मानव ही नहीं समस्त जीव चेतना के तीन आयाम हैं ! एक आयाम गणित, विज्ञान और गद्य का है ! दूसरा आयाम प्रेम, काव्य, संगीत का है और तीसरा आयाम अनिर्वचनीय है ! न उसे गद्य में कहां जा सकता, न ही पद्य से ! न उसे तर्क से समझाया जा सकता है और न ही विश्वास से ! यह तो विशुद्ध अनुभूति का विषय है !
अर्थात जीवन के इस पहलू को बुद्धि और भाव से नहीं बल्कि मात्र ईश्वर की कृपा से जाना जा सकता है और इसे अभिव्यक्त करने के लिये कोई शब्द निर्मित ही नहीं हुये हैं ! बस इसे एक अनुभूति प्राप्त व्यक्ति अपने मानसिक तरंगों से दूसरे अनुभूति प्राप्त व्यक्ति को अनुभूत करवा सकता है ! इसीलिये जब दो अनुभूति प्राप्त संत मिलते हैं तो वह मौन की भाषा में ही अपनी समस्त वार्ता कर लेते हैं !
और इसी अनिर्वचनीय अनुभूति को सूरदास, कबीरदास, रहीमदास, तुलसीदास जैसे कुछ संत गीतों के माध्यम से आम समाज के लिये अभिव्यक्ति करते रहते हैं ! जिससे हम लोगों जैसा आम आदमी ईश्वर के अनिर्वचनीय ऊर्जा की अनुभूति कर सके !
इसीलिये यह अनिर्वचनीय अभिव्यक्ति सीधा हमारे ह्रदय में उतार जाती है याकहिये कि इसलिए इनके गीत हमें हृदय के काफी करीब मालूम पड़ते हैं ! शायद जो गद्य भाषा विज्ञान से किया जाना संभव नहीं है, वह पद्य में ज्यादा स्पष्ट कहा जा सकता है ! जो पद्य भाषा मानव द्वारा निर्मित गद्य भाषा जो कि व्याकरण की सीमा में बंधी हुयी है किन्तु पद्य भाषा विज्ञान व्याकरण की सीमा से परे है !
इसीलिये गीत हमारे ह्रदय के ज्यादा निकट होते हैं और हमें ज्यादा बंधते हैं ! इनका हमारे मन मस्तिष्क पर ज्यादा प्रभाव पड़ता है और यह हमें जल्दी शान्ति का आभास करवाते हैं ! इसीलिये पद्य भाषा विज्ञान से सदैव ईश्वर को समझना ज्यादा आसान रहा है !
लेकिन संतों को सामान्य कवि समझ लेना भयंकर भूल है ! संतों ने काव्य में जो कुछ कहा है, वह काव्य मानवता के लिये मात्र अतीत ही नहीं वर्तमान और भविष्य के भी सापेक्ष है ! जिसे कभी भी गद्य से अभिव्यक्त नहीं किया जा सकता है !
सामान्य शब्दों में गद्य गणित और व्याकरण का विषय है ! जहाँ इन्सान का आभास ख़त्म हो जाता है ! वहीं पद्य ईश्वर के अनिर्वचनीय ऊर्जा की अनुभूति का विषय है, जो कभी भी गद्य से हो ही नहीं सकता है !!