मदार मात्र जहर नहीं बल्कि एक औषधीय पौधा है ! Yogesh Mishra

मदार मात्र जहर नहीं बल्कि एक औषधीय पौधा है ! इसको मंदार’, आक, ‘अर्क’ और अकौआ भी कहते हैं ! इसका वृक्ष छोटा और छत्तादार होता है ! पत्ते बरगद के पत्तों समान मोटे होते हैं ! हरे सफेदी लिये पत्ते पकने पर पीले रंग के हो जाते हैं ! इसका फूल सफेद छोटा छत्तादार होता है ! फूल पर रंगीन चित्तियाँ होती हैं ! फल आम के तुल्य होते हैं जिनमें रूई होती है ! आक की शाखाओं में दूध निकलता है ! वह दूध विष का काम देता है ! आक गर्मी के दिनों में रेतिली भूमि पर होता है ! चौमासे में पानी बरसने पर सूख जाता है !

आक के पौधे शुष्क, उसर और ऊँची भूमि में प्रायः सर्वत्र देखने को मिलते हैं ! इस वनस्पति के विषय में साधारण समाज में यह भ्रान्ति फैली हुई है कि आक का पौधा विषैला होता है, यह मनुष्य को मार डालता है ! इसमें किंचित सत्य जरूर है क्योंकि आयुर्वेद संहिताओं में भी इसकी गणना उपविषों में की गई है ! यदि इसका सेवन अधिक मात्रा में कर लिया जाये तो, उल्दी दस्त होकर मनुष्य की मृत्यु हो सकती है ! इसके विपरीत यदि आक का सेवन उचित मात्रा में, योग्य तरीके से, चतुर वैद्य की निगरानी में किया जाये तो अनेक रोगों में इससे बड़ा उपकार होता है !

रासायनिक संघटन :- आक के सर्वांग में प्रायः एक प्रकार का कडुवा और और चरपरा पीला राल जैसा पदार्थ पाया जाता है, और यही इसका प्रभावशाली अंश है ! जड़ की छाल में मडराएलबन और भंडार फ्युएबिल नामक दो वस्तुएँ और पाई जाती है !

मँडराएलबन आक का एक रवेदार एवं प्रभावात्मक सार है, इसे मंदारिन भी कहते है ! यह सार ईथर और मधसार में घुलता है, शीतल जल तथा जैतुन के तेल में यह अघुलनशील है ! इसमें एक विचित्रता है कि यह गर्मी में जम जाता है और शीत में खुले रखने पर पिघल उठता है ! ये दोनों तत्व इसके दूध या रस में भी अधिक मात्रा में पाये जाते है ! नवीन आक की अपेक्षा पुराने आक की जड़ अधिक वीर्यवान होती है !

गुण –धर्म :- 1. दोनों प्रकार के आक दस्तावर है, वात जन्य कुष्ठ, कण्डू, विष,व्रण, प्लीहा, गुल्म,बवासीर, कफ जन्य उदर रोग और मल कृमि को नष्ट कर्म वाले है !

सफेद आक का फूल वीर्य- वर्धक, हल्का, दीपनपाचन, अरुचि, मुँह से पानी आना, लाला स्राब्द्य बवासीर, खांसी तथा श्वास का नाशक है !

लाल आक का फूल मधुर एवं कुछ कडुवा, ग्राही, कुष्ठ, कृमि, कफ, बवासीर, विष, रक्तपित्त, गुल्म तथा सूजन को नष्ट करने वाला है !

आक का दूध :- कड़वा, गर्म, चिकना, खारा, हल्का, कोढ़ एवं गुल्म तथा उदररोग नाशक है ! विरेचन करने में यह अति उत्तम है !

मूलत्वक :- हृदयोत्तेजक, रक्त शोधक और शोथहर है ! इससे हृदय की गति एवं संकोच शक्ति बढ़ती है, तथा रक्त भार भी बढ़ता है ! यह ज्वरध्न और विषमज्वर प्रतिबंधक है !
पत्र :- दोनों प्रकार के आक के पत्ते वामक, रेचक, भ्रमकारक तथा कास्श्वास, कर्णशूल, शोथ, उरूस्तम्भ, पामा, कुष्ठ आदि नाशक है !

मुँह की झाँई, धब्बे आदि :- हल्दी के 3 ग्राम चूर्ण को आक के दुग्ध 5-7 बूँद व् गुलाब जल में घोटकर आँखों को बचाकर झाई-युक्त स्थान पर लगायें, इससे लाभ होता है ! कोमल प्रकृति वालों को आक की दूध की जगह आक का रस प्रयोग करना चाहिए !

सिर की खुजली :- इसे सिर पर लगाने से क्लेद, दाह वेदना एवं कण्डूयुक्त अरुशिका में लाभ होता है !

कर्णरोग :- तेल और लवण से युक्त आक के पत्तों को वैध बांये हाथ में लेकर दाहिने हाथ से एक लोहे की कड़छी को गर्म कार उसमें दाल दें ! फिर इस तरह जो अर्क पत्रों का रस निकले उसे कान में डालने से कान के समस्त रोग दूर होते है ! कान में मवाद आना, साँय-साँय की आवाज होना आदि में इससे बहुत लाभ होता है !

मडराएलबन आक का एक रवेदार एवं प्रभावत्मक सार है, इसे संडारिन भी कहते है ! यह सर ईथर और मधसार में घुलता है, शीतल जल तथा जैतुन के तैल में यह अघुलनशील है ! इसमें एक विचित्रता है कि यह गर्मी में जम जाता है ! और शीत में खुले रखने पर पिघल उठता है !

कर्णशूल :- 1. आक के भली प्रकार पीले पड़े पत्तों को थोड़ा सा घी चुपड़कर आग पर रख दें, जब वे झुलसने लगें, चटपट निकल कर निचोड़ लें ! इस रस को थोड़ी गर्म अवस्था में ही कान में डालने से तीव्र तथा बहुविधि वेदनायुक्त कर्णशूल शीघ्र नष्ट हो जाता है !

आक के पीले पके बिना छेड़ वाले पत्तों पर घी लगाकर अग्नि में तपाकर उसका रस कान में 2 बूँद डालने से लाभ होता है !

आक और नेत्र रोग :- 1. अर्क मूल की छाल सूखी 1 ग्राम कूटकर, 20 ग्राम गुलाब जल में 5 मिनट तक रखकर छान लें ! बूँद-बूँद आँखों में डालने से (3 या 5 बूंद से अधिक न डालें) नेत्र की लाली,भारीपन, दर्द, कीच की अधिकता और खुजली दूर हो जाती है !

अर्कमूल की छाल को जलाकर कोयला कर लें और इसे थोड़े पानी में घिसकर नेत्रों के चारों ओर तथा पलकों पर धीरे-धीरे मलते हुये लेप करे तो लाली, खुजली, पलको की सूजन आदि मिटती है !

आँख दुखनी आने पर, यदि बाई आँख हो और उसमें कड़क दर्द व् वेदना हो तो दाहिने पैर के नाखूनों को, यदि दाई आँख आई हो तो बांये पैर के नाखूनों को आक के दूध से तर कर दे !

सावधानी :- आँख में दूध नहीं लगना चाहिये, नहीं तो भयंकर परिणाम होगा ! यह एक चमत्कारिक प्रयोग होगा !

फूला जाला :- आक के दूध में पुरानी रुई को 3 बार तर कर सूखा ले, फिर गाय के घी में तर कर बड़ी सी बत्ती बनाकर जला ले ! बत्ती जल कर सफेद नहीं होनी चाहिये इसे थोड़ी मात्रा में सलाई से रात्रि के समय आँखों में लगगने से 2-3 दिन में लाभ होना प्रारम्भ होता है !

मोतिया बिन्द :- आक के दूध में पुरानी ईट का महीन चूर्ण (10 ग्राम) तर कार सूखा लें ! फिर उसमें लौंग (6 नग) मिलायें, खरल में भली प्रकार से महीन करके और बारीक कपड़छन कर लें ! इस चूर्ण को चावल भर नासिका द्वारा प्रतिदिन प्रातः नस्य लेने से शीघ्र लाभ होता है ! यह प्रयोग सर्दी-जुकाम में भी लाभ करता है !

मिर्गी :- 1. सफ़ेद आक के फूल 1 भाग और पुराना गुड़ 3 भाल लेकर पहले फूलों को पीस लें, फिर गुड़ के साथ खूब खरल करें ! चने जैसी गोलियाँ बना लें, प्रातः -सांय 1 या 2 गोली ताजे जल के साथ सेवन करें !

आक के ताजे फूल और काली मिर्च एकत्र महीन पीसकर 300 मिलीग्राम की गोलियाँ बना रखे और दिन में 3-4 बार सेवन करावें !

आक के दूध में थोड़ी शक्कर या मिश्री खरल कर रखें तथा इसकी 125 मिलीग्राम मात्रा प्रतिदिन प्रातः 10 ग्राम गर्म दूध के साथ सेवन करें !

मदार के पत्ते और टहनी के रंग का ही टिड्डा इसके क्षुपपर ग्रीष्म काल में मिलता है ! इस टिड्डे को शीशी में बंदकर सुखाकर सम भाग काली मिर्च मिला, महीन पीसकर, अपस्मार के रोगी को बेहोशी की हालत में इसका नस्य देने से वह होश में आ जाता है और धीरे-धीरे उसका रोग दूर हो जाता है !

दंतपीड़ा :- 1. आक के दूध में रुई भिगोकर, घी में मलकर दाढ़ की पीड़ा मिटती है !

आक के दूध में नमक मिलाकर दांत पर लगाने से दन्त पीड़ा मिटटी है !

अंगुली जितनी मोटी जड़ को आग में शकरकंदी की तरह भूनकर उसका दातुन करने से दन्त रोग व दंतपीड़ा में तुरंत लाभ पहुंचता है ! कूची वाले भाग को काटकर पुनः उसका अगला भाग प्रयोग कर सकते हैं !

दन्त निष्कासन :- 1. हिलते हुये दांत पर आक का दूध लगाकर उसे सरलता से निकाला जा सकता है !

आक के 8-10 पत्तों को 10 ग्राम काली मिर्च के साथ पीसकर उसमें थोड़ी हल्दी व सेंधा नमक मिलाकर मंजन करने से दांत मजबूत रहते है !

वमन (उल्टी) :- अर्कमूल की शुष्क छाल को समभाग अदरख के रस में भली प्रकार खरल कर 125 मिलीग्राम की गोलियाँ बनाकर धुप में सुखाकर रखा लें ! मधु के साथ सेवन कराने से किसी भी प्रकार का वमन 1-2 गोली के सेवन से बंद हो जायेगा ! प्रवाहिका, शूल, मरोड़ और और विसूचिका में इसे जल के साथ देते है !

आधाशीशी, अधकपारी, सिरदर्द (माइग्रेन) :- 1. जंगली कंडो की राख को आक के दूध में तरकर के छाया में सुखा लेना चाहिये ! इसमें से 125 मि० ग्रा ० सुंघाने से छीकें आकर सिर का दर्द, आधा शीशी, जुकाम, बेहोशी इत्यादि रोग में लाभ होता है ! गर्भवती स्त्री और बालक इसका प्रयोग न करें !

पीले पड़े हुये आक के 1-2 पत्तों के रस का नस्य लेने से आधा शीशी में लाभ होता हैं ! किन्तु तीक्ष्य बहुत है, अतः सावधानी से प्रयोग करें !

आक की छाया में शुष्क की हुई मूलत्वक के 10 ग्राम चूर्ण में सात इलायची तथा कपूर और पिपरमेंट प्रत्येक 500 मि ० ग्रा ० मिलाकर और खूब खरल खरल कर शीशी में भर कर रख लें ! इसमें सूंघने से छीके आकर व कफस्राव होकर आधा शीशी आदि सिर दर्द में में लाभ होता है ! मस्तक का भारीपन दूर होता है !

अनार की 40 ग्राम खूब महीन पिसी हुई छाल को आक के दूध में गूंथ कर रोटी की तरह नरम आंच से पका लें ! फिर इसे सुखाकर बहुत महीन पीसकर, जटामांसी, छरीला 3-3 ग्राम,इलायची और कायफल प्रत्येक 1. 5 ग्राम मिलाकर नसवार बनालें ! इसकी नस्य से कुछ देर बाद छीकें आकर दिमागी नजला दूर होता है ! तथा बेहोश रोगी को होश में लाने में सहयोग मिलता है !

पुरानी पक्की ईंट को पीसकर खूब महीन कर आक के दूध में तर कर सुखाकर और तौलकर प्रति 10 ग्राम में सात लंवग बारीक पीसकर मिला दें ! इसमें से 125 मिलीग्राम या 250 मिलीग्राम की मात्रा में संधाने से मस्तक पीड़ा, सूर्यावर्त,प्रतिश्याय, पीनस और मोतिया बिंद में लाभ होता है !

आक पुष्प लौंग 50 ग्राम और मिर्च 6 ग्राम दोनों को एकत्र कर खूब महीन पीस मटर जैसी गोलियाँ बना लें ! प्रातः 1 या दो गोली गर्म पानी के साथ सेवन करने से श्वास वेग रुक जाता है !

आक की जड़ के छिलका को आक के दूध में भिगोकर शुष्क कर महीन चूर्ण कर लें, 10 ग्राम चूर्ण में 25 ग्राम त्रिकटु चूर्ण श्रृंगभसम 5 ग्राम, गोदन्ती 10 ग्राम मिलाकर लगभग एक ग्राम प्रातः -सांय मधु के साथ लेने से पुरातन श्वास रोग में भी लाभ होता है !

आक के पत्तों पर जो सफेद क्षार सा छाया रहता है,उसे 5 से 10 ग्राम तक गुड़ में लपेटकर गोली बनाकर खाने से कास श्वास में लाभ होता है !

पत्रों पर छाई सफेदी को इकट्ठा कर बाजरे जैसी गोलियाँ बनाकर 1-1 गोली प्रातः-सांय खाकर ऊपर से पान खाने से 2-4 दिन में श्वास रोग में लाभ होता है ! पुरानी खांसी भी मिट जाती है !

पुराने से पुराने आक की जड़ को छाया शुष्क करके, निर्वात स्थान में जलाकर राख कर लें, इसमें से कोयले अलग कर दें ! 1-2 ग्राम राख को शहद या पान में रखकर खाने से कास श्वास में लाभ होता है !
आक की कोमल शाखा और फूलों को पीसकर 2-3 ग्राम की मात्रा में घी सेंक लें ! फिर इससे गुड़ मिला, पाक बना नित्य प्रातः सेवन करने से पुरानी खांसी जिसमे हरा पीला दुर्गंध युक्त चिपचिपा कफ निकलता हो, शीघ्र दूर होता है !

अर्क पुष्पों की लौंग निकालकर उसमें संभाग सैंधा नमक और पीपल मिला खूब महीन पीसकर मटर जैसी गोलियाँ बनाकर दो से चार गोली बड़ों और 1-2 गोली बच्चों को गौदुग्ध के साथ देने से बच्चों की खांसी दूर होती है !
अर्क मूल छाल के 250 मिलीग्राम महीन चूर्ण में, 250 मिलीग्राम शुंठी चूर्ण मिला 3 ग्राम शहद के साथ सेवन करने से कफ युक्त खांसी और श्वास में उपयोगी है !
छाया शुष्क पुष्पों के बराबर त्रिकटु (सौंठ, पीपल, काली मिर्च) और जवाखार एकत्र कर अदरख के रस में खरल कर मटर जैसी गोलियाँ बना छाया में सुखाकर रख लें ! दिन रात में 2-4 गोलियाँ मुख में रख चूसते रहने से कास श्वास में परम् लाभ होता है !

आक के दूध में चने डुबो कर मिटटी के बर्तन में बंदकर उपलों की आग से भस्म कर लें ! 125 मिलीग्राम मधु के साथ दिन में 3 बार चाटने से असाध्य खांसी में भी तुरंत लाभ होता है !

आक के एक पत्ते पर जल के साथ महीन पिसा हुआ कत्था और चूना लगाकर दूसरे पत्ते पर गाय का घी चुपड़कर दोनों पत्तों को पस्सपर जोड़ लें, इस प्रलर पत्तों को तैयार कर मटकी में रखकर जला लें ! यह कष्टदायक श्वास में अति उपयोगी है ! छानकर कांच की शीशी में रख लें ! 10-30 ग्राम तक घी, गेंहू की रोटी या चावल में डालकर खाने से कफ प्रकृति के पुरुषों में मैथुन शक्ति को पैदा करता है ! तथा समस्त कफज व्याधियों को और आंत्रकृमि को नष्ट करता है !

आक के ताजे फूलों का दो किलो रस निकल लें ! इसमें आक का ही दूध 250 ग्राम और गाय का घी डेढ़ किलो मिलाकर मंद अग्नि पर पकावें ! घृत मात्र शेष रहने पर छान कर बोतल में भर कर रख लें ! इस घी को 1 से 2 ग्राम की मात्रा में गाय के 250 ग्राम पकाये हुये दूध में मिला सेवन करने से आंत्रकृमि नष्ट होकर पाचन शक्ति तथा अर्श में भी लाभ होता है शरीर में व्याप्त किसी तरह का विष का प्रभाव हो तो इससे लाभ होता है, परन्तु यह प्रयोग कोमल प्रकृति वालों को नहीं करना चाहिए !

जलोदर (पेट में लीवर की बीमारी होने पर पेट में सूजन):- 1. अर्क पत्र स्वरस 1 किलो में 20 ग्राम हल्दी चूर्ण मिला मंद अग्नि पर पका कर जब गोली बनाने लायक हो जायें तो नीचे उतारकर चने जैसी गोलियाँ बना लें ! 2-2 गोली दोनों समय सौंफ कासनी आदि अर्क के साथ दे, तथा जल के स्थान पर यही अर्क पिलावे !

आक के ताजे हरे पत्ते 250 ग्राम और हल्दी 20 ग्राम दोनों को महीन पीस उड़द के आकार की गोलियाँ बना लें ! पहले दिन ताजे जल के साथ 4 गोली, फिर दूसरे दिन 5 और 6 गोली तक बढ़कर घटाये यदि लाभ हो तो पुनः उसी प्रकार घटाते बढ़ाते है, अवश्य लाभ होगा ! पथ्य में दूध, साबूदाना व जौ देवे !

आक के 8-10 पत्तों को सैंधा नमक के साथ कूट मिटटी के बर्तन में बंद कर जला कर 250 मिलीग्राम भस्म को सुबह, दोपहर, शाम छाछ के साथ सेवन करने से जलोदर मिटता है ! तिल्ली आदि अंग जो पेट में बढ़ जाया करते है, सब अपने स्थान पर आ जाते है !

रक्त अतिसार(खूनी दस्त) :- छाया शुष्क एवं महीन पीसकर कपड़छन की हुई अर्कमूल की छाल, ठन्डे जल के साथ 50 से 125 मिलीग्राम ग्रहण करने से अवश्य लाभ होगा !

अजीर्ण (अपच) :- आक के निथरे हुये पत्र स्वरूप में समभाग घृत कुमारी का गुदा व शक्कर मिलाकर पकावें ! शक्कर की चाशनी बन जाने पर ठंडा कर बोतल में भर लें तथा आवश्यकतानुसार 2 से 10 ग्राम की मात्रा में सेवन करायें ! यह 6 मॉस के बच्चे से 9-10 साल के बच्चों तक अनेक तोगों में अचूक दवा है !

पीलिया, पाण्डु, कामला, जोन्डिस:- 1. आक के 24 पत्ते लेकर, 50 ग्राम मिश्री मिलाकर खरल में घोटकर मिश्रण तैयार कर लें ! फिर चने जैसी गोलियाँ बना लें ! दिन में 3 बार वयस्कों को दो गोली सेवन कराने से सात दिन में पूर्ण लाभ होता है ! तेल, खटाई मिर्च आदि से परहेज रखें !

अर्कमूल की छाल डेढ़ ग्राम और काली मिर्च 12 नग पुन्नवी मूल 2-3 ग्राम, पानी में घोट -छानकर दिन में दो बार पिलावें ! गर्म और स्नग्ध वस्तुओं से परहेज रखें !

आक का पका पत्र 1 नग साफ़ पोछकर उस पर 250 मिलीग्राम चूना लगा कर बारीक पीस लेवें और चने के आकार की गोलियाँ बनाकर दो गोली रोगी को प्रातः काल पानी से निगलवा दें ! पथ्य के रूप में दही तथा चावल लेना चाहिये !

आक की कोपल 1 नग, सुबह निराहार पान के पत्ते में रखकर चबाकर खाने से 3-5 दिन में कामला ठीक हो जाता है !

भगन्दर (गुदा द्वार पर एक प्रकार का फोड़ा) आदि नाड़ी व्रणों (अल्सर) पर :- 1. आक का 10 मिलीग्राम दूध और दारुहल्दी का 2 ग्राम महीन चूर्ण, दोनों को एक साथ खरल कर बत्ती बना व्रणों में रखने से शीघ्र लाभ होता है !

आक के दूध में कपास की रुई भिगोकर छाया शुष्क कर बत्ती बनाकर, सरसों के तैल में भिगोकर व्रणों पर लगाने से लाभ होता है !

अंड कोष की सूजन :- 1. 8-10 ग्राम आक की छाया शुष्क चाल को कांजी के साथ पीसकर लेप करने से पैर और फोतो की गजचर्म के समान मोटी पड़ी हुई चमड़ी पतली हो जाती है !

अर्क के 2 -4 पत्तों को तिल्ली के तैल के साथ पत्थर पर पीसकर मलहम सा बना फोड़े, अंड कोष के दर्द में चुपड़ कर लंगोट कस देने से शीघ्र आराम होता है !

इसके पत्तों पर एरंड तैल चुपड़कर फोड़ो पर बांधने से पित्तशोथ मिटता है !

मूत्राधात, मूत्रकृच्छ , मूत्राघात , मुत्राशमारी आदि(पेशाब में जलन) :- आक के दूध में बबूल की छाल का थोड़ा रस मिलाकर नाभि के आसपास और पेडू पर लेप करने से मूत्राधात दूर होता है !

हैजा (कॉलरा, विसूचिका) :- 1. आक का जड़ की छाया शुष्क छाल 2 भाग और काली मिर्च 1 भाग, दोनों को कूट छानकर अदरक के रस में अथवा प्याज के रस में खरलकर चने जैसी गोलियाँ बना लें ! हैजे के दिनों में इनके सेवन से हैजे से बचाव होता है ! हैजा का आक्रमण होने पर 1-1 गोली 2-2 घंटे में देने से लाभ होता है !

आक के बिना खिले फूल 10 ग्राम तथा भुना सुहागा, लौंग, सौंठ, पीपल और काला नमक 5-5 ग्राम इन्हे कूट-पीसकर 125 मिलीग्राम की गोलियाँ बना लें और थोड़ी-थोड़ी देर में 1-1 गोली सेवन करना है ! विशेष अवस्था में 4-4 गोली एक साथ देना है !
आक के फूल 10 ग्राम, भुना सुहागा 4 ग्राम, काली मिर्च 6 ग्राम, इनको ग्वारपाठा के गूदे में खरलकर चने जैसी गोलियाँ बना लें ! 1-1 गोली अर्क गुलाब से देना है !

आक के फूलों की लौंग और काली मिर्च 10-10 ग्राम और शुद्ध हींग 6 ग्राम इन्हे अदरक के रस की 10 भावनायें देकर उड़द जैसी गोलियाँ बना रखें ! प्रत्येक उल्टी -दस्त के बाद 1-1 गोली अदरक, पोदीना या प्याज के रस के सेवन कराने से तत्काल लाभ होता है !

आक के पीले पत्ते जो झड़कर स्वयं नीचे गिर गये हो, 5 नग लेकर आग में जला देवें ! जब ये जलकर कोयला हो जाये तो कलईदार बर्तन में आधा किलो पानी में इन्हे बुझा दें ! यह पानी रग=रोगी को थोड़ा -थोड़ा करके, जल के स्थान पर पिलावें !

बवासीर(पाइल्स) :- 1. आक के कोमल पत्रों के सम भाग पाँचों नमक लेकर, उसमे सबके वजन से चौथाई तिल का तैल और इतना ही नींबू रस मिला पात्र के मुख को कपड़ मिटटी से बंदकर आग पर चढ़ा दें ! जब पत्र जल जाये तो सब चीजों को निकल पीस कर रख लें ! 500 मिलीग्राम से 3 ग्राम तक आवश्यकतानुसार गर्म जल, काँजी, छाछ या मढ़ के साथ सेवन कराने से बादी बवासीर नष्ट हो जाती है !

तीन बून्द आक के दूध को राई पर डालकर और उस पर थोड़ा कुटा हुआ जवाखार बुरक कर बताशे में रखकर निगलने से बवासीर बहुत जल्दी नष्ट हो जाती है !

हल्दी चूर्ण को आक के दूध में सात बार भिगोकर सूखा लें, फिर अर्क दुग्ध द्वारा ही उसकी लम्बी -लम्बी गोलियाँ बना छाया शुष्क कर रखें ! प्रातः -सांय शौच कर्म के बाद थूक में या जल में घिसकर मस्सों पर लेप करने से कुछ ही दिनों में वह सुखाकर गिर जाते है !

शौच जाने के बाद आक के दो चार ताजे पत्ते तोड़कर गुदा पर इस प्रकार रगड़े कि मस्सों पर दूध ना लगे, केवल सफेदी ही लगे ! इससे मस्सों में लाभ होता है !

उपदंश (सुजाक, सिफलिस आतशक या उपदंश) :- 1. श्वेत अर्क की छाया शुष्क मूल छाल का 1 से 2 ग्राम चूर्ण दो चम्मच शक्कर के साथ सुबह-शाम सेवन करने से उपदंश और रक्त कुष्ठ में लाभ होता है !

इसके 8-10 पत्तों को आधा किलो पानी में पकाकर चतुर्थाश शेष क्वाथ से उपदंश के ब्राण धोयें ! छाल को पानी में चाहिये व 2-3 ग्राम छाल का सेवन करना चाहिये ! इससे उपदंश में आशातीत लाभ होता है !

मलमल के डेढ़ फुट लम्बे और 4 अंगुल चौड़े कपड़े को आक के दूध में 21 बार भिगोकर सूखा लें ! फिर िड़को मिटटी के बर्तन में रखकर भस्म बना लें. तीन चावल बराबर भस्म को पान में रखकर देने से सात दिन में लाभ होता है ! मिर्च मसाले से परहेज रखे और घी का अधिक सेवन करें !

अर्कमूल की छाल 1 भाग, काली मिर्च आधा भाग, इन दोनों को महीन पीसकर 10 भाग गुड़ मिला चने जैसी गोलियाँ बनाकर रख लें ! रोगी को पहले जुलाब देकर 1 या दो गोली पानी के साथ सुबह-शाम सेवन करावें !

छाया शुष्क अर्कमूल त्वक के चूर्ण में संभाग खांड मिलाकर रखें, 1 से 2 ग्राम तक ताजे जल के साथ सेवन करावें !

आक की छाल तथा आक की कोंपले या छोटी-छोटी कोमल पत्तियाँ 50-50 ग्राम इन दोनों को 200 ग्राम आक के दुग्ध में पीसकर गोला बनाकर मिटटी के पात्र में मुंह बंदकर रखकर 5 किलोग्राम कंदो की आंच में फूँक कर भस्म बना लें ! अब निकल कर मटर जैसी छोटी-छोटी गोलियाँ बनाकर एक-दो गोली पानी के साथ लेने से भगंदर व नासूर में लाभ होता है !

लाल आक की जड़ की छाल 2 भाग तथा सत्यानाशी की जड़ की छाल और अपामार्ग मूल छाल 1/2 भाग चूर्ण कर धूम्रपान विधि के अनुसार पीने से उपदंश में लाभ होता है !

नपुंसकता और ध्वज भंग (शिश्न शिथिलता, स्तम्भन या यौन दुर्बलता शीघ्र पतन) पर :- 1. छुआरों के अंदर की गुठली निकल कर उनमे आक का दूध भर दें, फिर इनके ऊपर आटा लपेट कर पकावें, ऊपर का आटा जल जाने पर छुआरों को पीसकर मटर जैसी गोलियाँ बना लें, रात्रि के समय 1-2 गोली खाकर तथा दूध पीने से स्तम्भ होता है !

आक की छाया शुष्क जड़ के 20 ग्राम चूर्ण को ादजा किलो दूध में उबालकर दही जमाकर घी तैयार करें, इसके सेवन से नामर्दी दूर होती है !

आक दूध असली मधु और गाय का घी,समभाग 4-5 घंटे खरल कर शीशी में भरकर रखा लें, इंद्री की सीवन और सुपारी को बचाकर इसकी धीरे-धीरे मालिश करें और ऊपर से खाने का पान और एरंड का पता बांध दें, इस प्रकार सात दिन मालिश करें ! फिर 15 दिन छोड़कर पुनः मालिश करने से शिश्न के समस्त रोगों में लाभ होता है !

योनि रोग :- 1. योनि सुदृढ़ करने के लिए आक की जड़ के चूर्ण को भांगरे के रस में 2-3 बार अच्छी तरह खरल करके मटर के बराबर गोलियां बनाकर 1-1 गोली सुबह-शाम गर्म पानी या दूध के साथ सेवन करने से योनि सुदृढ़ होती है, इससे मासिक धर्म भी ठीक होने लगता है ! पर जिन्हे रक्त प्रदर हो उन्हें सेवन नहीं करना चाहिए !

कफ दूषित योनि हो तो उड़द के 100 ग्राम आटे में थोड़ा सैंधा नमक मिलाकर उसमें आक के दूध की सात भावनाये देकर छोटी-छोटी बत्तियां बना लें ! इसका प्रयोग योनि-मार्ग में करें, तथा उचित मात्रा में जल के सेवन करें ! इससे निश्चित ही लाभ होगा !

बाँझपन :- सफेद आक की छाया में सुखी जड़ को महीन पीस, 1-2 ग्राम की मात्रा में 250 ग्राम गाय के दूध के साथ सेवन करावें ! शीतल पदार्थो का पथ्य देवें ! इससे बंद ट्यूब व नाड़ियां खिलती हैं, व मासिक धर्म व गभार्शय की गांठों में भी लाभ होता है !

पैरों के छाले :- पैदल यात्रा करने से जो छाले आदि हो जाते है, इसके दूध को लगाने मात्र से दूर हो जाते है !

पैरों के फोड़े :- एक ईंट को गर्म करके उस पर 6-7 आक के पत्ते रखकर, पैर को सेंकने से पैर के फोड़े नष्ट हो जाते है !

पार्श्व शूल :- आक के दूध में थोड़े से काळा तिलों को खूब खरल कर जब पतला सा लेप सा हो जाये तो उसे गर्म कर पसली के दर्द स्थान पर लेप कर केन और ऊपर से आक के पत्तों पर तील का तेल चुपड़ कर तवे पर गर्म कर उस स्थान पर पट्टी से बांधने पर शीघ्र लाभ होता है !

गठिया या आमवात पर :- 1. आक का फूल, सौंठ, काली मिर्च, हल्दी व नागरमोथा समभाग लें ! इन्हे जल के साथ महीन पीसकर चने जैसी गोलियाँ बना लें ! 2-2 गोली प्रातः – सांय जल के साथ सेवन करें !

आक के 2-4 पत्तों को कूटकर पोटली बना, घी लगाकर तवे पर गर्म कर सेंक करें ! सेकने के पश्चात आक के पत्तों पर घी चुपड़कर गर्म कर बांध दें !
उरु स्तम्भ :- आक की जड़ को घिस कर लेप करें !

लकवा :- आक (मोटी कूटी हुई) की आधा किलोग्राम जड़ों को 4 किलो ग्राम पानी में पकावें, एक किलो पानी शेष रहने पर छान लें ! उसमें समभाग मिश्री तथा 6-6 ग्राम पीपल, वंश लोचन,इलायची,काली मिर्च और मुलेठी का चूर्ण मिलाकर मंद आंच पर शरबत तैयार कर लें ! ,मात्रा 1-2 ग्राम तक यह कास श्वास, कफ, वातरोग, हाथ-पैर का दर्द, उदर रोग और लकवे को भी दूर करता है !

वात पीड़ा :- 1. आक की जड़ की छाल 1 भाग काली मिर्च, कुटकी और कला नमक 1-1 ग्राम सबको मिलाकर जल के साथ महीन पीसकर चने जैसी गोलियाँ बना लें ! किसी भी अंग में वातजन्य पीड़ा हो तो प्रातः-सांय 1-1 ग्राम गोली उष्ण जल के साथ सेवन करें !

आक की एक किलो जड़ो (छाया में सुखाई हुई) को जौ कूटकर 8 किलो जल में पकावें ! लड़ो किलोग्राम शेष रहने पर उसमें 1 किलो एरंड तैल मिलाकर पकावें ! तैल मात्र शेष रहने पर छानकर शीशी में भरकर रखा लें, इसकी मालिश से भी शीघ्र लाभ होता हैं !

वात रोगी को आक की रुई से भरे वस्त्र पहनने तथा इसकी रुई की रजाई व तोसक में सोने से बहुत लाभ होता है ! वात व्याधि वाले एकांग स्थान पर वायुनाशक तेल की मालिश कर ऊपर से इस रुई को बांधने से बहुत लाभ होता है !

वातगुल्म :- आक के पुष्पों की कलियाँ 20 ग्राम, अजवायन 20 ग्राम इन दोनों को खूब महीन पीस उसमें 50 ग्राम खांड मिलाकर रखे, 1-1 ग्राम तक प्रातः-सांय जल के साथ सेवन करें !

व्रण :- व्रण और रक्तस्राव पर आक की रुई बहुत लाभकारी है ! जो क्षत या व्रण दुःसाध्य हो, अर्थात किसी भी प्रकार से न भरता हो, उसमें इस रुई को रखकर बांध देना चाहिये, तथा प्रतिदिन व्रण को साफ़ कर रुई को बदलते रहने से थोड़े ही दिनों में वह भर जाता है ! जिस क्षत से खून बह रहा हो, उस पर इस रुई को रखकर बांध देने से शीघ्र ही रक्तस्राव रुक जाता है ! ताजी रुई शीघ्र लाभकारी होती है !

दाद :- 1. आक के दूध में समभाग शहद मिलाकर लगगने से दाद शीघ्र ही नष्ट हो जाता है !

आक की जड़ 2 ग्राम चूर्ण को 2 चम्मच दही में पीसकर लगाते रहने से भी दाद में लाभ होता है !
खाज (पामा, छाजन):- 1. आक का पुष्प गुच्छ तोड़ने पर जो दूध मिकलता है उसमें नारियल का तेल मिलाकर लगाने से खुजली शीघ्र दूर होती है ! पामा, उकवत, छाजन तो इसे दूर से ही नमस्कार करती है !

आक का दूध 100 ग्राम,तिल या सरसों का तैल 400 ग्राम,हल्दी चूर्ण 200 ग्राम, और मैंनसिल 15 ग्राम लें ! प्रथम मैनसिल और हल्दी को खरल कर लें, फिर दूध मिलाकर लेप सा बना ले ! अब इसमें तैल और 2 किलो जल मिलाकर तैल सिद्ध कर ले, इस तैल के लगाने से खाज, खुजली, पामा आदि चर्म रोग दूर होते है, अर्श के मस्सो पर बराबर लगाने से वे सुखकर झड़ जाते है !

आक के पत्रों का रस 1 किलो, हल्दी चूर्ण 50 ग्राम, और सरसों तैल आधा किलो मंद अग्नि पर पकावें ! तैल मात्र शेष रहने पर छान कर शीशी में भर लें ! इसकी मालिश से खाज, खुजली आदि नष्ट होते है ! 2-4 बून्द कान में टपकने से कर्णशूल मिटता है !

आक के ताजे पत्तों का रस 1 किलोग्राम गाय का दूध 2 किलोग्राम सफेद चंदन, लाल चंदन, हल्दी, सौंठ और सफेद जीरा 6-6 ग्राम इनका कल्क कर 1 किलोग्राम घी में पकावें ! घी मात्र शेष रहने पर छानकर रख लें ! मालिश करे, मालिश करने से खुजली-खाज आदि में लाभ होता है !

10 ग्राम आक के दूध को 50 ग्राम सरसों के तैल में पकावें ! तैल मात्र शेष रहने पर या दूध के जल जाने पर सुरक्षित रख लें ! इस तैल की दिन में 2 बार मालिश करें, और तीन घंटे तक स्नान न करें ! कुछ दिनों में ही पूर्ण लाभ होता है !

आक का दूध ताजा, व सुखाया हुआ 1 भाग 100 बार जल से धोया हुआ गाय का मक्खन खूब खरल करके मालिश करें व 2 घंटे तक शीत जल व शीत वायु से रोगी को बचाये रखें !
आक के 21 पत्ते 125 ग्राम सरसों के तैल में जलाकर फिर उसमें थोड़ा मैनसिल घोट कर रख लें ! इसकी मालिश से भी उत्तम लाभ होता है !

इसका दूध छाया में सुखाकर व कड़वे तैल में मिकाकर जलाकर मालिश करने से खुजली आदि में लाभ होता है !
जख्म :- 1. इसके 4-5 पत्रों को सुखाकर उनको कूट-छानकर ख़राब जख्मों पर बुरकने से दूषित मांस दूर होकर स्वस्थ मांस पैदा होता है !

श्वेत मदार की 5 ग्राम जड़ को 20 ग्राम नीबू के रस में लोहे की कुदाल पर घिसकर क्षत पर लेप कर दने से सैंकड़ो योगो से असाध्य क्षत का भी रोपण हो जाता है !

आक की जड़ो के पास की गीली मिटटी लाकर टिकिया बनाकर, अत्यंत वेदनायुक्त तथा कीड़े पड़े हुये जख्म पर बांध देने से अंदर के कीड़े ऊपर टिकिया के भीतर आकर मर जाते है और जख्म धीरे-धीरे अच्छे हो जाते हैं ! पशुओं पर यह प्रयोग अनेकों बार सफल हुआ है !

श्लीपद :- 1. अर्कमूल की छाल 10 ग्राम, त्रिफला चूर्ण 10 ग्राम, एक साथ आधा किलो जल में अष्टमांश क्वाथ सिद्ध कर प्रतिदिन प्रातः- उसमें 1 ग्राम मधु और 3 ग्राम मिश्री मिलाकर सेवन करावे और साथ ही अर्क मूल को छाछ में पीसकर श्लीपद पर गाढ़ा लेप करें,40 दिन में पूर्ण लाभ होता है !

अर्कमूल छाल और अडूसा की छाल को कांजी ीे साथ पीस कर लेप करें !
आघातजन्य शोथ युक्त व्रणों पर :- आक की पत्र रहित शाखा को कूटकर ऊपर का छिलका 40-50 ग्राम लेकर खूब रगड़ ले, और टिकिया बना कलछी में थोड़ा गर्म कर व्रण के मुख पर बांध दे, 2-3 बार बाँधने से पूर्ण लाभ होता है !

व्रण ग्रन्धि, गलगण्ड, नारू आदि पर :- 1. आक के पत्तों का रस 1 किलो, कच्ची हल्दी का रस 125 ग्राम और तिल तैल 250 ग्राम एकत्र मिलाकर पकावें ! तैल मात्र शेष रहने पर छानकर रख लें, दुष्ट व्रण, बिगड़े हुये फोड़े अच्छे हो जाते है ! उपदंश के व्रणों पर यह योग उत्तम कार्य करता है !

आक की जड़ की छाल का 2-5 ग्राम महीन चूर्ण को जिस व्रण से पूय निकलता रहता हो, अंदर सड़ान होने से दुर्गन्ध आती हो उस पर बुरकने से 2-4 दिन में सड़ा हुआ मांस निकलकर वह स्वस्थ हो जाता है फिर कपूर राल, सिंदूर आदि का मलहम लगाने से वह शीघ्र भर जाता है !

2 ग्राम अर्कमूल चूर्ण को 10 मिलीलीटर नारियल तैल या घी में मिलाकर लगावें !

आक का दूध और गाय का घी समभाग मिश्रण कर दिन में 2-3 बार लगावें !

बंद ग्रन्थि पर :- 1. आक के दूध में सफेद उषारेबंद थोड़ा-थोड़ा मिला दिन में 2-3 बार लेप करते रहने से 3-4 दिन में कच्ची गाँठ बैठ जाती है !

आक के 2-2 पत्तों पर एरंड तैल चुपड़कर गर्म कर बांधने से बंद ग्रन्थि बैठ जाती है, या फट जाती है !
नारू :- 1. नारू पर आक के कोमल पत्र 7 नग और गुड़ 50 ग्राम दोनों को कूट कर जंगली बेर जैसा गोलियाँ बना लें ! 1-1 गोली करके दिन में तीन बार पानी के साथ सेवन करावें !

आक के 8-10 फूलों को पीस पुल्टिस बना बांधने से या दूध का लेप करने से नहरुवा निकल जाता है !
अग्नि दग्ध व्रण पर :- 1. आक की 3 ग्राम जलाई हुई रुई को 10 ग्राम तिल्ली तैल में खरल कर 10 ग्राम निथरे हुये चने के पानी में मिला दें ! इसको दुग्ध स्थान पर रखें, या कपड़ा तर कर रखें ! यदि व्रण में सूजन आ गई हो तो उक्त मिश्रण में 250 मिलीग्राम अफीम घोल कर पीला दें !

कुष्ठ :- 1. आक की सूखी हुई जड़ 2 ग्राम यव कूट कर 400 ग्राम जल में पकाकर 50 ग्राम शेष रहने पर सेवन करने से गलित कुष्ठ की पूर्वावस्था में जबकि हाथ पैरो की अंगुलियाँ मोटी हो गई हो, कानो की बालियाँ बैडोल, नासिक का अग्रभाग लाल रंग, क्षत शरीर के किसी भी भाग में हो और वे ठीक न हो तब लाभकारी है !

आक का दूध 125 से 375 मिलीग्राम की मात्रा में नित्य शहद के साथ दिन में 3 बार सेवन करें !

आक के छाया शुष्क मूल त्वक का चूर्ण 250 मिलीग्राम, शुंठी चूर्ण 250 मिलीग्राम, शहद के साथ नित्य तीन बार सेवन कराये, साथ ही छाल को सिरके में पीसकर पतला-पतला लेप करते रहे, यह प्रयोग लम्बे समय तक करें !

आक के छाया शुष्क पुष्पों का महीन चूर्ण बनाकर आधा ग्राम सुबह-शाम ताजे जल से सेवन करने से कुष्ठ में लाभ होता है ! कोमल प्रकृति वालों को इसकी मात्रा कम लेनी चाहिए !
आक के 10-20 फलों को बिना अग्नि में तपाये हुये मिटटी के बर्तन में भरकर, मुंह बंद कर उपलों की आग में फूँक दें ! ठंडा होने पर अंदर से भस्म को निकल कर सरसों के तेल में मिलाकर लगायें ! यह गलित कुष्ठ की प्रथम अवस्था में उपयोगी है !

कपाल कुष्ठ :- आक के क्षार को ईख के रस के साथ मिलाकर लेप करने से लाभ होता है !

श्वेतकुष्ठ :- आक के 20 मिलीलीटर दूध के साथ 5 ग्राम बावची और आधा ग्राम हरताल के चूर्ण को पीस कर लेप करें !

उदरशूल :- 1. आक की छाया शुष्क मूलत्वक के महीन चूर्ण में समभाग त्रिफला सेंधा नमक व महीन सौंफ चूर्ण मिलाकर 1 ग्राम की मात्रा में 2-3 बार जल के साथ सेवन करें !

आक के फूलों को सुखाकर, चूर्ण आक के पत्र स्वरस में तीन दिन खरल कर अजवायन, सौंस, बराबर मात्रा में मिलाकर चने जैसी गोलियाँ बना लें, 2 गोली गर्म जल के साथ निगलने से कठिन से कठिन उदर शूल छूमंतर हो जाता है ! यदि आराम न हो तो 2 गोलियाँ और दें !

आक के शुष्क 100 ग्राम और जड़ की छाल 50 ग्राम दोनों को खूब महीन पीस आक के पत्तों का रस मिला और खरल कर 65 मिलीग्राम की गोलियाँ बना लें ! 1 से 4 गोली सौंफ के अर्क या गर्म जल के साथ सेवन करने से उदरशूल एवं वात संबंधी रोग नष्ट होते है !

अर्क पुष्प की लौंग 125 मिलीग्राम और मिश्री 25 ग्राम दोनों को महीन पीस एक गोली बना, गर्म जल से निगल लेने से उदर शूल बंद हो जाता है !

पुराना अपचन या अजीर्ण रोग हो, दूषित डकारें आती हो, उदर में भारीपन हो, भोजन में अरुचि हो मलावरोध हो तो आक लवण का 25 से 500 मिलीग्राम की मात्रा में सेवन लाभदायक है ! आक के पत्तों में समान भाग सैंधा नमक मिला, दोनों को मिटटी के बर्तन में भर मुख बंद कर ऊपर से कपड़ मिटटी कर आग में फूक दें ! ठंडा होने पर अंदर की औषधि को शीशी में भरकर रख लें ! 250 मिलीग्राम से 1 ग्राम की मात्रा में सेवन करावें, यह गुल्म प्लीहा आदि उदर रोग नाशक है !

आक की जड़ की ताज़ी छाल और अदरक 1-1 ग्राम, काली मिर्च और सैंधा नमक आधा-आधा भाग सबको महीन पीस मटर जैसी गोलियाँ बना, छाया शुष्क करके 1 या 2 गोली अर्क पुदीना के साथ दें !
पेट में जहां तीव्र वेदना हो, उस स्थान पर आक के 2-3 पत्तों पर पुराना घी चुपड़ और गर्म कर रखे, और थोड़ी देर के लिये वस्त्र से बांध देवें !

संवेदन शून्यता (सूनापन):- 1.आक के 8-10 पत्रों को 250 ग्राम तैल में तलकर, तेल की मालिश करने से अंग के सूनापन में लाभ होता है !

आक के दूध को कांच या चीनी के पात्र में रखा, उसमें माल कांगनी का तैल मिलाकर मालिश करने से अर्धांगवात, अर्दित, सूनापन आदि में विशेष लाभ होता है !
ज्वर :- 1. आक की नई कोपल डेढ़ नग, आक के पुष्प की बंद कली 1 नग दोनों को गुड़ में लपेट गोली बना, ज्वर वेग के 2 घंटे पूर्व सेवन कराने से ज्वर वेग रुक जाता है !

छाया शुष्क अर्क मूल छाल का महीन चूर्ण 2 भाग और काली मिर्च का चूर्ण 1 भाग दोनों को गाय के दूध या बड़ के दूध में खरल कर चने जैसी गोलियाँ बना, ज्वर वेग से एक डेढ़ घंटा पूर्व 1 या दो गोली पानी से खिलावें !

आक का दूध 1 भाग और मिश्री 10 भाग दोनों को 12 घंटे खरल कर शीशी में भर कर रखें, 65 मिलीग्राम से 250 मिलीग्राम तक उष्ण जल के साथ सेवन करने से लाभ होता है ! यह मलेरिया ज्वर के लिये कुनैन से भी बढ़कर लाभकारी हैं ! इससे ज्वर की बारी रुकती है ! तथा चढ़ा हुआ ज्वर उतरता है !

आक मूल छाल की भस्म 1 भाग, शक़्कर 6 भाग दोनों को भली प्रकार खरल करें ! ज्वर वेग से 2 घंटे पूर्व 500 मिलीग्राम से 1 ग्राम तक ताजे जल के साथ सेवन करें !

आक के पीले पत्तों को कोयलों की आग पर जला भस्म करें, यह भाग 500 मिलीग्राम शहद के साथ चटावें !

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योगेश कुमार मिश्र 

ज्योतिषरत्न,इतिहासकार,संवैधानिक शोधकर्ता

एंव अधिवक्ता ( हाईकोर्ट)

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