883 वर्षों से संरक्षित है स्वामी रामानुजाचार्य का शरीर : Yogesh Mishra

वैष्णव परंपरा के महान दार्शनिक और विशिष्ट द्वेत के प्रतिपादक “रामानुजाचार्य” का मूल शरीर तिरुचरापल्ली के श्रीरंगनाथ स्वामी मंदिर मे संभाल कर रखा गया है ! यह शरीर करीब 1137 वर्ष पूर्व का जिसे आज तक सँजो का रखा गया है !

आश्चर्य की बात तो ये है की इसे सहेज कर रखने के लिए किसी विशेष प्रकार के रासायनिक लेप का नहीं बल्कि चन्दन और केसर के मिश्रण के लेप का ही इस्तेमाल किया गया है ! जिसे प्रत्येक 2 वर्षो के बाद बदला जाता है ! मंदिर मे उनकी मूर्ति के पीछे ही उनका मूल शरीर रखा गया है जो 24 घंटे उनके दर्शन के लिए खुला रहता है !

जहां मम्मियों को सुरक्षित रखने के लिए रासायनिक लेपो का इस्तेमाल किया जाता था और वो निद्रा अवस्था मे होती थी वहीं रामानुजाचार्य का शरीर बैठे हुए उपदेशात्मक मुद्रा मे है ! जो खुद अपने आप मे आश्चर्य की बात है ! उतनी ही आश्चर्य की बात है की इस बात का का कोई प्रचार भी नहीं किया गया !

रामानुजाचार्य ( जन्म: 1017 – मृत्यु: 113) विशिष्टाद्वैत वेदान्त के प्रवर्तक थे ! वह ऐसे वैष्णव सन्त थे जिनका भक्ति परम्परा पर बहुत गहरा प्रभाव रहा !

वैष्णव आचार्यों में प्रमुख रामानुजाचार्य की शिष्य परम्परा में ही रामानन्द हुए जिनके शिष्य कबीर और सूरदास थे ! रामानुज ने वेदान्त दर्शन पर आधारित अपना नया दर्शन विशिष्ट अद्वैत वेदान्त लिखा था !

रामानुजाचार्य ने वेदान्त के अलावा सातवीं-दसवीं शताब्दी के रहस्यवादी एवं भक्तिमार्गी आलवार सन्तों के भक्ति-दर्शन तथा दक्षिण के पंचरात्र परम्परा को अपने विचारों का आधार बनाया !

रामानुजाचार्य के दर्शन में सत्ता या परमसत् के सम्बन्ध में तीन स्तर माने गये हैं – ब्रह्म अर्थात् ईश्वर, चित् अर्थात् आत्म तत्व और अचित् अर्थात् प्रकृति तत्व !

वस्तुतः ये चित् अर्थात् आत्म तत्त्व तथा अचित् अर्थात् प्रकृति तत्त्व ब्रह्म या ईश्वर से पृथक नहीं है बल्कि ये विशिष्ट रूप से ब्रह्म के ही दो स्वरूप हैं एवं ब्रह्म या ईश्वर पर ही आधारित हैं ! वस्तुत: यही रामनुजाचार्य का विशिष्टाद्वैत का सिद्धान्त है !

उन्होनें कई मन्दिरों का नवनिर्माण कराया ! इनके समय में दक्षिण भारत में वैष्णव सम्प्रदाय की वृद्धि हुई ! इसी समय में उन्होंने सात ग्रन्थों की रचना की !

श्रीभाष्यम् – भगवान् वारदायण व्यास प्रणीत ब्रह्म सूत्रों पर सर्व प्रामणिक व्याख्या ग्रन्थ है ! यहाँ सभी मतों को खण्डन करते हुए विशिष्टाद्वैत की स्थापना की !

गीता भाष्यम् – इसमें भगवद् गीता की व्याख्या की गई है ! जिसमें श्रीकृष्ण की हृलादिकी व्याख्या है !
वेदार्थ संग्रह: – इसमें श्रुति सम्मत द्वैत, अद्वैत मतों का खण्डन करते हुए उपनिषदों की वास्तविक अर्थ प्रतिपादित किया गया है !
वेदान्त द्वीप – यह श्रीभाष्य का लघुरूप है ! अत्यन्त सरल है !
वेदान्तसार – श्रीभाष्य का लघुतम रूप है ! विशिष्टाद्वैत के लिए प्रारम्भिक ग्रन्थ है !
गद्यत्रय – इसमें शरणागतिगद्य वैकुण्ठ ग्रन्थ और श्रीरंगगद्य का समावेश है !
आराधना ग्रन्थ – इसमें भगवत् आराधना के विषय में प्रतिपादन है !

इनका सबसे प्रसिद्ध ग्रन्थ श्रीभाष्य है ! सरस्वती देवी ने कश्मीर के शारदापीठ में इनके द्वारा “कप्यासं पुण्डरीकाक्षम्” की व्याख्या सुरकर भाष्यकार की उपाधि से सम्मानित किया था ! तभी से इन्हें भाष्यकार रामानुजाचार्य के रूप में जाना जाता है !

करीब एक सौ बीस वर्ष की आयु पूर्ण करने के बाद वैष्णव धर्म विशिष्टाद्वैत दर्शन के प्रचार प्रसार के बाद अपनी विभूतियों को समेटते हुए वैकुण्ठ धाम की यात्रा की ! अपने ही भक्तों से अपने अपराध क्षमा करने की याचना की ! कपालभेदन करते हुए माघ शुक्ल दशमी मंगलवार 1137 ई0 में वैकुण्ठ पधार गये !

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योगेश कुमार मिश्र 

ज्योतिषरत्न,इतिहासकार,संवैधानिक शोधकर्ता

एंव अधिवक्ता ( हाईकोर्ट)

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