लोगो के दिमाग में लगे बौद्धिक ताले राष्ट्र को ही नष्ट कर देंगे : Yogesh Mishra

राजनीतिक सिद्धान्त को कभी-कभी राजनीतिक चिंतन के पर्याय के रूप में देखा जाता है ! लेकिन यह समझ लेना जरूरी है कि उनका अर्थ आवश्यक रूप से एक ही नहीं होता है ! राजनीतिक चिंतन एक सामान्यीकृत मुहावरा है ! जिसमें राज्य तथा राज्य से संबंधित प्रश्नों पर किसी व्यक्ति या व्यक्तियों के समूह या समुदाय के सभी चिंतनों, सिद्धान्तों और मूल्यों का समावेश होता है !

जब कोई व्यक्ति चाहे वह वकील, रिक्शेवाला, प्रोफेसर, पत्रकार, लेखक, कवि, उपन्यासकार आदि जो भी हो या बेशक वह राजनीतिज्ञ ही हो ! ऐसे विचार व्यक्त करता है जिनका हमारे जीवन से सरोकार है और जो विचार राज्य और शासन तथा इनसे संबंधित प्रश्नों के बारे में है ! तब वह वस्तुतः राजनीतिक चिंतन कर रहा होता है !

उसके विचारों में सिद्धान्त का समावेश हो भी सकता है और नहीं भी हो सकता है ! प्राय: उन विचारों में तब कोई सिद्धान्त निहित नहीं होगा जब उन में राज्य और शासन आदि के राजनीतिक नियम से संबंधित ऐतिहासिक तथा राजनीतिक संघटना की व्याख्या करने के लिए प्रस्तुत की गई कोई व्यवस्थित और तर्कसम्मत प्राक्कल्पना न हो !

इस प्रकार राजनीतिक चिंतन हमेशा किसी व्यक्ति या समूह का राजनीति-विषयक सामान्य विचार होता है ! जबकि राजनीतिक सिद्धान्त अपने-आप में पूर्ण और अपने बल-बूते खड़ी ऐसी व्याख्या या विचार अथवा सिद्धान्त होता है जिसमें प्रश्नों के उत्तर देने ! इतिहास की व्याख्या करने और भविष्य की संभावित घटनाओं के बारे में पूर्वानुमान लगाने का प्रयत्न किया जाता है ! बेशक ! यह सिद्धान्त हमेशा किसी एक चिंतक व्यक्ति की सृष्टि होता है !

किन्तु आज के राजनीतिक दल इसी राजनैतिक चिंतन पर बौद्धिक ताले डाल देना चाहते हैं ! जो मानवीय दृष्टिकोण से मनुष्य के विकास में बाधक होगा ! यदि मनुष्य राजनीतिक चिंतन नहीं करेगा तो उसके समाज का विकास नहीं हो सकता है !

किसी भी राष्ट्र या समाज के विकास के लिये उसकी व्यवस्था में निरंतर सुधार किया जाना आवश्यक होता है और उस सुधारों के लिए वर्तमान समय में जो सामाजिक व्यवस्था है उसमें राजनीतिक हस्तक्षेप के कारण क्या क्या परेशानियां पैदा हो रही हैं ! इन पर व्यक्ति और समाज गहन चिंतन करता है ! जिससे उसमें सुधार किया जा सके
!

लेकिन शासन सत्ता में बैठा हुआ राजनीतिज्ञ कभी नहीं चाहता है कि उसके शासन सत्ता की कोई कमी समाज में चर्चा का विषय बने ! क्योंकि लोकतंत्र में इस तरह की चर्चायें सत्ता में बैठे हुए व्यक्ति को सत्ता से हटा सकती हैं और कोई भी व्यक्ति जो एक बार सत्ता में चला गया वह सत्ता के मोह से बाहर नहीं निकलना चाहता है !

ऐसी स्थिति में राजनैतिक चिंतन पर लगे हुये बौद्धिक ताले व्यक्ति और समाज ही नहीं बल्कि राष्ट्र को भी नष्ट कर देंगे ! इसीलिए व्यक्ति को संविधान में अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता का अधिकार दिया गया है ! जिसे राजनीतिक दल सूचना तंत्र के हमले से खत्म कर देना चाहते हैं !!

अपने बारे में कुण्डली परामर्श हेतु संपर्क करें !

योगेश कुमार मिश्र 

ज्योतिषरत्न,इतिहासकार,संवैधानिक शोधकर्ता

एंव अधिवक्ता ( हाईकोर्ट)

 -: सम्पर्क :-
-090 444 14408
-094 530 92553

Check Also

राजनीति पर दवा माफियाओं का कब्ज़ा : Yogesh Mishra

आप के खून मे चार कंपोज़ीशन होते है ! आर.बी.सी,डब्ल्यू.बी.सी,प्लाज्मा,प्लेटलेट्स,उसमे एक भी घटा या बढ़ा …