प्राय: लोग जैविक हथियार एवं रासायनिक हथियार को एक ही मानते हैं ! लेकिन इन दोनों में जमीन असमान का अंतर है ! जिसे में आगे समझने का प्रयास करता हूँ !
जैविक हथियार प्रकृति में उपलब्ध बैक्टीरिया या वायरस का उपयोग करता है या कुछ मामलों में प्राकृतिक जहर का ! जो सीधे लोगों को मारने के लियह बनाया जाता है ! जबकि रासायनिक हथियार भी ऐसा हथियार है जो लोगों को मारने के लियह मानव निर्मित रसायन से बनाया जाता है !
जैविक हथियारों से आक्रमण के लियह छोटे मोटे जानवरों, पक्षियों, हवा, पानी, मनुष्य किसी का भी इस्तेमाल किया जा सकता है ! गौरतलब है कि युद्ध सैनिकों और आम लोगों को इससे महामारी की ओर धकेल दिया जाता है ! इससे निपटना आसान नहीं होता है ! यह प्रकृति के साथ मिल कर लम्बे समय तक कार्य करता है ! जबकि रासायनिक हथियारों के प्रयोग से हजारों, लाखों की तादाद में लोगों को पल भर में मौत की नींद सुलाया जा सकता है ! इसके अलावा कई तरह की बीमारियों से तिल-तिल करके मरने के लियह भी छोड़ा जाता है ! इसके लियह नर्व गैस से आक्रमण कर नर्वस सिस्टम को प्रभावित कर लोगों को मारा जाता है !
जैविक हथियारों से लोगों में भयानक रोग होने लगते हैं जबकि रासायनिक हथियार के जहर फैलने से लोगों की जान जाने लगती है !
जैविक हथियार का असर ज्यादा प्रभावशाली होता है और यह महामारी की तरह फैलता है ! वहीं रासायनिक हथियार में जो केमिकल के संपर्क में आता है वही हताहत होता है !
जैविक हथियार बनाना सस्ता होता है, वहीं रासायनिक हथियार बनाना महंगा पड़ता है !
रासायनिक हथियार जैविक हथियार की तुलना में 100 से हजार गुना कम लोगों को मार सकता है !
वैसे तो जैवकीय युद्ध का प्रयोग सदियों से हो रहा है ! फिर भी कुछ महत्वपूर्ण जैविक युद्धों की चर्चा करता हूँ !
ईसा पूर्व छठवीं शताब्दी में मेसोपोटामिया के अस्सूर साम्राज्य के लोगों ने शत्रुओं के पानी पीने के कुओं में एक विषाक्त कवक डाल दिया था जिससे शत्रुओं की मृत्यु हो जायह ! इसी प्रकार ईसा पूर्व 184वीं सदी में विख्यात सेनापति हान्निबल नें मृदा पात्रें में सर्प विष भरवा कर प्राचीन ग्रीक नगर पर्ग्मान में उपस्थित जलपोतों में विष को फिंकवा दिया था !
यूरोपीय मध्यवर्ती इतिहास में मंगोलों तथा तुर्की साम्राज्यों द्वारा संक्रमित पशु शरीरों को शत्रु राज्य के जल स्रोतों में डलवा कर संक्रमित करने के कई आख्यान मिलते हैं ! प्लेग के महामारी के रूप में बहुचर्चित “श्याम मृत्यु” (Black Death) के फैलने का प्रमुख कारण मंगोलों तथा तुर्की सैनिकों द्वारा रोग पीडि़त मृत पशु शरीरों को समीपवर्ती नगरों में फेंका जाना बताया जाता है !
जैवकीय युद्ध का एक ज्ञात पिछला उदहारण रूसी सैनिकों द्वारा ईसवी 1710 में स्वीडिश नगर की दीवारों प्लेग संक्रमित मृत पशु शरीरों के फेंके जाने के आख्यान द्वारा जाना जाता है !
जैवकीय हथियारों का विकसित रूप में प्रयोग जर्मन सैनिकों द्वारा प्रथम विश्व युद्ध (1914-18) में एंथ्रेक्स तथा ग्लैंडर्स के जीवाणुओं द्वारा किया गया था ! इस प्रकार के जैवकीय हथियारों के प्रयोग पर जेनेवा संधि द्वारा ईसवी 1925 में रोक लगा दी गयी थी जिसके प्रतिबंध क्षेत्र का विस्तार सन् 1972 में जैवकीय तथा विषाक्त शस्त्र सम्मलेन के माध्यम से किया गया !
जापान-चीन युद्ध (1937-1945) तथा द्वितीय विश्व युद्ध (1939-1945) में शाही जापानी फौज की विशिष्ट शोध इकाई (इकाई संख्या 731) नें चीनी नागरिकों तथा सैनिकों पर जैवकीय हथियारों के प्रयोग कियह जो बहुत प्रभावशाली नहीं सिद्ध हो पाए परन्तु नवीन अनुमानों के अनुसार लगभग 5,80,000 सामान्य नागरिक, प्लेग संक्रमित खाद्य पदार्थों के जाने- बूझे प्रयोग के द्वारा प्लेग तथा हैजा से पीडि़त हुयह थे !
नाजी जर्मनों के जैवकीय हथियारों के संभावित खतरे का प्रत्युत्तर देने के लियह संयुक्त राज्य अमेरिका, संयुक्त ब्रिटेन तथा कनाडा नें सन् 1941 में जैवकीय हथियार विकास करने के संयुक्त कार्यक्रम पर एक साथ कार्य किया तथा एंथ्रेक्स, ब्रुसेलोसिस तथा बोटुलिनस के विषैले जैव हथियार तैयार कियह परन्तु बाद में यह संभावित भय की एक अतिरंजित प्रतिक्रिया ही सिद्ध हुई !
सन् 2001 के सितम्बर तथा अक्टूबर महीने में संयुक्त राज्य अमेरिका में एंथ्रेक्स के आक्रमण के कई मामले सामने आयह थे जिसमें आतंकवादियों नें बहुतेरे एंथ्रेक्स संक्रमित पत्र संचार माध्यमों तथा अमेरिकी कांग्रेस के कार्यालयों में भेजे जिसके कारण पाँच व्यक्तियों की मृत्यु हो गयी ! घटना नें राष्ट्रीय तथा अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर जैव सुरक्षा तथा जैव आक्रमण से बचाव के उपाय विकसित करने की आवश्यकता को पर्याप्त बल प्रदान किया !
जैविक और रासायनिक हथियार को रोकने के लियह कई संस्थाएँ काम कर रही हैं ! रासायनिक हथियार निषेध संगठन 1997 में संयुक्त राष्ट्र ने बनाया, जो एक स्वतंत्र संस्था है ! रासायनिक हथियार के निर्माण को रोकने के लियह यह सीडब्ल्यूसी The Chemical Weapons Convention के प्रावधानों को क्रियान्वित करती है !
भारत, रासायनिक हथियार निषेध संगठन (ओपीसीडब्ल्यू) के रासायनिक हथियार कन्वेंशन (सीडब्ल्यूसी) का हस्ताक्षरकर्ता राष्ट्र है, जिसका मुख्यालय दी हेग, नीदरलैंड में स्थित है ! यह कन्वेंशन एक सार्वभौमिक, गैर-भेदभावपूर्ण, बहु-पक्षीय, निःशस्त्रीकरण संधि है, जिसका उद्देश्य रासायनिक हथियारों के विकास, उत्पादन, भंडारण और प्रयोग पर प्रतिबंध लगाना है और रासायनिक हथियार मुक्त विश्व सुनिश्चित करने के उद्देश्य से इसके उन्मूलन पर नजर रखना है !
भारत ने 14 जनवरी, 1993 में इस संधि पर हस्ताक्षर किए थे ! भारत ने इस कन्वेंशन के प्रावधानों के अनुसरण में रासायनिक हथियार कन्वेंशन अधिनियम, 2000 को अधिनियमित किया ! वर्तमान में, 193 राष्ट्र इस कन्वेंशन के पक्षकार हैं ! भारत अपने रासायनिक हथियारों के भंडार को नष्ट कर, इस कन्वेंशन के सभी पक्षकार राष्ट्रों के मध्य रासायनिक हथियार मुक्त पक्षकार राष्ट्र का दर्जा हासिल करने वाला पहला पक्षकार राष्ट्र था !
गौरतलब है कि जैविक हथियार के निर्माण और प्रयोग पर रोक लगाने के लियह कई विश्व सम्मेलन हुयह ! सबसे पहले 1925 में जिनेवा प्रोटोकॉल के तहत कई देशों ने जैविक हथियारों के नियंत्रण के लियह बातचीत शुरू की ! 1972 में बायोलॉजिकल विपेन कन्वेंशन (Biological weapon Convention) की स्थापना हुई और 26 मार्च 1975 को 22 देशों ने इसमें हस्ताक्षर कियह ! भारत 1973 में बायोलॉजिकल विपेन कन्वेंशन (BWC) का सदस्य बना और आज 182 देश इसके सदस्य हैं !