जो राष्ट्र अपने महापुरुषों से मुंह मोड़ लेता है ! उस राष्ट्र का क्षरण कोई नहीं रोक सकता है ! इस बार विश्व पुस्तक मेले में सनी लियोनी के जीवन पर आधारित पुस्तक प्रसिद्ध प्रकाशकों के स्टाल पर बेची जा रही थी ! जो एक कलाकार से साथ पोर्न स्टार भी हैं ! सनी के जीवन पर आधारित पुस्तक में उसकी सफलता की कहानी को युवा समाज के सामने परोसने का कार्य कुछ इस तरह हो रहा था कि मानो भावी भारत की निर्माता नई पीढ़ी के पास आदर्श सफल महापुरषों की कमी हो गयी है और इस कमी की पूर्ति सनी लियोनी आदि से पूरी की जा सकती है !
उस पोर्न स्टार को नवयुवतियों और बच्चियों के सामने एक आदर्श के तौर पर पेश किया जा रहा है ! उस पर कई शोर्ट फिल्म भी बनी है ! जो अनायास ही मोबाईल शुरू करते ही शुरू हो जाती है ! मुझे यह समझ नहीं आ रहा है कि 21वीं सदी में हमने सफलता की विश्व सत्ता ने परिभाषा क्या गढ़ी है ! किन्तु जो भी गढ़ी है, वह आने वाली पीढ़ी के लिये और इस राष्ट्र के लिये बिल्कुल भी शुभ संकेत नहीं है ! जिस तरह आज हमारे पाठ्क्रम बदले जा रहे हैं उसे देखकर अहसास जरुर होता है कि शायद आने वाले वर्षों में नैतिक शिक्षा जैसे विषयों में भी सनी लियोनी जैसी कलाकार अपनी जगह बना लेंगे !
इस काम में देश के युवाओं का मार्गदर्शन जहाँ मीडिया आदि को करना चाहिये था ! वहां विदेशी सत्ता और धन के दबाव में उसने उल्टा ही कार्य किया है ! मसलन अमूल घी का विज्ञापन दिन में एक बार और पेप्सी कोक आदि का विज्ञापन दस बार दिखाया जाता है ! तो युवा अमूल घी की जगह पेप्सी कोक को ही स्वास्थ्य वर्धक पेय मानेगा !
यह बात सर्वविदित है कि वर्तमान समय में हम जिस भारत में बैठे हैं ! उसका निर्माण हमने नहीं किया है ! इसके निर्माण के पीछे असंख्य क्रांतिकारियों, धर्मात्मा और समाज सुधारकों का तप और बलिदान है ! किन्तु आज देश के महापुरुषों के बलिदानों को त्याग कर हम आज फिल्मी पर्दों के हीरो और तथाकथित धर्मगुरुओं से इनकी पूर्ति करना चाहते हैं ! यह हमारी न समझी ही नहीं दुर्भाग्य भी है !
हम धीरे-धीरे अपने आदर्श मिटा रहे हैं ! भारतीय नारी तो ऐसी होती थीं जो महापुरुषों को भी पुत्र के रूप में प्राप्त कर लेती थीं ! हमारा इतिहास आदर्श नारियों से भरा पड़ा है ! कभी हमारे पाठ्यपुस्तक में झाँसी की रानी, रानी सारन्धा, सुभाष चन्द्र बोस, लाला लाजपत राय, बाल गंगाधर तिलक, स्वामी दयानन्द आदि के जीवन-कथा और उनके राजनीतिक और दार्शनिक उपलब्धियों के बयान हुआ करते थे ! जो अब सनी लियोनी के महिमामंडन तक पहुँच गया है !
अब विदेशी मीडिया द्वारा परोसे जा रहे नये महापुरुष यानी अवतार के रूप में फिल्मी सितारें और क्रिकेट खिलाड़ियों का आगमन उन महापुरुषों की विदाई का रास्ता साफ कर रहे हैं ! जो कभी हमारे भविष्य के लिये मर मिटे थे ! आजकल के नौजवानों के लिये इन जगमगाते महापुरुषों से लगाव पागलपन की क्षेणी में आता है !
एक बच्चे का निर्माण विद्यालयों में, परिवारों में, बच्चों की परवरिश का ढंग ही निर्धारित करता है ! समाज में बुनियादी तौर पर परिवार और उसके पूरक के रूप में विद्यालय ही अच्छे नागरिक बनाने का काम करते हैं ! छोटे बच्चे तो कच्ची मिट्टी के गोले जैसे हैं, जैसे एक कुम्हार अपने कलाकृतियों के सहारे उससे मूर्तियां बनाते हैं, उसी तरह समाज के इन प्रतिष्ठानों को ही नागरिक बनाने का जिम्मेदारी दी गई है !
लेकिन आज पश्चिमी शिक्षा पध्यति पर आधारित कालेज-स्कूल राजनीति और फूहड़ता के अड्डे बन गये हैं ! न शिक्षा बची है, न ढंग के शिक्षक ! यदि कुछ शिक्षक हैं भी तो जो विद्यादान और संस्कारों के जरिये मानवता का पाठ पढ़ाकर अच्छे नागरिक बनाने का सपना देखते हैं ! पर फिर भी उनका सपना स्वप्न ही रह जाता है ! कारण बाहरी दुनिया में नायक के रूप में शाहरुख खान, भगत सिंह से ज्यादा अहमियत रखता है !
आधुनिक फिल्मी हीरो की नकली फाईटिंग के सामने तो महाराणा प्रताप, नेताजी सुभाषचंद्र बोस, शिवाजी महाराज की वीरता बौनी ही गयी है ! आज हम केवल एक शानदार परम्परा को ही नहीं भूल रहे हैं ! बल्कि न समझी में अपना इतिहास भी मिटा रहे हैं !
हालाँकि कुछ लोग कहते हैं कि हम सिर्फ अतीत की जुगाली करके आगे नहीं बढ़ सकते पर हम अतीत्त से वह प्रेरणा ले सकते हैं ! जो हमारे हर कदम को मजबूत बनाने के लिये मददगार होगी !
दुनिया में कोई भी देश या जाति ने अपनी परम्परा और मूल्यों को भूलकर दूसरों की नकल करके प्रगति नहीं की है ! यदि की भी है उसका इतिहास तो बचा पर संस्कृति और भूगोल नष्ट हो गया ! यदि आज युवा इन आधुनिक अभिनेता/अभिनेत्रियों को अपना आदर्श समझने लगे तो युवाओं के साथ-साथ समाज और राष्ट्र तीनों ही नष्ट होंगे !