मैं यह मानता हूं कि आज जो भी समस्यायें हमारे समक्ष खड़ी हैं ! उसका मूल कारण यह है कि हमने अपनी गलत नीतियों के कारण एक व्यवस्थित समाज को भीड़ में बदल दिया ! पूंजीवादी सोचने लोगों को छोटे-छोटे गांव से निकालकर बड़े-बड़े कल कारखाने और कार्यालय में रोजगार देकर भारत की मूल संरचना को ही नष्ट कर दिया ! आज उसी का परिणाम है कि समाज में सभी जगह अमन, चैन, संपन्नता और शांति खत्म हो गयी है !
ग्रामीण अंचलों में जब व्यक्तियों का समूह छोटे-छोटे इकाइयों के रूप में रहता था ! तब पूर्वजों द्वारा अर्जित संपत्ति का सदुपयोग होता था ! आज स्थिति इससे भिन्न है ! आज की शिक्षा व्यवस्था और रोजगार व्यवस्था ने अपना ऐसा मकड़ जाल बुन रखा है कि पैतृक संपत्ति की कोई उपयोगिता नहीं रह गई है ! आज यदि बच्चा थोड़ा भी प्रगतिशील है तो यह निश्चित मानिये कि वह अपने पिता द्वारा निर्मित संपत्ति का उपभोग नहीं कर सकेगा क्योंकि उसके विकास की सभी संभावनायें उसके पिता द्वारा निर्मित संपत्ति से बहुत दूर दिखाई देती है ! इसलिये बच्चा अपने विकास के लिये पिता द्वारा निर्मित संपत्ति छोड़ कर माता पिता से बहुत दूर चला जाता है !
वर्तमान शासन व्यवस्था की नीति के तहत लोगों को न्याय इसलिये नहीं मिल पा रहा है कि प्राचीन काल में जब गांव-गांव न्याय की व्यवस्था थी ! तब पंचायत के न्यायाधीश को गांव के हर व्यक्ति के व्यक्तित्व, चरित्र और संपत्ति की जानकारी व्यक्तिगत स्तर पर होती थी ! उस स्थिति में हर न्याय करने वाला व्यक्ति है जानता था कि कौन झूठ बोल रहा है और कौन सही बोल रहा है !
आज यह स्थिति एकदम बदल चुकी है अब अधिकारी के नाम पर तैनात होने वाला व्यक्ति जो मात्र कागज और सूचना के आधार पर न्याय करने का दावा करता है ! वह किसी दूसरे समाज से इतनी दूर से आया हुआ होता है कि उसे उस क्षेत्र और समाज की कोई जानकारी नहीं होती है ! इसीलिये लोगों को न्याय नहीं मिल पा रहा है ! ऐसा नहीं यह सब अचानक हो गया बल्कि यह एक सोची समझी रणनीती के तहत हमें न्याय के नाम पर भटकने के लिये किया गया था !
यही स्थिति कमोवेश स्वास्थ्य के संबंध में है ! चिकित्सा के केंद्रीयकरण कर दिये जाने के कारण अस्पतालों में बड़ी-बड़ी महंगी-महंगी मशीनें तो लग गई ! लेकिन व्यक्ति का स्वास्थ्य जो उसके दैनिक दिनचर्या और आहार विहार का हिस्सा था ! वह विकृत हो गया ! पूर्व के समय में हर गांव में एक वैध होता था ! जो व्यक्ति को आहार-विहार, विचार, संस्कार के साथ-साथ नारी परीक्षण कर और आयुर्वेद के अनुसार स्वस्थ रहने के लिये प्रशिक्षित करता था ! बड़े-बड़े अस्पतालों के बन जाने के बाद अब यह सुविधा भी समाप्त हो गई है !
जब से शिक्षा सरकारी कार्यक्रम का अंश हो गई है ! तब से कानून बना कर गुरुकुल व्यवस्था पूरी तरह से समाप्त कर दी गई है ! आज बड़े बड़े पूंजीपति मात्र धन कमाने की नियत से विद्यालयों को चला रहे हैं ! जो खुद तो संस्कारहीन है ही और उनके यहां पढ़ाने वाले शिक्षक भी नाकारा और अयोग्य हैं ! आज जब शिक्षक वर्ग का अपना निजी कोई चरित्र और ज्ञान ही नहीं होगा तो विद्यालय एक खोखली शिक्षा व्यवस्था की इमारत के अतिरिक्त और क्या हो सकता है !
पहले खाद्यान्नों का निर्माण गांव में होता था और गांव की हॉट मंडियों में ही उसका विक्रय होता था ! आज खाद्यान्न पर सरकारी नीति नियंत्रण होने के कारण अब खाद्यान्नों का उत्पादन तो गांव में जरूर हो रहा है ! लेकिन उनकी विक्रय सरकार की बड़ी-बड़ी मंडियों में होता है ! जहां पर असत्य और दलालों का पूरा साम्राज्य है ! मूल किसान जो खाद्यान्न बनाता है ! उसका उत्पादन करता है ! वह उन मंडियों में लाचार और बेसहारा अवस्था में अपनी सामग्री के साथ भटकता रहता है और उसी का परिणाम है कि जब किसानों को उनके खाद्यान्न का पर्याप्त मूल्य नहीं मिलेगा तो उनका उत्साह कृषि उत्पादन में समाप्त हो जायेगा और वह शहरों की तरफ मजदूरी के लिये भागेगा !
यह सब भी स्वत: नहीं हो रहा है ! यह सब आपके प्राकृतिक संसाधनों को नियंत्रित करने के लिये राजनीतिक और आर्थिक दृष्टिकोण से आप को गुलाम बनाने के उद्देश्य से एक व्यवस्थित योजना के तहत किया जा रहा है ! जो राष्ट्र इसको समझ ले रहे हैं ! वह अपने को विश्व सत्ता की व्यवस्था से दूर अपनी निजी जीवन शैली के अनुरूप अपने राष्ट्र को चला रहे हैं और भारत जैसे देश जो इस षड्यंत्र को जानना समझना ही नहीं चाहते हैं ! वह कदम दर कदम अपने विनाश की ओर बढ़ रहे हैं !
इस समय आवश्यकता है ! एक गहन चिंतन की ! हमारे यहां चिंतन संसद में बैठे हुये धूर्त जनप्रतिनिधि करते हैं क्योंकि वही राष्ट्र के लिये योजना बनाते हैं और वास्तविक चिंतन वर्ग जो समाज को कुछ दे सकता है ! वह अखबार, यूट्यूब और फेसबुक पर अपनी भड़ास निकालने के अलावा और कुछ नहीं कर पा रहा है !
यदि भारत के अस्तित्व को बचाये रखना है तो विकास के नाम पर जो सर्वनाश की रणनीति बन रही है ! इस पर बहुत शीघ्र ही निर्णय लेना होगा ! वरना संसद, न्यायपालिका और कोषागारओं में बैठे हुये लोग विदेशी रणनीतिकारों के इशारे पर भारत को निरंतर अपनी मूर्खता पूर्ण योजनाओं के कारण विनाश की तरफ ले ही जा रहे हैं !!