न खाऊँगा न खाने दूंगा का मनोविज्ञान : Yogesh Mishra

एक लोकप्रिय प्रभावशाली नेता के एक राजनीतिक बयान पर मेरी कई मनोचिकित्सकों से वार्ता हुई ! मुझे अलग-अलग व्यक्ति ने इस वक्तव्य के मनोविज्ञान को अलग-अलग तरह से समझाने की चेष्टा की ! किंतु मैं यह समझ पाया कि जो व्यक्ति शुरुआती जीवन में अभावग्रस्त रहता है और जब उस व्यक्ति को कोई महत्वपूर्ण पद प्राप्त होता है, तो वह व्यक्ति दो महत्वपूर्ण कार्य करता है !

पहले अपने जीवन के अभाव की मानसिक कुंठा से उबरने के लिये वह व्यक्ति तरह-तरह के दिखावे और बड़बोलापन का सहारा लेने लगता है ! जिससे उसे मानसिक संतुष्ट प्राप्त होती है !

और दूसरा ऐसा व्यक्ति सदैव यह चाहता है कि समाज का हर व्यक्ति अभावग्रस्त ही रहे क्योंकि मैंने जीवन भर अभावग्रस्त रह कर संघर्ष किया है !

उदाहरण के लिये विशेष राजनीतिक दल के सत्ता में आते ही जन सामान्य की संपन्नता पर जो पहली चोट की गई वह थी “नोटबंदी” ! इस नोटबंदी के प्रहार से घरों में रखा माताओं बहनों का “घरेलू स्त्री धन” नये नोट बदलने के लिये बैंक पहुंच गया और वह पैसा बाद मुद्रा के विधिक अस्तित्व की अस्थिरता के कारण “सोने” में कन्वर्ट हो गया !

और बाद में आय के स्रोत बंद हो जाने के कारण अपने आवश्यक कार्य हेतु वही सोना लोगों ने बैंकों में गिरवी रखकर लोन ले लिया और किश्तें देने लगे ! फिर अचानक लॉकडाउन के कारण आय न होने की स्थिति में उस लोन की किस्त नहीं दी जा सकी, जिस कारण घर का संग्रहित पैसा भी डूब गया और गिरवी रखा हुआ सोना भी बैंकों ने हड़प कर लिया !

दूसरा व्यापारी वर्ग जो देश की सम्पन्नता का आधार हैं ! उनके ऊपर जो सबसे बड़ा हमला हुआ ! वह बिना किसी पूर्व तैयारी के जी.एस.टी. कर प्रणाली अचानक लागू करने के कारण ! इससे भारत के लगभग सभी व्यापारियों को अपनी व्यापार नीति अचानक बदलनी पड़ी !

जिसका परिणाम यह हुआ कि अधिकांश व्यापारी अचानक बदली हुई व्यापार नीति के कारण अपने परंपरागत व्यापार को नहीं चला पाये और हानि के गर्त में समा गये ! दूसरी तरफ “कैश डिस्टलाइजेशन पॉलिसी” ने संसाधनों के अभाव में व्यक्ति को इतना परेशान कर दिया कि व्यक्ति ने घबराकर स्वत: और व्यापार धंधे का रास्ता छोड़ दिया !

इसके बाद भारतीय अर्थव्यवस्था में छद्म मुद्रा “बिटक्वाइन” का युग आया ! लोगों ने बिटक्वाइन में अपनी संपन्नता को ढूंढने का प्रयास किया ! अरबों रुपये का निवेश हुआ लेकिन यह भी “न खाएंगे न खाने दूंगा” की नीति के तहत राजनीतिज्ञों को रास नहीं आया और बिटक्वाइन की युवा होने के पहले ही कानून की तलवार से उसकी हत्या कर दी गई ! जिसमें लाखों लोगों का अरबों रुपये डूब गया !

फिर लोगों ने साहस इकट्ठा करके निजी व्यापार धंधा शुरू किया ! जो 2 वर्षों से लॉकडाउन के कारण लगभग बंद है ! यह सारी आर्थिक नीतियां यह बतलाती हैं कि यदि शासक अभावग्रस्त परिवार से निकल कर सत्ता को प्राप्त करता है, तो वह राष्ट्र स्वतः दरिद्र हो जाता है !

क्योंकि अभावग्रस्त जीवन यापन करने वाले व्यक्ति की निगाह में दुनिया का हर व्यक्ति चोर और बेईमान होता है ! जिस को अपने अनुभव विहीन अविकसित सोच से नियंत्रित करने के लिये वह नित्य नये प्रयोग करता रहता है और प्रयोगों का तरीका अव्यवहारिक और तथा विश्व आर्थिक नीति के सापेक्ष न होने के कारण, लगभग सभी प्रयोग असफल हो जाते हैं !

जिस कारण समाज के आम जनमानस का आर्थिक स्तर दिन प्रतिदिन गिरता चला जाता है और व्यक्ति धीरे धीरे व्यक्ति ही नहीं राष्ट्र भी दरिद्र हो जाता है ! इस तरह ऐसे राजा से सदैव बचना चाहिये जो कहता है “न खाएंगे और न खाने दूंगा !!

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योगेश कुमार मिश्र 

ज्योतिषरत्न,इतिहासकार,संवैधानिक शोधकर्ता

एंव अधिवक्ता ( हाईकोर्ट)

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