मित्रो सर्वप्रथम आप भविष्य पुराण के बारे मे कुछ अंश जान लीजिये ।
व्यास जी द्वारा रचित हमारे 18 वैदिक पुराणों मे से भविष्य पुराण भी एक है… ,
भविष्य पुराण में मूलतः पचास हजार (50,000) श्लोक विद्यमान थे,परन्तु श्रव्य परम्परा पर निर्भरता और अभिलेखों के लगातार विनष्टीकरण (मुगलों द्वारा तक्षशिला और नालंदा जैसे विश्वविद्यालयों के पुस्तकालयों को जलाकर एंव मुगल शासन काल मे ब्राह्मणो द्वारा संचित धर्म ग्रंथो को छीन कर नष्ट कर दिया गया ) परिणामस्वरूप वर्तमान में केवल 129 अध्याय और चौदह हजार (14000) श्लोक ही उपलब्ध रह गये हैं,
और जैसा की आप जानते है ”रामायण” प्रभु श्री राम के जन्म के बहुत समय पूर्व ही महाऋषि वाल्मीकि जी द्वारा लिखी जा चुकी थी उसी प्रकार हमारे वैदिक ग्रंथ भविष्यपुराण मे इस कलयुग के अंत तक की हजारों घटनाओं का वर्णन पूर्व ही लिखा हुआ है
भविष्य पुराण के प्रतिसर्ग पर्व के तृतीय तथा चतुर्थ खण्ड में इतिहास की महत्त्वपूर्ण सामग्री विद्यमान है। इसमें मध्यकालीन हर्षवर्धन आदि हिन्दू राजाओं और अलाउद्दीन, मुहम्मद तुगलक, तैमूरलंग, बाबर तथा अकबर आदि का प्रामाणिक इतिहास इन सबके आने से पहले ही भविष्यपुराण मे निरूपित है। इसमें ईसा मसीह के जन्म एवं उनकी भारत यात्रा, हजरत मुहम्मद का आविर्भाव, द्वापर युग के चन्द्रवंशी राजाओं का वर्णन, कलियुग में होने राजाओं, बौद्ध राजाओं तथा चौहान एवं परमार वंश के राजाओं तक का वर्णन सब पूर्व ही लिखा है।
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मित्रो अब हम भविष्य महापुराण के (प्रतिसर्गपर्व, 3.3.1.5-27) के श्लोकों का भावार्थ समझते है ,( संस्कृत श्लोक सबसे अंत मे दिये गए हैं )
सूतजी ने कहा – ऋषियों ! शालिवाहन के वंश में अन्तिम दसवें राजा जो हुए है उनका नाम है भोजराज । (जिन्हे हम राजा भोज के नाम से जानते है )
राजा भोज ने देश की मर्यादा क्षीण होती देख दिग्विजय (विश्व जीतने )के लिए प्रस्थान किया । उनकी सेना दस हजार थी और उनके साथ कालिदास एवं अन्य विद्वान ब्राह्मण भी थे । सर्वप्रथम उन्होंने सिन्धु नदी को पार करके गान्धार मे म्लेच्छों और काश्मीर के शठ राजाओं को परास्त किया तथा उनका कोष छीनकर उन्हें दण्डित किया ।
(उसके पश्चात राजा भोज अफगान ,ईरान से होते हुये अरब के मक्का के मरुस्थल पहुंचे )
जहां राजा भोज ने मरुस्थल में विद्यमान महादेव जी का दर्शन किया । जिसे मक्केश्वर महादेव के नाम से जाना जाता था (जहां आज मुसलमान हज करने जाते है दरअसल वहाँ शिवलिंग स्थापित है google पर देख सकते है सैंकड़ों link और तस्वीरें मिल जाएगी )
राजाभोज ने महादेव जी को पञ्चगव्य मिश्रित गंगाजल से स्नान कराकर चन्दन आदि से भक्तिभाव पूर्वक उनका पूजन किया और उनकी स्तुति की ।( स्तुति मे राजा भोज ने कहा) हे मरुस्थल में निवास करने वाले तथा म्लेच्छों से गुप्त शुद्ध सच्चिदानन्द स्वरुप वाले गिरिजापते ! आप त्रिपुरासुर(राक्षस) के विनाशक तथा नानाविध मायाशक्ति के प्रवर्तक हैं । मैं आपकी शरण में आया हूँ, आप मुझे अपना दास समझें । मैं आपको नमस्कार करता हूँ ।
इस स्तुति को सुनकर भगवान् शिव ने राजा से कहा –
“हे भोजराज ! तुम्हें महाकालेश्वर तीर्थ (उज्जैन) में जाना चाहिए । यह वाह्विक नाम की भूमि (मक्का,अरब ), अब म्लेच्छों (नीच लोगो )से दूषित हो गई है । इस दारुण प्रदेश में आर्य-धर्म है ही नहीं । महामायावी त्रिपुरासुर(राक्षस जिसको शिवजी ने भस्म किया था )
यहाँ फिर दैत्यराज बलि द्वारा प्रेषित किया गया है । मेरे द्वारा वरदान प्राप्त कर वह दैत्य-समुदाय को बढ़ा रहा है । उसका नाम महामद (मद से भरा हुआ )(मोहम्मद) है । राजन् ! तुम्हें इस अनार्य देश में नहीं आना चाहिए । मेरी कृपा से तुम विशुद्ध हो ।
” भगवान् शिव के इन वचनों को सुनकर राजा भोज सेना के साथ अपने देश में वापस आने लगे तो आचार्य एवं शिष्यमण्डल के साथ म्लेच्छ महामद (मोहम्मद) नाम का व्यक्ति उपस्थित हुआ और अतिशय मायावी महामद ने प्रेमपूर्वक राजा से कहा- ”आपके देवता (अर्थात भगवान शिव ) ने मेरा दासत्व( गुलामी ) को स्वीकार कर लिया है।”
यह सुनकर राजा भोज आश्चर्य हुआ । महामद (मोहम्मद) के ये वचन सुनकर राजा भोज के साथ आए विद्वान ब्राह्मण कालिदास ने रोषपूर्वक महामद (मोहम्मद) से कहा- “अरे धूर्त ! तुमने राजा भोज को वश में करने के लिए माया की सृष्टि की है ।(झूठ कहा है की भगवान शिव ने तुम्हारा दासत्व( गुलामी ) को स्वीकार कर लिया है।”) मैं तुम्हारे जैसे दुराचारी अधम पुरुष को दंड दूंगा ।“
यह कहकर कालिदास जी नवार्ण मन्त्र (ॐ ऐं ह्रीं क्लीं चामुण्डायैविच्चे) के जप में संलग्न हो गये । उन्होंने (नवार्ण मन्त्र का) जप करके उसका दशांश (एक सहस्र) हवन किया ।(और हवन की भस्म को म्लेच्छ (मोहम्मद) की ओर फेंका ) जिससे उस मायावी म्लेच्छ की मूछ जलकर वहीं गिर गई (जो दुबारा नहीं निकली )
तब क्रोध में महामद ने कहा– “हे राजन् ! आर्य धर्म अत्यन्त पवित्र तथा निःसन्देह सर्वश्रेष्ठ धर्म है फिर भी शिव कृपा से मैं एक भयानक तथा पैशाचिक सम्प्रदाय की स्थापना करूँगा । मेरे द्वारा स्थापित उस क्रूर एवं पापिष्ठ सम्प्रदाय की जो पहचान होगी वह सुनो –
उस सम्प्रदाय का अनुकरण करने वालो के लिए लिन्गोच्छेदन (खतना करवाना ) अनिवार्य होगा और वो केवल दाढ़ी रखेंगे एवं शिखा का त्याग करेंगे तथा उनके लिए तिलक का निषेध होगा । भोजराज ! यह सम्प्रदाय क्रूर तथा कपट का आचरण करने वालो को अतिप्रिय होगा जिनको शोर मचाना तथा कुछ भी (मांस) खाना ईच्छित है । जिस प्रकार तुम शुद्धिकरण हेतु कुश का उपयोग करते हो, उसी प्रकार मेरा अनुकरण करने वाले अशुद्ध वध करके भक्षण करेंगे इसलिए उनको मुसलमान कहा जाएगा । इस तरह मन्दमति जन को आकर्षित कर मैं म्लेच्छ (नीच ) धर्म का विस्तार करूँगा।”
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तो अंत मे महामद (मोहम्मद) मुंछों के बालों को श्रीनगर मे एक स्थान जिसे आज (हजरतबल मस्जिद ) कहते है वहाँ विजय प्रतीक के रूप में रख दिया गया|
श्रीनगर शहर के हजरजबल मस्जिद के बारे में कहा जाता है कि यहाँ मुसलमानों के पैगम्बर हजरत मोहम्मद के बाल सुरक्षित रखे हुए हैं। (google पर ”hazratbal masjid ”search कर देख सकते है)
यह धार्मिक स्थल, मुस्लिमों के लिए काफी पवित्र माना जाता है, कहा जाता है कि पैगंबर मोहम्मद के पवित्र बाल मोई – ए – मु़कद्दस के नाम से यहां रखे हुए हैं। इन बालों को आम जनता के लिए कुछ खास मौकों पर ही खोला जाता है और दीदार करवाया जाता है।
अब प्रश्न यह उठता है कि मुहमद साहब तो अरब मे थे ,अरब (मक्का )से 8,000 किलोमीटर दूर हजरत पैगंबर मोहम्मद के बाल भारत के श्रीनगर मे पहुंचे कैसे (जबकि उस जमाने में लोग घोड़े, खच्चर, ऊंट से चलते थे) इसका वर्णन भविष्य पुराण में है जो आपने ऊपर पढ़ा ,
तो इसी लिए मित्रो मुसलमान दाढ़ी तो रखते है लेकिन मूंछ नहीं रखते ।
नोट ( आप मे से कुछ लोग इस पूरे लेख पर संदेह कर सकते है उनके मन मे ये बात आ सकती है कि ये सारा लेख फर्जी है आखिर भविष्य पुराण मे मुसलमानो के मुहमद
साहब के जन्म और उनके द्वारा इस्लाम धर्म की स्थापना का वर्णन कैसे हो सकता है ??
ऐसी लोगो के लिए सबूत के तौर पर हमने नीचे विडियो का link दिया जिसमे इस्लाम धर्म के सबसे बड़े ठेकेदार DR zakir naik खुद ये स्वीकार कर रहे है की हिन्दुओ के भविष्य पुराण मे मुहमद साहब उनके द्वारा इस्लाम धर्म की स्थापना का वर्णन है ,)
योगेश मिश्रा -(संपर्क -09453092553)
विडियो देखें ।
प्रमाण :- भविष्य पुराण पर्व 3, खण्ड 3, अध्याय 1, श्लोक 5,से 27 तक
‘एतस्मिन्नन्तरे म्लेच्छ आचार्येण समन्वितः ।
महामद इतिख्यातः शिष्यशाखा समन्वितः ।। 5।।
नृपश्चैव महादेवं मरुस्थलनिवासिनम् ।
गंगाजलैश्च संस्नाप्य पंचगव्यसमन्वितैः ।
चन्दनादिभिरभ्यच्र्य तुष्टाव मनसाहरम् ।। 6 ।।
भोजराज उवाच
नमस्ते गिरिजानाथ मरुस्थलनिवासिने ।
त्रिपुरासुरनाशाय बहुमायाप्रवर्तिने ।। 7 ।।
म्लेच्छैर्मुप्ताय शुद्धाय सच्चिदानन्दरूपिणे ।
त्वं मांहि किंकरंविद्धि शरणार्थमुपागतम्।। 8 ।।
सूत उवाच
इतिश्रुत्वा स्तवं देवः शब्दमाह नृपायतम् ।
गंतव्यं भोजराजेन महाकालेश्वरस्थले ।। 9 ।।
म्लेच्छैस्सुदूषिता भूमिर्वाहीका नामविश्रुता ।
आर्यधर्मो हि नैवात्र वाहीके देशदारुणे ।। 10 ।।
वामूवात्र महामायो योऽसौ दग्धो मयापुरा।
त्रिपुरोबलिदैत्येन प्रेषितः पुनरागतः ।। 11 ।।
अयोनिः स वरोमत्तः प्राप्तवान्दैत्यवर्द्धनः ।
महामद इतिख्यातः पैशाचकृतितत्परः ।। 12 ।।
नागन्तव्यं त्वया भूप पैशाचेदेशधूर्तके ।
मत्प्रसादेन भूपालतव शुद्धि प्रजायते ।। 13 ।।
इतिश्रुत्वा नृपश्चैव स्वदेशान्पु नरागमतः ।
महामदश्च तैः साद्धै सिंधुतीरमुपाययौ ।। 14 ।।
उवाचभूपतिंप्रेम्णा मायामदविशारदः।
तव देवोमहाराजा मम दासत्वमागतः ।। 15 ।।
इतिश्रुत्वा तथापरं विस्मयमागतः ।। 16 ।।
म्लेच्छधनें मतिश्चासीत्तस्य भूपस्य दारुणे ।। 17 ।।
तच्छ्रुत्वा कालिदासस्तु रुषा प्राह महामदम् ।
माया ते निर्मिताधूर्त नृपमोहनहेतवे ।। 18 ।।
हनिष्यामिदुराचारं वाहीकं पुरुषाधनम् ।
इत्युक्त् वास जिद्वः श्रीमान्नवार्णजपतत्परः ।।19 ।।
जप्त्वा दशसहस्रंच तदृशांशजुहाव सः ।
भस्म भूत्वा स मायावी म्लेच्छदेवत्वमागतः ।। 20।।
मयभीतास्तुतच्छिष्यादेशं वाहीकमाययुः ।
गृहीत्वा स्वगुरोर्भस्म मदहीनत्वामागतम् ।। 21 ।।
स्थापितंतैश्च भूमध्येतत्रोषुर्मदतत्पराः ।
मदहीनं पुरं जातंतेषांतीर्थं समं स्मृतम् ।। 22 ।।
रात्रौस देवरूपश्च बहुमायाविशारदः ।
पैशाचंदेहमास्थाय भोजराजं हि सोऽब्रवीत् ।। 23।।
आर्यधर्मो हि ते राजन्सर्वधर्मोत्तमः स्मृतः ।
ईशाख्याकरिष्यामि पैशाचंधर्मदारुणम् ।। 24 ।।
लिंगच्छेदीशिखाहीनः श्मश्रु धारी स दूषकः ।
उच्चालापी सर्वभक्षी भविष्यतिजनोमम ।। 25 ।।
विना कौलंच पशवस्तेषां भक्षया मतामम ।
मुसलेनेव संस्कारः कुशैरिवभविष्यति।। 26 ।।
तस्मान्मुसलवन्तो हि जातयो धर्मदूषकाः ।
इतिपैशाचधर्मश्च भविष्यतिमयाकृतः ।। 27 ।।’
(भविष्यमहापुराणम् (मूल पाठ एवं हिंदी-अनुवा सहित),
अनुवादक: बाबूराम उपाध्याय,प्रकाशक: हिंदी -साहित्य-सम्मेलन, प्रयाग; ‘कल्याण’ (संक्षिप्त भविष्य पुराणांक), प्रकाशक: गीताप्रेस, गोरखपुर,जनवरी,1992 ई.)
(भविष्य पुराण पर्व 3, खण्ड 3, अध्याय 1, श्लोक 5,से 27 तक )