हनुमान जी बंदर नहीं थे | पढ़े पूरा सत्य | Yogesh Mishra

महर्षि गौतम की पत्नी अहल्या के साथ जब इंद्र ने छल किया, तब तक अहल्या को दो संताने प्राप्त हो चुकी थी ! उनमें से एक तो “शतानन्द” माता सीता के पिता राजा जनक के यहां राजपुरोहित घोषित हुये और दूसरी कन्या हनुमान की माता “अंजनी” जिनका विवाह सुमेरु पर स्थित वन नर कबीले के राजा “केशरी” के साथ हुआ था !

माता अंजनी और “केशरी” के संयोग से जो संतान उत्पन्न हुई, उसका कभी कोई नामकरण संस्कार नहीं हुआ ! एक युद्ध के दौरान देवराज इंद्र द्वारा उस बालक के मुख के जबड़े पर वज्र से प्रहार कर देने के कारण उसके जबड़े की चोट से बनावट में थोड़ा प्रभाव आ गया जिस कारण उसका नाम हनुमान हो गया ! हनु का तात्पर्य यहां पर जबड़े से है !

यह वही हनुमान हैं जो लंका के राजा राक्षस राज रावण के सेनापति थे ! जब रावण में वरुण के विरुद्ध महासंग्राम किया था ! तब उस समय रावण की सेना का नेतृत्व हनुमान जी ने ही किया था और वरुण को परस्त कर रावण की आधीनता स्वीकार करवाई थी !

इसके अलावा हनुमान जी रावण के सेनापति होने के साथ-साथ उनके “जमाता” अर्थात “दमाद” भी थे ! क्योंकि शूपणखा की बेटी “अनंग कुसुम” के साथ हनुमान जी का विवाह हुआ था ! जिससे “मकरध्वज” नाम की संतान भी पैदा हुयी थी !

यह वही मकरध्वज जिसका रूप, रंग, बनावट, शक्ति सब कुछ हनुमान जैसी ही थी और अहिरावण जब राम और लक्ष्मण का युद्ध के दौरान हरण करके ले गया था और हनुमान उनको छुड़ाने गए थे तो उस समय उनका अपने ही पुत्र मकरध्वज के साथ भयंकर महासंग्राम हुआ था !

मकरध्वज के पराक्रम और युद्ध कौशल से प्रसन्न होकर जब हनुमान ने उसका परिचय पूछा तब उसने बतलाया कि वह किसी महा प्रतापी हनुमान नामक व्यक्ति का पुत्र है क्योंकि उसके पिता उसकी मां को गर्भावस्था में ही छोड़कर चले गए थे ! अतः उसने कभी जीवन में अपने पिता को नहीं देखा था !

यहां यह भी बतला देना आवश्यक है कि लंका के राजा रावण की तीन पत्नी थी तीसरी पत्नी श्रीप्रभा से रावण के तीन पुत्र हुये थे जिनका नाम प्रहस्था, नरांतका और देवताका था ! उनमें सबसे छोटी पत्नी श्रीप्रभा महाराजा बाली की छोटी बहन थी !

बाली के छोटे भाई सुग्रीव हनुमान जी के परम मित्र थे और जब बाली और सुग्रीव के मध्य विवाद हुआ तो हनुमान जी ने रावण से इस विवाद में दखल करने का आग्रह किया किंतु कूटनीति प्रधान महाराजनीतिज्ञ रावण ने यह निर्णय लिया कि यह दोनों भाइयों के आपसी पारिवारिक विवाद है ! अतः इसमें उसे हस्तक्षेप नहीं करना चाहिये !

वैसे भी उस समय राजा बाली का प्रभाव और व्यवसाय अंतरराष्ट्रीय स्तर पर ख्याति प्राप्त था ! रावण युद्ध में बाली से परास्त हो चुका था ! अतः हनुमान के आग्रह पर रावण ने दोबारा सुग्रीव के विषय पर बाली से बात करना उचित नहीं समझा ! जिससे नाराज होकर हनुमान लंका छोड़कर अपने प्रिय मित्र सुग्रीव के पास किष्किंधा पर्वत आ गये !

अब पूरे विषय को यदि ध्यान से देखा जाए तो महर्षि गौतम और उनकी पत्नी अहिल्या मनुष्य थे ! अतः उनसे जो संतति प्राप्त हुई वह भी स्वाभाविक रूप से मनुष्य ही होगी और मनुष्य का विवाह मनुष्य से ही होगा ! किसी बंदर या भालू से नहीं होगा ! अतः अहिल्या की पुत्री हनुमान की माता अंजनी का विवाह वन नर प्रजाति के मानव कबीले में हुआ था ! न कि किसी बन्दर या भालू से नहीं ! वन नर प्रजाति के मानव और मानव कन्या माता अंजनी के संयोग से जो संतान प्राप्त होगी वह भी मनुष्य ही होगी !

दूसरा राक्षस राज कहे जाने वाले रावण ने क्यों की वैष्णव परंपरा की भोग विलासी यक्ष संस्कृत के विरुद्ध त्याग और तपस्या की “रक्ष संस्कृति” की शुरुआत की थी ! इसलिए रक्ष संस्कृति का जनक और पोषक होने के नाते उसे “राक्षस” कहा गया ! जोकि वह स्वयं सारस्वत ब्राह्मण पुलस्त्य ऋषि का पौत्र और विश्रवा ऋषि का पुत्र था !

रावण एक परम शिव भक्त, उद्भट राजनीतिज्ञ, महापराक्रमी योद्धा, अत्यन्त बलशाली, शास्त्रों का प्रखर ज्ञाता, प्रकान्ड विद्वान पंडित एवं महाज्ञानी था और उसकी बहन शूपणखा का विवाह कालका के पुत्र दानवराज विद्युविह्वा के साथ हुआ था ! शूपणखा भी मनुष्य और विद्युविह्वा भी मनुष्य ही था तो उनसे उत्पन्न होने वाली संतान भी मनुष्य ही थी जो कि हनुमान की पत्नी शूपणखा की बेटी “अनंग कुसुम” थी !

अतः इस तरह यह स्वयं में सिद्ध हो जाता है की हनुमान बंदर नहीं बल्कि वन नर प्रजाति के अर्थात वनों में रहने वाले मनुष्य थे ! इनको बंदर मानना नितांत गलत है !

इस संदर्भ में कुछ शास्त्र के उदाहरण भी मेरे द्वारा नीचे दिए जा रहे हैं इनका अवलोकन कर आप स्वयं निर्णय लीजिए के वेद पुराण उपनिषद दर्शन राजनीति कूटनीति युद्ध नीति का जानकार महान साधक और तपस्वी क्या कोई चप्पल बाहर हो सकता है यह सारी चीजें गुण एक श्रेष्ठ और बुद्धिमान मनुष्य के अंदर ही हो सकते हैं

किष्किन्धा कांड (3/28-32) में जब श्री रामचंद्र जी महाराज की पहली बार ऋष्यमूक पर्वत पर हनुमान से भेंट हुई तब दोनों में परस्पर बातचीत के पश्चात रामचंद्र जी लक्ष्मण से बोले

न अन् ऋग्वेद विनीतस्य न अ यजुर्वेद धारिणः |

न अ-साम वेद विदुषः शक्यम् एवम् विभाषितुम् || 4-3-28

“ऋग्वेद के अध्ययन से अनभिज्ञ और यजुर्वेद का जिसको बोध नहीं हैं तथा जिसने सामवेद का अध्ययन नहीं किया है, वह व्यक्ति इस प्रकार परिष्कृत बातें नहीं कर सकता ! निश्चय ही इन्होनें सम्पूर्ण व्याकरण का अनेक बार अभ्यास किया हैं, क्यूंकि इतने समय तक बोलने में इन्होनें किसी भी अशुद्ध शब्द का उच्चारण नहीं किया हैं ! संस्कार संपन्न, शास्त्रीय पद्यति से उच्चारण की हुई इनकी वाणी ह्रदय को हर्षित कर देती हैं” !

सुंदर कांड (30/18,20) में जब हनुमान अशोक वाटिका में राक्षसियों के बीच में बैठी हुई सीता जी को अपना परिचय देने से पहले हनुमान जी सोचते हैं

“यदि द्विजाति (ब्राह्मण-क्षत्रिय-वैश्य) के समान परिमार्जित संस्कृत भाषा का प्रयोग करूँगा तो सीता मुझे रावण समझकर भय से संत्रस्त हो जाएगी ! मेरे इस वनवासी रूप को देखकर तथा नागरिक संस्कृत को सुनकर पहले ही राक्षसों से डरी हुई यह सीता और भयभीत हो जाएगी ! मुझको कामरूपी रावण समझकर भयातुर विशालाक्षी सीता कोलाहल आरंभ कर देगी ! इसलिए मैं सामान्य नागरिक के समान परिमार्जित भाषा का प्रयोग करूँगा !”

इस प्रमाणों से यह सिद्ध होता हैं की हनुमान जी चारों वेद ,व्याकरण और संस्कृत सहित अनेक भाषायों के ज्ञाता भी थे !

हनुमान जी के अतिरिक्त अन्य वन नर जैसे की बालि पुत्र अंगद का भी वर्णन वाल्मीकि रामायण में संसार के श्रेष्ठ महापुरुष के रूप में किष्किन्धा कांड 54/2 में हुआ हैं

हनुमान बालि पुत्र अंगद को अष्टांग बुद्धि से सम्पन्न, चार प्रकार के बल से युक्त और राजनीति के चौदह गुणों से युक्त मानते थे !

बुद्धि के यह आठ अंग हैं- सुनने की इच्छा, सुनना, सुनकर धारण करना, ऊहापोह करना, अर्थ या तात्पर्य को ठीक ठीक समझना, विज्ञान व तत्वज्ञान !

चार प्रकार के बल हैं- साम , दाम, दंड और भेद व राजनीति के चौदह गुण हैं- देशकाल का ज्ञान, दृढ़ता, कष्टसहिष्णुता, सर्वविज्ञानता, दक्षता, उत्साह, मंत्रगुप्ति, एकवाक्यता, शूरता, भक्तिज्ञान, कृतज्ञता, शरणागत वत्सलता, अधर्म के प्रति क्रोध और गंभीरता है ! भला इतने गुणों से सुशोभित अंगद बन्दर कहाँ से हो सकता हैं?

अंगद की माता तारा के विषय में मरते समय किष्किन्धा कांड 16/12 में बालि ने कहा था की “सुषेन (रावण का राजवैध ) की पुत्री यह तारा सूक्षम विषयों के निर्णय करने तथा नाना प्रकार के उत्पातों के चिन्हों को समझने में सर्वथा निपुण हैं ! जिस कार्य को यह अच्छा बताए, उसे नि:संग होकर करना ! तारा की किसी सम्मति का परिणाम अन्यथा नहीं होता !”

अहिल्या द्रौपदी कुन्ती तारा मन्दोदरी तथा !

पंचकन्या स्मरणित्यं महापातक नाशक !!

(अर्थात् अहिल्या, द्रौपदी, कुन्ती, तारा तथा मन्दोदरी, इन पाँच कन्याओं यहाँ ( तारा को कन्या कहा गया है न कि बंदरिया ) का प्रतिदिन स्मरण करने से सारे पाप धुल जाते हैं !

किष्किन्धा कांड (25/30) में बालि के अंतिम संस्कार के समय सुग्रीव ने आज्ञा दी – मेरे ज्येष्ठ बन्धु आर्य का अंतिम संस्कार राजकीय नियन के अनुसार शास्त्र अनुकूल किया जाये !

किष्किन्धा कांड (26/10) में सुग्रीव का राजतिलक हवन और मन्त्रादि के साथ विद्वानों ने किया !

हनुमान चालीसा के प्रारंभ में चौथे/पांचवें वाक्य में लिखा है, कि

” काँधे मूंज जनेऊ साजे, हाथ बज्र और धजा बिराजे ”

अर्थात श्री हनुमान जी के कंधे पर मूंज की जनेऊ अर्थात यज्ञोपवीत सुशोभित होता था. उनके एक हाथ में वज्र (गदा) और दूसरे हाथ में ध्वज रहता था !

अब सोचिये हनुमान चालीसा बहुत लोग पढ़ते हैं. फिर भी इस बात पर ध्यान नहीं देते, कि क्या बन्दर के कंधे पर मूंज की जनेऊ हो सकती है. क्या बन्दर के एक हाथ में गदा और दूसरे हाथ में ध्वज होता है. यदि नहीं, तो श्री हनुमान जी बन्दर कैसे हुए ?

इसके अलावा “अष्ट सिद्धि नव निधि के दाता, अस वर दीन जानकी माता” ! चौपाई के अनुसार हनुमान जी स्वयं अष्ट सिद्धियां और नौ निधियों के जानकार थे तथा इनकी आराधना से व्यक्ति को भी अष्ट सिद्धियां और नौ निधियों की प्राप्ति होती है ! क्या यह किसी बन्दर की आराधना से प्राप्त हो सकता है !

अगर हनुमान, अंगद, सुग्रीव आदि किसी भी वन नर योद्धा के पूंछ होती तो इतने बड़े महासंग्राम में रावण का कोई योद्धा इनमें से किसी की पूंछ पकड़कर उसे उठाकर पटक देता या किसी भी वन नर की पूंछ क्षतिग्रस्त कर देता ! किंतु इस तरह का कोई भी दृष्टांत पूरे के पूरे महायुद्ध में कहीं नहीं मिलता है ! इससे यह सिद्ध होता है कि वन नर सामान्य मनुष्य की तरह वन में रहने वाले व्यक्ति थे न कि बन्दर !

रही लंका में पूछ द्वारा आग लगाने की बात तो जब अशोक वाटिका में रावण के पुत्र प्रहस्त ने ब्रह्म पाश (एक विशेष तरह का रस्सियों से बना हुआ महा जाल ) में हनुमान को बांध लिया और रावण के सामने पेश किया तो हनुमान और रावण के मध्य के विवाद में रावण द्वारा हनुमान का वध किये जाने का आदेश दिया !

तब रावण की आज्ञा सुनकर वहाँ उपस्थित विभीषण ने कहा, राक्षसराज ! आप धर्म के ज्ञाता और राजधर्म के विशेषज्ञ हैं ! दूत के वध से आपके पाण्डित्य पर कलंक लग जायेगा ! अतः उचित-अनुचित का विचार करके दूत के योग्य किसी अन्य दण्ड का विधान कीजिये !

विभीषण के वचन सुनकर रावण ने कहा, शत्रुसूदन ! पापियों का वध करने में पाप नहीं है ! इस वन नर ने वाटिका का विध्वंस तथा हमारे सैनिकों और प्रजा जन राक्षसों का वध करके पाप किया है ! अतः मैं अवश्य ही इसका वध करूँगा !

रावण के वचन सुनकर उसके भाई विभीषण ने विनीत स्वर में कहा, हे लंकापति ! जब यह वन नर स्वयं को दूत बताता है तो नीति तथा धर्म के अनुसार इसका वध करना अनुचित होगा क्योंकि दूत दूसरों का दिया हुआ सन्देश सुनाता है ! वह जो कुछ कहता है, वह उसकी अपनी बात नहीं होती, इसलिये वह अवध्य होता है !

तब रावण द्वारा दण्ड को कम करते हुये उनके ब्रह्म पाश जिसमें हनुमान जी बंधे थे उसमें आज लगा देने का आदेश दिया ! तब ब्रह्म पाश से लटकती हुई रस्सी में ज्वलनशील पदार्थ डालकर आग लगा दिया गया ! जिससे हनुमान जल कर दण्डित भी हो जायें और मरें भी नहीं !

उस समय जब उक्त ब्रह्म पाश से लटकती हुई रस्सी में ज्वलनशील पदार्थ डाल कर आग लगाई गई तो हनुमान अपनी रक्षा के लिये वहां से तेजी से भागे और उस समय वह ब्रह्म पाश की रस्सी ऐसे लग रही थी कि जैसे वह हनुमान की पूंछ हो और उसमें जो ज्वलनशील पदार्थ थे, उससे राज दरबार के परदों और ज्वलनशील जगहों पर आग लग गई जिससे रावण का दरबार जलकर नष्ट हो गया !

किसी घटना को कवियों और कथा वाचक ने रोचक और आकर्षक बनाने के लिए हनुमान जी के पूंछ का वर्णन किया ! जिस कारण लोगों ने हनुमान जी को वन नर के स्थान पर बंदर समझ लिया ! जो कि किसी भी दृष्टिकोण से उचित नहीं है !

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योगेश कुमार मिश्र 

ज्योतिषरत्न,इतिहासकार,संवैधानिक शोधकर्ता

एंव अधिवक्ता ( हाईकोर्ट)

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