श्रीमद्भागवत गीता का वर्णन अन्य ग्रंथों में क्यों नहीं मिलता है ! : Yogesh Misha

अगर वर्तमान में प्रचलित 700 श्लोक का श्रीमद्भागवत गीता ही वह ग्रंथ है ! जो उपदेश भगवान श्री कृष्ण ने अर्जुन को रणभूमि में दिया था ! तो प्रश्न यह है कि महाभारत के रचयिता श्री वेदव्यास जिन्होंने महाभारत के एक अंश के रूप में श्रीमद्भागवत गीता का संग्रह अपने महान ग्रंथ में किया था ! तो यह कैसे संभव है कि भगवान श्री कृष्ण और अर्जुन के मध्य हुये ईश्वरीय संवाद का वर्णन वेदव्यास ने अपने द्वारा रचित 18 पुराण और 18 ही उपपुराणों में नहीं किया ! यह भी विचारणीय प्रश्न है कि किसी भी धर्म ग्रंथ या धर्म दर्शन आदि के किसी भी ग्रन्थ में कहीं भी किसी भी धर्म ग्रन्थ के रचैयता ने कहीं भी भगवान श्री कृष्ण द्वारा दिये जाने वाले उपदेश का वर्णन क्यों नहीं किया है ! तभी तो यह ज्ञान 3000 वर्षों तक विलुप्त रहा है !

यह तथ्य इस बात पर हमें सोचने के लिये बाध्य करता है कि वेदव्यास जो इतने प्रकांड ज्ञाता थे ! उन्होंने इतने महत्वपूर्ण उपदेश का वर्णन आखिर किसी अन्य ग्रंथों में क्यों नहीं किया !

इसके विषय में जब गंभीरता से चिंतन किया गया तो यह पता चला कि महाभारत ग्रंथ जिसकी रचना वेदव्यास ने की थी ! श्रीमद्भागवत गीता जिसका एक अंश है ! उस महाभारत ग्रंथ की रचना वेदव्यास ने महाभारत के युद्ध समाप्त हो जाने के 12 वर्ष बाद लेखन शुरू किया था !

उसकी मूल वजह यह थी कि वेद व्यास को जब पता चला कि युधिष्ठिर के राज सिंहासन के बाद धृतराष्ट्र अपने समस्त सौ पुत्रों की मृत्यु से दुखी होकर भाई विदुर, पत्नी गांधारी और भाभी कुंती के साथ वानप्रस्थ जाने का निर्णय लिया तदोपरांत जंगल में आग लग जाने के कारण जब सभी की मृत्यु उस आग में जलकर हो गई ! तब वेदव्यास ने महाभारत रूपी ग्रंथ लिखने का निर्णय लिया ! क्योंकि वह नहीं चाहते थे कि धृतराष्ट्र के जीवित रहते इस ग्रन्थ को लिखें ! क्योंकि ग्रन्थ लिखने पर जब समाज में उसकी चर्चा होगी ! तो उसमें वर्णित घटनाओं से धृतराष्ट्र को दुःख होता !

क्योंकि इसके पूर्व ही वेदव्यास 18 पुराण और 18 उपपुराणों की रचना कर चुके थे ! इसलिए महाभारत के अंदर वर्णित श्रीमद्भागवत गीता का वर्णन पुराण या उपपुराणों में नहीं मिलता है !

यहाँ यह भी बतलाना आवश्यक है कि महाभारत के मूल ग्रन्थ का नाम “जय” था ! जिसमें मात्र 18,000 श्लोक थे जिस ग्रंथ को सर्वप्रथम वेदव्यास में अपने पुत्र शुकदेव जी महाराज को सुनाया था ! किंतु जब शुकदेव जी महाराज ने इसे अर्जुन के प्रपौत्र जन्मेजय को उक्त जय ग्रंथ विस्तार के साथ सुनाया तो उसे “भारत” नाम दिया गया ! जिसमें श्लोकों की संख्या का विस्तार होकर 24,000 श्लोक हो गये !

इसी तरह 24,000 श्लोकों का “भारत” ग्रंथ काफी समय तक प्रचलन में रहा ! इसके बाद जब महर्षि लोम हर्षण के पुत्र सौति ने नैमिषारण्य नामक स्थान पर शौनक आदि 88,000 ऋषियों को विस्तार के साथ “भारत” नामक महाग्रंथ सुनाया ! तब उक्त कथा में अति विस्तार के कारण इसके श्लोकों की संख्या 1,00,000 से अधिक हो गई !

कालांतर में राजा विक्रमादित्य के समय में इसमें 20,000 और नये श्लोकों का समावेश किया गया ! इस प्रकार महाभारत सवा लाख श्लोकों के संग्रह का महाग्रन्थ बन गया ! जिसे बाद में “महाभारत” ग्रन्थ कहा गया ! इस ऐतिहासिक ग्रंथ में उस समय के संपूर्ण विश्व का समस्त ज्ञान संग्रहित था और जो सूचनायें इस ग्रंथ में वर्णित नहीं हैं ! इसका मतलब यह है कि महाभारत काल तक वैसा कुछ भी इस पृथ्वी पर घटित नहीं हुआ था !

अपने बारे में कुण्डली परामर्श हेतु संपर्क करें !

योगेश कुमार मिश्र 

ज्योतिषरत्न,इतिहासकार,संवैधानिक शोधकर्ता

एंव अधिवक्ता ( हाईकोर्ट)

 -: सम्पर्क :-
-090 444 14408
-094 530 92553

Check Also

प्रकृति सभी समस्याओं का समाधान है : Yogesh Mishra

यदि प्रकृति को परिभाषित करना हो तो एक लाइन में कहा जा सकता है कि …