आज इस्लाम हुसैनी ब्राह्मणों के बदौलत है !! : Yogesh Mishra

याजिद अपने नापाक साजिश को अंजाम देने ही वाला था कि भारत की तरफ से घोड़े पर सवार होकर जनेऊ धारे माथे पर तिलक लगाये ‘हुसैनी ब्राह्मण’ कर्बला की तरफ बढ़ रहे थे ! यह भारत के यह सभी मोहम्मद साहब के नवासे इमाम हुसैन ने जब सभी लोगों से इंसानियत को ज़िंदा रखने के लिए जंग-ए-कर्बला में शामिल होने का ऐलान किया था ! वही वीर सपूत थे, जो मदद की शक्ल में हिंदू और मुसलमानों के बीच प्रेम की एक सुनहरी कहानी लिखने कर्बाला पहुँच गये ! जिसे इस्लाम के एहसान फरामोशों ने भुला दिया !

इस्लाम का एक खास कनेक्शन हिंदू ब्राह्मणों से भी है, यह वो लोग थे जो अपने राजा के साथ हुसैन की मदद के लिए गए थे और वहां जान लड़ाकर लड़ाई लड़ी थी ! नबी मोहम्मद साहब के नवासे इमाम हुसैन ने जब सभी लोगों से इंसानियत को ज़िंदा रखने के लिए जंग-ए-कर्बला में शामिल होने का ऐलान किया था, तो उस जंग में शरीक होने के लिए यह हक़ परस्त जांबाज हिंदुस्तान से कर्बला जा पहुंचे ! कंधे पर जनेऊ डाले, माथे पर तिलक लगाए यह जांबाज ‘हुसैनी ब्राह्मण’ थे ! यह वही वीर सपूत थे, जो मदद की शक्ल में हिंदू और मुसलमानों के बीच प्रेम की एक सुनहरी इबारत लिखने कर्बला जा रहे थे !

कर्बला में ज़ालिम बादशाह यज़ीद अपनी हुकूमत के नशे में चूर होकर इंसानियत का चेहरा बिगाड़ देना चाहता था, लेकिन उसे पता था जब तक नबी मोहम्मद साहब के नवासे इमाम हुसैन ज़िंदा हैं तब तक वो अपनी मर्ज़ी की नहीं कर सकता ! उसके इसी डर ने इमाम हुसैन को उनके परिवार के साथ कर्बला में घेर कर उनसे हुकूमत के सामने सर झुकाने को कहा ! लेकिन उन्होंने यज़ीद की गुलामी करने से साफ इनकार कर दिया !

इमाम को दरिया-ए-फ़रात के किनारे घेर लिया गया ! उनके बच्चों और औरतों को प्यासा रखने का हुक्म दिया गया ! यह सब जुल्म यज़ीद के खत मिलने के बाद उसके सूबेदार इब्ने ज़ियाद ने इमाम हुसैन पर किए ! इमाम हुसैन की तरफ से भी ख़त लिखे गए ! कहते हैं कि लोग मुसीबत में अपनों को याद करते हैं, या फिर मुसीबत में जो साथ दे वही अपना होता है ! इमाम हुसैन ने अपने बचपन के दोस्त हबीब को एक खत लिखकर मदद को बुलाया !

दूसरा खत कर्बला से बहुत दूर भारत के एक हिंदू राजा के नाम भेजा ! यह ख़त इमाम हुसैन ने अपने भाई जैसे दोस्त भारत के मोहयाल राजा राहिब सिद्ध दत्त नाम भेजा था ! राहिब सिद्ध दत्त एक मोहयाल ब्राह्मण थे ! इमाम हुसैन की खबर मिलते ही राहिब दत्त मोहयाल ब्राह्मणों की सेना के साथ कर्बला के लिए निकल पड़े ! जब तक वो वहां पहुंचे तो इमाम हुसैन को शहीद किया जा चुका था !

यह जानकर राहिब दत्त का दिल टूट गया ! जोश में तलवार को गले पर रख लिया ! वो कहने लगे, “जिसकी जान बचाने आए थे वही नहीं बचा तो हम जीकर क्या करेंगे !” इमाम के चाहने वाले वीर योद्धा जनाबे अमीर मुख़्तार के मना करने पर राहिब ने तलवार को गर्दन से हटाया, और मुख़्तार के साथ मिलकर इमाम हुसैन के ख़ून का बदला लेने के मकसद से दुश्मनों से यादगार जंग करने निकल गए ! यह तारीख़ थी 10 अक्टूबर 680 ईसवी की !

उस समय यज़ीद की फौज़ इमाम हुसैन के सिर को लेकर कूफा में इब्ने जियाद के महल ला रही थी ! राहिब दत्त ने यजीद दस्ते का पीछा कर हुसैन का सिर छीना और दमिश्क की ओर कूच कर गए ! रास्ते में एक पड़ाव पर रात बिताने के लिए रुके, जहां यजीद की फ़ौज ने उन्हें घेर लिया ! हुसैन के सिर की मांग की !

राहिब दत्त ने इमाम का सिर बचाने के लिए अपने बेटे का सिर काट कर दे दिया ! जिस पर वो चिल्लाए, “यह इमाम हुसैन का सिर नहीं है” ! हुसैन का सिर बचाने के लिए राहिब दत्त ने अपने सातों बेटों का सिर काट डाला लेकिन फौजियों ने उन्हें हुसैन का सिर मानने से इनकार कर दिया !

राहिब दत्त के दिल में इमाम हुसैन के क़त्ल का बदला लेने की आग भड़क रही थी ! इसके लिए वो इमाम हुसैन के लिए लड़ रहे बाक़ी लोगों के साथ जंग-ए-मैदान में उतर आए ! बहादुरी से लड़ते हुए चुन-चुन कर हुसैन के कातिलों से बदला लिया ! उन्हें हिंदुस्तानी तलवार के जौहर दिखाए ! कूफे के सूबेदार इब्ने जियाद के किले पर कब्जा कर उसे गिरा दिया ! जंग-ए-कर्बला में इन मोहयाली सैनिकों में कई वीरगति को प्राप्त हुए !

जंग खत्म होने के बाद कुछ मोहयाली सैनिक वहीं बस गए और बाक़ी अपने वतन हिंदुस्तान वापस लौट आए ! इन वीर मोहयाली सैनिकों ने कर्बला में जहां पड़ाव डाला था उस जगह को ‘हिंदिया’ कहते हैं ! इतिहास इन वीर मोहयाल ब्राह्मणों को ‘हुसैनी ब्राह्मण’ के नाम से जानता है ! इस कुर्बानी को याद रखने के लिए हुसैनी ब्राह्मण मुहर्रम के वक़्त अपने घरों में दर्जनों नोहे पढ़ते हैं ! नोहा का मतलब है कर्बला की जंग में शहीद हुए लोगों को याद करना !

जंग-ए-कर्बला

कर्बला की जंग इंसानी तारीख़ की बहुत जरूरी घटना है ! यह महज जंग नहीं बल्कि जिंदगी के कई पहलुओं की लड़ाई भी थी ! इस लड़ाई की बुनियाद तो हज़रत मुहम्मद की मृत्यु के बाद रखी जा चुकी थी ! हजरत इमाम अली का खलीफ़ा बनना दूसरे खेमे के लोगों को पसंद नहीं था ! कई लड़ाइयां हुईं !

हसन के शहादत के बाद यजीद ने खुद को वहां का खलीफा घोषित कर दिया ! यजीद बेहद ही जालिम और तानाशाही किस्म का था ! यज़ीद चाहता था कि हुसैन उसके साथ हो जाएं, वो जानता था अगर हुसैन उसके साथ आ गए तो सारा इस्लाम उसकी मुट्ठी में होगा ! लाख दबाव के बाद भी हुसैन ने उसकी किसी भी बात को मानने से इनकार कर दिया, तो यजीद ने हुसैन को रोकने की योजना बनाई !

तारीख चार मई, 680 ईसवी को इमाम हुसैन मदीने में अपना घर छोड़कर शहर मक्का पहुंचे, जहां उनका हज करने का इरादा था लेकिन उन्हें पता चला कि दुश्मन हाजियों के भेष में आकर उनका कत्ल कर सकते हैं ! हुसैन नहीं चाहते थे कि काबा जैसे पवित्र स्थान पर खून बहे, फिर इमाम हुसैन ने हज का इरादा बदल दिया और शहर कूफे की ओर चल दिए ! रास्ते में दुश्मनों की फौज उन्हें घेर कर कर्बला ले आई, जहां उन्हें शहीद कर दिया गया !

मान्यताओं के मुताबिक राहिब सिद्ध दत्त यूं तो एक सुखी राजा थे पर उनकी कोई औलाद नहीं थी ! उन्होंने जब इमाम हुसैन का नाम सुना तो वो उनके पास गए ! उन्होंने कहा, ‘ इमाम साहब मुझे औलाद चाहिए, अगर आप ईश्वर से दुआ करेंगे तो मेरी पिता बनने की तमन्ना पूरी हो जाएगी !’ इस पर इमाम हुसैन ने जवाब दिया कि उनकी किस्मत में औलाद नहीं है ! यह सुनकर दत्त काफी दुखी होकर रोने लगे !

राहिब दत्त की यह उदासी इमाम हुसैन से देखी नहीं गई ! इमाम साहब ने राहिब दत्त के लिए अल्लाह से दुआ की ! जिसके बाद राहिब दत्त सात बेटों के पिता बने ! कहा जाता है कि इमाम हुसैन, उनके परिवार, और 72 अनुयायियों के साथ राहिब दत्त के सात बेटे भी कर्बला के जंग में शहीद हो गए थे !

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योगेश कुमार मिश्र 

ज्योतिषरत्न,इतिहासकार,संवैधानिक शोधकर्ता

एंव अधिवक्ता ( हाईकोर्ट)

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