव जीवन शैली सनातन हिन्दू धर्म में भारत के मूल आदिवासियों का अति प्राचीन धर्म है ! सभी दसनामी, शाक्त, सिद्ध, दिगंबर, नाथ, लिंगायत, तमिल शैव, कालमुख शैव, कश्मीरी शैव, वीरशैव, नाग, लकुलीश, पाशुपत, कापालिक, कालदमन और महेश्वर आदि सभी इस शैव धर्म से जुड़े हुए हैं ! चंद्रवंशी, सूर्यवंशी, अग्निवंशी और नागवंशी भी शिव की ही परंपरा से ही जाने और माने जाते हैं ! ऐसी दिव्य शक्ति कभी नशेड़ी नहीं हो सकती है !!

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योगेश कुमार मिश्र 

ज्योतिषरत्न,इतिहासकार,संवैधानिक शोधकर्ता

एंव अधिवक्ता ( हाईकोर्ट)

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