आजकल चारो तरफ कालसर्प योग की बहुत ही चर्चा है | यदि आपका समय कुछ अच्छा नहीं चल रहा है और ऎसे में यदि आप किसी ज्योतिषी से सम्पर्क करते हैं तो अधिकतर ज्योतिषी किसी न किसी तरह से आपको कालसर्प (पूर्ण या आंशिक) योग से पीडित बतलाते हैं | कुछ महान ज्योतिषियों ने तो आपको भयभीत करने के लिये 108 या इससे भी अधिक प्रकार के कालसर्प योगों के नाम पुराणों में वर्णित नागकुल के शासकों के नाम पर रख छोड़े हैं | सभी जानते हैं कि द्रोपती के अलावा एक नागकुल के शासक “कौरव्य” की नागकन्या राजकुमारी “उलूपी” भी अर्जुन की पत्नी थी | उलूपी ने अर्जुन से “इरावत” नामक पुत्र को जन्म दिया था ।
कालसर्प योग की उत्पत्ति का प्रमाण किसी भी प्राचीन ज्योतिष ग्रन्थ में नहीं मिलता है | ज्योतिष की उत्पत्ति वेदो से हुई है तथा इसे वेदो का अंग (नेत्र) भी माना जाता है | किसी भी वेद, संहिता एंव पुराणो में कालसर्प नामक योग का उल्लेख नहीं मिलता है | यहाँ तक कि भृगुसंहिता, पाराशर एंव रावण संहिता आदि मुख्य ग्रन्थों में भी कालसर्प योग की चर्चा तक नहीं है |
चर्चा को आगे बढाने से पहले हम यह भी जान लें कि राहु अथवा केतु दोनों किसी भी स्थिति में स्वतंत्र फल देने में सक्षम नहीं हैं | वरन् ये जिस राशि अथवा ग्रह के साथ युति संबंध में होते हैं उसी के अनुसार फल प्रदान करते हैं।
अब आइए राहु के शुभ प्रभावों की चर्चा करते हैं । राहु तीसरे, छठे व ग्यारहवें भाव में मौज़ूद हो तो शुभ फल प्रदाता हो जाता है।
तीसरे भाव में स्थित राहु पराक्रम में आशातीत बढ़ोत्तरी कर देता है। ऐसा राहु छोटे भाई को भी बहुत मजबूती देता है। यदि इस भाव में बैठे राहु को मित्र या शुभ ग्रहों की दृष्टि प्राप्त हो अथवा वह स्वयं उच्च या उच्चाभिलाषी हो तो अतिशय मात्रा में शुभ फलों की प्राप्ति होती है।
छठे भाव में मजबूत स्थिति में बैठा राहु शत्रु व रोग नाशक बन जाता है। यदि छ्ठे स्थान पर शुक्र अथवा गुरु आदि शुभ ग्रहों की दृष्टि हो या इस स्थान पर शुक्र व राहु की युति हो तो ऐसी दशा में विशिष्ट शुभ फल प्राप्त होते हैं। ऐसी दशा वाले जातक के शत्रु या तो होते नहीं और यदि होते हैं तो हार कर समर्पण कर देते हैं। यही नहीं ऐसा जातक शारीरिक रूप से काफी हृष्ट-पुष्ट होता है तथा बीमारी आदि समस्याएं उससे कोसों दूर होती हैं।
एकादश स्थान पर मजबूत होकर बैठा राहु भी शुभता का द्योतक है। इस स्थिति में संबंधित जातक को व्यापार-उद्योग, सट्टा-लॉटरी, शेयर बाज़ार आदि में एकाएक भारी मात्रा में लाभ प्राप्त होता है। ऐसा जातक शत्रु नाशक तो होता ही है साथ ही जीवनोव्यापार में भी सफल रहता है।
ऐसे ही जीवन में अनेकों अप्रत्याशित लाभ व्यक्ति को राहु-केतु से प्राप्त होते हैं | अत: बिना सोचे समझे अनावश्यक रूप से कालसर्प योग के नाम पर राहु या केतु की ग्रह शान्ति का अनुष्ठान आपको अपने लाभ से तो वंचित करेगा ही साथ ही यह गलत पूजन आपका सर्वनाश भी कर सकता है |
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योगेश कुमार मिश्र
ज्योतिषरत्न,इतिहासकार,संवैधानिक शोधकर्ता
एंव अधिवक्ता ( हाईकोर्ट)
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