भांग के बारे में तो आप जानते ही होंगे ! लेकिन शायद आपको भांग की यह खासियत नहीं पता होगी कि भांग से एक दुर्लभ जेनेटिक बीमारी का इलाज भी किया जा सकता है ! यह दुनिया भर में कैंसर जैसे खतरनाक रोग के रोगियों के लिये आशा की एक नई किरण है !
सामान्यतया अभी तक भांग को नशा व अन्य बुरी गतिविधियों के लिये ही जाना जाता था ! परंतु भांग के स्वस्थ बीजों व पौधे के रेशों में जबरदस्त औषधीय गुण भी हैं ! भांग के बीज रोगों के इलाज में इतने कारगर हैं कि इनके स्वस्थ बीजों का पाउडर अंतरराष्ट्रीय बाजार में पांच हजार रुपए किलो के हिसाब से बिक सकता है ! जबकि इन बीजों के तेल की लगभग 50 हजार रुपए लीटर तक की मांग है !
यदि पहाड़ी नागरिक चाहें तो इसके बीजों व तेल की बाजार में बिक्री कर वह अपनी आर्थिकी मजबूत बना सकते हैं ! इस संबंध में इटरनल विश्वविद्यालय बड़ू साहिब के एप्लायड साइंस विभाग के निदेशक प्रो. एमपीएस चंद्रावत शोध कार्य में लगे हुए हैं ! उन्होंने बताया कि भांग का नशा करने के लिये गोलियां नहीं बनानी चाहिये, बल्कि इसके स्वस्थ पौधों से बीज एकत्रित करने चाहिये ! इन बीजों के पाउडर और तेल से शरीर के जटिल रोग चुटकी बजाते ही दूर किए जा सकते हैं ! डा. चंद्रावत के मुताबिक अंग्रेजी भाषा में इसे इंडियन हेंप भी कहते हैं !
भांग के बीजों में अनेक प्रकार के योगिक वाष्पशील सुगंधित टरपीनायड्स एवं फलेवेनायड्स पाये जाते हैं ! इसमें सर्वाधिक महत्त्वपूर्ण 9-टीएचसी हैं ! यह डिप्रेसन , चिंता , तनाव और स्नायु संबंधित दुर्बलताओं में यह अश्वगन्धा से बेहतर परिणाम देता है साथ ही अस्थि शोथ, कैंसर, मधुमेह, पार्किंसंस मल्टियल स्कलेरोसिस फाइब्रोमायोलिज्या इत्यादि जटिल रोगों में अत्याधिक उपयोगी हैं !
भांग का तेल या भांग के बीज ओमेगा फैटी एसिड 3, 6 और 9 का संतुलित मिश्रण है ! शोध में बताया गया है कि इसका तेल दिल की सेहत बनाए रखता है और उसकी सही गतिविधियों को बढ़ावा देता है ! इस तेल का बालों, त्वचा और नाखून पर सकारात्मक असर होता है ! रोजाना भांग का तेल खाने व लगाने वालों के बाल चमकदार व मोटे और त्वचा मुलायम होती है !
250 से 500 मिलीग्राम प्रतिदिन भांग के तेल का उपयोग लगभग सभी प्रकार के कैंसरों को ठीक करता है ! इस महत्त्वपूर्ण वन संपदा के संरक्षण, संबर्धन, कृषिकरण, प्रौद्योगिकीकरण तथा उत्पाद विपणन की एकीकृत योजना ग्रामीणों व राजकीय अर्थव्यवस्था के सुदृढ़ीकरण में कल्पनातीत भूमिका निभा सकती है !
इसके औषधीय लाभ को देखकर ही अंग्रेजों ने अपने एलोपैथिक दवाई की फैक्ट्रियों के विकास के लिए भारत में भांग की खेती व उसके चिकित्सीय प्रयोग को कानून बनाकर प्रतिबंधित कर दिया था ! किंतु भारत की आजादी के 75 साल बाद अब इस भांग की परंपरागत आयुर्वेदिक चिकित्सा पद्धति पर पुनर्विचार करने की आवश्यकता है !