जानिये संस्कृत भाषा का अनकहा सत्य | Yogesh Mishra

देव भाषा “संस्कृत” विदेशी भाषा है !

ज्ञान की अनादि देवी कही जाने वाली “माँ सरस्वती” ही एक मात्र ऐसी देवी हैं जिन्होंने ने कोई भी अस्त्र-शस्त्र धारण नहीं किये हैं और न ही कभी कोई युद्ध किया है ! वरना तो सभी देवी-देवताओं ने कोई न कोई अस्त्र-शस्त्र अवश्य रूप से धारण किये हैं ! और मजे की बात यह है कि इन ज्ञान की देवी वर्णन भी वेदों में नहीं मिलता है !

इसका मूल कारण यह है कि वेदों का निर्माण देवलोक अर्थात इंद्र की व्यवस्था के आधीन वर्तमान परिपेक्ष में देखा जाये तो उत्तर यूरोप में हुआ था ! इसीलिये वेदों में मुख्य रूप से अग्नि, इंद्र, सोम, मित्रा-वरुण, सूर्य, अशिवनौ, ईश्वर, द्यावा-पृथ्वी आदि का वर्णन हुआ है ज्ञान की देवी सरस्वती का वर्णन नहीं मिलता है !

क्योंकि माँ सरस्वती को ज्ञान की देवी की कल्पना सरस्वती नदी के निकट वासी सभ्यता में की गई थी ! इसी सभ्यता में विकसित हुई भाषा लिपि भारत की प्राचीनतम ज्ञात भाषा है ! जो प्राचीन “सरस्वती लिपि” (सिन्धु लिपि) से निकली है !

अतः यह पूर्ववर्ती रूप में भारत में सबसे पहले प्रयोग की जाने वाली भाषा थी ! सरस्वती लिपि के प्रचलन से हट जाने के बाद प्राकृतिक भाषा के रूप में लिखने के लिये “ब्रह्मी लिपि” प्रचलन मे आई ! ब्रह्मी लिपि में ज्यादा कुछ ऐसा नहीं लिखा गया जो समय की मार झेल सके और कालांतर में आर्यों ने अपनी संस्कृति भाषा के प्रचार के लिये ब्रह्मी लिपि के ग्रन्थों की खूब नष्ट भी किया था ! फिर भी प्राचीन प्राकृतिक पाली भाषा मे लिखे गये मौर्य सम्राट अशोक के बौद्ध उपदेश आज भी सुरक्षित हैं !

भारत की दो प्राचीन लिपियाँ थी ! (1) ब्राह्मी (बाएँ से लिखी जानेवाली) और (2) खरोष्टी (दाएँ से लिखी जानेवाली) थीं ! इनमें ब्राह्मी भाषा को भारतीय संस्कृत ने मुख्यत: अपनाया ! ब्राह्मी दुनिया की सभी लिपियों की पूर्वज है ! स्वयं ‘संस्कृत’ भी ब्राह्मी का एक अंश है ! एशिया और यूरोप की लगभग सभी लिपियाँ ब्राह्मी लिपि से ही प्रेरित हैं ! यानी यह लिपि ‘संस्कृत’ की उत्पत्ति से पूर्व की लिपि है !

संस्कृत (संस्कृतम्) योरोप उपमहाद्वीप की एक भाषा है ! इसे इन्द्र आधीन होने के कारण “देववाणी” अथवा “सुरभारती” भी कहा जाता है ! यह देवभाषा अर्थात इन्द्र के स्वर्ग लोक की भाषा तत्वत: कृत्रिम या संस्कार द्वारा निर्मित ब्राह्मण पंडितों की भाषा थी ! यह लोकभाषा नहीं थी ! ब्राह्मणों के अति सम्मान और आर्य गुरुकुलों की स्थापना व प्रचार प्रसार के कारण यह जन सामान्य की भाषा बनी ! वैसे भी संस्कृत भाषा ग्रीक, लेटिन, प्रत्नगाथिक आदि भाषाओं के पारिवारिक के ज्यादा निकट है !

संस्कृत भाषा की ध्वनिमाला और ध्वनिक्रम आदि महर्षी पाणिनि के काल अधिक विकसित हुई ! इसी कारण वैदिक काल के मुकाबले महर्षी पाणिनि की संस्कृत वर्णमाला आज भी कदाचित् विश्व की सर्वाधिक वैज्ञानिक एवं शास्त्रीय वर्णमाला है ! कालांतर में इन्द्र के साथ साथ विष्णु ने नारद जैसे घुमन्तू ब्राहमणों के प्रभाव में संस्कृत भाषा का प्रचार प्रसार के समस्त विश्व में किया !

सहस्रों वर्षों तक भारतीय आर्यों के आद्यषुति साहित्य का अध्यनाध्यापन गुरु शिष्यों द्वारा मौखिक परंपरा के रूप में किया जाता था ! जिसे श्रुति और स्मृति कहते थे !

योरोप से विकसित हुई तत्कालीन संस्कृत भाषा में साहित्य की रचना पूरे विश्व में कम से कम छह हजार वर्षों से निरन्तर होती आ रही है ! इस भाषा के कई लाख ग्रन्थों के पठन-पाठन और चिन्तन में सर्वाधिक यथा स्थिती वादी भारतवर्ष के हजारों पुश्तों के करोड़ों सर्वोत्तम मस्तिष्क दिन-रात लगे रहे हैं और आज भी लगे हुए हैं !

पता नहीं कि संसार के किसी देश में इतने काल तक, इतनी दूरी तक व्याप्त, इतने उत्तम मस्तिष्क में विचरण करने वाली कोई भाषा है भी या नहीं !

शायद नहीं ! इसीलिए इस दीर्घ कालखण्ड के बाद भी असंख्य प्राकृतिक तथा मानवीय आपदाओं (वैदेशिक आक्रमणों) को झेलते हुए आज भी ३ करोड़ से अधिक संस्कृत पाण्डुलिपियाँ विद्यमान हैं ! यह संख्या ग्रीक और लैटिन की पाण्डुलिपियों की सम्मिलित संख्या से भी १०० गुना अधिक है ! यह भारत के उर्वरा मष्तिष्क की देन है ! निःसंदेह ही यह सम्पदा छापाखाने के आविष्कार के पहले किसी भी संस्कृति द्वारा सृजित सबसे बड़ी सांस्कृतिक विरासत होगी !

संस्कृत में वैदिक धर्म से संबंधित लगभग सभी धर्मग्रंथ लिखे गये हैं ! बौद्ध धर्म (विशेषकर महायान ) तथा जैन मत के भी कई महत्त्वपूर्ण ग्रंथ संस्कृत में लिखे गये हैं ! आज भी हिंदू धर्म के अधिकतर यज्ञ और पूजा संस्कृत में ही होती हैं !

वैदिक युग के प्रधान देवता जैसे इन्द्र, अग्नि, वरुण को लौकिक संस्कृत में अपेक्षाकृत विशिष्टता प्राप्त नहीं हुई परन्तु ब्रह्मा, विष्णु और शिव इन तीनों को वेदों में केवल गौण स्थान ही प्राप्त था, परवर्ती काल में इन्हें एक महत्त्वपूर्ण स्थान प्राप्त हो गया ! इस काल में कुछ नए देवी देवताओं जैसे गणेश, कुबेर, लक्ष्मी और दुर्गा इत्यादि का भी विकास हुआ है ! वर्तमान में संतोषी माता शनि देवता साईं बाबा आदि भी विकसित हो रहे हैं !

भारतीय उपमहाद्वीप में श्रौत जैसे सख़्त नियमित ध्वनियों वाले मंत्रोच्चारण की हज़ारों वर्षों भारत की पुरानी परम्परा के कारण वैदिक संस्कृत के शब्द और उच्चारण इस क्षेत्र में लिखाई आरम्भ होने से बहुत पहले से सुरक्षित हैं ! वेदों के अध्ययन से देखा गया है कि वैदिक संस्कृत भी सैंकड़ों सालों के काल में बदलती गई ! ऋग्वेद की वैदिक संस्कृत, जिसे ऋग्वैदिक संस्कृत कहा जाता है, सब से प्राचीन संस्कृत भाषा है !

पाणिनि के नियमिकरण के बाद की शास्त्रीय संस्कृत और वैदिक संस्कृत में काफ़ी अंतर है इसलिए वेदों को मूल रूप में पढ़ने के लिए संस्कृत ही सीखना पार्याप्त नहीं बल्कि वैदिक संस्कृत भी सीखनी पढ़ती है !

आज भी दुनिया में लगभग 6000 भाषाएं बोली जाती हैं ! काफी सारी भाषाएं विलुप्त हो चुकी हैं ! लेकिन धर्म की आस्था के कारण भारतीय समाज और भारतीय ब्राह्मणों ने संस्कृत भाषा को जीवन्त बनाये रखा है !

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योगेश कुमार मिश्र 

ज्योतिषरत्न,इतिहासकार,संवैधानिक शोधकर्ता

एंव अधिवक्ता ( हाईकोर्ट)

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