मंत्र से रोग कैसे ठीक होते हैं ?
पदार्थ जगत में विस्फोट होता है ऊर्जा की प्राप्ति के लिये पदार्थ को तोड़ना पड़ता है उसी तरह चेतना जगत में मंत्र एवं मात्रिकाओं का विस्फोट किया जाता है । शारीरिक रोग उत्पन्न होने का कारण भी यही है कि जैव-विद्युत के चक्र का अव्यवस्थित हो जाना या जैव-विद्युत की लयबद्धता का लड़खड़ा जाना ही रोग की अवस्था है जब हमारे शरीर में उर्जा का स्तर निम्न हो जाता है तब अकर्मण्यता आती है ।
मंत्र जप के माध्यम से ब्रह्मांडीय उर्जा-प्रवाह को ग्रहण करके अपने शरीर के अन्दर की उर्जा का स्तर ऊचा उठाया जा सकता है और अकर्मण्यता को उत्साह में बदला जा सकता है चुकि संसार के प्राणी एवं पदार्थ सब एक ही महान चेतना के अंशधर है, इसलिये मन में उठे संकल्प का परिपालन पदार्थ चेतना आसानी से करने लगती है, जब संकल्प शक्ति क्रियान्वित होती है तो फिर इच्छानुसार प्रभाव एवं परिवर्तन भी आरम्भ हो जाता है मंत्र साधना से मन, बुद्धि, चित अहंकार में असाधारण परिवर्तन होता है विवेक, दूरदर्शिता, तत्वज्ञान और बुद्धि के विशेष रूप से उत्पन्न होने के कारण अनेक अज्ञान जन्य दुखों का निवारण हो जाता है
वैज्ञानिक परिभाषा में हम इसे इस प्रकार कह सकते हैं कि मंत्र विज्ञान का सच यही है कि यह वाणी की ध्वनि के विद्युत रूपान्तरण की अनोखी विधि है हमारा जीवन, हमारा शरीर और सम्पूर्ण ब्रह्मांण जिस उर्जा के सहारे काम करता है, उसके सभी रूप प्रकारान्तर में विद्युत के ही विविध रूप हैं मंत्र-विद्या में प्रयोग होने वाले अक्षरों की ध्वनि (उच्चारण की प्रकृति अक्षरों का दीर्घ या अर्धाक्षर, विराम, अर्धविराम आदि मात्राओं) इनके सूक्ष्म अंतर प्रत्यन्तर मंत्र-विद्या के अन्तर-प्रत्यन्तरों के अनुरूप ही प्रभावित व परिवर्तित किये जा सकते हैं मंत्र-विज्ञान के अक्षर जो मनुष्य की वाणी की ध्वनि जो शरीर की विभिन्न नाड़ियों के कम्पन से पैदा होते हैं तथा जो कि मानव के ध्यान एवं भाव के संयोग से ही विशेष प्रकार कि विद्युत धारा उत्पन्न करते हैं वही जैव-विद्युत आन्तरिक या बाह्य वातावरण को अपने अनुसार ही प्रभावित करके हमें स्वस्थ्य रखते हैं ।