आर्य समाज का पाखण्ड -2 (दयानंद सरस्वती ने “सत्यार्थ प्रकाश” इस्लाम और ईसाईयत के विरोध में लिखा था !) : Yogesh Mishra

.सत्यता : दयानंद सरस्वती ने “सत्यार्थ प्रकाश” में इस्लाम और ईसाईयत से ज्यादा विरोध हिंदुत्व का किया था ! सत्यार्थ प्रकाश में 14 में से 11 अध्याय हिंदुत्व के खिलाफ हैं !

दयानंद सरस्वती जब जीवित थे ! तब सत्यार्थ प्रकाश के प्रथम प्रकाशन में पूरा का पूरा ग्रंथ ही हिंदुत्व के खिलाफ लिखा गया था !

बाद में हिन्दुओं के अत्यधिक विरोध के कारण जब हिन्दुओं के अनेक जनसभाओं से अपमानित करके उन्हें भगाया गया तब हिंदुओं के उस जनाक्रोश को दबाने के लिये एक योजना के तहत उन्होंने सत्यार्थ प्रकाश में 3 अध्याय जैन, मुसलमान और ईसाइयों के खिलाफ जोड़ दिया ! जो कि सिर्फ अपने को निष्पक्ष दिखने के लिये और हिन्दू धर्म विरोधी छवि की आड़ लेने के लिये जोड़ा गया था !

मुख्य रूप से उन्हें अंग्रेजों द्वारा सनातन धर्म के विरोध में ही खड़ा किया गया था ! इसलिये इनका सबसे ज्यादा निशाना सनातन हिन्दू धर्म पर ही था !

मैं अपने जीवन में सैकड़ों आर्य समाजियों से मिला हूँ ! मुझे आज तक एक भी आर्य समाजी ऐसा नहीं मिला जिसने संपूर्ण सत्यार्थ प्रकाश पूरी निष्ठा और ईमानदारी से पढ़ा हो ! सभी आर्य समाजी सत्यार्थ प्रकाश के ग्यारहवें अध्याय जिसमें सनातन हिन्दू मत-मतान्तरों का खण्डन किया गया है ! सनातन देवी देवताओं की मूर्ति पूजन का विरोध है ! उस पर ही सबसे ज्यादा जोर देते हैं !

स्वामी दयानन्द का निश्चित मत था कि सनातन मूर्ति पूजा ही हिन्दुओं की समस्त त्रुटियों का केन्द्र है ! अपने अमर ग्रन्थ सत्यार्थ प्रकाश में उन्होंने मूर्तिपूजा पर अपने विचार इस प्रकार दिये हैं कि

‘जब परमेश्वर सर्वत्र व्यापक है तो किसी एक वस्तु में परमेश्वर की भावना करना यह एक ऐसी बात है कि जैसे चक्रवर्ती राजा को एक राज्य की सत्ता से छुड़ाकर एक छोटी सी झोपड़ी का स्वामी मानना।

‘तुम भगवान की मूर्ति को वाटिका से पुष्प-पत्र तोड़कर क्यों चढ़ाते हो ? चन्दन घिसकर क्यों लगाते हो ? धूप को जलाकर क्यों देते हो ? घंटा, घड़ियाल, झांज पखावजों को लकड़ी से कूटना पीटना क्यों करते हो ? पाषाण, लकड़ी आदि पर चन्दन पुष्पादि क्यों चढ़ाते हो, ‘हम ईश्वर की पूजा करते हैं’ ऐसा झूठ क्यों बोलते हो? ‘हम पाषाण के पुजारी हैं’ ऐसा सत्य क्यों नहीं बोलते?

दरअसल जैसे कि ऊपर बताया गया आर्य समाज का मुख्य लक्ष्य सनातन धर्म के श्रध्दा और विश्वास को तोड़ना है ! अत: उसे पाखंड या अंधविश्वास का नाम दे कर विरोध शुरू कर दिया ! जिन आस्थाओं से सनातन धर्मी एकत्र होता है उन्हीं सनातन की जड़ों को काटना आर्य समाजियों का लक्ष्य है !

शेष 13 अध्याय ऊपर उनका कोई अध्ययन नहीं है और न ही वह खुले मंच पर शेष अध्याय के विषय में कोई चर्चा करना पसंद करते हैं !

सत्यार्थ प्रकाश के कुल 14 समुल्लसो में से आर्य समाजी केवल 11 वां ही समुल्लास ही क्यों पढ़ते हैं !

बाकि के 13 समुल्लसो में जो तथाकथित वेदो के ज्ञान भरा पड़ा है उसकी कोई बाते क्यों नहीं बताई जाती है ! उनका प्रचार प्रसार क्यों नहीं करते हैं ?
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आर्य समाज का पाखण्ड -2 क्रमशः

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योगेश कुमार मिश्र 

ज्योतिषरत्न,इतिहासकार,संवैधानिक शोधकर्ता

एंव अधिवक्ता ( हाईकोर्ट)

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