कैसे वैष्णव जीवन शैली शैवों के विपरीत है : Yogesh Mishra

सत्य, सनातन, अनादि, प्राकृतिक शैव जीवन शैली जो कभी समस्त पृथ्वी पर एकमात्र जीवन शैली थी ! इसके विपरीत जब संगठित रूप से नई व्यवस्थित नगरीय वैष्णव जीवन शैली का प्रचार प्रसार वैष्णव लोगों ने किया तो उन्होंने सर्वप्रथम नगरी वैष्णव जीवन शैली के आधार को शैव जीवन शैली के एकदम विपरीत बनाने और बताने का प्रयास किया ! जैसे वर्तमान में मुस्लिम जीवन शैली ठीक हिन्दू जीवन शैली के विपरीत है !

शैवों में भगवान शिव का प्रतिक चिन्ह “शिवलिंग” योनि आकार के अर्घी पर सीधा खड़ा होता है ! तो उन्होंने भगवान विष्णु के प्रतिक चिन्ह शालिग्राम की बिटिया को बिना किसी आधार के लिटा कर रखने की परंपरा शुरू की थी !

भगवान शिव का प्राकृतिक रूप से उत्पन्न धतूरा, बेल पत्र, मदार, शमी पत्र आदि से पूजन और श्रृंगार करने की व्यवस्था थी ! तो भगवान विष्णु के लिये नगरों में कृत्रिम रूप से बनाये जाने वाली सामग्री जैसे आसन, सिंहासन, पीतांबर, मुकुट आदि से पूजन व श्रृंगार करने की व्यवस्था का प्रचलन किया गया !

ठीक इसी तरह भगवान शिव का वर्ण कपूर के सामान श्वेत बतलाया गया है ! तो भगवान विष्णु का वर्ण श्याम बतलाया गया है !

भगवान शिव का निवास स्थान हिमालय पर्वत पर सबसे ऊंचे स्थल कैलाश धाम को बतलाया गया है ! तो भगवान विष्णु का निवास स्थान पृथ्वी के नीचे क्षीरसागर को बतलाया गया है !

भगवान शिव के अस्त्र शस्त्र के रूप में त्रिशूल धारण करते हैं ! तो भगवान विष्णु के अस्त्र शस्त्र के रूप में गदा और चक्र आदि को बतलाया गया है !

भगवान शिव की जटाओं में गंगा मां का प्रवाह है और चंद्रमा का निवास वर्णित है ! तो विष्णु के नाभि से कमल की उत्पत्ति और उस पर ब्रह्मा की उत्पत्ति का वर्णन और शीर्ष स्थान पर विष्णु के दोनों कानों से राक्षस की उत्पत्ति बतलाई गई !

शिव के भक्तों को दैत्य, दानव, असुर, राक्षस आदि कहकर संबोधित किया गया है ! तो दूसरी तरफ भगवान विष्णु के भक्तों को देव, यक्ष, किन्नर आदि कहकर संबोधित किया गया है !

भगवान शिव के वाहन के रूप में पृथ्वी पर चलने वाले वृषभ (बैल) को उनका वाहन घोषित किया गया था ! तो वैष्णव ने विष्णु के वाहन को उड़ने वाला गरुण घोषित कर दिया ! जो सर्प का दुश्मन है क्योंकि भगवान शिव सर्प को इतना प्यार करते हैं कि उसे अपने गले में ही निवास दे रखा है !

इसी तरह भगवान शिव ने अपनी पत्नी उमा पार्वती को अपने शरीर के आधे अंग के बराबर सम्मान दिया है ! इसीलिये वह अर्धनारेश्वर कहलाये ! तो दूसरी तरफ वैष्णव ने विष्णु की पत्नी मां लक्ष्मी से अपने पैर दबा कर वैष्णव समाज को यह संकेत देना चाहा कि स्त्री पुरुष के समान नहीं बल्कि पुरुष की सेवा करना ही स्त्री का धर्म है !

ऐसे ही भगवान शिव को प्राकृतिक रूप से उत्पन्न दूध और शहद का प्रसाद लगता है और उनका निवास जीवन के अंतिम सत्य स्थल “श्मशान” में है ! तो वैष्णव ने भगवान विष्णु को 56 प्रकार के अलग-अलग व्यंजन जो कृत्रिम रूप से बनाये जाते हैं ! उनके प्रसाद की व्यवस्था बनाई है और शमशान के विपरीत नगर में भगवान विष्णु का राजा के रूप में निवास घोषित किया है !

भगवान शिव गृहस्थ होते हुये भी वैराग्य अवस्था को प्राप्त हैं अर्थात उनके संतति के रूप में कार्तिकेय और कृतिम संतति के रूप में गणेश को ही स्थान दिया गया है ! तो वही वैष्णव जीवन शैली में वैष्णव देवता और वैष्णव उपासकों के दर्जनों, सैकड़ों, हजारों, पुत्रों की संख्या का वर्णन आता है !

शैव जीवन शैली में जीवन का अंतिम सत्य “मृत्यु” को महत्व दिया गया है ! इसीलिये शैवों में शमशान की आराधना, चिता की भस्म और शमशान साधनाओं का विशेष महत्व है ! जबकि वैष्णव जीवन शैली में जीवन के आरंभिक बिंदु जन्म को विशेष महत्व दिया गया है ! इसीलिये वैष्णव अपने सभी देवताओं के जन्म का उत्सव बड़े धूमधाम से मनाते हैं !

ऐसे ही बहुत सी अनेकों विभिन्नतायें शैव और वैष्णव जीवन शैली में हैं ! जो प्राकृतिक रूप से व्यवस्थित शैव जीवन शैली के ठीक विपरीत वैष्णव जीवन शैली द्वारा अपनाये और घोषित किये गये थे !

विष्णु द्वारा अनेकों युद्ध में छल का प्रयोग किया गया है ! जबकि शैव द्वारा कभी भी किसी भी युद्ध में छल का प्रयोग नहीं किया गया है !

विष्णु का चरित्र देश काल परिस्थिती के अनुसार जटिल है जबकि शिव का व्यक्तित्व शान्त गंभीर और समान है ! शायद इसीलिये इन्हें भोला भण्डारी कहा जाता है !

इसीलिये शैव जीवन शैली के अनुयायियों और वैष्णव जीवन शैली के अनुयायियों का संघर्ष सदियों-सदियों तक चलता रहा है और आज भी चल रहा है ! यदि पंचांग उठा कर देखा जाये तो उसमें भी किसी भी त्योहार को शैव अलग दिन और वैष्णव अलग दिन मनाते हैं !

शैव उपासक अपने नाम के आगे नाथ अर्थात स्वामी और वैष्णव अपने नाम के आगे दास शब्द का प्रयोग करते हैं !

जब शैव उपासना स्थल सोमनाथ धाम को बार बार गजनी द्वारा लूटा जा रहा था तो वैष्णव उपासक राजाओं ने सोमनाथ धाम की रक्षा के लिये कोई प्रयास या सहयोग नहीं किया ! इसीलिये वैष्णव आराध्य देव राम के जन्म स्थान के आन्दोलन में शैव उपासना स्थल के स्वतन्त्र सन्तों का सहयोग भी नहीं के बराबर था !

आज भी हिंदू समाज के आगे स्पष्ट रूप से दो अलग-अलग जीवन शैली की उपासना पध्यति का विकल्प खुला है ! एक प्राकृतिक जीवन शैली जिस में शिव की आराधना की जाती है और दूसरी वैष्णव जीवन शैली ! जिसमें नगर में निर्मित वस्तुओं के द्वारा विष्णु या उनके अवतारों की पूजा, आराधना, उपासना की जाती है !

शैव जीवन शैली त्याग और सहकारिता पर आधारित है ! तो वैष्णव जीवन शैली साम्राज्य विस्तार और नगरीय शासन पद्धति पर आधारित है ! यह विकल्प आपको चुना है कि आप त्यागवादी शैव जीवन शैली से जीवन यापन करना चाहेंगे या भोगवादी नगरीय जीवन शैली से ! दोनों ही विकल्प आपके सामने खुले हैं !!

अपने बारे में कुण्डली परामर्श हेतु संपर्क करें !

योगेश कुमार मिश्र 

ज्योतिषरत्न,इतिहासकार,संवैधानिक शोधकर्ता

एंव अधिवक्ता ( हाईकोर्ट)

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