आंदोलन दो मुख्य कारणों से खड़े किए जाते हैं ! पहला “भ्रम पैदा करके सत्ता को प्राप्त करने के लिए” जैसा कि प्रायः अधिकांश राजनैतिक दल करते हैं ! दूसरा “राष्ट्र की समस्याओं को समाप्त करने के लिये” जैसा कि प्रायः “समाज सेवक या राष्ट्रवादी विचारक” करते हैं ! हम भारत के संदर्भ में आंदोलनों की चर्चा कर रहे हैं ! भारत में आज तक जितने भी राष्ट्रव्यापी बड़े-बड़े आंदोलन किये गये, उन सभी में आंदोलनकारियों का ज्यादातर उद्देश्य “सत्ता को प्राप्त करना” ही रहा है !
सामान्यतया देश का “आम नागरिक” अपने “परिवार को पालन की चिंता” में परेशान रहता है और वह सदैव यह चाहत है कि देश में कुछ ऐसा परिवर्तन हो जिससे हमारे “परिवार भविष्य में सुरक्षित रहे” ! कुछ अवसरवादी लोग देश के नागरिकों के इसी मनोविज्ञान को समझ कर एक योजना बनाकर देश के नागरिकों को “सुरक्षा का वादा” करके गुमराह करते हैं ! और कहते हैं कि देश के नागरिकों की सभी समस्याओं का मूल कारण “फला व्यक्ति या कानून” है !
यदि “फला व्यक्ति या कानून” को परिवर्तित कर दिया जाए तो देश के आम नागरिकों का भविष्य सुरक्षित हो जाएगा ! सामान्यतय: देश का आम नागरिक अपनी व्यस्तता के कारण इन षड्यंत्रों पर गहन चिंतन नहीं करता है और वह उज्ज्वल भविष्य की कामना में इन धोखेबाज, मायावी नेताओं के चंगुल में फंस जाता है ! वह लोकतांत्रिक तरीके से मतदान करके देश के पुराने शासक को बदल देता है और नया व्यक्ति सत्ता प्राप्त कर लेता है ! लेकिन देश के आम आदमी का भविष्य उतना ही अंधकार में रहता है जितना पहले था !
अब दूसरे बिंदु पर चर्चा करते हैं कि राष्ट्र की “समस्याओं को आंदोलन के माध्यम से वास्तव में कैसे समाप्त किया जा सकता है” ? इसमें सबसे बड़ी समस्या यह आती है कि “शिक्षा और जागरूकता” के अभाव में देश का आम नागरिक राष्ट्र की समस्याओं के मूल कारण को नहीं जान पाता है ! क्योंकि उसके पास सूचना के जो स्रोत हैं वह समाचार पत्र, पत्रिका, टीवी न्यूस चेनल या इंटरनेट ही हैं ! इन पर प्रसारित होने वाली 95% खबरें (सूचनायें) गलत होती हैं ! गलत सूचना के विशलेषण से निष्कर्ष भी गलत ही निकलते हैं और लोग इन “गलत सूचनाओं के कारण निर्णय लेने में भटक जाते हैं !”
नौकरी पेशा पढ़े लिखे लोग अपने परिवारों को पालने में ही इतना व्यस्त रहते हैं कि उनके पास राष्ट्रीय समस्याओं के मूल कारणों को खोजने और उनको समाप्त करने की प्रक्रिया ढूंढने का समय ही नहीं होता है ! जो चिंतक या विचार इस तरह के राष्ट्रीय समस्याओं के मूल कारणों को खोज लेते हैं और उन्हें समाप्त करने की प्रक्रिया भी ढूंढ लेते हैं ! उनका बौद्धिक स्तर इतना अधिक विकसित और परिपक्व होता है कि “वह देश के आम नागरिकों को उसके बौद्धिक स्तर पर जाकर देश की समस्या का मूल कारण न तो समझा पाते हैं और न ही उसका समाधान प्राप्त करने के लिये उन्हें एक जुट कर पाते हैं !” इसी कारण से देश के बड़े-बड़े विचारशील लोग देश में छोटे-छोटे आंदोलन भी खड़े नहीं कर पाते हैं ! इसका जीता जागता उदाहरण “राइट टू रिकोल आन्दोलन” है ! जिसमें कोई कमी न होते हुये भी यह विचाराधार जन आन्दोलन का रूप नहीं ले पा रही है !
दूसरा “जन सहयोग के अभाव में” जब लंबे समय तक ईमानदारी से कार्य करने के बाद भी विचारशील व्यक्तियों को आंदोलन खड़ा करने में कोई सफलता नहीं मिलती है और काल के प्रवाह में आयु बढाने के कारण उनकी “शरीर और बुद्धि शिथिल होने लगाती है” तब धीरे-धीरे ऊर्जा के आभाव में वह विचारशील व्यक्ति अपने सामाजिक जीवन में निष्क्रिय होता चला जाता है और अंत में हार कर उसके विचारों को मात्र पत्र-पत्रिकाओं और किताबों में लेखों के रूप छाप कर रह जाता है !
कुछ विचारशील लोग आज के इस इलेक्ट्रॉनिक युग में अपने ऑडियो और वीडियो बनाकर अपने विचारों को समाज के लिए छोड़ देते हैं फिर आयु पूरी होने पर देश ही नहीं धरती भी छोड़कर चले जाते हैं ! बाद को योजनाबध्य तरीके से “षड्यंत्रकारी ताकतें” द्वारा “सूचना तंत्र के माध्यम” से “उनके विचारों की हत्या” करवा दी जाती है ! यदि उस समय तक व्यक्ति जीवित है और अति लोकप्रियता के कारण सूचना तंत्र द्वारा ऐसा संभव नहीं है तो “षड्यंत्रकारी ताकतें” उस महान विचारक की ही हत्या करवा देती हैं ! बड़े बड़े देशों में इस तरह की हत्या करवाने के लिये विशेष बजट होते हैं और उनके कातिल दुनिया में कहीं भी इस तरह की हत्या को अंजाम दे सकते हैं ! जैसाकि इस उदाहरण से समझिये कि लाल बहादुर शास्त्री, इन्दिरा गाँधी, राजीव गाँधी जैसे देश के प्रधानमंत्रीयों की हत्या इन्हीं विदेशी ताकतों द्वारा करवा दी गई !
अपने भाई राजीव दीक्षित जी के साथ भी यही हुआ था ! यह तो धन्य हैं “भाई ध्रुव जी” जिन्होंने संसाधनों के आभाव में भी राजीव जी के न रहने के बाद भी निःस्वार्थ भाव से उनके विचारों को जीवित बनाये रखा ! जिसे अब कुछ “धूर्त लोग” धन के लालच में नष्ट करने पर तुले हैं !
अगले लेख में इस चुनौती के समाधान के कुछ सूत्र बतलायेंगे क्योंकि यह लेख बड़ा हो गया है और बड़े लेख पढ़ने की प्रवित्ति अब देश के नागरिकों में नहीं बची है !