अपने को विकसित देश का विकसित नागरिक कहने वाले व्यक्तियों से मैं यह पूछना चाहता हूं कि विकसित मनुष्य की पहचान क्या है !
सनातन धर्म के अनुसार जिस मनुष्य में दया, प्रेम, करुणा, स्नेह, सम दृष्टि, सहयोग, सहकारिता, त्याग आदि लक्षण हो ! वह मनुष्य ही विकसित मनुष्य गिना जाता है !
मनु ने विकसित मनुष्य के धर्म के दस लक्षण गिनाये हैं !
धृति: क्षमा दमोऽस्तेयं शौचमिन्द्रियनिग्रह: !
धीर्विद्या सत्यमक्रोधो दशकं धर्मलक्षणम् ! ! (मनुस्मृति 6.91)
अर्थात – धृति (धैर्य ), क्षमा (अपना अपकार करने वाले का भी उपकार करना ), दम (हमेशा संयम से धर्म में लगे रहना ), अस्तेय (चोरी न करना ), शौच ( भीतर और बाहर की पवित्रता ), इन्द्रिय निग्रह (इन्द्रियों को हमेशा धर्माचरण में लगाना ), धी ( सत्कर्मों से बुद्धि को बढ़ाना ), विद्या (यथार्थ ज्ञान लेना ). सत्यम ( हमेशा सत्य का आचरण करना ) और अक्रोध ( क्रोध को छोड़कर हमेशा शांत रहना ) !
यदि किसी भी देश के मनुष्य के समूह में धर्म के यह 10 लक्षण पूर्णतया विकसित हो गये हैं तो उस देश या मनुष्य के समूह में हथियारों की कोई आवश्यकता नहीं होती है ! क्योंकि हथियारों की उत्पत्ति का कारण ही आक्रमण या आत्मरक्षा का भाव है ! आक्रमण व्यक्ति उसी अवस्था में करता है ! जब व्यक्ति के अंदर ईश्वर द्वारा दिये गये अधिकार या संसाधनों से अधिक प्राप्त करने की इच्छा हो और आत्मरक्षा तो धर्म का एक आवश्यक अंग है !
अर्थात दूसरे शब्दों में कहा जाये तो बिना किसी कारण के किसी पर आक्रमण करना जितना धर्म विरुद्ध है ! आक्रांता से अपनी रक्षा न करना भी उससे अधिक धर्म विरुद्ध है ! जब भी किसी भी मानव समूह में हथियारों की आवश्यकता महसूस की जाती है चाहे वह आक्रमण के लिये हो या आत्मरक्षा के लिये यह दोनों ही स्थिति इस ओर इंगित करती है कि पृथ्वी पर अभी तक मनुष्य विकसित नहीं हुआ है ! फिर वह स्थिति चाहे व्यक्तिगत स्तर पर हो या राष्ट्रीय स्तर पर !
मेरा चिंतन यह है कि जिस समाज में धर्म की परिपक्वता नहीं होती है ! उस समाज को हथियारों की अत्यधिक आवश्यकता महसूस होती है ! यदि किसी भी समाज में धर्म की परिपक्वता हो तो हर व्यक्ति अपने अधिकार और कर्तव्यों की मर्यादा में रहकर कार्य करेगा और सामाजिक संबंधों का पालन करेगा न कि वह व्यक्ति हथियारों की ताकत से सामाजिक अपराध करेगा !
आज हत्या, डकैती, बलात्कार, दूसरों के संपत्ति को हरण करने की इच्छा, यह सब कुछ मात्र इसीलिये है कि हम अभी बौद्धिक रूप से परिपक्व नहीं हो पाये हैं ! व्यक्ति में परिपक्वता त्याग और आत्म संयम से आती है ! जिस समाज में त्याग और आत्म संयम का प्रशिक्षण नहीं दिया जाता है ! वह समाज कभी भी परिपक्व नहीं हो सकता है !
आज दुर्भाग्य यह है कि विश्व की महाशक्ति कहे जाने वाले विकसित देश भी त्याग और आत्म संयम से विहीन हैं ! शायद इसीलिये उन्हें हथियारों की आवश्यकता महसूस होती है !
जबकि हथियार किसी समस्या का समाधान नहीं हैं बल्कि धर्म का मार्ग ही इस सृष्टि में हर समस्या का समाधान है ! इसीलिये धर्म का अनुकरण हर मनुष्य को करना चाहिये ! दूसरे शब्दों में कहा जाये तो यदि पृथ्वी का हर व्यक्ति अपने धर्म का अनुकरण करें तो उसे न तो आक्रमण के लिये और न ही आत्म रक्षा के लिये हथियारों की आवश्यकता होगी !!