भारत को बचाना है तो मैकाले को लतियाना है : Yogesh Mishra

2 फरवरी 1835 को ब्रिटेन की संसद में ‘थॉमस बैबिंगटन मैकाले’ के भारत के प्रति विचार और योजना ‘मैं भारत में काफी घूमा हूं ! दाएं-बाएं, इधर-उधर मैंने यह देश छान मारा और मुझे एक भी व्यक्ति ऐसा नहीं दिखाई दिया, जो भिखारी हो, जो चोर हो ! इस देश में मैंने इतनी धन-दौलत देखी है, इतने ऊंचे चारित्रिक आदर्श और इतने गुणवान मनुष्य देखे हैं कि मैं नहीं समझता कि हम कभी भी इस देश को जीत पायेंगे !

जब तक हम इसकी रीढ़ की हड्डी को नहीं तोड़ देते, जो इसकी आध्यात्मिक और सांस्कृतिक विरासत है और इसलिये मैं यह प्रस्ताव रखता हूं कि हम इसकी पुरानी और पुरातन शिक्षा व्यवस्था, उसकी संस्कृति को बदल डालें, क्योंकि अगर भारतीय सोचने लग गये कि जो भी विदेशी और अंग्रेजी है वह अच्छा है और उनकी अपनी चीजों से बेहतर हैं, तो वह अपने आत्मगौरव, आत्मसम्मान और अपनी ही संस्कृति को भुलाने लगेंगे और वैसे बन जाएंगे, जैसा हम चाहते हैं ! एक पूर्णरूप से गुलाम भारत !’

मैकाले ने न कुछ गलत कहा, न ही कुछ नया ! यह काम तो अंग्रेजों से पहले आये आक्रांता भी कर ही चुके थे ! इस्लामिक आक्रांताओं ने भी भारत की सनातन और वैदिक सभ्यता पर ही चोट की थी ! अंग्रेजी हुकुमत को भी मैकाले का यह शोध बहुत भा गया था ! उन्होंने इसी पर काम किया और आज नतीजा सबके सामने है !

कहने को हम भारतीय हैं, लेकिन हम अपने ही इतिहास से अनजान हैं ! हमारा अनजान होना एक सोची-समझी रणनीति थी ! मैकाले बेशक सच बोल रहा था लेकिन वह अपने देश यानी ब्रिटेन के पक्ष में योजना ही बना रहा था ! उसका शोध इतना सटीक था कि ब्रिटिश संसद ने भी उसका लोहा माना और उसे ‘लॉर्ड’ की उपाधि से सम्मानित किया !

इन्हीं लॉर्ड मैकाले की बताई शिक्षा पद्धति और इतिहास को मानने के लिये हम आज भी मजबूर हैं ! हमें अपनी संस्कृति और धरोहर से तोड़ने का जो प्रयास वर्षों पहले किया गया था, आज हम उसे आत्मसात किये घूम रहे हैं ! देश ने कई क्षेत्रों में तरक्की की है और ऐसे में हमें अपने विस्मृत गौरवशाली इतिहास को सही तरीके से जानने की भी जरूरत है !

भारत इतना संपन्न था कि सोने-चांदी के सिक्के चलते थे, कागज के नोट नहीं ! जिस भारत को इतिहास में अशिक्षित और निर्धन दिखाने की साजिश की गई, वहां धन-दौलत की कमी होती तो इस्लामिक आततायी और अंग्रेजी दलाल यहां आते ही क्यूं? लाखों-करोड़ रुपए के हीरे-जवाहरात ब्रिटेन भेजे गये जिसके प्रमाण आज भी हैं, मगर यह मैकाले का प्रबंधन ही है कि आज भी हम ‘अंग्रेजी और अंग्रेजी संस्कृति’ के सामने नतमस्तक दिखाई देते हैं !

आज भारत की सनातन सभ्यता और पुरातन संस्कृति में बोलने वालों को किसी विचारधारा का मान लिया जाता है ! यह भी एक दुर्भाग्यपूर्ण सच है कि हमें सांस्कृतिक रूप से लूटने की साजिश तो विदेशियों ने बनाई लेकिन इसे अमलीजामा हमारे अपनों ने ही पहनाया है !

मैकाले के ही शब्दों में उसकी रणनीति के मुताबिक उसने अपनी संसद को सलाह दी थी कि ‘हमें हिन्दुस्तानियों का एक ऐसा वर्ग तैयार करना है, जो हम अंग्रेज शासकों एवं उन करोड़ों भारतीयों के बीच दुभाषिए का काम कर सके, जिन पर हम शासन करते हैं ! हमें हिन्दुस्तानियों का एक ऐसा वर्ग तैयार करना है जिनका रंग और रक्त भले ही भारतीय हों लेकिन वह अपनी अभिरुचि, विचार, नैतिकता और बौद्धिकता में अंग्रेज हों !’

इन शब्दों को पढ़कर आप यह सोचें कि यह तो आज के हालात को देखते हुये किसी ने टिप्पणी लिखी है तो भी आश्चर्य की बात नहीं होगी ! अंग्रेजों की प्रशासनिक क्षमता का यही जादू है कि वर्षों पहले ही उन्होंने अपनी योजना के परिणाम देख लिये थे ! इसके बावजूद अपने अन्य उपनिवहशों की तरह वह भारत की सनातन सभ्यता को पूरी तरह मिटा नहीं पाए ! अलबत्ता वह इस योजना में कामयाब हो गये कि हम अपनी सभ्यता और संस्कृति को विस्मृत कर दें !

आज हम अपनी परंपराओं को जानते तो हैं लेकिन बहुत ही टूटे-फूटे तरीके से और शायद बहुत हद तक उसके बिगड़े हुये रूप में ! अब जरूरत इस बात को भी समझने की है कि हमारी ऐसी क्या संस्कृति थी कि उसे खत्म करने के लिये इतनी दीर्घकालिक साजिश को रचा गया ?

दरअसल, जो देश अपनी जड़ों को मजबूत रखते हुये आगे बढ़ता है, वह एक विश्व शक्ति के रूप में उभरता है ! अपनी भाषा, अपनी समृद्ध परंपरा और अपने पुरातन ज्ञान का सम्मान किसी देश को तमाम विपरीत परिस्थितियों के बावजूद कैसे आगे बढ़ा सकता है, इसका उदाहरण जापान और चीन जैसे कई देशों ने दिया है ! ऐसे कई देश आज भी अपनी परंपरा और सिद्धांतों का अनुपालन करते हैं !

हम भी यदि अपने पुराने ताने-बाने को समझें और आज उसके जो प्रासंगिक हिस्से हैं उन्हें अपनाएं तो दोबारा उसी स्तर पर पहुंच सकते हैं, जहां हम पहले थे ! आज हम ललचाई नजरों से विकसित देश बनने का सपना देखते हैं ! उदाहरण के तौर पर दक्षिण भारतीयों के परिश्रम से बसाए गये सिंगापुर को भी अपने सामने रखते हैं लेकिन कभी यहां परिवर्तन नहीं ला पाते हैं ! इसकी बड़ी वजह है आज भी उस झूठे इतिहास और शिक्षा पद्धति में विश्वास रखना, जो हमें गुलाम बनाए रखने के लिये ईजाद किये गये थे !

यह तो हम सभी मानते हैं कि हमारी शिक्षा व्यवस्था हमारे समाज की दिशा एवं दशा तय करती है ! बात 1825 के लगभग की है, जब ईस्ट इंडिया कंपनी वित्तीय रूप से संक्रमण काल से गुजर रही थी और यह संकट उसे दिवालियहपन की कगार पर पहुंचा सकता था ! कंपनी का काम करने के लिये ब्रिटेन के स्नातक और कर्मचारी अब उसे महंगे पड़ने लगे थे ! 1828 में गवर्नर जनरल विलियम बेंटिक भारत आया जिसने लागत घटाने के उद्देश्य से अब प्रशासन में भारतीय लोगों के प्रवहश के लिये चार्टर एक्ट में एक प्रावधान जुड़वाया कि सरकारी नौकरी में धर्म, जाति या मूल का कोई हस्तक्षेप नहीं होगा ! यहां से मैकाले का भारत में आने का रास्ता खुला !

अब अंग्रेजों के सामने चुनौती थी कि कैसे भारतीयों को उस भाषा में पारंगत करें जिससे कि यह अंग्रेजों के पढ़े-लिखे हिन्दुस्तानी गुलाम की तरह कार्य कर सकें ! इस कार्य को आगे बढ़ाया जनरल कमेटी ऑफ पब्लिक इंस्ट्रक्शन के अध्यक्ष ‘थॉमस बैबिंगटन मैकाले’ ने ! 1858 में मैकाले द्वारा इंडियन एजुकेशन एक्ट बनाया गया ! मैकाले की सोच स्पष्ट थी, जो कि उसने ब्रिटेन की संसद में बताया, जैसा कि ऊपर वर्णन है ! उसने पूरी तरह से भारतीय शिक्षा व्यवस्था को खत्म करने और अंग्रेजी शिक्षा व्यवस्था को लागू करने का प्रारूप तैयार किया ! इस प्रारूप को तैयार करने से पहले उसने बाकायदा एक सर्वे किया था और इस सर्वे के मुताबिक भारत में साक्षरता का प्रतिशत बहुत ऊंचा था !

इस सर्वे के बाद मैकाले ने कहा था, ‘भारत को हमेशा-हमेशा के लिये अगर गुलाम बनाना है तो इसकी देशी और सांस्कृतिक शिक्षा व्यवस्था को पूरी तरह से ध्वस्त करना होगा और उसकी जगह अंग्रेजी शिक्षा व्यवस्था लानी होगी और तभी इस देश में शरीर से हिन्दुस्तानी लेकिन दिमाग से अंग्रेज पैदा होंगे और जब इस देश की यूनिवर्सिटी से निकलेंगे तो हमारे हित में काम करेंगे !’ उसने बाकायदा अपनी बात को कुछ इस तरह कहा था कि ‘जैसे किसी खेत में कोई फसल लगाने के पहले पूरी तरह जोत दिया जाता है, वैसे ही इसे जोतना होगा और अंग्रेजी शिक्षा व्यवस्था लानी होगी !’

इसके बाद भारत में स्थापित शिक्षा व्यवस्था को धीरे-धीरे खत्म किया जाने लगा ! भारतीय भाषा और संस्कृतनिष्ठ शिक्षा को पूरी तरह खत्म करने की मुहिम शुरू हो गई ! यह मुहिम रंग भी लाई और आजादी के वक्त जो ज्यादातर कर्णधार देश को संभालने वाले थे, वह भी मैकाले की नई शिक्षा पद्धति से निकले हुये ही थे ! उन्होंने जब नये भारत की योजनाएं बनाईं तो अपनी शैक्षिक धरोहर को उन्होंने भी गंवारों की धरोहर ही घोषित कर दिया !

यही दुर्भाग्य रहा कि हमें पता ही नहीं चला कि हमारा गौरवपूर्ण इतिहास कहां गुम हो गया ? हमें इतिहास में मुगलों और अंग्रेजों के अलावा कुछ पता ही नहीं है जबकि सच तो यह है कि मुगलों और अंग्रेजों के आगमन के साथ तो हमारे इतिहास का अंत होना शुरू हुआ था, उसकी शुरुआत नहीं !

लेकिन अब यदि भारत को बचाना है तो यह सब नहीं चलेगा ! हमें अपने पुरातन नैतिक मूल्यों को पुर्स्थापित करना होगा ! फिर से सत्य सनातन शिक्षा पध्यति को पुन: जागृत करना होगा ! तभी भारत का पुरातन गौरव लौट सकता है और भारत पुनः विश्व गुरु बन सकता है !!

अपने बारे में कुण्डली परामर्श हेतु संपर्क करें !

योगेश कुमार मिश्र 

ज्योतिषरत्न,इतिहासकार,संवैधानिक शोधकर्ता

एंव अधिवक्ता ( हाईकोर्ट)

 -: सम्पर्क :-
-090 444 14408
-094 530 92553

Check Also

प्रकृति सभी समस्याओं का समाधान है : Yogesh Mishra

यदि प्रकृति को परिभाषित करना हो तो एक लाइन में कहा जा सकता है कि …