गीता के बारे में सबसे विचारणीय बात यह है कि वर्तमान में ‘श्रीमद्भगवद्गीता’ की जो प्रचलित प्रतियां हैं, उसमें गीता के केवल 700 श्लोक हैं ! जबकि महाभारत में स्वयं 745 श्लोकी गीता का वर्णन करते हुए एक स्थान पर कहा है-
षट्शतानि स्विशानि श्लोकानां प्राह केशव: !
अर्जुनः सप्त पञ्चाशत् षष्ठी तु संजय !!
धृतराष्ट्र: श्लोक में गीता रानी मुच्यते !! -भीष्मपर्व, अध्याय 43, श्लोक 4-5
अर्थात् गीता में 620 श्लोक भगवान श्रीकृष्ण के कहे हैं, 57 श्लोक अर्जुन ने कहे हैं, 67 श्लोक संजय के कहे हैं और 1 श्लोक धृतराष्ट्र का कहा है ! इस प्रकार 620+57+67+1 = कुल 745 श्लोक गीता में होने चाहिए !
लेकिन प्रचलित गीता पाठ में 45 श्लोक कम है ! एक ओर तो स्वयं महाभारत में गीता के मूल श्लोकों की संख्या 745 बतायी गयी है, लेकिन स्वयं प्रचलित महाभारत में भी गीता के 700 श्लोक ही उपलब्ध हैं !
कुछ विद्वानों का मत है कि श्री आद्य शंकराचार्य जी के समय में लगभग 2500 वर्ष पूर्व गीता एवं महाभारत में भी 745 श्लोक उपलब्ध थे, लेकिन बौद्धकाल में (क्योंकि 45 श्लोक ऐसे थे जिससे बौद्ध दर्शन कुछ मिलता था – ताकि शास्त्रार्थ में बौद्धों को पराजित करने में सुगमता हो) यह 45 श्लोक मूल ग्रंथ से निकाल दिये गये !
लेकिन अन्यत्र जहाँ कि महाभारत में गीता के माहात्म्य का वर्णन है, गीता के संबंध में प्रकाश डालने वाला मूलरूप में ही रह गया, इस कथन में कहाँ तक सत्य है ? यह अनुसंधान का विषय है ! श्री आद्य शंकराचार्य जी के समय में गीता अपने मूल रूप 745 श्लोक में थी ! इसकी प्रमाण दिया जाता है कि आद्य शंकराचार्य जी का जो “माता भाय टीका” है, वह 700 श्लोक की प्रचलित गीता से मेल नहीं खाती है ! ऐसा अनुभव होता है कि यहीं से श्लोकों का क्रम टूटा है !
लेकिन इतिहासकार श्री अलबरूनी ने भी आज से लगभग 1000 वर्ष पूर्व गीता का उल्लेख अपनी भारतीय इतिहास की प्रामाणिक पुस्तक “अल इंडिया” में किया है ! जिसमें भी गीता के 745 श्लोक बतलाये हैं ! यह पुस्तक मूल अरबी में है, जिसका अंग्रेजी अनुवाद 1912 में प्रकाशित हुआ था !
सन् 1912 में जर्मनी से भी 745 श्लोकी एक गीता छप चुकी है ! इसी प्रकार पूना से भी 745 श्लोकी गीता की दो प्रतियाँ छपी हैं ! इण्डिया कौंसिल लाइब्रेरी में भी 745 श्लोकी गीता की प्रति बतलायी जाती है ! अतः सिद्ध होता है कि आज से एक हजार वर्ष पूर्व गीता के 745 श्लोक विद्यमान थे ! यह प्रमाणित है !
मुस्लिम साम्राज्य काल में भी भारतीय ग्रन्थों-उपनिषदों, गीता आदि का अरबी तथा फारसी भाषाओं में अनुवाद हुआ था ! गीता के फारसी अनुवाद की एक प्रति के विषय में कहा जाता है कि बनारस में फारसी के सुप्रसिद्ध विद्वान् एवं बनारस हिन्दू विश्वविद्यालय में फारसी के प्राध्यापक पं0 महेश प्रसाद जी के “मालती सदन पुस्तकालय” में 745 श्लोक की गीता सुरक्षित है ! जिसमें यह लिखा है कि बादशाह की इजाजत से 745 श्लोक की गीता का अनुवाद “अबुल फजल” ने किया था !
लंदन की ‘इंडिया कौंसिल लाइब्रेरी’ में भी (पुस्तक संख्या 19491950 गीता के 745 श्लोक वाली प्रति का फारसी अनुवाद रखा है ! ब्रह्मचारी स्व0 हरीश पंचोली के कथनानुसार महाराजा बनारस के पुस्तकालय में भी (ग्रंथ संख्या 165, 126) शाह अली खस्तगीर द्वारा रचित 745 श्लोक गीता का फारसी अनुवाद है !
आचार्य अभिनव गुप्त कृत ‘गीतार्थ संग्रह’ नामक टीका से युक्त काश्मीरी भाषा में गीता की एक प्रति उपलब्ध है जो रोमन लिपि में (सन 1912) जर्मनी में छप चुकी है ! श्री आनन्द गिरिकृत श्रीधरी टीका समेत एक गीता745 श्लोक वाली सात दशक पूर्व कोलकाता में छपी है !
श्री भंडारकर ओरिएंटल रिसर्च इंस्टीट्यूट पूना ने भी उपर्युक्त काश्मीरी प्रति के आधार पर गीता प्रकाशित की है ! जो इस काश्मीरी प्रति से मिलती हुई है ! श्री राम कवि कृत ‘सर्वतोभद्रा’ नामक टीका की गीता 745 श्लोक वाली सन् 1939 ई0 में आनंदाश्रम प्रेस पूना में भी छपी है !
श्री भुवनेश्वरी पीठ गोंडल, सौराष्ट्र के आचार्य श्री चरणतीर्थ महाराज ने चंद्रघंटा नामक संस्कृत टीका के साथ 745 श्लोक की एक गीता प्रकाशित की है ! जिसके अनेकों संस्करण बिक चुके हैं ! इसकी प्रति आचार्य जी के पुस्तकालय में आज भी हस्तलिखित प्रति उपलब्ध है ! उक्त हस्तलिखित प्रति आचार्य संवत् 1665 (अर्थात 1609 ई0) में लिखी हुई है ! इस दिशा में आचार्य चरणतीर्थ जी का श्रम सराहनीय है !
तत्कालीन हिन्दू विश्व विद्यालय के प्रिंसिपल श्री के0 वी रंगा स्वामी आयंगर महोदय ने हिन्दु के 15 अगस्त 1937 के अंक में छपाकर गीता के 745 श्लोकी प्रतियों का अस्तित्व सिद्ध किया था !