जानिए ज्योतिष में जीवकोपार्जन के योग :Yogesh Mishra

हम सभी का जीवकोपार्जन कुंडली की ग्रह स्थिती के अनुसार ही होता है ! अत: जीवकोपार्जन की दिशा निर्धारण के पूर्व कुण्डली की ग्रह स्थिती पर अवश्य विचार करना चाहिये ! कुण्डली में जीवकोपार्जन के कुछ विशेष योग इस प्रकार हैं !

1. रज्जू योग- सब गृह चर राशियों में हो तो रज्जु योग होता है ! इस योग में उत्पन्न मनुष्य भ्रमणशील, सुन्दर, परदेश जाने में सुखी, क्रूर, दुष्ट स्वभाव एवं स्थानांतर में उन्नति करने वाला होता है !

2. मुसल योग- समस्त गृह स्थिर राशियों में हो तो मुसल योग होता है ! इस योग में जन्म लेने वाला जातक मानी, ज्ञानी, धनी, राजमान्य, प्रसिद्ध, बहुत, पुत्रवाला, एम्.एल.ऐ एवं शासनाधिकारी होता है !

3. माला योग- बुध, गुरु और शुक्र 4,7,10 वें स्थान में हो और शेष ग्रह इन स्थानों से भिन्न स्थानों में हो तो माला योग होता है ! इस योग के होने से जातक धनी, भोजनादि से सुखी, अधिक स्त्रियों से प्रेम करने वाला एवं एम्.पी होता है ! पंचायत के निर्वाचन में भी उसे पूर्ण सफलता मिलती है !

4. गदा योग- समीपस्थ दो केंद्र 1,4 या 7,10 में समस्त ग्रह हो तो गदा नामक योग होता है ! इस योग वाला जातक धनी, धर्मात्मा, शास्त्राग्य, संगीतप्रिय और पुलिस बिभाग में नौकरी प्राप्त करता है ! इस योग वाले जातक का भाग्योदय 28 वर्ष की अवस्था में होता है !

5. शकत योग- लग्न और सप्तम में समस्त ग्रह हों तो शकट योग होता है ! इस योग वाला रोगी, मुर्ख, ड्राईवर, स्वार्थी एवं अपना काम निकलने में बहुत प्रवीन होता है !

6. पक्षी योग- चतुर्थ और दशम भाव में समस्त ग्रह हो तो विहंग पक्षी होता है ! इस योग में जन्म लेने वाला जातक राजदूत, गुप्तचर, भ्रमणशील, कलहप्रिय एवं सामान्यत: धनी होता है ! शुभग्रह उक्त स्थान में हो और पापग्रह 3,6,11 वें स्थान में हो तो जातक न्यायाधीश और मंडलाधिकारी होता है !

7. श्रृंगाटक योग- समस्त ग्रह 1,5,9 वें स्थान में हो तो श्रृंगाटक योग होता है ! इस योग वाला जातक सैनिक, योद्धा, कलहप्रिय, राजकर्मचारी, सुन्दर पत्निवाला एवं कर्मठ होता है ! वीरता के कार्यों में इसे सफलता प्राप्त होती है ! इस योगवाले का भाग्य 23 वर्ष की अवस्था से उदय हो जाता है !

8. वज्र योग- समस्त शुभग्रह लग्न और सप्तम स्थान में हो अथवा समस्त पापग्रह चतुर्थ और दशम भाव में स्थित हो तो वज्र योग होता है ! इस योग वाला वार्धक्य अवस्था में सुखी, शुर-वीर, सुन्दर, भाग्यवाला, पुलिस या सेना में नौकरी करने वाला होता है !

9. कमल योग- समस्त ग्रह 1,4,7,10 वें स्थान में हो तो कमल योग होता है ! इस योग का जातक धनी, गुनी, दीर्घायु, यशस्वी, सुकृत करने वाला, विजयी, मंत्री या राज्यपाल होता है ! कमल योग बहुत ही प्रभावक योग है ! इस योग में जन्म लेने वाला व्यक्ति शासनधिकारी अवश्य बनता है ! यह सभी के ऊपर शासन करता है ! बड़े-बड़े व्यक्ति उससे सलाह लेते है !

10. शक्ति योग- सप्तम भाव से आगे के चार भावो में समस्त ग्रह हों, तो शक्ति योग होता ही ! इस योग के होने से जातक धनहीन, निष्फल जीवन, दुखी, आलसी, दीर्घायु, दीर्घसूत्री, निर्दय और छोटा व्यापारी होता ही ! शक्तियोग में जन्म लेने वाला व्यक्ति छोटे स्तर की नौकरी भी करता ही !

11. छत्र योग- सप्तम भाव से आगे के सात स्थानों में समस्त ग्रह हो तो छत्र योग होता है ! इस योग वाला व्यक्ति धनी, लोकप्रिय, राजकर्मचारी, उच्चपदाधिकारी, सेवक, परिवार के व्यक्तियों का भरण-पोषण करने वाला एवं अपने कार्य में ईमानदार होता है !

12. चक्र योग- लग्न से आरम्भ कर एकांतर से छह स्थानों में-प्रथम, तृतीय, पंचम, सप्तम, नवम और एकादश भाव में सभी ग्रह हो तो चक्र योग होता है ! इस योग वाला जातक राष्ट्रपति या राज्यपाल होता है ! चक्र योग राजयोग का ही रूप है, इसके होने से व्यक्ति राजनीति में दक्ष होता है और उसका प्रभुत्व बीस वर्ष की अवस्था के पश्चात बढने लगता है !

13. समुद्र योग- द्वितीय भाव से एकांतर कर छह राशियों में 2,4,6,10,12 वें स्थान में समस्त ग्रह हो तो समुद्र योग होता है ! इस योग के होने से जातक धनी, रहमानी, भोगी, लोकप्रिय, पुत्रवान और वैभवशाली होता है !

14. पाश योग- पांच राशियों में समस्त ग्रह हो तो पाश योग होता है ! इस योग के होने से जातक बहुत परिवारवाला, प्रपंची, बन्धनभागी, काराग्रह का अधिपति, गुप्तचर, पुलिस या सेना की नौकरी करने वाला होता है !

15. वीणा योग- सात राशियों में समस्त ग्रह स्थित हो तो वीणा योग होता है ! इस योगवाला जातक गीत,नृत्य, वाध से स्नेह करता है ! धनी, नेता और राजनीति में सफल संचालक बनता है !

16. गजकेसरी योग- लग्न अथवा चन्द्रमा से यदि गुरु केंद्र में हो और केवल शुभग्रहो से दृष्ट या युत हो तथा अस्त, नीच और शत्रु राशी में गुरु न हो तो गजकेसरी योग होता है ! इस योगवाला जातक मुख्यमंत्री बनता है !

17. पर्वत योग- यदि सप्तम और अष्टम भाव में कोई ग्रह नही हो अथवा ग्रह हो भी तो कोई शुभग्रह हो तथा सब शुभग्रह केंद्र में हो तो पर्वत नामक योग होता है ! इस योग में उत्पन्न व्यक्ति भाग्यवान, वक्ता, शास्त्रग्य, प्राध्यापक, हास्य-व्यंग्य लेखक, यशस्वी, तेजस्वी और मुखिया होता है ! मुख्यमंत्री बनाने वाले योगों में भी पर्वत योग की गणना है !

18. मृदंग योग- लग्नेश वली हो और अपने उच्च या स्वगृह में हो तथा अन्य ग्रह केंद्र स्थानों में स्थित हो तो मृदंग योग होता है ! इस योग के होने से व्यक्ति शासनाधिकारी होता है !

19. कूर्म योग- शुभग्रह 5,6,7 वें भाव में और पापग्रह 1,3,11 वें स्थान में अपने-अपने उच्च में हो तो कूर्म योग होता है ! इस योग में जन्म लेने वाला व्यक्ति राज्यपाल, मंत्री, धीर, धर्मात्मा, मुखिया और नेता होता है !

20. लक्ष्मी योग- लग्नेश बलवान हो और भाग्येश अपने मूल-त्रिकोण, उच्च या स्वराशी में स्थित होकर केन्द्रस्थ हो तो लक्ष्मी योग होता है ! इस योगवाला जातक पराक्रमी, धनी, मंत्री, राज्यपाल एवं गुनी होता है !

21. कलानिधि योग- बुध शुक्र से युत या दृष्ट गुरु 2,5 वें भाव में हो या बुध शुक्र की राशि में स्थिति हो तो कलानिधि योग होता है ! इस योगवाला गुनी, राजमान्य, सुखी, स्वस्थ, धनी, और विद्वान होता है !

22. केमद्रुम योग- यदि चन्द्रमा के साथ में या उससे द्वितीय, द्वादश स्थान में तथा लग्न से केंद्र में सूर्य को छोड़कर अन्य कोई ग्रह नही हो तो केमद्रुम योग होता है ! इस योग में जन्म लेने वाला व्यक्ति दरिद्र और निन्दित होता है !

23. धन-सुख योग- दिन में जन्म होने पर चन्द्रमा अपने या अधिमित्र के नवांश में स्थित हो और उसे गुरु देखता हो तो धन सुख होता है ! इसी प्रकार रात्रि में जन्म प्र्ताप्वादी पर चन्द्रमा को शुक्र देखता हो तो धन-सुख योग होता है ! यह अपने नामानुसार फल देता है !

24. विशिष्ट योग- जिसके जन्मकाल में बुध सूर्य के साथ अस्त होकर भी अपने ग्रह में हो अथवा अपने मूला त्रिकोण में हो तो जातक विशिष्ट विद्वान होता है !

25. भास्कर योग- यदि सूर्य से द्वितीय भाव में बुध हो ! बुध से एकादश भाव में चन्द्रमा और चन्द्रमा से त्रिकोण में वृहस्पति स्थिति हो तो भास्कर योग होता है ! इस योग में उत्पन्न होने वाला मनुष्य पराक्रमी, प्रभुसदृश, रूपवान, गन्धर्व विधा का ज्ञाता, धनी, गणितग्य, धीर और समर्थ होता है ! यह योग 24 वर्ष की अवस्था से घटित होने लगता है !

26. इन्द्र योग- यदि चंद्रमा से तृतीय स्थान में मंगल हो और मंगल से सप्तम शनि हो ! शनि से सप्तम शुक्र हो और शुक्र से सप्तम गुरु हो तो इन्द्रसंज्ञक योग होता है ! इस योग में उत्पन्न होने वाला जातक प्रसिद्ध शीलवान, गुणवान, राजा के समान धनी, वाचाल और अनेक प्रकार के धन, आभूषण प्राप्त करने वाला होता है !

27. मरुत योग- यदि शुक्र से त्रिकोण में गुरु हो, गुरु से पंचम चंद्रमा और चन्द्रमा से केंद्र में सूर्य हो तो मरुत योग होता है ! इस योग में जन्म लेने वाला मनुष्य वाचाल, विशाल ह्रदय, स्थूल उदार, शास्त्र का ज्ञाता, क्रय-विक्रय में निपुण, तेजस्वी, किसी आयोग का सदस्य होता है !

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योगेश कुमार मिश्र 

ज्योतिषरत्न,इतिहासकार,संवैधानिक शोधकर्ता

एंव अधिवक्ता ( हाईकोर्ट)

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