तृतीय विश्व युद्ध में राहु सर्वनाश का सूचक कैसे है ! : Yogesh Mishra

शास्त्रीय घटनायें यह बतलाती हैं कि जब भी कभी एक माह में तीन बार ग्रहण एक साथ पड़ते हैं तो पृथ्वी पर बहुत बड़ी उथल-पुथल होती है ! बड़े-बड़े युद्ध होते हैं ! आग अग्नि कांड होते हैं ! बाढ़ आती है ! विनाशकारी भूकंप आते हैं ! तरह-तरह के रोग पैदा होते हैं और पृथ्वी की आबादी एक तिहाई से भी कम हो जाती है !

इन सभी घटनाओं के होने के पूर्व प्रकृति हमें तरह-तरह से आगाह करती है ! कभी अचानक बहुत ज्यादा गर्मी पड़ने लगती है ! जिससे हम मुर्ख ग्लोबल वार्मिंग कहते हैं ! कभी अचानक बहुत ज्यादा ठंड पड़ने लगती है ! जिसे भी हम आईस एज कहते हैं ! कभी अचानक पहाड़ों से बहुत अधिक मात्रा में अनियंत्रित जल प्रवाह होने लगता है ! जिससे पृथ्वी का बहुत बड़ा भाग पानी में डूब जाता है ! जिससे हम जल प्रलय कहते हैं या फिर पर्यावरणीय असंतुलन के कारण जगह-जगह ज्वालामुखी के विस्फोट होने लगते हैं ! जिससे प्रकृति अपने क्रोध को प्रकट करती है !

किंतु इतना सब कुछ होने के बाद भी जब मनुष्य अपने स्वार्थ और अहंकारवश ईश्वर द्वारा निर्मित प्रकृति के साथ अपने अत्याचार बंद नहीं करता है ! तब ग्रह नक्षत्र मनुष्य को दंडित करना आरंभ करते हैं ! सभी विकट देवासुर संग्राम के पूर्व, राम रावण युद्ध के पूर्व और महाभारत युद्ध के पूर्व भी प्रकृति ने मनुष्य को इसी तरह के संकेत दिये थे ! ऐसा हमें शास्त्र बतलाते हैं !

अब मैं अपने विषय पर आता हूं कि राहु ही अनिष्ट का सूचक क्यों ? जैसा कि शास्त्र बतलाते हैं राहु की उत्पत्ति सतयुग में समुद्र मंथन काल में हुई थी ! पौराणिक कथाओं के अनुसार जब समुद्र मंथन में अमृत निकला तो उस अमृत को पीने के लिये देवता और असुर आपस में लड़ गये ! तो विष्णु ने मोहनी रूप बनाकर देवताओं और असुरों को अलग-अलग क्रम में बिठाकर देवताओं को अमृत पिलाना चाहा तो विष्णु का यह षड्यंत्र राहु समझ गया और वह असुर होते हुये भी देवताओं के स्वरूप में देवताओं के मध्य बैठकर उसने अमृत पान कर लिया !

जब विष्णु को सूर्य और चन्द्र के इशारे पर इस गलती का अहसास हुआ तो विष्णु ने अपने सुदर्शन चक्र से नामक सिंहिका राक्षस की गर्दन काट दी ! क्योंकि सिंहिका राक्षस अमृत का पान कर चुका था ! अत: उसकी मृत्यु नहीं हुई ! उसका शरीर 2 अंशों में बाँट गया ! गर्दन के ऊपर का हिस्सा राहु कहलाया और गर्दन के नीचे का हिस्सा केतु कहलाया !

क्योंकि देवता अपनी संतान मनुष्य का कभी विनाश नहीं चाहते हैं ! अतः मनुष्य द्वारा जब प्रकृति का विनाश पराकाष्ठा तक किया जाता है ! तब देवताओं के निर्देश पर मनुष्य को उसके सर्वनाश की सूचना का दायित्व शास्त्रों के अनुसार राहु को दिया गया है ! राहु जब अपने तीव्र प्रभाव में आता है तो वह सूरज और चंद्रमा जैसे शक्तिशाली ग्रहों को भी आच्छादित कर देता है ! जिसे ग्रहण कहा जाता है !

और जब राहु का प्रभाव जब इतना ज्यादा हो जाता है कि वह ग्रहण के नाम पर एक मास में तीन बार सूर्य और चंद्र जैसे प्रबल देव ग्रहों को आच्छादित करने का सामर्थ्य बना लेता है ! तब सभी देवी-देवता, असुर-दैत्य, दानव-यक्ष, किन्नर आदि सभी ऊर्जायें मनुष्य के विकृत से इस पृथ्वी को बचाने के लिये सक्रिय हो जाती हैं और पृथ्वी पर बड़ी-बड़ी प्राकृतिक आपदायें होने लगती हैं ! कीटाणु और विषाणु युद्ध होने लगते हैं ! उत्पाती मनुष्य के सर्वनाश की जितनी भी संभावित घटनायें हैं ! वह सब इस काल में होने लगती हैं !

जिसके परिणाम स्वरूप पृथ्वी पर महायुद्ध या विश्व युद्ध होने लगते हैं ! इसी समय अंतरिक्ष से उल्का पिंडों की बरसात होती है ! पृथ्वी की धुरी में परिवर्तन होने लगता है ! पृथ्वी की गति में फर्क आ जाता है ! जिसके परिणाम स्वरूप ऋतुओं में परिवर्तन आ जाता है और ऋतु में परिवर्तन होने के कारण कृषि चक्र में परिवर्तन आ जाता है ! जिससे खाद्यान्न संकट पैदा होने लगता है !

खाद्यान्न आदि अभाव से पीड़ित भूखा पेट मनुष्य एक दूसरे को मारकर खाने लगता है ! ऐसी परिस्थितियों में जब अंतरिक्ष और प्रकृति दोनों ओर से उत्पाद शुरू होता है तो इसमें दुष्ट मानसिकता के मनुष्य भी लूटपाट, हिंसा, डकैती, बलात्कार आदि पर उतारू हो जाते हैं ! तब प्रकृति की व्यवस्था के तहत सात्विक प्रवृत्ति के मनुष्यों की रक्षा बस सिर्फ भगवान ही कर पाता है ! अतः विपत्ति काल में ईश्वर ही हमारा सहायक है !

अब प्रश्न यह होता है कि राहु को इतनी ऊर्जा मिलती कहां से है कि वह ग्रह नक्षत्रों को भी आच्छादित करने का सामर्थ्य पैदा कर लेता है ! इसका स्पष्ट और सीधा जवाब है कि राहु को यह ऊर्जा हमारे आप जैसे सामान्य मनुष्य के द्वारा प्राप्त होती हैं ! शास्त्र यह बतलाते हैं की राहु का भोजन भ्रम और नशा है ! अर्थात मनुष्य जितना अधिक भ्रम और नशे के प्रभाव में होगा ! प्रकृति में राहु उतना अधिक पोषित होगा !

पहले हम नशा की चर्चा करते हैं फिर भ्रम की ! आज हम सभी जानते हैं कि प्रत्येक व्यक्ति किसी न किसी शारीरिक या मानसिक नशे से बंधा हुआ है ! सबसे पहले स्पष्ट दिखाई देने वाले नशे पर विचार कीजिये ! जिसे हम शराब, अफीम, भांग, गांजा, चरस, कोकीन, हशीश आदि कह सकते हैं ! छोटा नशा गुटका, तम्बाकू, पान मसाला, चाय, काफी, आदि है ! इसका गैरकानूनी विक्रय तो होता ही है ! अब क़ानूनी तौर पर भी लाइसेंस द्वारा विक्रय हो रहा है ! आज कर संग्रहण के लिये स्वयं शासन सत्ता में बैठे हुए लोग ही ऐसा करवा रहे हैं ! जिनका मुख्य कार्य कभी मध्य निषेध हुआ करता था !

क्योंकि राहु का भोजन ही कलयुग में समृद्धि की उत्पत्ति करता है ! अर्थात नशीले पदार्थों का सेवन करने वाले ही सदैव सामाजिक कार्य व्यवसाय में एक दूसरे के सहयोगी होते हैं ! इसलिये आम आदमी या संस्था सभी अपनी अपनी समृद्धि के लिये वार्ता में नशे का सहयोग लेते है ! जिससे नशे का कारोबार, उपयोग, उपभोग भी बढ़ रहा है !

इस तरह जो लोग स्पष्ट नशे में नहीं हैं ! वह छद्म नशे के प्रभाव में हैं ! जैसे केमिकल रासायनिक और कीटनाशक युक्त खाद्य सामग्री, कोल्ड ड्रिंक, टॉफी, चॉकलेट, मांसाहार या दूसरे शब्दों में कहें कि यह वह नशा है ! जिसके बिना व्यक्ति रह नहीं सकता है इसलिये समाज ने इसके अत्यधिक प्रयोग के कारण उसे नशे की श्रेणी के बाहर कर दिया है ! जबकि यह वास्तव में नशा ही है और इसके भी भक्क्षण से राहु पोषित होता है !

क्योंकि वास्तव में यह सब तमोगुणी भोजन ही है ! यह सभी यथार्थ में मानसिक तमस पैदा करते हैं ! जिससे व्यक्ति को अपने शरीर के अंदर तरह-तरह के भ्रम पैदा होते हैं ! चक्कर आना, ब्लडप्रेशर बिगड़ना, यादाश्त कमजोर होना आदि आदि यह सब इसी तामसी भोजन का परिणाम है ! जिह्वा के स्वाद के लिये व्यक्ति इन्हें नियमित रूप से इनका सेवन करता है और इनके अभाव में तड़प जाता है ! इसीलिये इनको छद्म नशे की श्रेणी में रखा गया है !

अब आगे चर्चा करते हैं ! मानसिक नशे की हर वह चीज जो यथार्थ में कहीं नहीं है लेकिन अपने होने का अहसास करवाती है ! वह राहु से पोषित है ! जैसे टीवी पर चलने वाली पिक्चर में जो हम देखते हैं वैसा वास्तव में कहीं नहीं होती है लेकिन जब हम उस पिक्चर को देख रहे होते हैं तो हमें यह आभास होता है कि वास्तव में कहीं कुछ ऐसा हो रहा होगा या हुआ होगा ! जिसको आज हम देख रहे हैं !

ठीक इसी तरह मोबाइल पर जब हम वार्ता करते हैं तो हम जिस व्यक्ति से बात करते हैं ! वह व्यक्ति हमसे सैकड़ों हजारों किलोमीटर दूर होता है लेकिन मोबाइल यह भ्रम पैदा करता है कि वह व्यक्ति हमारे कहीं निकट ही है ! जो हमसे फोन पर वार्ता कर रहा है ! यह भ्रम भी राहु के ही अंतर्गत आता है !

इसी तरह इंटरनेट का प्रयोग जिसमें एक विशेष तरह की काल्पनिक दुनिया का आभास है ! जो दुनिया वास्तव में कहीं नहीं होती है ! जैसे वीडियो गेम में जो घटनाक्रम चलता है ! वैसा वास्तव में कहीं नहीं होता है लेकिन वीडियो गेम खेलने वाले के मन मस्तिष्क को आभास होता है कि वास्तव में ऐसा ही हो रहा है और मैं उसका हिस्सा हूँ !

विद्युत तरंगों का इलेक्ट्रॉनिक तरंगों में परिवर्तन हो जाना ! ठोस चीज का इलेक्ट्रिक में परिवर्तन होकर उसके मौजूदगी का एहसास होना ! आज यह सब कुछ राहु के ही नियंत्रण में आता है ! यही माया है ! जिसका प्रयोग शास्त्रों में मायावी राक्षस करते थे !

आर्टिफिसियल इंटेलीजेंस की सुविधा के कारण यंत्र अपने निर्धारित समय और क्रम पर स्वत: संचालित हो जाते हैं ! अपना कार्य पूरा करने के बाद स्वत: बंद हो जाते हैं ! वाहन स्वत: चलते हैं ! दरवाजे खिड़कियां स्वत: खुलते और बंद होते हैं ! वायु यान, मेट्रो ट्रेन आदि के अलावा अब तो स्मार्ट क्लासेस में शिक्षा भी जो बृहस्पति के अधीन है उस पर राहु का प्रभाव इतना प्रबल है कि वहां पर कोई शिक्षक मौजूद नहीं होता है लेकिन छात्रों को यह आभास होता है कि हमें कोई पढ़ा रहा है !

प्रशासन जिसका सूर्य प्रतिनिधित्व करता है ! वहां कोई नहीं होता है ! लेकिन लगे हुये कंप्यूटर, सी सी कैमरे क्रमबद्ध और व्यवस्थित तरीके से प्रशासनिक अधिकारी की तरह अपना कार्य कर रहे होते हैं ! अब तो शादी विवाह भी जो शुक्र के आधीन हुआ करता था ! उसमें वर कन्या का निर्धारण, चयन और अनुपालन यह तीनों ही कृतिम यंत्रों द्वारा होने लगा है !

छोटे-मोटे अपराधियों को नियंत्रित करने के लिये लगे हुये कंप्यूटर व्यक्ति को शनि की तरह दंडित कर रहे हैं ! व्यक्ति का बौद्धिक विकास जो बुद्ध ग्रह के अधीन है ! वह सभी बौद्धिक कार्य अब आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस कर रहा है ! कृषि जो चंद्रमा के अधीन है उसके लिये भी कृतिम मशीनों का निर्माण कर कृषि को यंत्रों के अधीन कर दिया गया है !

अतः दूसरे शब्दों में यह कहा जाये कि जिन चीजों को इस पृथ्वी पर कभी ग्रह नक्षत्र संचालित करते थे ! वह सभी कुछ आज राहु के प्रतिनिधि के रूप में कंप्यूटर, इंटरनेट, आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस और नशे द्वारा संचालित किया जा रहा है ! इस तरह राहु ने सभी ग्रहों के ऊर्जा का पोषण कर अपने अधीन कर अपने प्रभाव को बढ़ा लिया है ! इसीलिये देव ग्रहों की ऊर्जाओं को पोषण मिलना बंद हो गया है !

अतः इन आति आधुनिक यंत्रों का प्रयोग करने वाले या नशा और तामसी भोजन का प्रयोग करने वाले मनुष्यों को प्रशिक्षित एवं दण्डित करने के लिये प्राकृतिक अपना प्रकोप प्रारंभ कर रही है ! जिसे मनुष्य अपने संस्कारों के वशीभूत आपसी युद्ध करके और अधिक तीव्रता ला रहा है !

जबकि होना यह चाहिये कि व्यक्ति को राहु के प्रभाव से बाहर निकल कर इन देव ऊर्जाओं का पोषण करना चाहिये ! लेकिन व्यक्ति राहु के प्रभाव में इतना अधिक फंस चुका है कि उसका विवेक देव ऊर्जाओं को पोषण देने के स्थान पर अपने स्वार्थ और स्वपोषण के लिये उसकी बुद्धि उसे युद्ध की ओर प्रेरित करती है !

इसीलिये पृथ्वी पर मनुष्य राहु के नेतृत्व अपना सर्वनाश कर रहा है ! जब तक हम सात्विक आहार-विहार-विचार -संस्कार द्वारा पुनः अपना सात्विक जीवन यापन आरंभ नहीं करेंगे ! तब तक यह सर्वनाश नहीं रुक सकता क्योंकि यही प्रकृति का विधान है

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योगेश कुमार मिश्र 

ज्योतिषरत्न,इतिहासकार,संवैधानिक शोधकर्ता

एंव अधिवक्ता ( हाईकोर्ट)

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