धर्म की उत्पत्ति समाज के मंदबुद्धि वर्ग के मनुष्यों को नियंत्रित करने के लिए की गई थी ! इसीलिए धर्म ने स्वर्ग-नरक, पाप-पुण्य, धर्म-अधर्म, देव-दैत्य, सुर-असुर जैसे सांकेतिक शब्दों का निर्माण किया ! जिन शब्दों के माध्यम से मंदबुद्धि के व्यक्तियों को यह बतलाया जा सके, कि वह धर्म के अनुसार जीवन यापन कर रहे हैं या धार्मिक नियमों के विपरीत जीवन यापन कर रहे हैं !
इस तरह यह सिद्ध होता है कि समाज जितना अधिक मानसिक रूप से कमजोर होगा, धर्म की पकड़ समाज पर उतनी अधिक होगी ! लेकिन यह स्थिति यह भी बतलाती है कि समाज पर धर्म की पकड़ मजबूत होने पर समाज के शोषित होने की संभावना भी बहुत अधिक होगी ! इसीलिए अनादि काल से धर्म का चोला पहनकर कुछ चालाक लोग शासन सत्ता को साथ मिला कर समाज का शोषण करते चले आ रहे हैं !
धर्म के इसी शोषण पूर्ण व्यवस्था को देख कर 14 वीं सदी से लेकर 18 वीं सदी तक यूरोप के लगभग सभी देशों ने विज्ञान की मदद से यूरोप के आम निवासियों को धर्म के चंगुल से बाहर निकाला ! जिसके लिए उन्हें अनेकों अनेक महत्वपूर्ण व्यक्तियों के बलिदान भी करने पड़े ! लेकिन उसका परिणाम यह हुआ कि यूरोप के कई देश नये जीवन दर्शन के साथ विश्व में महाशक्ति बनकर उभरे ! जिन्होंने पूर्व के कपोलकल्पित धर्मों को त्याग दिया था !
अर्थात दूसरे शब्दों में कहा जा सकता है कि यदि धर्म के सिद्धांतों के पीछे के भाव को आम जनमानस नहीं समझ पा रहा है, तो मात्र धर्म द्वारा स्थापित सांकेतिक शब्दों या सूत्रों को रटा कर समाज को शिक्षित नहीं किया जा सकता है !
इसी वजह से भारत में अनादि काल से धर्म के विकृत स्वरूप का अनुकरण हो रहा है, उसी वजह से भारत आज भुखमरी और गरीबी में संपन्न देशों के मुकाबले विश्व में 147 वें स्थान पर आ गया है ! भले ही भारत का हिन्दू नियमित रूप से लक्ष्मी और गणेश का पूजन ही क्यों न कर रहा हो !
और अनुभव में तो यहां तक आया है कि आज जिन देशों में गणेश और लक्ष्मी का पूजन नहीं होता है बल्कि विज्ञान का पूजन होता है ! वह सभी देश हम लक्ष्मी और गणेश का पूजन करने वालों के मुकाबले अधिक समृद्ध और सुखी हैं !
कुल कहने का तात्पर्य यह है कि धर्म के मूलभूत सिद्धांतों को समझे बिना, मात्र सांकेतिक शब्दों को लेकर जब तक हम आपस में भावुकतापूर्ण संघर्ष करते रहेंगे और विज्ञान को नजरअंदाज करते रहेंगे, तब तक हम कभी भी न तो अपना विकास कर पाएंगे और न ही राष्ट्र का विकास कर पाएंगे !
इसलिए हमें अपने बौद्धिक स्तर को विकसित करते हुए आधुनिक विज्ञान की मदद से अपना विकास करना चाहिए तभी राष्ट्र का विकास संभव है और जब हमारा और राष्ट्र का विकास होगा ! तो कुछ संशोधन के साथ धार्मिक सिद्धांत भी हमारे लिए उपयोगी हो जायेंगे !
अन्यथा देखने में तो यह आ रहा है कि भारत में नैतिकता की बात करने वाले लाखों लोग आज विभिन्न अपराधों में भारत के कारावासों में बंद हैं और करोड़ों की तादाद में ऐसे भी लोग हैं, जो गाय, गंगा, गीता, गायत्री, गुरु आदि की वंदना करने के साथ ही अज्ञानता वश अपने सर्वनाश की योजना भी बना रहे हैं !
इसलिये धर्म के मर्म को आधुनिक विज्ञान की दृष्टि से जानने की जरुरत है ! न कि कपोल कल्पित भावनाओं से !!