राम और कृष्ण के जीवन परिचय पर कथा वाचकों की कथाओं से इतर यथार्थ घटनाओं की चर्चा करते ही बहुत से हिंदू सोशल मिडिया पर अपना आक्रोश व्यक्त करने लगते हैं ! स्वागत है इन सनातन धर्म प्रेमी हिंदुओं का ! जिन्हें अपने पूर्वजों के विषय में नकारात्मक टिप्पणी बर्दाश्त नहीं ! फिर वह चाहे सत्य ही क्यों न हो !
किंतु मेरा प्रश्न यह है कि यही लोग उस समय क्यों मौन हो जाते हैं ! जब भगवान शिव और विष्णु के समकक्ष साईं बाबा की भगवान से भी बड़ी मूर्ति लाकर मंदिर और घरों में स्थापित कर दी जाती है ! अगर तर्क यह है कि साईं बाबा एक संत हैं ! तो सनातन धर्म के रक्षक संतशिरोमणि आदि गुरु शंकराचार्य की मूर्ति भारत के कितने मंदिरों में स्थापित की गई है या किन-किन सनातन धर्मियों ने उन्हें अपने घरों के मंदिरों में स्थापित किया है ! जिनके त्याग और तपस्या के कारण आज सनातन हिन्दू धर्म जीवित है और हम हिन्दू हैं ! इसका सीधा सा जवाब है किसी ने नहीं !
फिर दूसरा प्रश्न यह आक्रोश उस समय क्यों नहीं प्रकट होता है ! जब आपके घर के निकट ही विधिवत तरीके से माइक लगा कर चंगाई सभायें या धर्मांतरण केंद्र चलाये जाते हैं ! उस समय आपका सारा आक्रोश कहां चला जाता है !
क्या हमारा सारा आक्रोश बस फेसबुक, व्हाट्सएप, टि्वटर या वेबसाइट और यूट्यूब तक ही सीमित रह गया है !
आखिर वह कौन सा भय है ! जिसके कारण हम इलेक्ट्रॉनिक सोशल मीडिया के अतिरिक्त अन्य किसी भी रूप में अपने धर्म के रक्षार्थ अपनी अभिव्यक्ति नहीं करते हैं !
इसका सीधा सा जवाब है कि हर व्यक्ति यह जान रहा है कि सनातन धर्म को नुकसान पहुंचाने वाले लोग शासन सत्ता से संरक्षित हैं और यदि हमने इन सनातन धर्म विरोधी लोगों का सामाजिक विरोध किया तो निश्चित तौर से शासन सत्ता इशारे पर प्रशासन सक्रिय होकर हमें परेशान करेगी ! जिसके अनेकों उदाहरण के रूप में अनेकों साधु संत आज बिना किसी तार्किक कारणों के जेलों में पड़े हुये हैं और उनकी सुनवाई न्यायपालिका तक में नहीं हो रही है ! और न ही नपुंसक हिन्दू समाज उनकी चिन्ता कर रहा है !
यह सब हमें अज्ञात भय से भयभीत और मानसिक नपुंसक बनाने के लिये रचा गया सुनियोजित षड्यंत्र है ! जिससे हम धार्मिक होते हुये भी अपने धर्म के सर्वनाश करने वालों के विरुद्ध अपनी अभिव्यक्ति प्रस्तुत न कर सकें !
एक तरफ तो भगवान श्री कृष्ण का अनुसरण करने वाले कहते हैं कि शरीर नश्वर है और आत्मा अजर अमर है या भगवान श्रीराम ने विश्व प्रतापी रावण का वध बंदर और भालू की मदद से कर दिया ! ऐसा हमारे इतिहास साक्षी हैं और दूसरी तरफ रावण का अंश मात्र भी जो नहीं है ! वह निरंतर रोज व्यवस्थित तरीके से हमारे सनातन धर्म पर कुठाराघात कर रहे हैं और हम राम और कृष्ण की चर्चा करने वाले लोग उनका कोई सामाजिक विरोध नहीं करते हैं ! यही हमारी मानसिक नपुंसकता है !
अब प्रश्न यह है कि यह नपुंसकता क्यों इसका सीधा-सीधा जवाब है कि भगवान के चरित्र को सही तरह न समझ पाने के कारण आज हम अपने सनातन धर्म पर हो रहे हमले को अपनी आंखों के सामने होता देख कर भी कुछ नहीं कर रहे हैं क्योंकि हम भगवान के चरित्र की चर्चा तो करते हैं लेकिन उसका अनुसरण नहीं करना चाहते हैं ! इसलिये सनातन धर्म का नित्य प्रति ह्रास्य से हो रहा है !
आखिर कितने लोग हैं जिनमें यह साहस है कि राम और कृष्ण की तरह अपने सभी सुख-सुविधाओं को त्याग कर और अपने पैतृक स्थान के वैभव को छोड़कर समाज में सनातन धर्म के रक्षार्थ जनसामान्य को अपने से जोड़ने के लिये आदि गुरु शंकराचार्य की तरह निकल पड़े ! आखिरकार आपके सनातन धर्म पर हमला करने वाले भी तो अपना सब कुछ त्याग कर आपके विरुद्ध समाज में कार्य कर रहे हैं !
तो हम सनातन धर्म के रक्षार्थ अपना सब कुछ त्याग कर समाज की एक-एक कड़ी को जोड़ने के लिये कार्य क्यों नहीं कर सकते हैं !
इसके पीछे एक योजनाबद्ध वैचारिक नपुंसकता फैलाने वाला एक चिंतन कथावाचकों के माध्यम से हमारे दिमाग के अंदर डाल दिया गया है कि कलयुग के अंत में “भगवान कल्गी” का अवतार होगा और वह ही सभी विधर्मीयों का नाश करेंगे ! अतः हमें मंदिरों और घरों में ढोलक, मजीरा बजाने के अतिरिक्त और सनातन धर्म के रक्षार्थ कुछ करने की आवश्यकता नहीं है !
आप मात्र व्रत रहिये, भगवान की फोटो और मूर्ति मंदिर और घरों में स्थापित कीजिये ! उनके आगे धूप दीप जलाईये, चालीसा और स्त्रोत का पाठ करिये और अपने भगवान के चरित्र को लेकर बड़ी-बड़ी बातें करके आनंद का अनुभव करिये बस !
यथार्थ में उन भगवानों ने किस त्याग और संघर्ष के द्वारा सनातन धर्म के रक्षार्थ कार्य किये हैं ! उस पर कोई भी चर्चा आज नहीं करना चाहता है और यह कथा वाचक हमारे दिल दिमाग पर इतना हावी हैं कि आज खुले आम व्यास पीठ से अल्लाह अल्लाह मौला मौला कर रहे हैं और हम मुर्ख लोग भी उन्हीं के धुन में झूम रहे हैं ! कोई शराब का महत्व बतला रहा है ! तो कोई अजान का महत्व बतला रहा है !
आज इन्हीं कथा वाचकों द्वारा “धर्म युद्ध” को “कर्मकांड” में बदल कर आज हमें पुरुषार्थी को जगह नपुंसक बना दिया गया है ! जिस वजह से हम धार्मिक तो हैं पर उस धर्म के रक्षार्थ कोई भी सामाजिक कार्य नहीं करना चाहते हैं !
मेरा अनुरोध है कि कथा वाचकों के अवतारवाद की अवधारणा से बाहर निकलिये ! हमारे पूर्वज भगवान ने जिस तरह समाज की एक-एक कड़ी को जोड़कर धर्म के रक्षार्थ कार्य किया है ! उसी तरह आप भी सनातन धर्म के रक्षार्थ कार्य कीजिये ! मात्र चालीसा, स्त्रोत या मंत्र जाप करने भर से सनातन धर्म की रक्षा नहीं होगी !
आज नहीं तो कल हम तत्काल नहीं जागे तो वह लोग जो सनातन धर्म विरोधी हैं ! वह जब सशक्त हो जायेंगे ! फिर जैसे पूर्व में आपका जनेऊ को तोड़ दिया गया था और सिर पर तिलक लगाने वालों का सिर कलम कर दिया गया था ! शास्त्रों की होली जला दी गई थी ! मंदिरों की मूर्तियों को खंडित कर दिया गया था ! ठीक उसी तरह आने वाला भविष्य भी कुछ ऐसा ही होने जा रहा है ! यदि आप पूर्ण पुरुषार्थ के साथ संगठित होकर समाज में सक्रीय नहीं हुये तो !
इसलिए धर्म की ओट में फैलाये जाने वाली नपुंसकता को छोड़िये और सत्य सनातन हिंदू धर्म के रक्षार्थ पूर्ण सक्रिय होइये ! अपने सुखों का त्याग करें और आदि गुरु शंकराचार्य की तरह सनातन धर्म के रक्षार्थ कार्य करें ! यही मेरा अनुरोध है !