मात्र गुरु ही शिष्य को आध्यात्मिक ऊर्जा धारण करने योग्य बना सकता है ! : Yogesh Mishra

यद्यपि आध्यात्मिक ऊर्जा के संचय के लिये गुरु और शिष्य दोनों का प्रयास आवश्यक है ! किन्तु उत्तरदायित्व शिष्य का ही अधिक होता है ! गुरु का कार्य आध्यात्मिक ऊर्जा के प्रवाह में बाधक तत्वों की पहचान करना और उनका समाधान निकालना होता है ! इसके साथ केवल गुरु ही प्रचंड आध्यात्मिक ऊर्जा को शिष्य के धारण करने योग्य बना सकता है ! किन्तु यह कार्य तभी संभव हो सकता है जब शिष्य के अंदर जीवन के परम लक्ष्य की प्राप्ति के लिये गुरु के द्वारा बताये हुए मार्ग पर चलने के लिये तन और मन से दृढ संकल्प हो !

दृढ संकल्प की आवश्यकता इसलिये होती है कि जिससे मन की संशयात्मक प्रवृत्ति, चंचलता और अधीरता हमको अपने पथ से विचलित न कर सके ! जो शिष्य मन की मनमानी को नियंत्रित करता है और निरंतर गुरु के दिशा निर्देशों का अभ्यास हर परिस्थिति में करता रहता है ! वही अध्यात्म के गूढ़ रहस्यों को समझने और ईश्वर से मिलने का अधिकारी बनता है !

जैसे भोजन किसी भी प्रकार से कहीं से भी प्राप्त किया जा सकता है किन्तु उसको खाना स्वयं पड़ता है ! भोजन के पाचन की प्रक्रिया इस बात पर निर्भर करती है कि व्यक्ति की पाचन क्षमता कितनी अच्छी है ! गरिष्ठ भोजन दुर्बल पाचन क्षमता वाले व्यक्ति को लाभ के स्थान पर हानि पंहुचा सकती है ! अच्छी पाचन क्षमता के लिये व्यक्ति को स्वयं ही व्यायाम और अन्य भोजन सम्बन्धी नियमों का पालन करना पड़ता है ! यह काम कोई अन्य व्यक्ति नहीं कर सकता !

वैद्य के द्वारा दी गयी औषधियों का उपयोग और उसके द्वारा बताये गये अन्य स्वास्थ्य सम्बन्धी नियमों का पालन रोगी को स्वयं ही करना पड़ता है ! तभी रोग का उपचार संभव होता है ! उसी प्रकार गुरु द्वारा बताये गये उपायों और अन्य आध्यात्मिक नियमों का पालन शिष्य का उत्तरदायित्व होता है ! जितनी लगन और विश्वास से इन नियमों का पालन किया जाता है ! आध्यात्मिक ऊर्जा उतना ही अधिक लाभ देती है !

आध्यात्मिक ऊर्जा के संचय और संवर्धन के लिये कुछ नियमों का पालन करना होता है ! जिसमें करणीय कर्म का सिधान्त प्रमुख है !

करणीय कर्म वह कर्म होते हैं ! जिनका पालन करना हर परिस्थिति में अनिवार्य है ! इस कर्म में गुरु द्वारा दिये गये निर्देश के अनुसार आसन, प्राणायाम, सेवा, ध्यान, उपासना, स्वाध्याय, सत्संग, मन्त्र जाप, आहार शुद्धि, आत्म निरिक्षण, मौन, ब्रह्मचर्य इत्यादि का पालन करना होता है ! यह सब करणीय कर्मों में आते है ! करणीय कर्मों की सफलता इस बात पर निर्भर करती है कि साधक कितनी चैतन्यता, संयम, धैर्य, विश्वास और नियमितता के साथ इन कर्मों को सम्पादित करता है ! यहाँ पर यह स्मरण रखना आवश्यक है कि किसी एक की भी कमी आध्यात्मिक ऊर्जा की मात्रा और गुणवत्ता को प्रभावित कर सकती है !

साधक के लिये कुछ निषिद्ध कर्म भी हैं ! जो किसी भी परिस्थिति में नहीं करना चाहिये ! यह कर्म हैं हिंसा, काम, क्रोध, लोभ, मोह, मिथ्याचार, चोरी, शराब आदि मादक द्रव्य, निंदा, झूठ इत्यादि कर्मों से साधक को विरत रहना चाहिये ! अपने दोषों को समझकर उनको दुबारा न दोहराने का संकल्प साधक का उत्तरदायित्व होता है !

प्रायः साधक में कुछ दोष आरंभ से ही होते हैं ! जैसे भावनाओं और परिस्थितियों में बह जाना, दूसरों के विषय में विश्लेषण करते रहना, अनावश्यक वाद विवाद में पड़ना, अनावश्यक के विषयों पर सोच विचार करते रहना, आलोचना करना, अपनी समस्याओं के लिये दूसरों को उत्तरदायी ठहराना और भगवान के अलावा अन्य लोगों से आशायें और अपेक्षा करना, अपने समय और ऊर्जा की व्यर्थ में ही हानि करना इत्यादि !

करणीय कर्मों को कर के साधक आध्यात्मिक ऊर्जा का आह्वाहन करता है ! इन कर्मों के निरंतर करते रहने से साधक में आध्यात्मिक ऊर्जा की मात्रा और गुणवत्ता में सुधार होता है और धीरे-धीरे यह हमारे ग्रहण करने योग्य बन कर संचित कर्मों के दोषों को क्रमशः समाप्त कर देती है !

साधक जब निषिद्ध कर्मों का त्याग करता है तो आध्यात्मिक ऊर्जा नष्ट नहीं होती है वरन उसका संचय होता है ! जिस प्रकार धन कमाना जितना महत्वपूर्ण है, संचय करने के लिये उसका अपव्यय रोकना भी उतना ही महत्त्वपूर्ण है ! इसी प्रकार यदि साधना में ऊर्जा के अपव्यय को नहीं रोकेगा तो मात्र करणीय कर्म से संचत आध्यात्मिक ऊर्जा अधिक लाभ नहीं दे पाती है !

साधना में शीघ्र प्रगति करने के लिये अनिवार्य है कि उन्नति कारक कर्मों को लगन से करने के साथ साथ, ऊर्जा की हानि करने वाले कर्मों से स्वयं को दूर रखे ! गुरु पर विश्वास, ईश्वर विषयक ज्ञान और दृढ संकल्प, आध्यात्मिक ऊर्जा के संरक्षण और संवर्धन के लिये अत्यंत आवश्यक है ! गुरु स्वतः ही समय समय पर निर्देशन करते रहते हैं ! आवश्यकता केवल शिष्य को तन और मन से गुरु के आज्ञा पालन करने की है और अपना उत्तरदायित्व निभाने की !

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योगेश कुमार मिश्र 

ज्योतिषरत्न,इतिहासकार,संवैधानिक शोधकर्ता

एंव अधिवक्ता ( हाईकोर्ट)

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