शैव कृषि पध्यति और वैष्णव कृषि पध्यति में अंतर जानिए !

कृषि दो तरह की होती है ! एक स्वाभाविक कृषि, दूसरा जिसे मनुष्य उत्पन्न करता है ! जब कृषि स्वाभाविक रूप से होती है अर्थात हवा, जल, वर्षा आदि के प्रवाह से या जीव, जंतुओं के कारण जो वृक्ष स्वाभाविक रूप से उत्पन्न हो जाते हैं, उन्हें शैव कृषि कहते हैं !

अर्थात जो प्रकृति की सामान्य व्यवस्था के तहत रोपित होते हैं ! उस स्थिति में प्रकृति अपने संतुलन के अनुरूप स्वाभाविक रूप से जल, मिट्टी, जलवायु आदि के प्रभाव से नित्य नये वृक्षों का निर्माण करती है जो प्रक्रिया आपको स्वाभाविक रूप से जंगलों में दिखाई देती है इसे शास्त्रों में शैव कृषि पद्धति कहा गया है !

इसके अलावा जब मनुष्य अपने रुचि के अनुरूप प्राकृतिक रूप से उत्पन्न पेड़-पौधों को हटाकर जमीन को अपनी इच्छा अनुरूप कृषि योग्य बनाकर उसमें अपनी आवश्यकता के अनुसार विभिन्न तरह के बीजों का आरोपण करता है और विभिन्न तरह की फसल या पेड़ लगाता है तो उस स्थिति में जब प्रकृति की स्वाभाविक व्यवस्था से अलग हटकर मनुष्य द्वारा जो अपनी इच्छा के अनुरूप कृषि की जाती है उसे वैष्णव कृषि पद्धति कहते हैं !

अर्थात जिस तरह जंगलों में पेड़ पौधे स्वत: उत्पन्न होते हैं, स्वत: विकसित होते हैं और उनमें स्वत: फल आदि निकलते हैं ! उस पूरी की पूरी प्रक्रिया को शैव कृषि पद्धति कहते हैं और जब मनुष्य के विशेष प्रयास द्वारा किसी भूमि को कृषि योग्य बनाकर मनुष्य की इच्छा के अनुरूप उसमें पेड़ या फसल लगाकर जो कृषि की जाती है ! उसे वैष्णव कृषि पद्धति कहते हैं !

अर्थात वैष्णव कृषि पद्धति में सर्वप्रथम भूमि प्रक्षालन होता है ! जिसमें भूमि को कृषियोग्य करने के लिये भूमि के ऊपर प्राकृतिक रूप से उत्पन्न जो भी पेड़ पौधे होते हैं, उनको हटाकर भूमि को शुद्ध किया जाता है ! इसके बाद भूमि शोधन होता है अर्थात भूमि को कृषि योग्य बनाने के लिये भूमि में क्या कमी है वह कमी ठीक की जाती है या भूमि यदि विषाक्त है, तो उस भूमि से विष तत्व को समाप्त करने के लिये अनेक पद्धतियां बतलाई गई हैं ! जिसके द्वारा भूमि शोधन होता है !

तदुपरांत भूमि अनुकरण अर्थात भूमि को कृषि योग्य बनाने के बाद उसमें रूचि अनुसार बीज बोया जाता है ! इसके उपरांत भूमि सेवन अर्थात फसल को तैयार होने के दौरान उस भूमि की जो सेवा की जाती है, वह भूमि सेवन कहलाता है ! जैसे मां के गर्भ में बच्चे के होने पर उस मां का विशेष ध्यान रखा जाता है जो भविष्य में बच्चे को जन्म देने वाली है, ठीक इसी तरह भूमि सेवन में उस भूमि का विशेष ध्यान रखा जाता है, जिसमें भविष्य में फसल तैयार होने वाली है ! भूमि सेवन की अवधि पूरा होने पर एवं फसल के तैयार होने पर फिर उस फसल को काट लिया जाता है और भूमि को अगली फसल तक स्वाभाविक रूप से विश्राम करने दिया जाता है !

जिससे अगली फसल उस भूमि से अच्छी प्राप्त की जा सके ! यह एक निश्चित अंतराल होता है इसका अनुपालन करने से भूमि का दोहन नहीं होता है ! जैसे एक मां द्वारा एक शिशु को जन्म देने के बाद अगला गर्भधारण एक निश्चित अंतराल के बाद किया जाता है जिससे भविष्य में भी स्वस्थ शिशु को प्राप्त किया जा सके ! यह पूरी की पूरी पद्धति वैष्णो कृषि पद्धति कहलाती है !

शैव कृषि पद्धति पूरी तरह से स्वाभाविक एवं प्रकृति की इच्छा के अनुरूप होती है और उस स्थिति में प्रकृति का संतुलन कभी भी प्रभावित नहीं होता किंतु वैष्णो कृषि पद्धति में मनुष्य अपनी इच्छा के अनुरूप कृषि करता है और उस स्थिती में अधिकतम लाभ प्राप्त करने की इच्छा से उसमें तरह-तरह के रसायन और कीटनाशक आदि का प्रयोग कर रहा है ! जिससे निरंतर भूमि और पर्यावरण दोनों को नुकसान हो रहा है !

इन दोनों के मध्य एक और रास्ता वैष्णो लोगों ने निकाला था ! वह लोग प्रकृति आधारित कीटनाशक और खाद का प्रयोग करके वैष्णव पद्धति से कृषि करते थे जिसे वर्तमान समय में रसायन रहित, जैविक कृषि कहा जाता है !

भारत एक कृषि प्रधान देश रहा है वैष्णो के भारत आगमन के पूर्व भारत में शैव पद्धति से ही कृषि होती थी लेकिन वैष्णव के भारत आगमन के बाद जब गुरुकुलों का प्रभाव तेजी से समाज में बढ़ने लगा तो उन गुरुकुलों से प्रशिक्षित छात्रों ने वैष्णो कृषि पद्धति को अपनाया ! कृषि पंचांग विकसित किये ! जिसमें सूर्य कृषि पद्धति और चंद्र कृषि पद्धति प्रमुख थी ! इसके अलावा भी कालांतर में अनेकों तरह की कृषि पद्धतियों को विकास किया गया लेकिन सूर्य पद्धति और चंद्र पद्धति का महत्व वैष्णव कृषि पद्धति में सर्वाधिक रहा है !

आज हम लोगों ने शैव और वैष्णव दोनों कृषि पद्धतियों का परित्याग कर पैशाची कृषि पद्धति को अपनाये हुये हैं, उसी का परिणाम है कि अब पर्यावरण में जहर है और खाद्यान्न व्यक्ति को पोषित नहीं करता बल्कि बीमार करता है ! इसलिये हमें पुनः आध्यात्मिक कृषि पद्धति को बढ़ना पड़ेगा !

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योगेश कुमार मिश्र 

ज्योतिषरत्न,इतिहासकार,संवैधानिक शोधकर्ता

एंव अधिवक्ता ( हाईकोर्ट)

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