ज्योतिषः सत्य या कल्पना
आज भारत सहित विश्व भर के भविष्य को लेकर भारी जिज्ञासा है। आए दिन पत्र-पत्रिकाओं में निकलने वाले भविष्यफल पाठकों क लिए सर्वप्रथम पठनीय और सर्वाधिक जिज्ञासापूर्ण विषय होते हैं। एक सर्वेक्षण के अनुसार विश्व जनसंख्या का प्रतिशत से भी अधिक भाग प्रत्यक्ष अथवा परोक्ष रुप से भविष्यवाणी में इच्छुक रहता है। खुद मेरा जीवन वर्षो कट्टरपंथी आर्य समाजियों के मध्य बीता है। उनमें भी मैंने इस विषय के प्रति भारी जिज्ञासा देखी है।
सैकड़ों ऐसे लोगों की मैंने जन्मपत्र्रियां बनाई हैं अथवा पूजादि प्रयासों से उन्हें लाभ पहुंचाया हैं। आज अनेक कट्टर आर्य समाजी ज्योतिष विज्ञान अनुसरण कर रहे हैं। दो-चार को छोड़ कर लगभग सब लोग यह मानने को विवश हुए हैं कि विषय में कुछ विलक्षणता है अवश्य। उनमें से दो-चार जो न मानने वाले लोग हैं, वह केवल इसी बात तक अडिग है कि छः शास्त्रों में से एक ज्योतिष शास्त्र भी है, और उसका अर्थ है ग्रह, नक्षत्रों की आकाशीय स्थिति। वह यह नहीं मानते कि मानव जीवन अथवा अन्य जीव ग्रह-नक्षत्रों से प्रभावित होते हैं। मगर वह तो
ज्योतिष को पूर्णतया अंधविश्वास बताते हैं।
भविष्य जानने के अनेक तरीके हैं जैसे सामुद्रिक विज्ञान, अंक विज्ञान, ज्योतिष आदि। सामुद्रिक शास्त्र में चेहरा देखकर, शरीर में उपस्थित तिलों से, हाथ और पैर की रेखाओं से, शरीर के विभिन्न अंगों आदि से भविष्यवाणी की जाती है। सामुद्रिक शास्त्र में सर्वाधिक लोकप्रिय और वैज्ञानिक हस्त रेखा विज्ञान है। जो पाठक इस विषय का वैज्ञानिक पहलू विस्तार से अध्ययन करने में इच्छुक हो वह मेरी पुस्तक हस्त रेखाओं से रोग परीक्षण पढ़ सकते हैं।
हमारा मस्तिष्क शरीर के विभिन्न अंगों का संचालन करता है। यह बात सिद्ध की जा चुकी है कि शरीर में किसी अव्यव का संचालन मस्तिष्क का कौन-सा भाग करता है। यदि मस्तिष्क का वह भाग किन्हीं कारणों से कार्य करना बंद कर दे तो उससे संबंधित भाग भी कार्य करना बंद कर देता है। मस्तिष्क के विभिन्न भागों का संबंध व्यक्ति की आकांक्षाओं, काम-प्रवृत्तियों, इच्छाओं आदि पर भी होता है। इसी कारण से शरीर-लक्षण विशेष रुप से हस्त रेखाओं द्वारा व्यक्ति की मानसिक क्रियाओं का भी पता चल जाता है। सामुद्रिक शास्त्र का संबंध नक्षत्र, पृथ्वी तथा उसके निवासियों पर उनके प्रभाव तथा उनकी दूर स्थित आभा से निकलने वाली चुम्बकीय दे्रव धारा से है। हमारा स्नायु तंत्र मस्तिष्क तथा हथेली के मध्य एक कड़ी का कार्य करता है और यह दोनों सूक्ष्मतम संवेदनाओं के भंडारागार हैं।
चिकित्सा विज्ञान मानता है कि गर्भावस्था से ही बच्चा मुट्ठी बंद किए रहता है, इसलिए हथेली की त्वचा सिकुड़ने से उसमें रेखाएं बन जाती हैं। यह स्वाभाविक है और प्राकृतिक भी। परंतु यह धारणा मिथ्या है। यदि ऐसा होता तो रेखाओं का क्रम व्यवस्थित नहीं होता।
नाखून, त्वचा का रंग, नाखून में उपस्थित चन्द्र स्थिति आदि का अध्ययन कर रोग बताने का उपक्रम करते आपने वरिष्ठ चिकित्सकों तक को देखा होगा। विषय वस्तु को अधिक न बढ़ाते हुए यही कहूंगा कि वक्तव्यों की सत्यता की परख स्वयं करके देखिए। दस अनपढ़ व्यक्तियों के हाथ के छापे लीजिए और दस बौद्धिक पढ़े-लिखों के। दस बीमारों का अध्ययन करिए और दस स्वस्थ लोगों का। दस काल्पनिक और हीन भावना से पीडि़त लोगों के छापे देखिए और दस व्यवहारिक और मस्त लोगों के। इसी प्रकार दस-दस के समूह बना कर विभिन्न प्रकार के हस्त रेखाओं के छापे जमा करके अध्ययन करिए और स्वयं निष्कर्ष निकालिए। आप उनमें स्वयं ही अंतर पाने लगेंगे। आप मुझे अपने हाथ की छाप दे दीजिए, मै आपका व्यक्तित्व बता दूंगा। आपका अतीत बता दूंगा।
भविष्यवाणी की दूसरी विधि है अंक विज्ञान। आपने यह अवश्य अनुभव किया होगा अथवा किसी अन्य के लिए पढ़ा-सुना होगा कि उसका जीवन किस प्रकार से एक अंक विशेष के चारों ओर घूमता है। भविष्यवाणी का सर्वाधिक विश्वसनीय विज्ञान ज्योतिष है। विज्ञान भी मानने लगा है कि ग्रह-नक्षत्र जन-जीवन पर प्रभाव डालते हैं। ज्योतिष का मूल है यद् ब्रह्मांडे तत्पिंडे अर्थात् जिन तत्वों से ब्रह्मांड का निर्माण हुआ है, उन्हीं तत्वों से ब्रह्मांडगत सभी पिण्डों का सृजन हुआ है। इसलिए वराहमिहिर ने लिखा है कि प्राणियों एवं जीव-जन्तुओं के अलावा पृथ्वी की प्रत्येक वस्तु पर भी ग्रह-नक्षत्रों का प्रभाव पड़ता है। कुमुदनी चन्द्रकिरणों से खिलती है तो सूर्यमुखी सूर्य से। पृथ्वी पर अन्य खगोलिय पिण्डों की तुलना में सूर्य और चन्द्रमा के गुरुत्वाकर्षण बलों के फलस्वरुप समुद्र का पानी ऊपर उठता है। ज्वार-भाटे उत्पन्न होते है। चन्द्रमा और सूर्य के सम्मिलित प्रभावों के फलस्वरुप ही पूर्णिमा और अमावस्या के दिन ज्वार अन्य दिनों की तुलना अधिक ऊंचा होता है। यही स्थिति शुक्ल और कृष्ण पक्ष की सप्तमी और अष्टमी के दिन सबसे कम होती है। दूसरे शब्दों में कहें कि चन्द्रमा की कलाओं के साथ ही ज्वार घटता या बढ़ता रहता है।
मानसिक रुप से विक्षिप्त लोगों के अध्ययन से यह निष्कर्ष निकाला गया कि पूर्णिमा के दिन ऐसे लोगों की स्थिति विकराल रुप ले लेती है। सैकड़ों वर्षो के शोध के बाद यह निष्कर्ष निकाला गया कि सूरज पर प्रत्येक ग्यारह वर्ष में आणविक विस्फोट होता है। इसके प्रभाव का व्यक्ति, देश, वनस्पति आदि पर स्पष्ट अध्ययन किया गया। स्विस चिकित्सक पैरासिलिसस ने अपने अनुसंधानों से यह सिद्ध किया कि कोई व्यक्ति तब ही बीमार होता है जब उसके और उसके जन्म नक्षत्र के साथ जुड़े हुए ग्रह-नक्षत्रों के बीच तारतम्य टूट जाता है। पाइथागोरस ने यह सिद्ध किया था कि प्रत्येक ग्रह-नक्षत्र अपने निश्चित परिपथ पर चलते हुए एक ध्वनि पैदा करता है। इन सब ग्रह-नक्षत्रों की ध्वनि में एक ताल मेल है, एक संगीतबद्धता है। प्रत्येक व्यक्ति की इसी प्रकार की संगीतबद्धता और नक्षत्रों की संगीतबद्धता में भी एक व्यवस्था है। जब यह टूटती है तो व्यक्ति प्रभावित होता है। सन् 1950 में कॉस्मिक कैमिस्ट्री नाम की एक नई शाखा पैदा हुई। उसमें इस बात पर बल दिया गया कि पूरा ब्रह्मांड एक शरीर है। यदि एक कण भी प्रभावित होगा तो पूरा ब्रह्मांड तरंगित हो जाएगा।
एक अन्य प्रयोग से यह सिद्ध किया गया कि सूर्य पर आणविक विस्फोट होते हैं तो मनुष्य का खून भी पतला हो जाता है। आप संभवतः नहीं जानते हों कि व्यक्ति का खून सदैव एक सा रहता है, परंतु स्त्रियों का खून उनके मासिक धर्म के दिनों में पतला हो जाता है। ज्योतिष को लोग अंधविश्वास इसलिए कहते हैं कि हम उसके पीछे के वैज्ञानिक कारणों को स्पष्ट नहीं कर पाते। हम कार्य और कारण के बीच संबंध तलाश नहीं कर पाते। परन्तु वास्तव में ऐसा नहीं है। समयाभाव में, धन लोलुपता और अज्ञानतावश हम आगे नहीं बढ़ पा रहे। दरअसल विज्ञान किसी अतिविकसित सभ्यता द्वारा दिया हुआ अविकसित ज्ञान है जिसे हम आगे नहीं बढ़ा पाये। हमारा भविष्य हमारे अतीत से अलग नहीं हो सकता, उससे जुड़ा हुआ होगा। हम कल जो भी होगें, वह आज का ही जोड़ होगा। आज तक हम जो है वह बीते हुए कलों का जोड़ है। भविष्य सदा अतीत से निकलेगा। हमारा आज कल से ही निकलेगा और आने वाला कल आज से। इसलिए जो कल होने वाला है वह आज भी कहीं सूक्ष्म रुप से छुपा है। उसे खोजना ही विज्ञान है।
एक छोटे बीज में उसके पेड़ बन कर फल देने और नष्ट हो जाने का पूरा प्रोग्राम लिखा है। वह अंकुरित होगा, पौध बनेगा, बड़ा होगा, फिर पेड़ बन जाएगा आदि। इसी प्रकार गर्भ से ही बच्चे का पूरा प्रोग्राम निश्चित हो जाता है। यह बात अलग है कि पुरूषार्थ से वह उस प्रोग्राम में थोड़ा बहुत परिवर्तन कर लें। प्रत्येक ग्रह-नक्षत्र अपने स्वभाव और गुण अनुसार व्यक्ति को प्रभावित करता है, यह अकाट्य सत्य है। विज्ञान भी इसको मानता है। वह कहता है कि यह सत्य है कि ग्रह-नक्षत्र व्यक्ति, पशु-पक्षी, जल, वनस्पति, जलवायु आदि को प्रभावित अवश्य करते हैं, परन्तु यह अभी स्पष्ट नहीं कहा जा सकता कि कोई व्यक्ति विशेष इनके प्रभाव से प्रभावित होगा ही। इस पर निरंतर शोध कार्य चल रहे है और एक दिन विज्ञान को झुकना ही होगा इस सत्य की ओर।
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