आखिर भारत कब तक वैचारिक दृष्टि से भूखा नंगा ही रहेगा : Yogesh Mishra

सोने की चिड़िया कहे जाने वाला भारत विदेशी आक्रांताओं के लूटे जाने के बाद भी, आज भारत की जनता के पास विश्व का सबसे अधिक सोना है ! यही नहीं जितना सोना एक सामान्य व्यक्ति अपने जीवन में खरीदता है ! उससे ज्यादा सोना तो लोग आज भी मंदिरों में दान कर देते हैं !

उसी का परिणाम है कि दक्षिण भारत के तमिल नाडु के वेल्लोर नगर के मलाईकोड़ी के पहाड़ों पर स्थित 15 हज़ार किलो सोने से बना महालक्ष्मी स्वर्ण मंदिर है और केरल के ही पद्मनाभ मंदिर के तहखाने में हजारों टन सोना पड़ा हुआ है ! ऐसे ही न जाने कितने मंदिर और राजघराने होंगे ! जहां पर आज भी हजारों टन सोना जमीन के नीचे दबा होगा ! जिसे ढूंढने की इच्छा ही आज हमारे अंदर नहीं है !

लेकिन मुगलों के बाद आये अंग्रेजों ने भारत की सनातन शिक्षा पद्धति को नष्ट करके भारतीयों के मन में जो लालच भर दिया ! उसी का परिणाम है कि आज का व्यक्ति तन से तो नहीं लेकिन मन से जरूर गरीब हो गया है !

आज व्यक्ति के पास आवश्यकता से अधिक धन है लेकिन वह उसको व्यय नहीं करना चाहता है ! या कहें तो किसी जरूरतमंद को देना ही नहीं चाहता है या किसी मंदिर में दान नहीं करना चाहता है ! बहाना कुछ भी हो सकता है !

ठीक इसी तरह लालच का यह हाल है कि अगर कहीं पर मुफ्त की कोई भी सामग्री मिल रही है तो समाज के छोटे से छोटे वर्ग से लेकर बड़े से बड़ा संपन्न व्यक्ति भी उस मुफ्त की चीज को पाने की इच्छा रखता है ! इसका सबसे बड़ा उदाहरण यह है कि उत्तर प्रदेश में पिछली बार जब समाजवादी पार्टी ने बेरोजगारी भत्ता देने का वादा किया तो विदेशों में रह रहे भारतीय मूल के लोगों ने विदेशों से ऑनलाइन फॉर्म भर दिया और जब उनसे पूछा गया कि आप विदेशों में अति संपन्न अवस्था में रह रहे हैं ! फिर आपको इस 1000 रूपये की क्या आवश्यकता है तो इसका जवाब उन्होंने दिया कि “जब मुफत में कोई चीज बन रही है लेने में क्या बुराई है !”

बस इस तरह की सोच ही हमें अपने आप में गरीब, बेईमान और लालची बना देती है ! जो सोच राष्ट्र में हजार तरह के अपराधों को जन्म देती है ! यही से विश्वासघाती समाज का निर्माण होता है ! जो भ्रष्टाचार से लेकर राजनैतिक अपराधीकरण तक को जन्म देता है !

हत्या, डकैती, बलात्कार, पर दंपत्ति गमन, दूसरे की संपत्ति हड़प लेना, अपनी हैसियत और औकात से अधिक बेईमानी द्वारा संपत्ति संग्रहित कर लेना आदि आदि यह सारे अपराध हमारे लालच से ही शुरू होते हैं और इन्हें कोई भी कानून, शासन, सत्ता नियंत्रित नहीं कर सकता है ! जब तक कि हम स्वयं अपने लालच का परित्याग न कर दें !

अत: यदि हमें अपने देश को बचाना है अपने आपको बचाना है तो हमें क्या लेना है, क्या नहीं लेना है, इसका निर्णय हमें खुद करना होगा ! जब हम ऐसा करेंगे तब उसी क्षण हम संपन्न हो जाते हैं और हमारा समाज अपराध मुक्त हो जायेगा !

आज इसी मानसिक गरीबी को ब्रह्मास्त्र बनाकर हमारे विरुद्ध विश्व की महाशक्तियां खेल खेल रही हैं ! उसी का परिणाम है कि हम अपने घरेलू उत्पाद के स्थान पर विदेशी सामान खरीदने की इच्छा रखते हैं या फिर किसी भी तरह का जहर पैसे के लिये समाज में बेचने को तैयार हो जाते हैं ! चाहे उस जहर के परिणाम स्वरूप हमारे ही अपने परिवार के लोग कैंसर से क्यों न मर जायें !

पर जब तक कोई दुखद घटना हो नहीं जाती है तब तक हम यह विकृत लालच की मानसिकता के कारण यह मानने को तैयार ही नहीं हैं कि अपनी व अपने राष्ट्र की हर समस्या का कारण हम खुद हैं या यह कहिये कि हमारी लालच भरी सोच है ! अब प्रश्न यह है कि आखिर भारत कब तक वैचारिक दृष्टि से भूखा नंगा ही रहेगा !!

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योगेश कुमार मिश्र 

ज्योतिषरत्न,इतिहासकार,संवैधानिक शोधकर्ता

एंव अधिवक्ता ( हाईकोर्ट)

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