क्या भांग ही सोमरस है ? बढ़ा खुलासा : Yogesh Mishra

वेदों में सोमरस यज्ञ के विशेष आकर्षण के बतौर आता है ! इन्द्र को बुलाया जाता है कि आयें और सोमरस पान करें ! ज़ाहिरन सोमरस वैदिक जनों के पास एक ऐसा पदार्थ था, जो उनके लियह सबसे अधिक लुभावना था ! उसकी शास्त्रों में बड़ी महिमा है ! पर अफ़सोस की बात यह है कि कालान्तर में सोमरस का अर्थ लोग भूल गये !

हाल के प्रगतिशील इतिहासकारों ने सोमरस का अर्थ भांग बताया है ! इन इतिहासकारों के अलावा ओशो ने इसे भंग जैसा ही कुछ और बतलाया है ! मूर्धन्य कवि-कथाकार उदय प्रकाश तो भांग ही बताया है ! उदय जी ने कृषि के इतिहास पर एक टीवी सीरीज़ की थी उस में यह निष्कर्ष उन्होने पेश किया था !

अब दुविधा यह है कि यदि भांग ही वह सोमरस है तो भांग के दर्जनों पर्यायवाचियों में सोमरस का नाम क्यों नहीं है ? क्यों भांग पीने वाले कभी उसे कई नामों से बुलाने के बावजूद उसे सोमरस नहीं पुकारते थे ! वह भी तब जबकि उसे साफ़-साफ़ शिवजी की बूटी कहा जाता है !

अब प्रश्न पुनः यह है कि सोमरस और शिवजी की बूटी में कितना अन्तर है ? शिवजी का दिन सोमवार ही है और चन्द्रमा का दिन भी सोमवार ही है और तो और वह उनके सर पर भी विराजमान है ! फिर भी कोई भंगेड़ी हमें नहीं बताता कि सोमरस असल में भांग है ! कौन बताता है- पश्चिमी विद्वान, प्रगतिशील इतिहासकार और धर्मनिरपेक्ष कवि और चिन्तक ? जिनका भारतीय अध्यात्म और संस्कृति से कोई लेना देना नहीं है !

भांग पीना यदि वैदिक काल से चला आ रहा है तो परम्परा में ऐसा कौन सा अवरोध आ गया कि लोग भूल ही गयह कि सोमरस ही भांग है ? भांग पीना चालू है ! वेदों का पढ़ना चालू है ! शिव की भक्ति चालू है ! शब्दों की व्युत्पत्ति का शग़ल चालू है ! फिर भी सोमरस का अर्थ का पर्याय खो जाता है ! जबकि भंग के अनेकों अन्य पर्यायवाची बने रहते हैं !

अजया, विजया, त्रिलोक्य, मातुलि, मोहिनी, शिवप्रिया, उन्मत्तिनी, कामाग्नि, शिवा आदि ! बांग्ला में इसे सिद्धि कहते हैं ! अरबी में किन्नव, तमिल में भंगी, तेलुलू में वांगे याकू गंज केटू और लैटिन में इसको कैनाबिस सबोपा कहते हैं !

अत: मेरा निष्कर्ष है कि सोमरस भंग नहीं हो सकता है ! अब सवाल यह उठता है कि यदि भंग सोमरस नहीं है तो फिर सोमरस क्या था ? यहाँ सोमरस में दो शब्द हैं ! सोम और रस ! रस का अर्थ है सार, तरल द्रव या दूध ! यानी किसी वस्तु का निचोड़ या उसका सारतत्व ! जैसे हम घर में जो तरकारी पकाते हैं उसके रस को रसा कहते हैं ! वैसे रस का एक अर्थ स्वाद भी है ! जिस से जीभ को उसका एक पर्याय मिलता है रसना ! अब दूसरे शब्द सोम का विचार किया जाय ! सोम का अर्थ क्या है?

हलायुध कोष में सोम के अर्थ दियह हैं – चन्द्र, कर्पूर, वानर, कुबेर, यम वायु, जल और सोमलतौषिधि ! इसके आगे सोमरस बनाने की जो विधि वेदों में मिलती है वह “भांग” से भिन्न है !

इस के और आगे शास्त्रों में सोम के जो दूसरे अर्थ भी दियह हैं उनमें अन्य अर्थों के अलावा चावल का पानी भी दिया है ! आप्टे जी के कोष में भी लगभग यही अर्थ हैं बस फ़र्क इतना है कि सोम को पौधा बताया गया है ! जबकि हलायुध कोष में चरक के हवाले से इसे एक विशेष लता बतलाया गया है ! आप्टे अपने कोष के लियह बहुत हद तक मोनियर विलियम्स पर ही निर्भर रहता है ! मोनियर विलियम्स ने बिना किसी हवाले के सोमरस को यक प्लान्ट का रस कहा है ! फिर बाद में केम्बिंग प्लान्ट अर्थात बेल का छोटा पेड़ कहा है ! निश्चित तौर पर हलायुध कोष ही अधिक प्राचीन और प्रामाणिक अर्थ बता रहा है !

जिन लोगों ने भांग का पौधा देखा है उन्हे बताने की ज़रूरत नहीं पर जिन्होने नहीं देखा वे यह जान लें कि भांग का पौधा कोई लता नहीं होता ! वह एक स्वतंत्र जंगली पौधा है जो अपने उगने के लिये किसी का भी सहारा नहीं लेता है ! अच्छे हवा-पानी मिलने पर आठ-दस फ़ीट तक भी हो जाता है ! मैंने खुद देखा है इतना बड़ा भांग का पेड़ ! अब यह मान लेना कि वैदिक लोग लता और पौधे में अन्तर नहीं जानते थे या कभी-कभी लता का अर्थ पौधे से भी करते थे तो यह निहायत बेवकूफ़ी होगी !

अब चलते हैं वेदों की ओर वैदिक लोग अग्निपूजक थे ! आग की खोज के साथ ही मनुष्य ने खाने को पका कर खाने की तरक़ीब भी निकाली थी ! आग की खोज से पहले मांस, फल, सब्ज़ियाँ आदि कच्चे ही खाये जाते रहे होंगे ! वैदिक यज्ञ में न सिर्फ़ पशुओं की बलि दी जाती थी बल्कि अनाज भी अर्पित किया जाता था ! और यह यज्ञ आग के सामने ही होता था ! क्या यह यज्ञ एक खाना पकाने का वृहद अनुष्ठान ही तो नहीं है जिसमें सब्ज़ियों का रस ही सोम रस है ? उल्लेखनीय है कि ज्योतिष में सब्ज़ियों पर सोम यानी चन्द्रमा का अधिकार है !

रही बात उसके मादक प्रभाव की ! तो क्या खाने का नशा नहीं होता या खाने में स्वाद के लिये विशेष समिश्रण द्वारा उसे नशीला नहीं बनाया जा सकता है ? जो लोग सोचते हैं कि सिर्फ़ भांग और शराब में नशा होता है तो उन्हे कभी तगड़ी भूख का एहसास नहीं हुआ है ! फिर भी मैं इस सम्भावना से बिलकुल इन्कार नहीं करता कि सोम कोई ऐसी लता थी जिसका एक ओजस्वी और मादक प्रभाव होता रहा होगा ! पर वह भांग ही है यह स्वीकारने में मुझे परहेज़ है ! क्योंकि ऐसा निष्कर्ष मुझे गलत लगता है !

सोम वेदों में वर्णित एक विषय है जिसका( वैदिक संस्कृत में) प्रमुख अर्थ उल्लास, सौम्यता और चन्द्रमा है ! ऋग्वेद और सामवेद में इसका बार-बार उल्लेख मिलता है ! ऋग्वेद के ‘सोम मण्डल’ में 114 सूक्त हैं, जिनमे 1097 मंत्र हैं ! जो सोम के ऊर्जादायी गुण का वर्णन करते हैं ! पाश्चात्य विद्वानों ने इस सोम को अवेस्ता-भाषा में लिखे, ‘होम’ से जोड़ा है जो प्राचीन ईरानी-आर्य लोगों का पेय था !

सनातन परंपरा में वेदों के व्याखान के लिए प्रयुक्त निरुक्त में सोम को दो अर्थों बताया गया है ! पहले सोम को एक औषधि कहा गया है जो स्वादिष्ट और मदिष्ट (नंदप्रद) है, और दूसरे इसको चन्द्रमा कहा गया है ! इन दोनो अर्थों को दर्शाने के लिए ये दो मंत्र हैं:

स्वादिष्ठया मदिष्ठया पवस्व सोम धारया ! इन्द्राय पातवे सुतः॥ ( सामवेद )
सोमं मन्यते पपिवान्यत्सम्पिषन्त्योषधिम् ! सोमं यं ब्रह्माणो विदुर्न तस्याश्नाति कश्चन॥
निरूक्त में ही ओषधि का अर्थ ‘उष्मा धोने वाला’ अर्थात ‘क्लेश धोने वाला’ है !

सोमलता, सौम्यता के अर्थों में बहुधा प्रयुक्त सोम शब्द के वर्णन में इसका निचोड़ा-पीसा जाना, इसका जन्मना (या निकलना, सवन) और इन्द्र द्वारा पीया जाना प्रमुख है ! अलग-अलग स्थानों पर इंद्र का अर्थ आत्मा, राजा, ईश्वर, बिजली आदि है ! श्री अरविन्द, कपाली शास्त्री आदि जैसे विद्वानों ने सोम का अर्थ श्रमजनित आनन्द बताया है ! मध्वाचार्य परंपरा में सोम का अर्थात श्रीकृष्ण लिखा है ! सामवेद के लगभग एक चौथाई मन्त्र पवमान सोम के विषय में है, पवमान सोम का अर्थ हुआ – पवित्र करने वाला सोम !

वेदों में ‘सोम’ शब्द पेय के अर्थ में प्रयुक्त हुआ है, पौधे के रूप में प्रयुक्त हुआ है और देवता के अर्थ में भी यही शब्द प्रयुक्त हुआ है ! सोमपान से अमरता की प्राप्ति होती है (अमृता, ऋग्वेद 8.48.3) ! इन्द्र और अग्नि को प्रचुर मात्रा में सोमपान करते हुए बताया गया है ! वेदों में मानव के लिए भी सोमपान की स्वीकृति है-

अपाम सोमममृता अभूमागन्म ज्योतिरविदाम देवान् !
किं नूनमस्मान्कृणवदरातिः किमु धूर्तिरमृत मर्त्यस्य ॥ऋग्वेद 8.48.3 !!
दयानन्द सरस्वती ने इसका अर्थ इस प्रकार किया है-

सोम (अच्छा फल जो खाद्य है किन्तु मादक नहीं है) अपाम (हम तुम्हारा पान करते हैं)
अमृता अभूम् (आप जीवन के अमृत हो) ज्योतिर् आगन्म (भगवान का प्रकाश या शारीरिक शक्ति पाते हैं)
अविदाम देवान् (अपनी इन्द्रियों पर विजय प्राप्त करते हैं)
किं नूनं अस्मान् कृणवद् अरातिः (इस अवस्था में, हमारा आन्तरिक शत्रु मेरा क्या बिगाड़ सकता है?)
किमु धूर्तिरमृत मर्त्यस्य (भगवन्! हिंसक लोग भी मेरा क्या बिगाड़ सकते हैं?)
एक और बात जो पूरी तरह सम्बन्धित नहीं है लेकिन विषयान्तर भी नहीं है ! वह है शरदपूर्णिमा को खीर को चाँदनीरात में रख कर अगले रोज़ खाने का रिवाज़ आज भी जारी है क्योंकि माना जाता है उस रात अमृत बरसता है (सोम का एक अर्थ अमृत भी है) !

और यह भी याद कर लिया जाये कि इसी शरदपूर्णिमा की रात को कृष्ण ने ब्रज में महारास रचाया था ! कृष्ण जो सोलह कलाओं के स्वामी थे ! सोलह कलायें ! कौन सी सोलह कलायें ? राम तो सिर्फ़ बारह कलाओं के स्वामी थे ! पर कृष्ण सोलह के कैसे हो गये ? राम सूर्यप्रधान थे और सूर्य की बारह कलाएं ही होती हैं ! आकाश में बारह राशियों में उसके भ्रमण से बने बारह मास ! और कृष्ण चन्द्रमा प्रधान थे ! इसलिये यह उनकी चन्द्रमा की सोलह कलाएं ! प्रथमा से पूर्णमासी तक पन्द्रह और एक अमावस्या की कुल सोलह कलायें !

अर्थात सिद्ध है कि भांग सोम रस नहीं है फिर सोमरस क्या है ?

सबसे पहली और महत्वपूर्ण बात यह है कि सोमरस मदिरा की तरह कोई मादक पदार्थ नहीं है ! हमारे वेदों में सोमरस का विस्तृत विवरण मिलता है ! विशेष रूप से ऋग्वेद में तो कई ऋचाएं विस्तार से सोमरस बनाने और पीने की विधि का वर्णन करती हैं ! हमारे धर्मग्रंथों में मदिरा के लिए मद्यपान शब्द का उपयोग हुआ है, जिसमें मद का अर्थ अहंकार या नशे से जुड़ा है !

इससे ठीक अलग सोमरस के लिए सोमपान शब्द का उपयोग हुआ है ! अर्थात जहां सोम का अर्थ शीतल अमृत बताया गया है ! मदिरा के निर्माण में जहां अन्न या फलों को कई दिन तक सड़ाया जाता है, वहीं सोमरस को बनाने के लिये सोम नाम के पौधे को पीसने, छानने के बाद दूध या दही मिलाकर लेने का वर्णन मिलता है ! इसमें स्वादानुसार शहद या घी मिलाने का भी वर्णन मिलता है ! इससे प्रमाणित होता है कि सोमरस मदिरा किसी भी स्थिति में नहीं है !

कहां और कैसा है सोम का पौधा ? अब प्रश्न यह उठता है कि आखिर सोमरस बनाने में प्रयुक्त होने वाला प्रमुख पदार्थ यानि सोम का पौधा देखने में होता कैसा है और कहां पाया जाता है? शास्त्रों में मान्यता है कि सोम का पौधा पहाडि़यों पर पाया जाता है, राजस्थान के अर्बुद, उड़ीसा के हिमाचल, विंध्याचल और मलय पर्वतों पर इसकी लतायें पायें जाने का उल्लेख मिलता है ! जबकि इन्हीं स्थानों में भांग एक पौधे के रूप में पाया जाता है ! शायद इसीलिये कई विद्वान ने भांग को ही “सोम” मान लिया हो !

मानते हैं कि अफगानिस्तान में आज भी यह पौधा पाया जाता है, जिसमें पत्तियां नहीं होतीं और यह बादामी रंग का होता है ! यह पौधा अति दुर्लभ है क्योंकि इसकी पहचान करने में सक्षम प्रजाति ने इसे सबसे छुपाकर रखा था ! काल के साथ सोम के पौधे को पहचानने वाले अपनी गति को प्राप्त होते गए और इसकी पहचान भी मुश्किल हो गई !

सोमरस की उत्पत्ति के विषय में कहा जाता है कि यह सूर्य पुत्र अश्विनी कुमारों ने बहुत लंबे समय तक ब्रह्मा जी की तपस्या कर उन्हें प्रसन्न किया ! फलस्वरूप ब्रह्मा जी ने प्रकट होकर उन्हें सोमरस का अधिकारी बनाया, जो शक्तिवर्द्धक, आयुवर्द्धक और चिरयुवा रखने में सक्षम था !

वराह पुराण के अनुसार सोमरस प्राप्ति का प्रमाण सोमरस का पान था ! यह केवल देवताओं को दिया गया वरदान था ! जो भी व्यक्ति यज्ञ कर के देवत्व की प्राप्ति कर लेता था, उसे यज्ञ के बाद सोमरस का पान करने का अधिकार मिल जाता था ! सोमरस का उपयोग देवताओं के लिये विशेष रूप से किया जाता है इसीलिए यह देवताओं का प्रमुख पान है !इसीलिये यज्ञ के आयोजन में सोमरस का उपयोग विशेष रूप से किया जाता था ! कहा जाता है कि प्राचीन काल में ऋषि-मुनि यज्ञ में सोमरस की आहूति देते थे और फिर प्रसाद रूप में इसे ग्रहण करते थे !

ऋग्वेद के अनुसार सोमरस के गुण भांग की तरह नहीं बल्कि संजीवनी बूटी की तरह हैं ! यह बलवर्द्धक पेय है जो व्यक्ति को चिर युवा रखता है ! इसे पीने वाला अपराजेय हो जाता है ! ऋग्वेद में इसे बहुत ही मीठा और स्वादिष्ट पेय बताया गया है ! जबकि भांग न तो मीठा और न ही स्वादिष्ट होता है ! साथ ही गुणों की तीव्रता के कारण इसे कम मात्रा में लिये जाने का भी विधान ज्ञात होता है !

आध्यात्मिक के दृष्टिकोण से सोमरस का कुछ विद्वान यह मानते हैं कि असल में सोमरस कोई भौतिक पदार्थ नहीं है ! यह वास्तव में हमारे शरीर के अंदर ही पाया जाने वाला तत्व है, जो अखंड साधना के बाद निर्मल हुये शरीर में उत्पन्न होता है ! इसकी प्राप्ति साधना के उच्च स्तर पर होती है इसीलिये केवल महान ऋषियों को ही इसकी प्राप्ति होती है ! जो वाह्य सोमरस रूपी लता के रस को शरीर में स्वीकारने और पचाने में सहायक होता है !

अत: अंत में माना जा सकता है कि सोमरस भी आयुर्वेदिक जड़ी बूटियों से निर्मित एक दुर्लभ पेय है, जिसमें शरीर को महाबलशाली बनाने के गुण हैं ! सोम नामक दुर्लभ पौधे की सहज प्राप्ति संभव न होने से ही संभवतः इसे देवताओं के लिये सीमित किया गया होगा लेकिन यह भांग तो कतई नहीं है !

देव लोक के इन्द्र आदि देवता सोमरस का प्रयोग करते थे तो शिव और उनके शैव गण आदि भांग का प्रयोग करते थे !!

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योगेश कुमार मिश्र 

ज्योतिषरत्न,इतिहासकार,संवैधानिक शोधकर्ता

एंव अधिवक्ता ( हाईकोर्ट)

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