स्कंद पुराण के रेवाखंड में वर्णित सत्यनारायण व्रत कथा का वर्णन न तो रामायण में मिलता है और न ही महाभारत में मिलता है अर्थात भगवान श्री कृष्ण के काल तक सत्यनारायण व्रत कथा समाज में लोकप्रिय नहीं थी ! भगवान श्री कृष्ण के पृथ्वी लोक से गमन के उपरांत जब कलयुग का पृथ्वी पर आगमन हुआ तब व्यक्ति के अंदर सनातन ज्ञान का अभाव हुआ और व्यक्ति सांसारिक सुखों को प्राप्त करने की लालसा से तरह-तरह के व्रत कथाओं का प्रयोग करने लगा !
आज भारत में हिंदू धर्म को मानने वाले लगभग 13 सौ तरह की व्रत कथाओं का प्रयोग करते हैं ! इनमें से लगभग 100 व्रत कथाएं अत्यंत ख्याति प्राप्त और हिंदू समाज में सर्वमान्य है ! जिनमें सर्वश्रेष्ठ स्थान “सत्यनारायण व्रत कथा” को दिया जा सकता है !
क्योंकि ऐसा बतलाया जाता है कि सत्यनारायण व्रत कथा व्यक्ति को उसकी समस्याओं से मुक्त कराने और उसे सांसारिक सफलता धन-धान्य, यश, आदि देने की कथा है और पूर्व मैं अनेक राजाओं द्वारा इस कथा को प्रचारित किया गया था ! इसलिये यह हिंदू जनमानस के घर-घर में आज भी यह कथा की जाती है ! इसी के साथ यह भी बतला देना सर्वथा उचित है कि विश्व में अन्य सभी संस्कृतियों के समापन के लिए और घर-घर में वैष्णव पूजा पद्धति को विकसित करने के लिए “सत्यनारायण व्रत कथा” का प्रचलन हमारे वैष्णव पूजन की मार्केटिंग करने वालों ने किया था !
सत्यनारायण व्रत कथा के आगमन के पूर्व पृथ्वी पर अनेक प्रकार की संस्कृति मौजूद थी ! जैसे देव-दानव, सुर-असुर, दैत्य-राक्षस, यक्ष-किन्नर आदि आदि अनेकानेक संस्कृतियां विभिन्न स्वरूपों में पृथ्वी के विभिन्न हिस्सों में चलन में थी ! किन्तु सत्यनारायण व्रत कथा के आगमन के बाद यह सभी संस्कृतियाँ विलुप्त हो गयी ! और व्यक्ति भाग्यवादी हो गया फिर वैष्णव पूजन की मार्केटिंग करने वालों के प्रभाव में सांसारिक उपलब्धता को बिना किसी पुरुषार्थ के शीघ्र प्राप्त करने की लालसा से लगभग हर संस्कृति के लोगों ने सत्यनारायण व्रत कथा का पारण करना शुरू कर दिया ! जिससे घर-घर में वैष्णव संस्कृति को बढ़ावा मिला !
परिणामत: कालांतर में वैष्णव संस्कृति के प्रभाव में उनके छल और बल के आधीन पूर्व से ही गुरुकुल शिक्षा पद्धति के विकसित होने के परिणाम स्वरुप धीरे धीरे अन्य सभी संस्कृतियों का विनाश होता चला गया और पूरे विश्व में सम्मान, प्रतिष्ठा व धन की प्राप्ति के लिए एक मात्र वैष्णव संस्कृति का ही प्रचार प्रसार शुरू हुआ जैसे वर्तमान में भारत के परिपेक्ष में कहा जा सकता है कि ससम्मान, प्रतिष्ठा पूर्ण जीवन और धन की प्राप्ति के लिए अंग्रेजी भाषा में शिक्षा ग्रहण करो ! जिसे अब बिना किसी विरोध के स्वीकार किया जाने लगा है ! भले ही वह हमारे आक्रांताओं की भाषा ही क्यों न हो, किंतु जनसामान्य अपना हर कार्य अंग्रेजी भाषा में करने में अपना सम्मान और गौरव महसूस करता है !
ठीक इसी तरह आज से लगभग 5000 वर्ष पूर्व जब कलयुग का आगमन हुआ ! तब व्यक्ति भौतिक रूप से कमजोर हुआ और त्वरित लाभ प्राप्त करने की इच्छा से उसमें तप और योग की विभिन्न अवधारणाओं के अनुसार जीवन यापन करने की क्षमता समाप्त हो गई !
तब व्यक्ति शॉर्टकट के माध्यम से शीघ्र संपन्न होना चाहता था ! मनुष्य के इसी लालची स्वभाव वैष्णव मार्गियों ने नीति की तहत भरपूर प्रयोग किया और सत्यनारायण व्रत कथा का निर्माण कर उसका प्रचलन पर पूरी की पूरी ताकत राजघरानों के सहयोग से लगा दी ! परिणाम यह हुआ की हर गांव, हर शहर में सत्यनारायण व्रत कथा के बड़े-बड़े आयोजन होने लगे और विश्व की लगभग हर संस्कृति ने इस व्रत कथा को स्वीकार कर लिया और इसी के साथ वैष्णव संस्कृत का प्रभाव तेजी से बढ़ता गया जिससे कि कालांतर में अन्य संस्कृति विलुप्त हो गई !
आज भी प्रचलन में अन्य अनेक कथाओं के होने के बाद भी आपने देखा होगा सत्यनारायण व्रत कथा का अपना विशेष महत्व है ! जिसमें शालिग्राम रूप में भगवान विष्णु की आराधना की जाती है और उनके ही अलौकिक यश और प्रताप का वर्णन किया जाता है ! एक अज्ञात भय के रूप में यह बतलाया जाता है कि यदि आप कथा का संकल्प लेकर भूलते हैं या प्रसाद का अपमान करते हैं । तो इससे भगवान विष्णु का निरादर होता है और उससे आपका सर्वनाश सुनिश्चित है !