देवता सुर भगवान आदि मात्र वैष्णव उपाधियां हैं : Yogesh Mishra

जैसे हिंदू मुसलमान, ईसाई, याहूदी आदि अलग-अलग जीवन पद्धति है ! जिसे कालांतर में धर्म कहकर संबोधित किया गया है और इन सभी जीवन पद्धतियों को मानने वाले व्यक्ति सदैव से दूसरी जीवन पद्धति को मानने वाले व्यक्ति को विधर्मी, काफिर, जेंट, डेविल, डेमन या राक्षस आदि कहकर संबोधित करते हैं !

ठीक उसी तरह से प्राचीन काल में भी जब वैष्णव संस्कृत को मानने वाले तथाकथित देवता धर्मयुद्ध के नाम पर हत्या, लूटपाट, अपहरण आदि के द्वारा पूरी दुनिया में अपनी वैष्णो संस्कृति का विस्तार कर रहे थे ! तब जिन लोगों ने वैष्णव को ऐसा करने से रोका या जिन लोगों ने अपनी सभ्यता, संस्कृति, जीवन शैली के रक्षार्थ इन आताताई आक्रांता वैष्णव के विरुद्ध युद्ध किया और उन्हें परास्त किया ! उन्हें वैष्णव लोगों ने राक्षस, दैत्य, दानव, असुर आदि कहकर संबोधित किया !

वरना विचार कीजिये वैष्णव संस्कृत के मुखिया विष्णु द्वारा हिरण्याक्ष का वाराह अर्थात (गैंडा) को पालने वाले जंगली आदिवासियों को भड़का कर हत्या करवाये जाने के बाद के बाद ! उसके बड़े भाई हिरण्यकश्यप की हत्या विष्णु द्वारा शेर का मुखौटा तथा बड़े नाख़ूनदार दस्ताने पहन कर उसके ही महल में षडयंत्र कर के गुफा द्वारा हत्यारों को भेज कर करवा दी गई थी ! तब उनकी मृत्यु के बाद दोनों ही सगे भाइयों को असुर की श्रेणी में डाल दिया गया ! जबकि उन्हीं के पुत्र प्रहलाद जोकि वैष्णव संस्कृति का पोषक था ! उसे देवताओं की श्रेणी में रखा गया और पुनः प्रहलाद के पुत्र बाली जो कि वैष्णव संस्कृति का विरोधी था उसे पुनः असुर की श्रेणी में डाल दिया गया !

अब प्रश्न यह है कि यदि व्यक्ति का धर्म, वर्ण और जाति का निर्धारण पिता से होता है ! तो असुर का पुत्र देवता और देवता का पुत्र पुन: असुर कैसे हो सकता है ! ठीक इसी तरह रावण के पिता तथा बाबा जो वैष्णव संस्कृत के पोषक थे ! उन्हें ऋषि विश्र्वा और बाबा को महर्षि पुलस्त्य कहा गया और उसी ऋषि विश्र्वा से उत्पन्न होने वाले एक पुत्र कुबेर को देवताओं के कोष का रक्षक माना गया और देवता की उपाधि दी गई ! उसी पिता से उत्पन्न दूसरे पुत्र रावण जो कि वैष्णव संस्कृति का विरोधी शिव भक्त था ! उसको राक्षस की उपाधि दी गई !

इसी तरह यादवों में मधु एक प्रतापी शासक माना जाता है ! मधु को असुर, दैत्य, दानव दास आदि कहा गया है ! मधु राजा के सौ पुत्रों में से ज्येष्ठ पुत्र यादवराज था ! इसी असुर मधु राजा के कुल में भगवान श्री कृष्ण पैदा हुये और वैष्णव जीवनशैली को स्वीकारने का कारण देवता कहलाये ! उनके शेष सभी पूर्वज राक्षस कहलाये ! इस पर विस्तृत लेख बाद में !

ऐसे ही संस्कृत के महान कवि कालिदास के अनुसार रघुवंशी भगवान श्री राम के कुल में उत्पन्न होने वाले राजा अग्निवर्ण के विलासिता की अति के कारण जोकि सयंमित वैष्णव जीवनशैली को स्वीकार नहीं करते थे ! उन्हें भी राक्षस का दर्जा दिया गया !

ऐसे ही सैकड़ों उदाहरण हैं वैष्णव रचित धर्म शास्त्रों में मिलते हैं ! जिन्हें अध्ययन करने के उपरांत यही निष्कर्ष निकलता है कि उस काल में जिन लोगों ने वैष्णव विचारधारा के राजाओं की अधीनता स्वीकार कर ली थी ! उन्हें समाज में सम्मानित करने के लिये देवता आदि की उपाधि देकर सम्मानित किया जाता था ! और जो वैष्णव विचारधारा को नहीं मानते थे ! उन्हें असुर, दैत्य, दानव, राक्षस आदि कह कर संबोधित किया जाता था !

जैसे मुगलों के और अंग्रेजों के समय में कैसर-ए-हिंद, शेख-उल-हिंद, हजरतेआला, तालुकदार, मदद-ए-माश, सर, नाइटहुड, राय बहादुर, साहेब बहादुर, खान बहादुर, लार्ड आदि की उपाधियां देकर यह घोषित किया जाता था कि यह व्यक्ति हमारे प्रति वफादार है !

ठीक इसी तरह वैष्णव संस्कृति में देवता, सुर, भगवान आदि की उपाधि देकर वैष्णव साहित्यकार समाज को यह बतलाना चाहते थे कि फलां फलां व्यक्ति या शासक वैष्णव विचारधारा को मानता है ! या यह व्यक्ति वैष्णव विचारधारा को मानने वाले शासकों का प्रिय व्यक्ति है !

अतः यह निष्कर्ष निकलता है कि वैष्णव जीवन शैली को मानने वाले लोग जब अपने वैष्णव विचारधारा का प्रचार प्रसार कर रहे थे ! तब उस समय जिन लोगों ने इनका साथ सहयोग किया ! उन्हें देवता, सुर, भगवान आदि कहा गया और जिन लोगों ने वैष्णो विचारधारा के राजाओं का साथ नहीं दिया ! उन्हें असुर दैत्य दानव राक्षस आदि कहकर संबोधित किया गया ! अतः यह निष्कर्ष निकलता है कि देवता सुर, भगवान आदि व्यक्ति नहीं उपाधियां हैं !

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योगेश कुमार मिश्र 

ज्योतिषरत्न,इतिहासकार,संवैधानिक शोधकर्ता

एंव अधिवक्ता ( हाईकोर्ट)

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