ब्रिटिश शासन पद्धति द्वारा गठित भारत की “संविधान निर्मात्री सभा” में जो शासन के लिए “लोकतांत्रिक पद्धति” अपनाई गई है वह वास्तव में नितांत अव्यवहारिक, निर्बल तथा राष्ट्रघाती पद्धति है ! इस पद्धति के द्वारा कभी भी कोई भी राष्ट्र एक सशक्त राष्ट्र के रूप में नहीं उभर सकता !
इस लोकतांत्रिक पद्धति का पहला दोष यह है कि सभी व्यक्ति को मत डालने का समान अधिकार है ! यह एक अस्वाभाविक पद्धति है क्योंकि किसी भी समाज में पढ़े-लिखे बुद्धिजीवी चिंतनशील व्यक्तियों की संख्या सदैव कम होती है ! ऐसी स्थिति में यदि सबको समान मताधिकार दे दिया जाएगा तो अनपढ़ विवेकहीन व स्वार्थी तबके को सत्ता प्राप्त करने के लिए राजनेता सदैव संतुष्ट करने की योजना बनाते रहेंगे ! जिससे समाज का पढ़ा-लिखा, बुद्धिजीवी तबका उपेक्षित होता रहेगा परिणामत: स्वार्थी और चालाक लोग सत्ता में काबिज होंगे !
दूसरी सबसे बड़ी समस्या यह है कि सीमित कार्यकाल होने के कारण सत्ताधारियों का राष्ट्र के प्रति कोई रुचि नहीं होती ! उन्हें यह लगता है की एक निश्चित अवधि के अंदर जितना व्यक्तिगत लाभ प्राप्त कर लिया जाए वही उचित है ! पता नहीं दोबारा सत्ता प्राप्त करने का अवसर प्राप्त होगा भी या नहीं !
तीसरी सबसे बड़ी समस्या यह है कि सत्ताधारियों का कार्यकाल सीमित होता है लेकिन प्रशासनिक अधिकारियों का कार्यकाल काफी लंबे समय तक होता है ! अतः प्रशासनिक अधिकारी सत्ताधारियों के नियंत्रण में नहीं रहते और निरंकुश प्रशासनिक अधिकारियों के कारण सत्ताधारी भी अपने को असहाय महसूस करते हैं !
चौथा सबसे बड़ी बात यह है कि लोकतंत्र की पहली शर्त है “जनता की सरकार जनता के लिए” किंतु व्यवहारिक रूप में देखा जाता है, कि जनता द्वारा चुनी गई सरकार जब एक बार सत्ता में आ जाती है तो सदन के अंदर बैठे हुए सांसद जनता की आवाज सुनना बंद कर देते हैं और अपने कुछ चाटुकारों के अतिरिक्त वह अन्य किसी के भी साथ संवाद नहीं बनाए रखना चाहते हैं ! परिणामत: जनता की आवाज सदन तक नहीं पहुंच पाती है और जो पहुंचती भी है उस आवाज को सुनने या उस पर विचार करने में किसी की कोई रुचि नहीं होती क्योंकि उनका 5 साल का कार्यकाल सुनिश्चित होता है !
पांचवी सबसे बड़ी समस्या यह है कि सत्ता के अंदर बैठे हुए लोगों द्वारा जो गलत निर्णय लिये जाते हैं ! उसके परिणाम भविष्य में देश की जनता को भुगतने पड़ते हैं और सत्ता में बैठे हुए लोगों का चुनाव द्वारा परिवर्तन हो जाने के बाद पूर्व के गलत निर्णयों के लिए पूर्व के किसी भी सत्ताधारी को दोषी नहीं माना जाता है ! जिससे देश कमजोर होता है और देश के नागरिक अनावश्यक रुप से विदेशी शक्तियों के आधीन चले जाते हैं !
संक्षेप में यदि कहा जाए तो भारत के अंदर जिस तरह का लोकतंत्र है वह किसी भी कार्य का नहीं है ! यह किसी भी समस्या का समाधान करने में सक्षम नहीं है ! इतिहास को उठाकर देखिए तो ज्ञात होता है कि यदि सीता को लोकतांत्रिक तरीके से राम वापस लाना चाहते तो पूरे जीवन के संघर्ष के बाद भी राम सीता को प्राप्त न कर पाते या पांडव लोकतांत्रिक तरीके से अपनी सत्ता प्राप्त करना चाहते, तो पूरे जीवन के संघर्ष के बाद भी कोर्ट कचहरी के विवादों में ही उलझे रहते और उन्हें उनकी सत्ता प्राप्त न होती !
इसलिए यह परम आवश्यक है किस संविधान निर्मात्री सभा ने जिस तरह की शासन प्रणाली भारत को दी है ! उसके प्रति मोह त्याग कर उसके खामियों पर तटस्थ चिंतन किया जाए और उसके अंदर जो खामियां हैं उनको ठीक करने का प्रयास किया जाए ! जिससे देश का विकास हो और भारत का आम आवाम के अंदर सुरक्षा व राष्ट्रप्रेम की भावना पैदा हो !