विश्वयुद्ध वह अग्नि है जिसमें सदैव विकास के लिये किये गये सारे पुरुषार्थ जलकर नष्ट हो जाते हैं ! वह युद्ध चाहे देवासुर संग्राम हो, राम रावण का हो और या फिर महाभारत का हो !
क्योंकि होता यह है कि जब विश्व युद्ध होते हैं ! तो सबसे ज्यादा आक्रमण उस समय की विकसित तकनीक पर होता है ! क्योंकि युद्ध में आक्रमण करने वाला देश और आत्मरक्षा करने वाला देश, दोनों ही अपनी-अपनी विकसित तकनीक का सहारा लेकर युद्ध लड़ते हैं ! अतः दोनों ही देशों का मुख्य उद्देश्य होता है कि वह सामने वाले देश की तकनीकी को जड़ मूल से नष्ट कर दे ! जिससे वह युद्ध जीत सके !
ऐसी स्थिति में सभ्यता संस्कृति तो युद्ध समाप्त होने के बाद में नष्ट होती है ! पर सबसे पहले उस समय की विकसित तकनीक नष्ट हो जाती है ! फिर जीतने वाला देश अपनी वाह वाही में सदैव हारने वाले देश की विकृति और दोषों का ही वर्णन करता है ! कभी भी जीतने वाला देश हारने वाले देश की उच्च तकनीक की प्रशंसा नहीं करता और न ही उस हारने वाले देश के ज्ञान, सभ्यता और संस्कृति आदि की प्रशंसा की जाती है !
जबकि सच तो यह है कि यदि हारने वाले देश को अपनी उच्च तकनीक और सभ्यता-संस्कृति ज्ञान न होता तो वह जीतने वाले देश के लिये कभी समस्या न बनता और न ही उन दोनों के बीच में युद्ध होता ! अर्थात अगर कोई देश किसी सशक्त जीतने वाले देश के लिये समस्या बना है ! तो इसका तात्पर्य यह है कि वह हारने वाले देश का ज्ञान, तकनीक, सभ्यता और संस्कृति उस जीतने वाले देश के समतुल्य थी या उससे आगे बढ़ने का प्रयास कर रही थी ! तभी तो अपने अस्तित्व की रक्षा के लिये जीतने वाले देश ने हारने वाले देश पर आक्रमण करके उसको नष्ट कर दिया ! जिससे वह हारा हुआ देश जीतने वाले देश के समानांतर आकर खड़ा न हो सके !
कहने का तात्पर्य यह है कि भगवान श्रीराम ने अवश्य युद्ध में रावण को हरा दिया हो और रावण की संस्कृति और तकनीक को नष्ट कर दिया हो लेकिन इसका तात्पर्य यह कभी नहीं है कि रावण के समय में कोई विकसित तकनीक रावण के राज्य में नहीं थी ! ऐसे प्रमाण मिलते हैं कि रावण की लंका में चार बड़ी हवाई पट्टियाँ थी ! इसका तात्पर्य है कि अगर हवाई पट्टियां थी तो उन पर उड़ने वाले विभिन्न आकार और उद्देश्य के हवाई जहाज भी रहे ही होंगे !
इसके अलावा रडार के द्वारा आक्रांताओं को पकड़ना और नष्ट करने की भी तकनीकि रावण के पास थी ! तभी तो सुरसा नाम की राक्षसी जो उस तकनीक की इंचार्ज थी ! वह उस तकनीकी के द्वारा हनुमान को पकड़ कर नष्ट कर देना चाहती थी ! तभी तो हनुमान उसको अपनी बुद्धि कौशल से चकमा देकर लंका में चले गये थे !
शास्त्रों में प्रमाण मिलता है कि रावण ने सीता का हरण एक पुष्पक विमान नामक वायुयान से किया था ! जिससे वह नियमित रूप से कैलाश पर्वत पर जाकर अपने इष्ट भगवान शिव से आशीर्वाद लेता था ! इसके अलावा रोबोट युद्ध का भी वह पारंगत था ! जिसे मायावी सेना कहकर शास्त्रों में संबोधित किया गया है ! अपने भेष को बदल लेना ! होना कहीं पर और दिखाई कहीं और देना ! आदि आदि तरह के सैकड़ों अति आधुनिक उपकरणों का प्रयोग रावण अपने शासन को चलने व अपने युद्ध के दौरान किया करता था !
आज भी रावण के काल का सेटेलाइट पृथ्वी के चारों ओर चक्कर लगा रहा है ! जिस पर नासा में शोध जारी है ! रावण के समय में मोबाइल फोन, सेटेलाइट फोन, वायरलेस सेट आदि का प्रयोग युद्ध आदि में किया जाता था ! जिसे ध्वनि मक्खी कहा गया है ! अस्त्र शास्त्रों में तलवार, तीर, गदा के साथ साथ परमाणु बम, हाइड्रोजन बम, जैसे घातक उन्नत किस्म के हथियार मौजूद थे ! जिन्हें ब्रह्मास्त्र आदि के नाम से जाना जाता था ! शत्रुओं को पकड़ने के लिये ब्रह्म पाश, नाग पाश आदि उन्नत किस्म के यंत्र थे ! विद्युत लेजर गन आदि भी थी जिन्हें विभिन्न “शक्ति” आदि के नाम से जाना जाता था !
कमोवेश यही स्थिति महाभारत काल में भी थी ! तभी तो भगवान श्री कृष्ण द्वारिका से हस्तिनापुर वर्तमान दिल्ली लगभग 13 सौ किलोमीटर प्राय: चले आया करते थे ! जोकि मात्र एक सामान्य घोड़ागाड़ी अर्थात रथ से आना जाना संभव नहीं है ! इसके अतिरिक्त पुराणों में अनेक जगह चर्चा आती है कि भगवान श्री कृष्ण ब्रह्मलोक, इंद्रलोक, देव लोक, राक्षस आदि के लोकों का भ्रमण किया करते थे ! तो बहुत सामान्य सी बात है कि इन सब जगहों पर आने जाने के लिये उस समय के अति आधुनिक वायुयान या वाहन जैसी सुविधाएं अवश्य रही होंगी !
क्योंकि यदि यह मान लिया जाये कि वह अकेले इन लोकों का भ्रमण यौगिक क्रिया से करते थे तो जब शास्त्र यह भी बतलाते हैं कि भगवान श्री कृष्ण दूसरे लोक के नरकासुर राक्षस से युद्ध करके 16000 कन्याओं को जीवित छुड़ा कर द्वारिका लाये थे तो यह सामूहिक यात्रा मात्र किसी यौगिक क्रिया का अंश नहीं हो सकती है ! उस समय जरुर कोई उस क्षमता का विकसित विमान रहा होगा !
इसी तरह असुर, राक्षस, दैत्य, दानव आदि जब पूरी सेना और दल बल के साथ देव लोकों पर आक्रमण करते थे ! तो इसका मतलब है कि उनके पास इतनी बड़ी सेना को लाने ले जाने के लिये अवश्य कोई यांत्रिक व्यवस्था रही होगी ! क्योंकि देव, दानव, असुर मात्र अपनी यौगिक क्रियाओं से तो पूरी की पूरी सेना व घातक हथियारों सहित देव लोकों पर जाकर आक्रमण नहीं कर सकते थे !
अब विचार कीजिये कि आज के दौर में यदि तृतीय विश्व युद्ध में परमाणु हमले से इंटरनेट और ऊर्जा के संसाधन पेट्रोलियम व बिजली आदि खत्म हो जाये तो मात्र 200 साल बाद क्या हमारे बच्चे यह सत्य मानेंगे कि हमारे समय में विश्व के आकाश में कभी हजारों की संख्या में हवाई जहाज उड़ा करते थे या करोड़ों गाड़ियां सड़कों पर चलती थी या फिर चिकित्सा, सेना आदि के क्षेत्र में विश्व एक विकसित तकनीक का प्रयोग करता था ! नेरिगेशन, मोबाइल फोन, टी.वी, कंप्यूटर, ए.सी. आज जो हमारे जीवन का अनिवार्य अंग है !
वह सब यदि तृतीय विश्व युद्ध में नष्ट हो जाये ! तो क्या हम अपनी अगली पीढ़ियों को इस सब के होने का अहसास करवा पायेंगे जब इनके होने का प्रमाण मात्र ग्रंथों में ही रह जाये तो ! शायद हमारे आने वाली पीढ़ियां इन सारी घटनाओं को मजाक समझकर हमारा उपहास उड़ा देंगी ! लेकिन आज यह सब सत्य है !
ठीक इसी तरह हम अपने पूर्व के पूर्वजों के संदर्भ में जो शास्त्रों में पढ़ते हैं ! उन्हें अपनी तुक्ष बुद्धि के कारण उसका उपहास उड़ा देते हैं ! लेकिन वास्तव में उस काल में वह सब भी संभव रहा होगा ! क्योंकि अब हम भी उसी तरफ बढ़ रहे हैं ! इसीलिये यह कहा गया है सत्य को जानने का आधार मात्र शास्त्र ही हैं ! क्योंकि शास्त्र ही हर सत्य का प्रमाण हैं !
निश्चित तौर पर हमारे विश्वास को ख़त्म करने के लिये शास्त्रों को दूषित किया गया है ! लेकिन यदि हम बुद्धिजीवी हैं तो हमें अपने स्वविवेक से इतना जरूर समझ लेना चाहिये कि शास्त्रों में वर्णित घटनाएं कहां तक सही हैं और कहां पर इन्हें दूषित किया गया रहा होगा ! क्योंकि यही हमारे पूर्वजों के विकसित और हमारे बुद्धिजीवी होने का प्रमाण है !