बहुत महत्वपूर्ण जानकारी । ब्रह्मांड के सभी ग्रहों मे काल की गति एक समान नहीं है जरूर पढ़ें। Yogesh Mishra

समय की माप समान नहीं है

ऐसा माना जाता है कि काल (समय) की गति सभी स्थनों पर समान है किन्तु हमारे शास्त्र बतलाते हैं कि काल की गति गुरुत्व और गति के सापेक्ष चलती है अर्थात एक साथ जन्मे तीन व्यक्तियों में एक व्यक्ति यदि चाँद पर रहने लगे और एक व्यक्ति वृहस्पति पर रहने लगे तो चाँद पर रहने वाला व्यक्ति जल्दी बुढा होगा और शनि पर रहने वाला व्यक्ति देर से बुढा होगा क्योंकि पृथ्वी के मुकाबले चाँद का गुरुत्व कम और गति तेज है और शनि का गुरुत्व ज्यादा और गति धीमी है । इसी तथ्य को आइंस्टीन ने अपने दिक् व काल की सापेक्षता के सिद्धांत में प्रतिपादित किया है । उसने कहा, विभिन्न ग्रहों पर समय की अवधारणा भिन्न-भिन्न होती है। काल का सम्बन्ध ग्रहों की गति व गुरुत्व से रहता है। समय का माप अलग –अलग ग्रहों पर छोटा-बड़ा रहता है।

उदाहरण के लिये श्रीमद भागवत पुराण में कथा आती है कि रैवतक राजा की पुत्री रेवती बहुत लम्बी थी, अत: उसके अनुकूल वर नहीं मिलता था। इसके समाधान हेतु राजा योग बल से अपनी पुत्री को लेकर ब्राहृलोक गये। वे जब वहां पहुंचे तब वहां गंधर्वगान चल रहा था। अत: वे कुछ क्षण रुके।

जब गान पूरा हुआ तो ब्रह्मा ने राजा को देखा और पूछा कैसे आना हुआ? राजा ने कहा मेरी पुत्री के लिए किसी वर को आपने पैदा किया है या नहीं?
ब्रह्मा जोर से हंसे और कहा,- जितनी देर तुमने यहां गान सुना, उतने समय में पृथ्वी पर 27 चर्तुयुगी {1 चर्तुयुगी = 4 युग (सत्य,द्वापर,त्रेता,कलि ) = 1 महायुग } बीत चुकी हैं और 28 वां द्वापर समाप्त होने वाला है। तुम वहां जाओ और कृष्ण के भाई बलराम से इसका विवाह कर देना।

अब पृथ्वी लोक पर तुम्हे तुम्हारे सगे सम्बन्धी, तुम्हारा राजपाट तथा वैसी भोगोलिक स्थतियां भी नही मिलेंगी जो तुम छोड़ कर आये हो |
साथ ही उन्होंने यह भी कहा कि यह अच्छा हुआ कि रेवती को तुम अपने साथ लेकर आये। इस कारण इसकी आयु नहीं बढ़ी। अन्यथा लौटने के पश्चात तुम इसे भी जीवित नही पाते |अब यदि एक घड़ी भी देर कि तो सीधे कलयुग (द्वापर के पश्चात कलयुग ) में जा गिरोगे | इससे यह स्पष्ट होता है कि काल की गति का सम्बन्ध ग्रहों की गति व गुरुत्व पर निर्भर है। समय का माप अलग –अलग ग्रहों पर गति व गुरुत्व के अनुरूप छोटा-बड़ा रहता है।

इसी को आधुनिक वैज्ञानिकों ने भी कहा कि यदि एक व्यक्ति प्रकाश की गति से कुछ कम गति से चलने वाले यान में बैठकर जाए तो उसके शरीर के अंदर परिवर्तन की प्रक्रिया प्राय: स्तब्ध हो जायेगी।

यदि एक दस वर्ष का व्यक्ति ऐसे यान में बैठकर देवयानी आकाशगंगा की ओर जाकर वापस आये तो उसकी उम्र में केवल 56 वर्ष बढ़ेंगे किन्तु उस अवधि में पृथ्वी पर 40 लाख वर्ष बीत गये होंगे।

काल के मापन की सूक्ष्मतम इकाई के वर्णन को पढ़कर दुनिया का प्रसिद्ध ब्रहमांड विज्ञानी कार्ल सगन अपनी पुस्तक कॉसमॉस में लिखता है, –
“विश्व में एक मात्र हिन्दू धर्म ही ऐसा धर्म है, जो इस विश्वास को समर्पित है कि ब्रहमांड सृजन और विनाश का चक्र सतत चलता रहता है और यही एक धर्म है जिसमें काल के सूक्ष्मतम नाप परमाणु से लेकर दीर्घतम माप ब्राह्म के दिन और रात की गणना की गई है, जो 8 अरब 64 करोड़ वर्ष तक बैठती है तथा जो आश्चर्यजनक रूप से हमारी आधुनिक गणनाओं से मेल खाती है।”

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योगेश कुमार मिश्र 

ज्योतिषरत्न,इतिहासकार,संवैधानिक शोधकर्ता

एंव अधिवक्ता ( हाईकोर्ट)

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