चारों वेदों के चार व्याख्या ग्रंथ हैं ! जिनको ब्राह्मण ग्रंथ कहते हैं ! जो हैं ऐतरेय, तैत्तरीय, शतपथ एवम गोपथ ! इन्हीं ब्राह्मण ग्रंथों को पांच नामों से पुकारा जाता है, इतिहास, कल्प, गाथा, नाराशंसी, पुराण ! यही वह पुराण हैं ! जिन्हें सनातन धर्म मान्यता देता है क्योंकि यह ग्रंथ ऋषियों के प्रमाणिक इतिहास को बतलाते हैं और वेदों का तात्पर्य सटीक ढंग से समझाते हैं !
वैसे भी इतिहास का संधी विच्छेद करने से हमें पता चलता है कि इति+ ह+ एवमासीत् अर्थात ‘ऐसा ही पहले था’ ! इन्हीं चार ब्राह्मण ग्रंथों में विज्ञान पूर्वक सभी वैदिक प्रमाणिक सिद्धान्तों के साथ समावेषित किया गया है ! जिसमें अप्रमाणित कुछ भी नहीं है ! स्वयं तैत्तरीय आरण्यक 2:9 श्लोक में लिखा है कि “ब्राह्मणानीतिहासान् पुराणानि कल्पान् गाथा नाराशंसीरिति” ! यही वह पुराण हैं जिन्हें सत्य सनातन हिन्दू धर्म मानता है !
हिन्दू जीवन सिधान्त के विरुद्ध कौन-कौन से पुराणों विधर्मियों द्वारा रचवाये गये हैं ! वह निम्न हैं !
(1) ब्रह्मपुराण
(2) पद्मपुराण
(3) विष्णुपुराण
(4) शिवपुराण
(5) भागवतपुराण
(6) नारदपुराण
(7) मार्कण्डेयपुराण
(8) अग्निपुराण
(9) भविष्यपुराण
(10) ब्रह्मवैवर्तपुराण
(11) लिंगपुराण
(12) वाराहपुराण
(13) कूर्मपुराण
(14) स्कन्दपुराण
(15) मत्स्यपुराण
(16) गरुड़पुराण
(17) ब्रह्माण्डपुराण
(18) सुर्यपुराण
सनातन हिन्दू धर्म की दृष्टि से यह वह 18 नवीन तथाकथित धर्म ग्रंथ हैं ! जिनको सनातन हिन्दू समाज अज्ञानता वश पुराण के नाम से मानता है लेकिन यह ग्रन्थ विधर्मियों द्वारा रचित है इसका पहला कारण है कि इनका उल्लेख किसी प्रमाणिक हिन्दू धर्म शास्त्र में नहीं मिलता है और दूसरा इनमें हमारे महापुरुषों के बारे में अश्लील और निंदायुक्त बातें कही गयी हैं ! जिन्हें पढ़कर कोई भी मनुष्य हिन्दू धर्म के प्रति घृणा से भर जाता है !
इन्हीं के कारण हमारे वैदिक सत्य सनातन हिन्दू धर्म में अनेकों कुरीतियाँ आ गई हैं ! जैसे बाल विवाह, पर दाम्पत्य गमन, विवाह के प्रति अनैतिक सम्बन्ध, अनेकों मिथ्या देवी देवताओं की उपासना करना, भूत प्रेतों की पूजा करना, निर्दोष पशु और मानवों की बली, मृतक श्राद्धों में मांसाहार विधान, देवी देवताओं की उपासना में शराब का प्रयोग आदि आदि प्रचलित हुये हैं !
सनातन धर्म के अनुसार इन 18 ग्रंथों को प्रमाणित करने के लिये इन्हें व्यास जी द्वारा लिखा प्रचारित किया जाता है जो कि सत्य नहीं है ! यह 18 पुराण नामक अश्लील ग्रंथों को लगभग 2500 वर्ष के कालखंड में अलग अलग समय लिखा गया है !
जिसके लिये समय-समय पर बौद्ध, मुसलमान, इसाई आदि संप्रदाईयों ने इसे लिखवाया है ! जो संप्रदाय हिन्दू धर्म से नफ़रत करते थे और अपना प्रभाव हिन्दुओं में बढ़ाना चाहते थे ! वही विधर्मी अपने देवता की स्तुति और महत्व बढ़ाने के लिये इस तरह की पुराणों की रचना करावा कर हमारे देवी देवताओं की निंदा करवाते थे !
इन सभी पुराणों में विधर्मियों ने अपने-अपने देवताओं की स्तुति और हिन्दू देवी देवताओं की निंदा युक्त कथायें लिखवाई हैं ! इन्हीं कथाओं का सहारा लेकर विधर्मी, मुसलमान, ईसाई, अम्बेडकरवादी आदि सनातन हिन्दू समाज की खूब खिल्ली उड़ाते हैं और इन्हीं अश्लील कथाओं को दिखा-दिखा कर हिंदू युवाओं और युवतियों के मन में उनके देवों महापुरुषों के प्रति घृणा उत्पन्न करके उनको मुसलमान, ईसाई, वामपंथी या नास्तिक आदि बना देते हैं !
इसलिये इन 18 पुराण ग्रंथों को हिन्दू समाज में प्रमाणिक ग्रन्थ नहीं मानना चाहिये ! ऐसा मेरा मत है !!