पुष्यमित्र सुंग ने बृहद्रथ को क्यों मारा
पूरा सत्य है यह है कि पुष्यमित्र सुंग नामक देशभक्त ने बृहद्रथ नामक देश के गद्दार को मारा अथवा उसे प्राणदंड की सजा दी ! असल में पुष्यमित्र शुंग, महाराज बृहद्रथ के सेनापति थे ! वह अत्यंत योग्य थे एवं राष्ट्रहित में चिंतित रहते थे ! उस काल में अशोक का वंशज राजा बृहद्रथ मगध का राजा था ! जो अयोग्य होने के साथ-साथ अदूरदर्शी भी था !
इधर मौर्य वंश के महान सम्राट चन्द्रगुप्त के पौत्र अशोक ने कलिंग युद्ध के पश्चात् बौद्ध धर्म अपना लिया था ! अशोक ने एक बौध सम्राट के रूप में लगभग 20 वर्ष तक शासन किया और अहिंसा का पथ अपनाते हुये उसने पूरे शासन तंत्र को बौद्ध धर्म के प्रचार व प्रसार में लगा दिया ! लेकिन, उसके अत्यधिक अहिंसा के प्रसार से भारत की वीर भूमि बौद्ध भिक्षुओ व बौद्ध मठों का गढ़ बन गई थी ! कहते है कि अशोक ने 84000 बुद्ध विहारों का निर्माण करवाया था ! उसके इस कदम से सारा राजकोष समाप्त हो गया था !
जिस कारण मगध साम्राज्य के मंत्रिमंडल ने अशोक को गद्दी से उतारकर उसके पौत्र को राजा बना दिया ! लेकिन, अशोक यहाँ तक भी नहीं रुका और उसने सैनिकों के कवच और अस्त्र उतरवाकर उन्हें बौद्ध भिक्षु बना दिया ! इससे राज्य की रक्षा पंक्ति टूट गई और, इस कारण भी आगे चलकर मगध राज्य कमजोर हो गई !
उससे आगे जब मौर्य वंश का नौवां अन्तिम सम्राट बृहद्रथ मगध की गद्दी पर बैठा ! तब उस समय तक आज का अफगानिस्तान, पंजाब व लगभग पूरा उत्तरी भारत बौद्ध बन चुका था !
जब सिकंदर व सैल्युकस जैसे वीर भारत के वीरों से अपना मान मर्दन करा चुके थे ! तब, उसके लगभग 90 वर्ष पश्चात् जब भारत से बौद्ध धर्म की अहिंसात्मक नीति के कारण भारत में वीरता का लगभग ह्रास हो चुका था और ग्रीकों ने सिन्धु नदी को पार करने का साहस दिखा दिया !
सम्राट बृहद्रथ के शासनकाल में ग्रीक शासक मिनिंदर जिसको बौद्ध साहित्य में मिलिंद कहा गया है, ने भारत वर्ष पर आक्रमण की योजना बनाई ! इसके लिये मिनिंदर ने सबसे पहले बौद्ध धर्म के धर्म गुरुओं से संपर्क साधा और, उनसे कहा कि अगर आप भारत विजय में मेरा साथ दें तो में भारत विजय के पश्चात् में बौद्ध धर्म स्वीकार कर लूँगा !
उसकी इस बात से प्रभावित होकर बौद्ध गुरुओं ने राष्ट्र द्रोह किया तथा भारत पर आक्रमण के लिये एक विदेशी शासक का साथ दिया ! इस तरह सीमा पर स्थित बौद्ध मठ राष्ट्रद्रोह के अड्डे बन गये और मिनिंदर के सैनिक बौद्ध भिक्षुओ का वेश रख कर मठों में आकर रहने लगे ! हजारों मठों में सैनिकों के साथ साथ हथियार भी छुपा दिये गये ! जिस तरह आज मह्जिदों में किया जा रहा है !
दूसरी तरफ़ सम्राट बृहद्रथ की सेना का एक वीर सैनिक पुष्यमित्र शुंग अपनी वीरता व साहस के कारण मगध की सेना का सेनापति बन चुका था ! एक सेनापति होने के नाते बौद्ध मठों में विदेशी सैनिको का आगमन उसकी नजरों से नही छुपा !
पुष्यमित्र ने सम्राट से मठों की तलाशी की आज्ञा मांगी परंतु, बौद्ध सम्राट वृहद्रथ ने धार्मिक भावना के मद्देनजर ऐसा करने से मना कर दिया ! किंतु राष्ट्रभक्ति की भावना से ओत प्रोत शुंग सम्राट की आज्ञा का उल्लंघन करके बौद्ध मठों की तलाशी लेने पहुँच गया और मठों में स्थित सभी विदेशी सैनिको को पकड़ लिया गया तथा उनको यमलोक पहुँचा दिया गया एवं उनके हथियार कब्जे में कर लिये गये ! सभी राष्ट्रद्रोही बौद्धों को भी ग्रिफ्तार कर लिया गया !
परन्तु, दुर्भाग्य से अय्याश वृहद्रथ को यह बात अच्छी नही लगी ! यह अभियान चला कर पुष्यमित्र जब मगध वापस आया ! तब उस समय बौद्धों के भड़काने पर सम्राट सैनिक परेड की जाँच कर रहा था ! सैनिक परेड के स्थान पर ही सम्राट व पुष्यमित्र शुंग के बीच बौद्ध मठों को लेकर कहा सुनी हो गई ! सम्राट वृहद्रथ ने पुष्यमित्र पर हमला करना चाहा परंतु पुष्यमित्र ने पलटवार करते हुये अपना बचाव किया ! जिस लड़ाई में सम्राट को चोट लगी और वह मर गया !
इस समय देशभक्त सैनिको ने पुष्यमित्र का साथ दिया तथा पुष्यमित्र को मगध का सम्राट घोषित कर दिया ! सम्राट बनने के बाद सबसे पहले मगध के नए सम्राट पुष्यमित्र ने राज्य प्रबंध को प्रभावी बनाया तथा एक सुगठित सेना का संगठन किया ! पुष्यमित्र ने अपनी सेना के साथ भारत के मध्य तक चढ़ आये मिनिंदर पर आक्रमण कर दिया ! भारतीय वीर सेना के सामने ग्रीक सैनिको की एक न चली और मिनिंदर की सेना पीछे हटती चली गई !
लेकिन पुष्यमित्र शुंग ने पिछले सम्राटों की तरह कोई गलती नही की तथा ग्रीक सेना का पीछा करते हुये उसे सिन्धु पार धकेल दिया ! इससे ग्रीक सेना इतनी भयभीत हो गई कि इसके बाद ग्रीक कभी भी भारत पर आक्रमण नही कर पाये !
इस तरह सम्राट पुष्य मित्र ने सिकंदर के समय से ही भारत वर्ष को परेशानी में डालने वाले ग्रीको का समूल नाश ही कर दिया ! तत्पश्चात बौद्ध धर्म के प्रसार के कारण वैदिक सभ्यता का जो ह्रास हुआ था वो पुन: ऋषिओं के आशीर्वाद से जाग्रत हुआ और राज दंड के भय से बौद्ध धर्म स्वीकार करने वाले पुन: वैदिक धर्म में लौट आये !
कुछ बौद्ध ग्रंथों में लिखा है कि पुष्यमित्र ने बौद्धों को सताया ! लेकिन यह भी अर्धसत्य है क्योंकि शुंग ने बौद्धों को नहीं सताया बल्कि उन राष्ट्रद्रोही बौद्धों को सजा दी ! जो उस समय ग्रीक शासकों का साथ दे रहे थे !
इसीलिये पुष्यमित्र ने “बौद्धों को सताया” शब्द ठीक वैसा ही है जैसे कि आज ताहिर हुसैन, अफजल गुरु और याकूब मेनन सरीखे लोगों के लिये कहा जाए कि उन्हें “मोमिन होने के कारण” सताया जा रहा है ! खैर बृहद्रथ को प्राणदंड देकर पुष्यमित्र शुंग ने राष्ट्ररक्षा की थी !
शुंग ने ग्रीकों पर विजय प्राप्त करने के पश्चात अश्वमेध यज्ञ कर मंडलों को एकजुट कर संसार का सबसे शक्तिशाली साम्राज्य की स्थापना भी की थी !
बृहद्रथ को प्राणदंड उसके “”बौद्ध होने के कारण नहीं”” बल्कि “”उसके अयोग्य और अदूरदर्शी होने के कारण”” अथवा “परोक्ष रूप से देशद्रोहियों की रक्षा के कारण” दी गई थी ! क्योंकि उस समय राष्ट्र को आवश्यकता एक महान शासक की थी ! न कि, एक अयोग्य और अदूरदर्शी शासक की !!
बाद में ब्राह्मण शिरोमणि आदि गुरु शंकराचार्य, कुमारिल भट्ट, मंडन मिश्र आदि ने तो बौद्ध धर्म ही भारत से उखाड़ कर फेक दिया ! यहीं से बौद्धों और ब्राह्मणों का संघर्ष शुरू हुआ जो आज तक जारी है ! इसीलिये जो शूद्र बौद्ध धर्म अपना लेते हैं वह बौद्धों के बहकावे में आकर ब्राह्मणों का अनर्गल विरोध शुरू कर देते हैं !!