मुंह पर मास्क के बाद विचारों पर भी तालाबंदी की तैयारी : Yogesh Mishra

अब सत्य नहीं शासक की इच्छा पर बोलना होगा !

वैसे तो भारत के संविधान के अनुसार अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता प्रत्येक व्यक्ति का मौलिक अधिकार है ! पर सूचना मिली है कि सोशल मीडिया के लिये केंद्र सरकार नई गाइड लाइन लागू करने जा रही है !

इसके लिये गूगल और फेसबुक कंपनी तैयार भी हो गयी हैं ! पर व्हाट्सएप इस गाइड लाईन को पूर्ण रूप से न मानने पर अड़ी हुई है !

दिल्ली हाईकोर्ट में दाखिल एक याचिका में व्हाट्सएप ने कहा कि यह लोगों के वैचारिक निजता का हनन है ! हालांकि केंद्र सरकार ने साफ कर दिया है कि व्हाट्सएप को भी गंभीर मामलों में मांगे जाने पर सूचना के श्रोत की जानकारी उपलब्ध करानी होगी और वैसे सरकार ने भी इस नये नियम को लागू करने पर सभी सोशल मीडिया के मंचों से जवाब मांगा है !

संज्ञान रहे कि केंद्रीय सूचना प्रौद्योगिकी मंत्रालय ने सभी सोशल मीडिया कंपनियों से नये नियमों के क्रियान्वयन का कठोरता से पालन करवाने का निर्देश जारी किया है ! इस विषय में सरकार का मुख्य जोर इस बात पर है कि सोशल मीडिया पर कोई भी सूचना देने वाले प्रथम व्यक्ति का स्रोत सोशल मीडिया कंपनी को बतलाना होगा ! जिससे उस व्यक्ति के विरुद्ध विधिक कार्यवाही की जा सके !

मुझे लगता है कि अगले वर्ष भारत के कई प्रदेशों में चुनाव होने वाले हैं और बंगाल चुनाव में मिली करारी हार का कारण बीजेपी ने सोशल मीडिया को ही माना है ! इसी के मद्देनजर आगामी महत्वपूर्ण राज्यों के चुनाव में किसी भी प्रकार की राजनीतिक क्षति न हो इसके लिये सोशल मीडिया पर अपने विचार व्यक्त करने वाले व्यक्तियों के विरुद्ध बड़ी धरपकड़ की योजना बनाई जा रही है !

मेरी राय में यह लोकतंत्र में विचारों के अभिव्यक्ति के मौलिक अधिकार की हत्या है ! खैर जब सरकार अपनी कार्यवाही आरंभ करेगी तो इस पर विस्तृत निर्णय न्यायालय देगी !

लेकिन विधि के अध्ययन के कारण मैं ऐसा समझ पा रहा हूं कि भारतीय संविधान में वर्णित मौलिक अधिकार यदि किसी राजनीतिक दल के राजनीतिक उद्देश्य की पूर्ति में बाधक हों तो मात्र अपने राजनीतिक लाभ उठाने के लिए भारत के आम आवाम के मौलिक अधिकारों का हनन नहीं किया जा सकता है !

विचारों की अभिव्यक्ति को नियंत्रित करने के लिए विचार दाता के ऊपर एफ. आई. आर. दर्ज करना, पुलिस द्वारा उसके विरुद्ध सख्त कार्यवाही करना और न्यायालय की लंबी प्रक्रिया के दौरान उस विचार देने वाले व्यक्ति को अनावश्यक रूप से मानसिक, आर्थिक और शारीरिक तीनों तरह की प्रताड़ना देना, यह भारतीय संविधान की मूल भावनाओं के पूरी तरह विपरीत है !

क्योंकि किसी भी व्यक्ति या राजनीतिक दल की कार्य पद्धति को लेकर भारत के प्रत्येक नागरिक को यह अधिकार है कि वह अपने बुद्धि, विवेक और अध्ययन के आधार पर अपने विचार समाज में प्रस्तुत करें !

किंतु इसमें दो शर्त हैं पहला यह कि उसके विचार गृह युद्ध का कारण न बन जाये और दूसरा विचारों का आधार झूठ नहीं होना चाहिये ! यदि इन दोनों मर्यादाओं का पालन करते हुए कोई विचारशील व्यक्ति समाज को अपने विचार देता है और उसके विरुद्ध कोई विधिक कार्यवाही की जाती है तो यह स्पष्ट रूप से अभिव्यक्ति के मौलिक अधिकार का हनन होगा !

इस हनन से राजनीतिक लाभ कम बल्कि राजनीतिक नुकसान अधिक होगा क्योंकि इससे जनता में आक्रोश बढ़ेगा और यह आक्रोश आगे चल कर सत्ताधारी राजनीतिक दल को नुकसान पहुंचायेगा !

जैसे श्रीमती इंदिरा गांधी द्वारा आपातकाल लागू करने पर उनको इसकी एक बड़ी राजनीतिक क्षति उठानी पड़ी थी ! पर अब आगे सत्ताधारी राजनीतिज्ञों के अहंकार के कारण भारत में वैचारिक स्वतंत्रता के मौलिक अधिकार का क्या होगा यह तो भविष्य ही बतलायेगा !!

अपने बारे में कुण्डली परामर्श हेतु संपर्क करें !

योगेश कुमार मिश्र 

ज्योतिषरत्न,इतिहासकार,संवैधानिक शोधकर्ता

एंव अधिवक्ता ( हाईकोर्ट)

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