प्रायः देखा जाता है कि बच्चों के विवाह के लिए बहुत अच्छे-अच्छे संबंध आने पर हम उन्हें इसलिये छोड़ देते हैं कि हमारे सलाहकार “ज्योतिषी” या “कंप्यूटर के सॉफ्टवेयर” उस कुंडली को “मांगलिक” घोषित कर देते हैं और उस संबंध को न करने की सलाह देते हैं | मैं इस विषय में कोई भी बात बतलाने से पहले आपकी जानकारी में यह डाल देना चाहता हूं कि “जिस तरह अन्य क्रूर ग्रह किसी व्यक्ति के जीवन में अवरोध पैदा करते हैं | ठीक उसी तरह कुंडली में अशुभ मंगल भी व्यक्ति के जीवन में अवरोध पैदा करता है |” इसके लिए विशेष रुप से जरा भी भयभीत होने की आवश्यकता नहीं है |
क्योंकि ज्योतिष के सामान्य सिद्धांतों के तहत जिस कुंडली को ज्योतिषाचार्य या कंप्यूटर के सॉफ्टवेयर “मांगलिक दोष से युक्त” घोषित कर देते हैं | प्रायः देखा जाता है कि वह “मांगलिक कुण्डली” जन्मपत्री के अन्य दूसरे ग्रहों के प्रभाव से स्वतः ही “मांगलिक दोष” से मुक्त हो जाती है | कभी-कभी कुछ “विशेष लग्न” कुछ “विशेष राशि” और कुछ “विशेष नक्षत्रों की डिग्रियों” पर आ जाने पर “मंगल” सामान्यत: कुंडली में तो “मांगलिक” दिखाई देता है लेकिन वह “मंगल” कुंडली स्वामी को नुकसान के स्थान पर फायदा पहुंचाता है | जिसे भ्रमवश कंप्यूटर के सॉफ्टवेयर या कुछ कम जानकारी रखने वाले ज्योतिषाचार्य “मांगलिक” घोषित कर देते हैं और उसका उपाय करवा देते हैं |
जबकि व्यक्ति को सदैव यह ध्यान रखना चाहिए कि “मंगल ग्रह” व्यक्ति की “जीवनी ऊर्जा” को बढ़ाने वाला सबसे महत्वपूर्ण ग्रह है | अतः किसी भी कुंडली को मांगलिक मानकर “अनावश्यक रूप से” जब मंगल दोष का उपचार किया जाता है तो इससे व्यक्ति की “जीवनी ऊर्जा भी क्षीण” हो जाती है | अतः मंगल ग्रह का कुण्डली में गहन विश्लेषण किए बिना कभी भी “मंगल दोष का उपचार नहीं करवाना चाहिए |”
मेरे अपने निजी अनुभव में यह आया है कि “यदि सौ मांगलिक कुंडलियां मेरे समक्ष आयी हैं तो उनमें से मात्र तीन ही कुंडलियों में मंगल ग्रह की शांति की आवश्यकता पड़ी है |” अर्थात 100 में से 97% कुंडलियों में “मांगलिक दोष स्वत: समाप्त” हो जाता है |जैसे कि निम्नलिखित परिस्थितियों में मंगल दोष स्वतः प्रभावहीन हो जाता है :-
(1) कुन्डली में लग्न आदि 5 भावों में से जिस भाव में मंगलीक योग बन रहा हो, यदि उस भाव का स्वामी बलवान हो तथा उस भाव में बैठा हो या देखता हो साथ ही सप्तमेश या शुक्र त्रिक स्थान में न हो तो मंगली योग का अशुभ प्रभाव नष्ट हो जाता है |
(2) यदि मंगल शुक्र की राशि में स्थित हो तथा सप्तमेश बलवान होकर केन्द्र त्रिकोण में हो तो मंगल दोष प्रभावहीन हो जाता है |
(3) वर या कन्या में से किसी एक की कुन्डली में मंगल दोष हो तथा दूसरे की कुन्डली में लग्न, चतुर्थ, सप्तम, अष्टम या द्वादश भाव में शनि हो तो मंगल दोष दूर होता है |
(4) वर – कन्या में से किसी एक की कुन्डली में मंगली दोष हो और दूसरे की कुन्डली में उस भाव में कोई पाप ग्रह हो तो मंगली दोष नष्ट हो जाता है |
(5) यदि शुभ ग्रह केन्द्र त्रिकोण में तथा शेष पाप ग्रह त्रिषडाय में हो और सप्तमेश ,सप्तम स्थान में हो तब भी मंगली योग प्रभावहीन हो जाता है |
(6) मंगली योग वाली कुन्डली में बलवान गुरु या शुक्र के लग्न या सप्तम में होने पर अथवा मंगल के निर्बल होने पर मंगली दोष दूर हो जाता है |
(7) मेष लग्न मे यदि मंगल लग्न में है या वृ्श्चिक राशि में चतुर्थ भाव में मंगल स्थित है तो मंगल दोष नहीं है | वृ्षभ राशि में सप्तम स्थान में स्थित मंगल या कुंभ राशि में अष्टम स्थान में स्थित मंगल और धनु राशि में व्यय स्थान में स्थित मंगल से मंगली दोष नहीं होता |
(8) कर्क या मकर का मंगल सप्तम स्थान में होने पर, मीन का मंगल अष्टम स्थान में होने पर तथा मेष या कर्क का मंगल व्यय स्थान में होने पर मंगल दोष नहीं होता |
(9) यदि मंगली योग कारक ग्रह स्वराशि, मूल त्रिकोण राशि या उच्च राशि में हो तो मंगल दोष स्वत: ही समाप्त हो जाता है |
आदि-आदि इसी तरह की अन्य बहुत सी परिस्थितियां हैं | जिसमें मंगलिक दोष स्वतः भंग हो जाते हैं | अत: मंगलिक दोष के निर्धारण के विषय बिना किसी योग्य ज्योतिषी के परामर्श के किसी भी कुण्डली को मांगलिक मान लेना गलत है | यहाँ तक कि इस तरह की स्वतः भंग कुण्डलियों में मांगलिक दोष का उपचार करवा लेना भी घातक है |