सनातन ऋषि कहते हैं कि प्रकृति की व्यवस्था के तहत पुरुष आधा ही है और स्त्री भी समग्र नहीं है बल्कि वह भी प्रकृति के आधे अंग की ही स्वामिनी है ! यही मैथुनिक सृष्टि का आधार है !
न तो अकेला पुरुष इस सृष्टि को चला सकता है और न ही अकेली स्त्री इस सृष्टि को चला सकती है ! इस सृष्टि के क्रम में निरंतरता बनाए रखने के लिए स्त्री और पुरुष दोनों के होने की समान आवश्यकता है !
इसी तरह आपका चेतन मन पुरुष है, जो विचारशील, उद्यमी तथा साहसी है और आपका अचेतन स्त्री है ! जो समस्त ऊर्जा का आधार है ! जब तक आपका विचार आपकी उद्यमिता और आपका साहस अवचेतन मन की ऊर्जा से नहीं जोड़ता है ! तब तक यह कभी भी अपने विचार और पुरुषार्थ को फलित नहीं कर सकते हैं !
यही मनुष्य के जीवन में सफल होने या असफल रह जाने का रहस्य है !
जब तक साधना में चेतन और अचेतन ऊर्जा का मिलन नहीं होता है, तब तक किसी भी व्यक्ति को सिद्धियां प्राप्त नहीं हो सकती हैं ! क्योंकि प्रकृति इन दोनों ही ऊर्जाओं के सहयोग से संचालित होती है !
अर्थात व्यक्ति की समग्रता तभी पूर्ण हो सकती है ! जब वह अवचेतन मन को चेतन मन से जोड़कर प्रकृति के रहस्य पूर्ण ऊर्जाओं से जुड़ जाता है ! तभी उसे अनमोल सिद्धियां प्राप्त होती हैं !
यहीं से योग फलित होता है और व्यक्ति अपने जीवन में सफल हो सकता है ! आज हम लोग या तो पूरी तरह से अपने विचार और पुरुषार्थ पर आश्रित हो गये हैं या फिर साधना पक्ष में जाकर अवचेतन ऊर्जाओं पर आश्रित हो गये हैं ! यही हमारे योग भ्रष्ट होने का कारण है ! इसी वजह से लंबे समय तक प्रयास करने के बाद भी हम सफल नहीं हो पाते हैं !
अतः भगवान शिव अपने अर्धनारीश्वर स्वरूप को प्रकट करके यह बतलाना चाहते हैं कि चेतन मन की ऊर्जा का जब तक अवचेतन मन के साथ संयोग नहीं होगा, तब तक व्यक्ति के जीवन में न तो सांसारिक सफलता उसे प्राप्त होगी और न ही आध्यात्मिक सफलता ही उसे प्राप्त होगी ! यही भगवान शिव के अर्धनारीश्वर स्वरूप का रहस्य है ! यह ज्ञान अन्य कोई भी भगवान नहीं देता है !!