सनातन धर्म कथायें मिथ अर्थात काल्पनिक झूठ नहीं हैं : Yogesh Mishra

मिथकीय नाटक के रूप में प्रस्तुत की जाने वाली धर्म कथा वास्तव में काल्पनिक झूठ नहीं हैं ! असल में मिथ (Myth) एवं मायथोलोजी (Mythology) मूलतः ग्रीक शब्द है ! जो पौराणिक परिकल्पनात्मक कथाओं का बोध करवाता है ! ग्रीक में ‘मुथोस’ तथा लैटिन का ‘मिथास’ मिथ शब्द की उत्पत्ति का मूल स्त्रोत है ! जिनका अर्थ होता है, कल्पना पर आधारित शब्द, कथा या कहानी !

अंग्रेजी साहित्य एवं कला में मिथ का महत्त्वपूर्ण स्थान है ! मिथ के लियह हिन्दी में आचार्य हजारीप्रसाद द्विवेदी ने ‘मिथक’ शब्द प्रयुक्त किया है ! वैसे ‘मिथ’ के लियह पुराकथा, पुराण कल्पना, देवकथा, आदिम कथा जैसे शब्दों के प्रयोग भी कियह जाते रहे हैं ! किन्तु यह सारे शब्द मिथ की सार्थकता को व्यक्त करने में इतने सफल नहीं हो पाये, जितना “मिथक” शब्द रहा !

‘मिथक’ के संदर्भ में ‘एन साइक्लोपीडिया ब्रिटेनिका’ में कहा गया है कि-
‘‘मिथ (मिथक) आदिम संस्कृति का एक अनिवार्य और महत्त्वपूर्ण उपादान है ! यह विश्वास को अभिव्यक्त, विकसित और संहिताबद्ध करता है ! यह नैतिकता की सुरक्षा करता है ! उसे दृढ़ करता है ! यह शास्त्र-विधि, धार्मिक अनुष्ठान की सक्षमता को प्रमाणित करते हुये मनुष्य के निर्देशन के लिये, व्यावहारिक नियमों का निर्धारण करता है !

इस प्रकार मिथक मानव सभ्यता के लिये अत्यावश्यक उपादान है ! यह केवल निरर्थक कथा ही नहीं अपितु एक ठोस क्रिया व्यापार और सक्रिय बल है ! यह केवल बौद्धिक व्याख्या या कलात्मक बिम्बविधान की प्रस्तुति ही नहीं करता बल्कि यह आदिम विश्वासों और नैतिक विवेक का एक व्यावहारिक दस्तावेज है !’’

इसी प्रकार विचारक और दार्शनिक डॉ. विजयेन्द्र स्नातक के मतानुसार ‘‘आधुनिकता के पूरे आवरण में भी मिथक झाँकता है और अपने अतीत को वर्तमान के लिबास में प्रस्तुत करता है !’’

उपर्युक्त परिभाषाओं से यह स्पष्ट हो जाता है कि मिथक हमारी पौराणिक सांस्कृतिक धरोहर को आधुनिक परिप्रेक्ष्य में व्यक्त करने का सशक्त माध्यम है ! मिथक स्वयं एक सृजन है ! जो परवर्ती सृजन को एक नई दिशा और जीवन देता है !

हमारे यहाँ वैदिक साहित्य, रामायण, महाभारत तथा पुराण आदि मिथकीय ग्रंथ समृद्धि की दृष्टि से विश्व साहित्य में अपना विशिष्ट स्थान रखते हैं ! वास्तव में ‘मिथक’ रचनाकार की कल्पना को मूर्त रूप में प्रगट करने के लिये साधन मात्र होते हैं ! जिनके माध्यम से लेखक प्राचीन आख्यान, देवकथा, पुराणकथा, धर्मगाथा को आधार बनाते हुए उसे अपनी अभिव्यक्ति का विषय बनाते हैं !

मिथक अतीत का उपयोग करके केवल कथा, इतिहास या इतिवृत्त ही नहीं प्रस्तुत करता है बल्कि उसका आधार लेकर समग्र जीवन की एक नई व्याख्या द्वारा आधुनिक रूप में हमारे सामने व्याख्यापित करता है तथा हमें कुछ नये आयाम देकर, समस्त मानव को अपने अतीत से जोड़े रखता है !

जिसे आज का तथाकथित आधुनिक समाज अतीत का मिथ कहता है वह वास्तव में मिथ नहीं बल्कि आज के सत्य की ईमारत के नीव का पत्थर है ! जिस पर सभी सभ्यतायें खड़ी हुयी हैं ! यदि यह नीव के पत्थर झूठ होते तो वर्तमान की ईमारत सत्य कैसे हो सकती है !!

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योगेश कुमार मिश्र 

ज्योतिषरत्न,इतिहासकार,संवैधानिक शोधकर्ता

एंव अधिवक्ता ( हाईकोर्ट)

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