हिंदुस्तान में राम के कई रूप हैं ! कई भाव हैं ! किसी के लिये राम वृत्ति हैं ! किसी के लिये प्रवृत्ति और किसी के लिये निवृत्ति ! इसीलिये रामायण के दुनिया भर में में 3000 से ज़्यादा वर्ज़न हैं ! जिनमें सबसे मानक वाल्मीकि रामायण को माना जाता है !
रामायण-रामलीला को आकर्षक बनाने के लिये 90 के दशक के टीवी सीरियल “रामायण” तथा पिछले 100 सालों की रामलीला में इन अलग-अलग रामायणों को इस तरह मिला दिया गया कि आज के समय में राम कथा में ऐसी बहुत सी चीज़ें कही जाती हैं ! जो कि वाल्मीकी रामायण में हैं ही नहीं !
उदहारण के लिये “लक्ष्मण रेखा” का ज़िक्र वाल्मीकि रामायण में नहीं है ! तुलसी की मानस में भी इसका ज़िक्र नहीं आता है ! मानस में मंदोदरी एक जगह इस बात को इशारे में अवश्य कहती है ! मगर कुछ खास तवज्जो नहीं दी गई है ! दक्षिण की सबसे चर्चित “कम्ब रामायण” में भी रावण पूरी झोपड़ी को ही उठा ले जाता है !
असल में बंगाल के काले जादू वाले दौर में “कृतिवास रामायण” में तंत्र मंत्र को महिमा मंडित करने के लिये “लक्ष्मण रेखा” की बात हुई है ! जिसका ज़िक्र रामानंद सागर ने अपने सीरियल में किया है ! जिसे बाद को कथा वाचकों ने कथा को रोचक बनाने के लिये खूब फैलाया !
इसी तरह वाल्मीकि रामायण और रामचरित मानस में राम शबरी के यहां जाकर बेर खाते हैं ! न कि जूठे बेर ! जाति के छुआछूत से भरे समाज में जब यह लिखा जा रहा था ! तो अपने समय का क्रांतिकारी कदम था ! जूठे बेर की चर्चा सबसे पहले 18वीं सदी के भक्त कवि प्रियदास के काव्य में मिलती है ! जिसका जिक्र गोरखपुर की गीता प्रेस से निकलने वाले “कल्याण” पत्रिका के 1952 में छपे अंक से यह कथा लोकप्रिय हुई और रामलीलाओं का हिस्सा बन गई !
इसी तरह अहिल्या का प्रकरण भी हर रामायण के लिखे जाने के समय के साथ बदलता रहा है ! वाल्मीकि रामायण के प्रथम सर्ग में अहिल्या के सामने इंद्र ऋषि का रूप बना कर आते हैं ! अहिल्या समझ जाती हैं मगर रुकती नहीं हैं ! वाल्मीकि रामायण में अहिल्या और इंद्र के संभोग में दोनों की इच्छा स्पष्ट दिखाई पड़ती है ! क्योंकि उस समय स्वतन्त्र संभोग को सामाजिक मान्यता थी ! जो कालांतर में दाम्पत्य बंधन के तहत वैष्णव समाज द्वारा मर्यादित हुई है !
कम्ब रामायण के पालकांतम (प्रथम सर्ग) के छंद 533 में अहिल्या को संभोग के बीच में इंद्र के होने का पता चलता है ! मगर रति के नशे में अहिल्या रुक नहीं पाती हैं ! इन सबसे अलग तुलसी की मानस में अहिल्या सिर्फ इंद्र का वैभव देख कर एक पल को मोहित होती हैं ! इंद्र उनके साथ पूरी तरह से छल करते हैं ! मध्य युग में जब वैष्णव समाज द्वारा दाम्पत्य बंधन के तहत नायकत्व को गढ़ा जा रहा था तो पति के रहते किसी और से संबंध बनाने वाली स्त्री को मर्यादा के तहत शापित करना आवश्यक था ! शायद इसीलिये बाद लेखकों ने अहल्या को शाप दिलवा दिया !
वर्ना पद्मपुराण में वर्णित कथा के अनुसार इन्द्र और अहल्या का सम्भोग उस समय लोक मर्यादाओं के इतना घ्रणित कार्य होता तो हिन्दू धर्म में अहल्या विवाहिता होने पर भी पंचकन्याओं में आदर्श दर्जा न दिया गया होता ! जबकि उसके पुत्र शतानन्द राजा जनक के राज पुरोहित थे और बेटी का विवाह दक्षिण भारत के प्रतापी राजा केशरी से हुआ था ! जिनके पुत्र हनुमान जी थे !
इसी तरह तुलसी दास जी के शब्दों में हरि अनंत ! हरि कथा अनंता ! का तात्पर्य अलग-अलग रामायण में राम कथा अलग-अलग हैं ! इन सारी राम कथाओं में अपने-अपने समय के हिसाब से अलग अलग लेखकों द्वारा बदलाव लाया गया है ! इनमें से बहुत से बदलाव बड़े रोचक हैं !
जैसे जैन परंपरा में देवात्मा कभी हिंसा नहीं कर सकता ! इसलिये “पउमंचरिय” (जैन रामायण) में राम रावण का वध नहीं करते ! लक्ष्मण से करवाते हैं ! लक्ष्मण भी लक्ष्मण नहीं हैं ! वह वासुदेव हैं जो रावण का उद्धार करते हैं ! इसके बाद राम निर्वाण को प्राप्त होते हैं और लक्ष्मण नर्क में जाते हैं ! इस रामायण में सीता रावण की पुत्री हैं जिन्हें उसने छोड़ दिया था ! जो रावण के सर्वनाश का कारण बनी ! जबकि रावण यह बात नहीं जानता था और हां इस रामायण में रावण शुद्ध शाकाहारी है !
वाल्मीकि रामायण में सीता अंत में धरती में समा जाती हैं ! जबकि “रामकियन” (थाइलैंड की रामायण) में सीता के भूमि में जाने के बाद हनुमान ज़मीन के अंदर जाते हैं और सीता को वापस लेकर आते हैं ! इस रामायण में सीता को धोबी के कहने पर नहीं निकाला जाता है !
थाइलैंड की रामायण के मुताबिक ! शूर्पनखा की लड़की अपनी मां के अपमान का बदला लेने के लिये दासी बनकर सीता के महल में काम करती है ! एक दिन सीता पर ज़ोर डालती है कि वह रावण की तस्वीर बनाकर दिखाये ! सीता तस्वीर बनाती है ! रावण तस्वीर से ज़िंदा हो जाता है ! राम को इस पर इतना गुस्सा आता है कि वह लक्ष्मण को सीता की हत्या का आदेश देते हैं ! लक्ष्मण सीता को गर्भवती होने के कारण न मारकर जंगल मे छोड़ आते हैं ! आदि आदि !!
इसके अलावा बुद्धकाल, मुगलों और अंग्रेजों के समय में भी रामायण में कई नये क्षेपक जोड़े गये हैं ! जिन्हें बिना जांचे परखे गीता प्रेस ने छाप छाप कर बेचा और इस तरह रामायण की राम कथा विकृत हो गई !!