सनातन संस्कृति का आधार नारी ही है ! Yogesh Mishra

षडयंत्र : “यदि सनातन संस्कृति को नष्ट करना है तो सनातन नारी के समर्पण को नष्ट कर दो !”

अध्यापक, अभियंता, चिकित्सक, अभिनेता, नर्तक, प्रबंधक सब के लिये योग्य प्रशिक्षण की आवश्यकता होती है ! उन्हें विद्यालय से लेकर विश्व विद्यालय पर्यंत कई प्रकार का प्रशिक्षण दिया जाता है ! उन्नत हवाई जहाज, टेलिविजन, कम्प्यूटर, गाय, घोड़ा, आम, गेहूँ आदि के विकास हेतु अनुसंधान किया जाता है ! मनुष्य अपने उपयोग की सभी वस्तुओं और जीवों को उन्नत करता जा रहा है, परंतु स्वयं को श्रेष्ठ बनाने की कोई योजना उसके पास नहीं है ! भगवती वेदमाता ने उद्घोष किया है- “मनुर्भव जनया दैव्य जन्म्‌”- तुम मनुष्य हो तो मनुष्य के गुणों को भी अपनाओ और उत्तम मनुष्य होकर देवताओं को जन्म दो ! अत: कोई जड़ पदार्थ अथवा मनुष्येतर जीव देवों को पैदा नहीं कर सकता !

संसार के सभी मनुष्य माँ से ही जन्म लेते हैं ! नारी ही संतानों की जननी, पोषिका और पालिका है ! प्रशिक्षण केंद्रों में अभियंता, चिकित्सक, प्रबंधक आदि प्रशिक्षित किये जाते हैं ! परंतु सदाचार, शिष्टाचार और नैतिकता की शिक्षा का एक मात्र प्रशिक्षण केंद्र माँ है जिसके केंद्र में गुरूकुलीय शिक्षा हैं ! कहा है- “प्रशस्ता धार्मिकी माता विद्यते य: स: मातृमान्‌”! गर्भावस्था से लेकर शिक्षा समाप्ति पर्यंत जो संतान माता द्वारा निर्मित होती है, वह मातृमान है ! जन्म देने से जननी तो सब बन सकती हैं, परंतु प्रारम्भिक काल में नैतिक और अध्यात्मिक शिक्षा देने वाली ही माता कहाती है !

आधुनिक युग में मातृशिक्षा के अभाव में चारों दिशाओं में भ्रष्ट राजनेता, भ्रष्ट सन्यासी, भ्रष्ट न्यायाधीश, भ्रष्ट व्यवसायी, भ्रष्ट कृषक, सैनिक आदि पैदा हो गये हैं ! महिलायें अश्लील फिल्में और नीति विहीन टी.वी. धारावाहिक देखते-देखते गर्भावस्था को प्राप्त करती हैं, जिससे संतानों में भी वही विचार संग्रहित होते हैं ! भोगवाद एवम्‌ विलासिता युक्त जीवनचर्या के चलते महिलायें संतानों का मार्गदर्शन करने में असमर्थ हैं ! माँ बनने का प्रशिक्षण प्राय: विलुप्त सा हो गया है ! “माता निर्माता भवति” यह युक्ति कहीं सुनाई नहीं देती है !

ऋग्वेद में मातृत्व की महिमा इस प्रकार प्रतिध्वनित होती है- अम्वितमे नदीतमे देवीतमे सरस्वती ! अप्रशस्ता इव स्मसि प्रशस्तिमम्व नस्कृधि॥ “हे विदुषी माँ ! आप उत्कृष्ट अध्यापिका, उपदेशिका और निर्देशिका हैं ! हे माँ हमारे जीवन पथ को विस्तारित करो !” पिता और अध्यापक द्वारा संतानों को शिक्षा देने से पूर्व माँ उनको वर्णोच्चारण और शिष्टाचार की शिक्षा देकर विद्यादात्री की भूमिका निभाती है ! शैशवावस्था में माता के अमृत उपदेश से संतान जीवन भर प्रभावित रहती है !

माँ की भाषा उनकी मातृभाषा बनती है ! माँ की वाणी उनके लिये महौषधी और अक्षयनिधि है ! अमेरिका के प्रथम और यशस्वी राष्ट्रपति अब्राहम लिंकन ने एक आम सभा में कहा था- आज मैं जो कुछ भी हूँ, उसका श्रेय मेरी माँ को है ! मृत्युशय्या में उन्होंने मुझे उपदेश दिया था कि मैं जीवन भर नशे का सेवन न करुँ ! उस समय मेरी आयु पन्द्रह साल की थी ! माँ के उपदेश का मैंने जीवन भर पालन किया ! फ्रांस के शासक नेपोलियन ने एक बार अपने देशवासीयों से कहा था- “देश के लिये एक सौ सुशिक्षित नारी प्रदान करो, मैं देश का कायाकल्प कर दूँगा !” आदर्श मातृ शक्ति ही देश की दशा और दिशा बदल सकती है !

नारी राष्ट्र यज्ञ की संयोजिका है ! “स्त्री ही ब्रह्मा वभूविथ” !(अथर्ववेद) कर्तव्यनिष्ठ और सदाचारी नागरिक ही नारी के तप और साधना का फल होता है ! यक्ष के प्रशन के उत्तर में युधिष्ठिर ने कहा था- “माता गुरूतरा भूमे:”- माँ भूमि से भी अधिक वंदनीया है ! पिता का स्थान माँ ले सकती है परंतु माँ का स्थान पिता कभी नहीं ले पाता !
इसी कारण से महर्षि मनु ने उद्घोष किया है – उपाध्यायात्‌ दशाचार्य: आचार्याणां शतं पिता ! पितृदशशतं माता गौरवेण अतिरिच्यते॥ एक आचार्य दस अध्यापक के समान, सौ आचार्य पिता के समान और सहस्त्र पिता एक माता के समान समझना चाहिये !

सम्राट ऋतुध्वज की महारानी मदालसा गर्भावस्था में गाया करती थी- “शुद्धोऽसि बुद्धोऽसि निरंजनोऽसि संसार माया परिवर्जितोऽसि”- ‘रे गर्भस्थ पुत्र तू शुद्ध है, तू बुद्ध है, संसार माया से मुक्त है ! इन संस्कारों के कारण तीन पुत्र बाल्यकाल में ही त्यागी और सन्यासी बन गये ! तब पति ने राज्य को चलाने के लिये राजा की कामना महारानी से की ! महारानी ने अपनी चतुर्थ संतान को अन्य राजसी संस्कार देकर सर्वगुण सम्पन्न राजा बनाया !

माता सुनीता का उपदेश पालन करके ध्रुव इतिहास में अमर हो गया ! माता सीता के त्याग और तप से ही लव कुश ने बाल्यकाल में ही राम की सेना को पराजित कर दिया था ! माता शकुंतला ने पुत्र भरत को इतना साहसी और वीर बनाया जो शैशवकाल से ही शेरों से खेलता था ! नेपोलियन जब गर्भस्थ थे, उनकी माता सेना शिविर में जाकर परेड देखती थी ! उस समय उनका रोम-रोम राष्ट्र रक्षा के लिये हर्षित होता था ! गर्भावस्था में प्राप्त संस्कारों ने नेपोलियन को महान योद्धा बनाया ! माता सुभद्रा ने वीर अभिमन्यु का, माता जीजाबाई ने वीर शिवाजी का जीवन निर्माण किया था !

गर्भाधान और गर्भधारण की अवस्था में माता एक पवित्र यज्ञ की विदुषी यज्ञकर्ता होती है ! गर्भाधान के समय माँ जैसी संतान पाने की इच्छा करती है, वैसी ही संतान को प्राप्त करती है ! “तन्मना बीज गृह्णीयात्‌” माँ के पेट में संतान का दो दिशाओं मे निर्माण होता है- शारीरिक विकास और मानसिक विकास, दोनों विकास हेतु वेद में क्रमश: ‘पुंसवन संस्कार’ और ‘सीमंतोन्नयन संस्कार’ का विधान है ! जब तक संतान माँ के गर्भ में है , तब तक उसके शरीर और मन को अपनी इच्छानुसार ढाला जा सकता है ! जो माताएं संतान के जन्म के बाद उसके बिगड़ जाने को देखकर रोया करती हैं, उन्हें समझ लेना चाहिए कि यह कष्ट उन्हें इसलिए झेलना पड़ रहा है कि जो वक्त बच्चे को ढालने का था वह उन्होंने खो दिया !

यह सर्व विदित है कि गर्भस्थ शिशु कण्ठ स्वर को भी पहचान सकता है, इसका परीक्षण मनोवैज्ञानिकों और चिकित्सकों द्वारा किया जा चुका है ! जैसे कुम्हार कच्ची मिट्टी से इच्छानुसार पदार्थ बना सकता है, मिट्टी सूख जाने पर उसमें क्षमता नहीं रहती, उसी प्रकार गर्भावस्था और जन्म से पाँच- सात साल तक शिशु का शरीर तत्व और मनस्तत्व माता की साधना के आश्रय में रहता है !

प्राचीन समाजशास्त्रियों और शिक्षाविदों ने सूक्ष्म दृष्टी से मातृत्व की महत्ता को समझा था ! तदनुसार उन्होंने नारी शिक्षा का दिशा निर्धारण किया था और नारी को भोग्या वस्तु नहीं अपितु देवीस्वरुपा सम्मान दिया था ! परिणामस्वरूप दीर्घजीवी, बलवान, और विद्वान संतति उत्पन्न होने से समाज का चहुँमुखी विकास सम्भव हुआ था ! हम सब नारी को अर्थात् मातृ शक्ति को मनुस्मृति के अनुसार सम्मान दें और नारी भी अपनी गौरवमयी गरिमा को पहचाने तो आज भी हमारा समाज और देश वही प्राचीन गौरव को प्राप्त कर सकता है

क्योंकि- “यत्र नार्यस्तु पूज्यन्ते रमन्ते तत्र देवता: ! यत्रैतास्तु न पूज्यन्ते सर्वास्तत्राफला: क्रिया” ! जहां पर स्त्रियों का सम्मान होता है, वहां देवता रमते हैं ! जहाँ उनका तिरस्कार होता, वहाँ सब काम निष्फल होते हैं ! “शोचन्ति जामयो यत्र विनश्यत्याशु तत्कुलम् ! न शोचन्ति तु यत्रैता वर्धते तद्धि सर्वदा” ! जिस कुल में स्त्रियाँ दु:खी रहती हैं, वह जल्दी ही नष्ट हो जाता है ! जहां वे दु:खी नहीं रहतीं, उस कुल की वृद्धि होती है !

आज सारा का सारा असुरी जगत सनातन संस्कृति को नष्ट करने के लिये भारत की आदर्श नारी पर हमला कर रहा है ! चाहे वह हमला नारी शक्ति के नाम से हो या नारी स्वतंत्रता के नाम से ! कुछ अपवादों को छोड़ कर कोई यह क्यों नहीं बतलाता कि दूसरे के घर की बेटी कैसे शादी क्र बाद रातों रात नये घर की मालकिन बन जाती है और सभी उसका सम्मान करते हैं ! कहाँ है सनातन समाज में नारी परतंत्रता !

यह सनातन समाज को तोड़ने के लिये सोची समझी रणनीति है ! जिससे हमारा अस्तित्व ही ख़त्म हो जायेगा !

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योगेश कुमार मिश्र 

ज्योतिषरत्न,इतिहासकार,संवैधानिक शोधकर्ता

एंव अधिवक्ता ( हाईकोर्ट)

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