अब हम जल्द ही कारण शरीर से बात कर सकेंगे !! जाने कैसे ? : Yogesh Mishra

अब विकसित विज्ञान भी मानता है कि भूत-प्रेत की आकृति में अदृश्य एथरिक और एस्ट्रल ऊर्जा भारतीय संस्कृति के अनुसार प्रेत योनि के समकक्ष एक विशेष योनि है ! जो एक प्रकार से प्रेत योनि ही है, लेकिन प्रेत योनि से थोड़ा विशिष्ट होने के कारण उसे प्रेत न कहकर पितृ योनि या “कारण शरीर” कहते हैं !

कारण शरीर अपने सूक्ष्म अंश को जब किसी स्थूल शरीर में प्रवेश करा देती है ! तब उस सूक्ष्म अंश को आत्मा कहा जाता है ! जो स्थूल शरीर को क्रियाशील रखता है और मृत्यु के समय यही आत्मा स्थूल शरीर छोड़ कर चली जाती है ! जिससे स्थूल शरीर ऊर्जा विहीन हो स्वत: नष्ट होने लगता है !

स्थूल शरीर के द्वारा ही इंद्रियों के माध्यम से व्यक्ति रसास्वादन कर सुख-दुख की अनुभूति करता है और बार-बार अतृप्त रसास्वादन की कमाना से इस जगत में आता जाता रहता है ! यह स्थूल शरीर की व्यवस्था प्रकृति में मात्र व्यक्ति को प्रशिक्षित करने के लिये दी गई है ! क्योंकि व्यक्ति का जो मूल स्वभाव है वह बिना स्वानुभूति के किसी भी सत्य को मारने के लिये तैयार नहीं है !

व्यक्ति के कर्म के प्रभाव के कारण जब व्यक्ति के साथ कोई घटना घटती है ! तो उस घटना के घटने के पूर्वी ही कारण शरीर को काल प्रवाह में वह घटना घट चुकने का आभास हो जाता है अर्थात जो घटना पूर्व में कारण शरीर के साथ घट चुकी होती है, वहीं घटना कुछ समय बाद इस संसार में हमारे स्थूल शरीर के साथ घटती है !

इसीलिये योगी जन जब कारण शरीर के साथ कोई घटना घटती है तो उसी से यह अनुमान लगा लेते हैं कि अब उनके स्थूल शरीर के साथ संसार में क्या घटना घटने वाली है ! किसी का मिलना, बिछड़ना, जीवन, मृत्यु, हानि, लाभ, जय, पराजय, यश, अपयश आदि आदि इन सारी घटनाओं का अनुमान इसीलिये योगी जन कारण शरीर के माध्यम से पूर्व में ही लगा लेते हैं और उसकी घोषणा कर हम आप जैसे सामान्य लोगों को आश्चर्यचकित कर देते हैं !

अब विज्ञान के संवेदनशील उपकरण इस कारण शरीर की ऊर्जा को समझकर उसके साथ संवाद स्थापित करने का प्रयास कर रहे हैं ! जिससे भविष्य को जाना जा सके ! ऐसी स्थिति में अभी स्पष्ट रूप से विज्ञान ने कोई विधा तो विकसित नहीं की है लेकिन ऐसा लगता है कि बहुत जल्द ही आध्यात्म का आधुनिक वैज्ञानिक स्वरूप जन सामान्य के अध्ययन के लिये उपलब्ध हो जाएगा !

यहां यह बतला देना आवश्यक है कि आज के भौतिक विज्ञानियों ने यह अनुभूत किया है कि प्रेत के शरीर की रचना में पच्चीस प्रतिशत फिजिकल एटम और पचहत्तर प्रतिशत एथरिक एटम होता है ! इसी प्रकार पितृ शरीर के निर्माण में पच्चीस प्रतिशत ईथरिक एटम और पचहत्तर प्रतिशत एस्ट्रल एटम होता है ! अगर ईथरिक एटम सघन हो जाये तो प्रेतों का छाया चित्र लिया जा सकता है और इसी प्रकार यदि एस्ट्रल एटम सघन हो जाए तो पितरों का भी छाया चित्र लिया जा सकता है !

लेकिन उसके लिये अत्यधिक सेन्सिटिव फोटो प्लेट की आवश्यकता पड़ेगी और वैसे फोटो प्लेट बनने की दिशा में कार्य चल रहा है ! फिर भी डिजिटल कैमरे की मदद से वर्तमान में इसके लिये जो फोटो प्लेट बनाते हैं उनके ऊपर अभी केवल बहुत सावधानी से प्रयास करने पर ही प्रेतों या पितरों के चित्र लिये जा सकते हैं ! क्योंकि ईथरिक एटम की एक विशेषता यह भी है कि वह मानस को प्रभावित करता है !

यही कारण है कि प्रेतात्मायें अपने मानस से अपने भाव शरीर को सघन कर लेती हैं या संकुचित कर लेती हैं और जहां चाहे वहां अपने आपको प्रकट कर देती हैं ! जो अणु दूर-दूर हैं वह मानस से सरक कर समीप आ जाते हैं और भौतिक शरीर जैसी रूपरेखा उनसे बन जाती है ! लेकिन अधिक समय तक वह एक दूसरे के निकट रह नहीं पाते ! मानस के क्षीण होते ही वह फिर दूर-दूर जाते हैं या लोप हो जाती हैं ! यही कारण है कि प्रेतछाया अधिक समय तक एक ही स्थान पर ठहर नहीं पाती है ! बल्कि कुछ ही सेकेंड्स में अदृश्य हो जाती है ! क्योंकि वह वायु तत्व है इसलिये अधिक समय तक सघन रहना उसकी मूल प्रकृति के विरुद्ध है !

जिस कृतिम गॉड पार्टिकल्स को जानने के लिये जिनेवा में धरती के 100 मीटर नीचे यह महाप्रयोग चल रहा है। वैज्ञानिकों ने ‘हिग्स बोसॉन’, यानि गॉड पार्टिकल के इस संकेत को इतना ठोस माना है कि अपने स्केल पर उसे पांच में से 4.9 सिग्मा बताया है ! उसी गॉड पार्टिकल्स के प्राकृतिक अंश अब अन्तरिक्ष में भी मिले हैं !
अपने अन्तरिक्ष अभियान और अनुसंधान के दौरान यूरोपियन ऑर्गेनाइजेशन फॉर न्यूक्लियर रिसर्च की प्रयोगशाला में 4 जुलाई 2012 को हिग्स बोबौसन यानी गॉड पार्टिकल होने के प्रारंभिक चित्रमय परिणाम मिले हैं !

इससे स्पष्ट है कि अन्तरिक्ष में ही कारण शरीरों के मिलने कल्पना भी अब बहुत जल्दी साकार हो सकती है !

अन्तिरक्ष यात्रियों का यह भी आकलन है कि सूदूर अन्तरिक्ष अभियानों के दौरान विचित्र किस्म की आवाजें और आकृतियों का देखा जाना या अचानक ही एक स्थान पर अन्तिरिक्ष सटल का एकाएक रुक जाना या फिर डगमगाने के पीछे कई रहस्यमय अस्तित्व की पुष्ट होती है !

नासा के लिये लाखों करोडों मील आगे का अन्तरिक्ष सफर निरापद नहीं है ! क्यों कि जिस प्रकार के अवरोध महसूस किये जाते हैं और कुछ सेकेंड्स के लिये भीषण शोर या ध्वनि का पैदा होना वह अभी भी अन्तिरिक्ष यात्रियों के लिये कौतुहल का विषय है ! अन्तिरिक्ष वैज्ञानिकों का यह भी मानना है कि पृथ्वी के अलावा कहीं न कहीं रहस्यमाय शक्तियों का कोई पुंज विद्यमान है ! जो हमें प्रभावित करता है !

स्टार वॉर और मार्स मिशन के बाद के अगले अभियानों में नासा इस बात पर विशेष ध्यान देने जा रहा है कि यूनिवर्स का भूत अर्थात कारण शरीर का पुंज अगर हमारे रास्ते में आये तो क्या किया जा सकता है ! और क्या इन कारण शरीर का पुंजों से सम्वाद कर या इनकी मदद से भविष्य को भी जाना जा सकता है !!

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योगेश कुमार मिश्र 

ज्योतिषरत्न,इतिहासकार,संवैधानिक शोधकर्ता

एंव अधिवक्ता ( हाईकोर्ट)

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