तांत्रिको और अघोरियों के गढ़ माने जाने वाले कामाख्या पीठ तंत्र क्षेत्र का तीर्थ माना जाता है ! असम की राजधानी दिसपुर से लगभग 7-8 किलोमीटर दूर स्थित है ! वहां से 10-11 किलोमीटर दूर नीलाचंल पर्वत है ! जहां पर माता कामाख्या देवी सिद्ध पीठ है ! यही मंदिर मे तंत्र की शक्ति माता कामख्या विराजमान है ! यह शक्ति-पीठ 51 शक्तिपीठों में से एक माना जाता है ! माता कामाख्या को तंत्र की जननी कहा जाता है !
तंत्र में एक दिव्य शब्द है ‘योनी तंत्र’ जिसका बड़ा ही गूढ़ और तात्विक अर्थ है ! किन्तु कालान्तर में अज्ञानी पुरुषों व वासना और भोग की इच्छा रखने वाले कथित धर्म पुरोधाओं ने स्त्री शोषण के लिए तंत्र के महान रहस्यों को निगुरों की भांति स्त्री शरीर तक सीमित कर दिया ! हालांकि स्त्री शरीर भी पुरुष की भांति ही सामान रूप से पवित्र है ! लेकिन तंत्र की योनी उपासना सृष्टि उत्पत्ति के बिंदु को ‘योनी’ यानि के सृजन करने वाली कह कर संबोधित किया जाता है ! माँ शक्ति को ‘महायोनी स्वरूपिणी’ कहा जाता है ! जिसका अर्थ हुआ सभी को पैदा करने वाली ! उस ‘दिव्य योनी’ का यांत्रिक चित्र ही ‘श्री यन्त्र’ का आधार है ! वह ‘महायोनी’ ही ‘श्री विद्या’का मूल है !
धर्म पुराणों के अनुसार माना जाता है कि इस जगह भगवान शिव का मां सती के प्रति मोह भंग करने के लिए विष्णु भगवान ने अपने चक्र से माता सती के 51 भाग किये थे ! जहां-जहॉ पर माता का शरीर गिरा वहॉ-वहॉ शक्तिपीठ बन गया ! इस तरह से 51 शक्ति पीठ का निर्माण हुआ ! इनमे से जिस जगह पर पर माता की योनि गिरी, वह स्थान कामाख्या पीठ कहलाया ! इसलिये यहाँ योनी की पूजा होती है ! योनी ही सृष्ठी का प्रवेश द्वार है ! इसलिये योनी पूजा ही तंत्र मे सफलता पाने का मुख्य द्वार माना जाता है ! इसलिये साधू-योगी, तांत्रिको के अलावा देश-विदेश के तांत्रिक भी इस साधना को संपन्न करना अपने जीवन का ध्येय समझते हैं ! इसीलिये जीवन मे तंत्र की शुरुआत करने के पूर्व एक बार भी माता कामाख्या के दर्शन हो जाये तो आप इसे अपना सौभाग्य समझिये !
आईये अब जानते है कि माता कामाख्या की साधना के नियम क्या हैं ?
इस साधना को स्त्री पुरुष कोई भी कर सकता है !
यह साधना 21 से 41 दिनो की होती है ! रात का समय साधना करने के लिये शुभ होता है ! इस साधना को शुरु करने के लिये कामाख्या दिक्षा गुरु से अवश्य लेना चाहिये !
इस साधना मे यंत्र, माला, गुटिका, कामाख्या श्रन्गार, कामाख्या सिंदूर, कामाख्या आसन ईत्यादि का उपयोग किया जाता है ! साधना के प्रति व गुरु के प्रति पूर्ण श्रद्धा होनी चाहिये ! साधना करने की प्रबल दिवानगी होनी चाहिये !
याद रखे जब भी साधना करने की इच्छा अपने मन मे करेगे, तुरंत अडचन आनी शुरु हो जायेगी, इसलिये अपनी संकल्प शक्ति को मजबूत रखिये ! इस साधना मे दक्षिण दिशा शुभ मानी जाती है ! इस साधना मे लाल कपडे का उपयोग करे ! साधना की सभी सामग्री कामाख्या मंत्र से प्राणप्रतिष्ठित होनी चाहिये !
आईये अब जानते है कि माता कामाख्या की साधना के लाभ क्या-क्या है?
हर तरह की नजर दूर हो जाती है ! पति का संबंध अगर किसी दूसरी स्त्री से है तो वहा से वह वापस आने की संभावना बढ जाती है ! तंत्र के नकारात्मक प्रभाव दूर होने लगते है ! पन-पसंद वर की प्राप्ती के लिये यह साधना बहुत ही उपयोगी है ! परिवार के क्लेश समाप्त होने लगते है ! वैवाहिक जीवन सुखमय हो जाता है !
पति-पत्नि एक दूसरे से हमेशा वफादार रहते है ! बडे से बडे तांत्रिक प्रभाव को भी इस साधना के द्वारा नष्ट किया जा सकता है ! शत्रु अपने षडयंत्र मे कामयाब नही होते ! घर मे सुख-शांती लौट आती है ! ब्यापार तथा दुकान धंधे मे की गयी तंत्र बाधा समाप्त हो जाती है ! आप इस साधना के द्वारा जरूरत मंद ब्यक्ति की मदत भी कर सकते है !
विधान – मूलतः यह साधना मिश्र डामर तंत्र से सम्बंधित है !
अमावस्या की मध्य रात्रि का प्रयोग इसमें होता है,अर्थात रात्रि के 11 : 30 से 3 बजे के मध्य इस साधना को किया जाना उचित होगा !
वस्त्र व आसन का रंग काला होगा ! दिशा दक्षिण होगी ! वीरासन का प्रयोग कही ज्यादा सफलतादायक है ! नैवेद्य में काले तिलों को भूनकर शहद में मिला कर लड्डू जैसा बना लें,साथ ही उडद के पकौड़े या बड़े की भी व्यवस्था रखें और एक पत्तल के दोनें या मिटटी के दोने में रख दें ! !
दीपक सरसों के तेल का होगा ! बाजोट पर काला ही वस्त्र बिछेगा,और उस पर मिटटी का पात्र स्थापित करना है जिसमें यन्त्र का निर्माण होगा !
रात्रि में स्नान कर साधना कक्ष में आसन पर बैठ जाएँ ! गुरु पूजन,गणपति पूजन,और भैरव पूजन संपन्न कर लें ! रक्षा विधान हेतु सदगुरुदेव के कवच का 11 पाठ अनिवार्य रूप से कर लें !
अब उपरोक्त यन्त्र का निर्माण अनामिका ऊँगली या लोहे की कील से उस मिटटी के पात्र में कर दें और उसके चारों और जल का एक घेरा मूल मंत्र का उच्चारण करते हुए कर बना दें,अर्थात छिड़क दें ! और उस यन्त्र के मध्य में मिटटी या लोहे का तेल भरा दीपक स्थापित कर प्रज्वलित कर दें ! और भोग का पात्र जो दोना इत्यादि हो सकता है या मिटटी का पात्र हो सकता है ! उस प्लेट के सामने रख दें ! अब काले हकीक या रुद्राक्ष माला से 5 माला मंत्र जप संपन्न करें ! मंत्र जप में लगभग 3 घंटे लग सकते हैं !
मंत्र जप के मध्य कमरे में सरसराहट हो सकती है,उबकाई भरा वातावरण हो जाता है,एक उदासी सी चा सकती है ! कई बार तीव्र पेट दर्द या सर दर्द हो जाता है और तीव्र दीर्घ या लघु शंका का अहसास होता है ! दरवाजे या खिडकी पर तीव्र पत्रों के गिरने का स्वर सुनाई दे सकता है,इनटू विचलित ना हों ! किन्तु साधना में बैठने के बाद जप पूर्ण करके ही उठें ! क्यूंकि एक बार उठ जाने पर ये साधना सदैव सदैव के लिए खंडित मानी जाती है और भविष्य में भी ये मंत्र दुबारा सिद्ध नहीं होगा !
जप के मध्य में ही धुएं की आकृति आपके आस पास दिखने लगती है ! जो जप पूर्ण होते ही साक्षात् हो जाती है,और तब उसे वो भोग का पात्र देकर उससे वचन लें लें की वो आपके श्रेष्ट कार्यों में आपका सहयोग ३ सालों तक करेगा,और तब वो अपना कडा या वस्त्र का टुकड़ा आपको देकर अदृश्य हो जाता है,और जब भी भाविओश्य में आपको उसे बुलाना हो तो आप मूल मंत्र का उच्चारण ७ बार उस वस्त्र या कड़े को स्पर्श कर एकांत में करें,वो आपका कार्य पूर्ण कर देगा ! ध्यान रखिये अहितकर कार्यों में इसका प्रयोग आप पर विपत्ति ला देगा ! जप के बाद पुनः गुरुपूजन,इत्यादि संपन्न कर उठ जाएँ और दुसरे दिन अपने वस्त्र व आसन छोड़कर,वो दीपक,पात्र और बाजोट के वस्त्र को विसर्जित कर दें ! कमरे को पुनः स्वच्छ जल से धो दें और निखिल कवच का उच्चारण करते हुए गंगाजल छिड़क कर गूगल धुप दिखा दें !